हीरोइन - उपन्यास
Prabodh Kumar Govil
द्वारा
हिंदी उपन्यास प्रकरण
फ़िल्मों का शुरुआती दौर पुरुषों या लड़कों के अभिनय का था। फ़िल्म में लड़की का रोल भी लड़के ही करते थे। सुन्दर, छरहरे, चिकने युवा लड़के महिला परिधान में स्त्री भूमिका करते।
आवाज़ को लेकर पहले तो कोई बाधा इसलिए ...और पढ़ेआई, क्योंकि फ़िल्में मूक हुआ करती थीं, बाद में जब बोलती फ़िल्मों का ज़माना आया तो फ़िल्म में काम करने के लिए महिलाओं की तलाश शुरू हुई।
इस काम को अच्छा नहीं माना जाता था। इसलिए भले घर की लड़कियां तो इसके सपने भी नहीं देख सकती थीं। हां, अनाथ, बेसहारा,गरीब या तवायफों, नर्तकियों व वैश्याओं की बच्चियों को मना कर, फुसला कर,लालच देकर फ़िल्म अभिनय के लिए लाया जाता।
देखते- देखते मनोरंजन की ये विधा समाज के सिर चढ़ कर ऐसी बोली, कि फ़िल्म तारिका बनना हर सुन्दर और प्रतिभाशाली लड़की का ख़्वाब बनने लगा।
चालीस के दशक में कुछ ऐसी अभिनेत्रियां आईं जिन्होंने फ़िल्में तो कीं, सफल भी हुईं, पर वो पूरी तरह अपने अभिभावकों, नायकों या फिल्मकारों की छत्रछाया में ही रहीं। फ़िल्म चुनना, पैसे की मांग करना या भूमिका को किस सीमा तक ले जाना है, ये उनके अपने हाथ में नहीं था।
फ़िल्मों का शुरुआती दौर पुरुषों या लड़कों के अभिनय का था। फ़िल्म में लड़की का रोल भी लड़के ही करते थे। सुन्दर, छरहरे, चिकने युवा लड़के महिला परिधान में स्त्री भूमिका करते। आवाज़ को लेकर पहले तो कोई बाधा ...और पढ़ेनहीं आई, क्योंकि फ़िल्में मूक हुआ करती थीं, बाद में जब बोलती फ़िल्मों का ज़माना आया तो फ़िल्म में काम करने के लिए महिलाओं की तलाश शुरू हुई। इस काम को अच्छा नहीं माना जाता था। इसलिए भले घर की लड़कियां तो इसके सपने भी नहीं देख सकती थीं। हां, अनाथ, बेसहारा,गरीब या तवायफों, नर्तकियों व वैश्याओं की बच्चियों को
निम्मी और मधुबाला लगभग एक साथ ही दुनिया में और एक साथ ही फिल्मी दुनिया में आई थीं। दोनों की ही दिलीप कुमार के साथ जोड़ी भी जमी। निम्मी ने आन, अमर, उड़न खटोला जैसी बड़ी और लोकप्रिय फ़िल्में ...और पढ़ेबरसात भी उनकी कामयाब मंज़िल थी। लगभग इन्हीं वर्षों में मधुबाला भी मिस्टर एंड मिसेज 55, चलती का नाम गाड़ी, बरसात की रात जैसी हिट फिल्में लगातार दे रही थीं। दोनों ही नाम बदल कर फ़िल्मों में आई थीं। मुस्लिम कलाकार उन दिनों न जाने क्यों हिन्दू नामों के साथ दिखाई दिए। शायद इसका एक कारण ये था कि देश
मीना कुमारी को फ़िल्म जगत ने ट्रेजेडी क्वीन का खिताब दे डाला था, क्योंकि वे पर्दे पर दुख को बेहतरीन तरीके से जीती थीं। लेकिन ऐसा नहीं था कि वे दुख को साकार करने वाली अकेली अभिनेत्री ही थीं। ...और पढ़ेने इस मामले में भी लगातार उन्हें टक्कर दी। नूतन की सुजाता, बंदिनी, खानदान जैसी फ़िल्मों ने मनोरंजन जगत में करुणा को पोसने का काम बखूबी किया। उधर मीना कुमारी ने साहिब बीबी और गुलाम, कोहिनूर,दिल एक मंदिर,आरती जैसी फ़िल्मों में औरत की प्यास को भी शानदार अभिव्यक्ति दी। दर्शकों को जब पता चला कि मीना कुमारी अपने निजी जीवन
