हीरोइन - 3 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हीरोइन - 3

मीना कुमारी को फ़िल्म जगत ने ट्रेजेडी क्वीन का खिताब दे डाला था, क्योंकि वे पर्दे पर दुख को बेहतरीन तरीके से जीती थीं। लेकिन ऐसा नहीं था कि वे दुख को साकार करने वाली अकेली अभिनेत्री ही थीं। नूतन ने इस मामले में भी लगातार उन्हें टक्कर दी।
नूतन की सुजाता, बंदिनी, खानदान जैसी फ़िल्मों ने मनोरंजन जगत में करुणा को पोसने का काम बखूबी किया।
उधर मीना कुमारी ने साहिब बीबी और गुलाम, कोहिनूर,दिल एक मंदिर,आरती जैसी फ़िल्मों में औरत की प्यास को भी शानदार अभिव्यक्ति दी।
दर्शकों को जब पता चला कि मीना कुमारी अपने निजी जीवन में भी निराश हैं, तो उन्हें नूतन कहीं ज़्यादा समर्थ अभिनेत्री नज़र आने लगीं।
इसका कारण ये था कि एक ख्यात अभिनेत्री की बेटी और फिल्मी परिवार की लड़की होने के साथ साथ नूतन सौंदर्य प्रतियोगिता भी जीत कर आई थीं, इसलिए देखने वाले ये मानते थे कि परदे पर यदि नूतन दुःख दिखा पा रही हैं तो ये उनकी एक्टिंग है, जबकि मीना कुमारी का दुःख उनकी ज़िन्दगी है।
लेकिन कुछ लोग ये भी कहते हैं कि नूतन निहायत मामूली शक्ल सूरत की थीं, इसलिए उनके व्यक्तित्व को ग्लैमर का तड़का लगाने के लिए सौंदर्य स्पर्धा की बात को यूं ही हवा दी गई। क्योंकि भारत की प्रामाणिक "मिस इंडिया सूची" में उनका कहीं नाम नहीं है। ये बात कुछ हद तक बाद में सिद्ध भी हुई जब उनकी "लाट साहब" जैसी ग्लैमरस फ़िल्म सफ़ल नहीं हुई।
मीना कुमारी बालपन से ही फ़िल्में कर रही थीं और अपना एक खास मुकाम बना कर दर्शकों की सहानुभूति भी बटोर चुकी थीं, लिहाज़ा उनका पलड़ा कालांतर में कुछ भारी पड़ता दिखा। दर्शक उन्हें बैजू बावरा और मैं चुप रहूंगी जैसी फ़िल्मों में देख कर कहने लगे कि दुःख का दूसरा नाम ही मीना कुमारी है।
मीना कुमारी ने इस बराबर की टक्कर वाली स्पर्धा में टॉप छू लिया और वो कुछ समय के लिए फ़िल्म जगत की "नंबर एक" हीरोइन कहलाईं।
"पाकीज़ा" फ़िल्म के साथ मीना कुमारी का फिल्मी सफ़र ही नहीं, बल्कि ज़िन्दगी का सफ़र भी पूरा हुआ। मीना कुमारी की दिन रात की शराबनोशी उन्हें ले डूबी।
जबकि नूतन ने बाद में चरित्र अभिनेत्री की दूसरी कामयाब पारी भी खेली। मैं तुलसी तेरे आंगन की, धर्मा आदि दूसरी पारी की उनकी बेहद सफ़ल फिल्में रहीं।
नरगिस, मधुबाला के साथ मीना कुमारी का नाम सर्वोच्च शिखर के सुपर सितारों में जुड़ गया, जिन्हें फिल्मी ज़ुबान में नंबर वन कहा जाता है।
शोभना समर्थ की दोनों बेटियां नूतन और तनुजा फिल्मी पर्दे पर दर्शकों के बीच अपनी अभिनय क्षमता लेकर जब से आईं तभी से दोनों के सामर्थ्य ने लोगों को चकित किया। फ़िल्मों में नाचने गाने वाली, दुख सहने वाली नायिका ने भी मानो आधुनिक युग में एक नई करवट ली और वो पारिवारिक अहम मसलों की कश्मकश में मुब्तिला होकर अपनी भूमिका का निर्वाह करती हुई नज़र आने लगी। इस ताज़गी को सिने प्रेमियों ने दिल से सराहा। सामाजिक कुप्रथाओं के प्रभावशाली प्रतिकार का जो जज़्बा नूतन ने पर्दे पर दर्शाया वो दर्शकों की आंखें खोलने वाला था। वो निश्चय ही एक ऐसी औरत की छवि को दर्शाने में कामयाब रहीं जिसने परंपरागत मूल्यों