वैजयंतीमाला फ़िल्मों में दक्षिण का ऐसा पहला चेहरा थीं जो जल्दी ही अखिल भारतीय चेहरा बन गईं। कुशल नृत्यांगना होने के साथ उनके चेहरे पर गजब का भोलापन और मासूमियत थी। उनके डांस ने कई गीतों को अमर बनाया। ...और पढ़ेनया दौर, गंगा जमना, संगम, आम्रपाली और ज्वैल थीफ़ जैसी फ़िल्मों ने उनका कद बेमिसाल बना दिया। फ़िल्म इंडस्ट्री में इसी को नंबर वन कहा जाता है। नरगिस के फ़िल्मों से दूर होने, मधुबाला के कम उम्र में दुनिया से रुखसत होने और मीना कुमारी के अपने ही गम में डूब जाने के बावजूद वैजयंतीमाला का रास्ता आसान नहीं था।
साठ के दशक में आई साधना और आशा पारेख के बीच शुरू से ही कांटे की टक्कर रही। जिस समय ये दोनों फ़िल्मों में आईं,तब टॉप पर वैजयंती माला और दूसरे नंबर पर माला सिन्हा का बोलबाला था। जल्दी ...और पढ़ेये पहले दो स्थान साधना और आशा पारेख को मिल गए। इन दोनों के मुक़ाबले का आलम ये था कि इनकी फ़िल्में शीर्षक तक में एक दूसरे की होड़ करती थीं। साधना की "लव इन शिमला" और आशा पारेख की "लव इन टोक्यो" तो आपको याद होगी ही। फिर साधना की "मेरे महबूब" और आशा पारेख की "मेरे सनम" को
ये एक दिलचस्प बात है कि कभी - कभी आपके बोए हुए पेड़ बहुत देर से फल देते हैं। वहीदा रहमान के साथ यही हुआ। उनका आगमन फ़िल्मों में पचास के दशक में हो गया था, उनकी फ़िल्मों ने ...और पढ़ेभी पाई पर वे नंबर गेम में शामिल नहीं मानी गईं। उनकी बेहद सफल फ़िल्मों "चौदहवीं का चांद", "प्यासा", "काग़ज़ के फूल" के दौर में चर्चा गुरुदत्त की ही होती रही। फ़िर प्यासा में माला सिन्हा और साहिब बीबी और गुलाम में मीना कुमारी के साथ होने पर उनकी सफलता बंट गई। लेकिन इतना ज़रूर है कि उनके अभिनय की
हिंदी फ़िल्म जगत का ये दस्तूर है कि यहां हर साल चाहे दर्जनों नए हीरो हीरोइन अपनी किस्मत आजमाने आते रहें,पर टॉप, यानी कि नंबर वन पोजीशन पर हमेशा कोई एक ही रहता या रहती है। और दिलचस्प बात ...और पढ़ेहै कि जो भी हीरो या हीरोइन शिखर के एक नंबर पर हो, उसे न तो आसानी से वहां तक पहुंचने दिया जाता है और न ही वहां पहुंच कर चैन से बैठने दिया जाता है। साठ का दशक बीतते बीतते ये तय हो गया था कि अब जल्दी ही कोई नई नायिका टॉप पर दिखाई देने वाली है क्योंकि
फ़िल्मों के इतिहास में सबसे कठिन, कांटेदार और करामाती मुकाबला रेखा का ही माना जाता है। जितनी प्रतिद्वंदिता अपनी समकालीन अभिनेत्रियों से रेखा को मिली, वो एक मिसाल है। रेखा सितारों के बीच चांद की तरह एकाएक नहीं दिख ...और पढ़ेउन्हें ज़ीनत अमान के जुझारूपन, परवीन बॉबी के रूप, रीना रॉय के प्रशिक्षित अभिनय, जया बच्चन की "अपने घर - परिवार की लड़की" की छवि, राखी गुलज़ार की भाव प्रवण अभिव्यक्ति और शबाना आज़मी व स्मिता पाटिल के सार्थक फ़िल्म अभियान से लोहा लेकर अपने को सिद्ध करना पड़ा। लगभग इसी दौर में योगिता बाली, विद्या सिन्हा, जरीना वहाब ने
फ़िल्म जगत में जब कोई हीरो या हीरोइन "नंबर एक" की कुर्सी पर काबिज़ होते हैं तो उनको किसी न किसी शानदार आर्टिस्ट से ज़बरदस्त चैलेंज ज़रूर मिलता है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी स्टार की कोई शानदार ...और पढ़ेफिल्म आई और उसे सीधे सुपरस्टार का दर्ज़ा मिल गया हो। उसे नंबर वन कहलाने के लिए अपने समकालीन श्रेष्ठ लोगों से टक्कर ज़रूर लेनी पड़ती है। "सोलवां सावन" से जब श्रीदेवी आईं तो फ़िल्म बहुत कामयाब न होते हुए भी लोगों ने इस नई तारिका की ताज़गी ज़रूर महसूस की। लेकिन जब उनकी "हिम्मतवाला" सुपरहिट हुई तो उसके बाद
ये मुकाबला दिलचस्प होता, अगर होता! आपको ये बात कुछ अटपटी सी लग रही होगी पर असलियत ये है कि माधुरी दीक्षित जब कुछ शुरुआती फ़िल्मों की असफलता देखने के बाद फ़िल्म "तेज़ाब" से आगे बढ़ीं, तो फ़िल्म जानकारों ...और पढ़ेमुताबिक़ उन्हें दिव्या भारती से चुनौती मिलनी तय थी। किन्तु दैव योग से दिव्या दुनिया में रहीं ही नहीं। बात बदल गई और माधुरी एक के बाद एक सुपर हिट फ़िल्मों की पायदान चढ़ती रहीं। शायद ये पहला अवसर था जब फ़िल्म आकाश में आई कोई नई अभिनेत्री बिना किसी मुकाबले के सर्वश्रेष्ठ दिख रही थी। हम आपके हैं कौन,
सदी के आखिरी दशक तक आते - आते फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े बदलाव आए। एक बड़ा बदलाव ये था कि पहले फ़िल्मी परिवारों के जो लोग फ़िल्मों में आते थे, वे इस बात को छिपाते थे कि वे किसी ...और पढ़ेस्टार के संबंधी हैं। वे चुपचाप आ जाते, और जब सफल या असफल हो जाते, तब मीडिया को पता चल पाता था कि ये अमुक फ़िल्म स्टार के संबंधी हैं। लेकिन अब बाकायदा बड़े सितारे अपने पुत्र - पुत्रियों को ज़ोर शोर से ये कह कर लॉन्च करने लगे थे कि वे अपनी विरासत अपनी संतान को सौंप रहे हैं।
सदी के आखिरी दशक में भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय सौंदर्य स्पर्धाओं से बेहद उत्साह जनक खबरें आईं। लगातार कई विश्व सुंदरियां और मिस यूनिवर्स तक भारत से हुईं। सुंदरता का झरना कहीं बहे,और उसका असर फिल्मी दुनिया पर न ...और पढ़ेये मुमकिन नहीं। लिहाज़ा मिस वर्ल्ड ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा, युक्ता मुखी, मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन और लारा दत्ता सहित दीया मिर्ज़ा और नेहा धूपिया आदि फिल्मी दुनिया में अपने जलवे बिखेरने चली आईं। कई बड़े निर्माता निर्देशकों ने रूप की इन देवियों पर दाव लगाए। एक बार तो ऐसा लगने लगा मानो ब्यूटी कॉन्टेस्ट फिल्मी दुनिया का एंट्री प्वाइंट
सदी जा रही थी और एक नई सदी आ रही थी। नया ज़माना दस्तक दे रहा था। शाहरुख खान और काजोल की सुपर हिट फ़िल्म "कुछ कुछ होता है" में जब एक नई तारिका ने मीठे स्वर में सनातन ...और पढ़ेआरती "ओम जय जगदीश हरे..." गाना शुरू किया तो सिनेमा घरों में अवाम ने भी उसके साथ- साथ गुनगुना कर मानो ये ऐलान कर दिया कि ईश्वरीय आस्थाएं नई सदी में भी हमारे साथ जाएंगी। ये अभिनेत्री रानी मुखर्जी थी। हमारी फ़िल्मों में कभी ये रिवाज़ था कि हीरो- हीरोइन स्क्रीन टेस्ट के साथ - साथ वॉइस टेस्ट लेकर ही
भारतीय फिल्म आकाश में कई नक्षत्र सितारों से चमके हैं। अलबत्ता बॉलीवुड तो है ही सितारों की आकाश गंगा, द ग्रेट गैलैक्सी ! लेकिन फ़िर भी समय - समय पर यहां चमक और दमक के अखाड़े सजे हैं। अपनी ...और पढ़ेहिम्मत, जीवट और ताक़त से एक नक्षत्र ने दूसरे को अपने और जग के सामने झुकाया है, और देखने वालों को मुकाबलों का मज़ा आया है। पृथ्वी राज कपूर के खानदान की एक बेटी करिश्मा का करिश्मा देख लेने के बाद जब दूसरी करीना, फ़िल्मों में आने के लिए घर की दहलीज पर आई तो लोगों की निगाहें सहसा उठ
नई सदी में फ़िल्म कलाकारों की मानसिकता में एक बड़ा बदलाव ये आया कि कलाकार अपनी भूमिका और उसमें उनके अभिनय के असर पर ज़्यादा ध्यान देने लगे। उनके लिए ये महत्वपूर्ण न रहा कि रोल हीरोइन का है, ...और पढ़ेका है, कॉमेडी है,या सपोर्टिंग है। एक साथ ही नायिका और सह नायिका,या खलनायिका का काम करने में भी उन्हें ऐतराज़ न रहा। शरत चन्द्र के उपन्यास "परिणीता" के फिल्मांकन से हिंदी फ़िल्मों में कदम रखने वाली विद्या बालन इससे पहले दक्षिण की फ़िल्में करने के साथ बांग्ला में भी काम कर चुकी थीं। उन्हें लोगों ने हम पांच, लगे
ज़ीनत अमान के बाद एक और सफल अंग्रेज़ अभिनेत्री के तौर पर कैटरीना कैफ जब फ़िल्मों में आईं तब बिपाशा बासु, लारा दत्ता जैसी अभिनेत्रियां कई बड़ी फ़िल्मों में अभिनेत्री प्रधान भूमिकाएं कर रही थीं। बिपाशा ने अपनी पहली ...और पढ़ेहिन्दी फ़िल्म "राज़" से हलचल मचाई जिसमें वे डीनो मोरिया के साथ थीं। वे अन्य भारतीय भाषाओं, बांग्ला आदि में भी सक्रिय थीं, और उनकी फिल्में "जिस्म,रुद्राक्ष,अपहरण,बरसात" आदि औसत व्यवसाय करते हुए भी पसंद की गई थीं। लेकिन ओंकारा, धूम 2 और रेस जैसी फ़िल्मों ने उन्हें बड़ी अभिनेत्री के तौर पर स्थापित किया। वे "द लवर्स" जैसे हॉलीवुड प्रोजेक्ट
नायिकाओं के लिए फ़िल्मों का ये दौर बेहद चुनौती भरा था। इसका कारण ये था कि अब कलाकारों की वैल्यू उनकी अभिनय क्षमता से नहीं, बल्कि इस बात से आंकी जाने लगी थी कि वे अभिनय का कितना पैसा ...और पढ़ेहैं। और ये धन इस बात से तय होता था कि आपकी फ़िल्म ने कितना पैसा कमाया। इसका नतीजा ये हुआ कि अभिनेता लोग व्यापारिक जोड़ - तोड़ पर ध्यान दे रहे थे, और इस काम में महिलाओं की ज़्यादा दिलचस्पी न होने से वे पिछड़ रही थीं। लेकिन दूसरी तरफ फ़िल्म लेखन, निर्माण और निर्देशन में भी महिलाएं बड़ी
हिंदी फ़िल्म जगत का पिछले लगभग आठ दशक का इतिहास बताता है कि यहां एक टॉप पर पहुंचे हुए आर्टिस्ट का चोटी पर बने रहने का समय अनुमानतः तीन से पांच साल होता है। ये अवधि कुछ विलक्षण अभिनेता ...और पढ़ेअभिनेत्रियों के मामले में इससे कुछ ज़्यादा भी हो सकती है, किन्तु प्रायः इतने समय बाद दर्शक उनका कोई तोड़ ढूंढने लगते हैं। "नंबर एक" पर पहुंचने के बाद कलाकार अपने मन चाहे रोल्स, मुंहमांगा पारिश्रमिक और इच्छित प्रोजेक्ट्स की मांग, या कम से कम इच्छा करने लगता है। और इसके बाद उसे किसी दौड़ में नहीं माना जाता। कंगना
सदी का दूसरा दशक बीत चुका है। सदी बाईसवें साल और तीसरे दशक की राह पकड़ चुकी है। तो अब ऐसे में हिंदी फ़िल्मों का सर्वोच्च शिखर किस अदाकारा का नाम अपने मस्तक पर लिखने जा रहा है, ये ...और पढ़ेबेहद दिलचस्प है। फिल्मी दुनिया में दर्शकों और सितारों की ये मुठभेड़ कभी ख़त्म नहीं होती। जहां सितारे कालजयी होने की अभिलाषा मन में पाले हुए हमेशा शिखर पर बने रहने का ख़्वाब देखते हैं वहीं दर्शक अपने मन में स्थापित करने के लिए नये ताज़गी भरे चेहरे की तलाश में रहते हैं। किसी कलाकार और स्टार के बीच एक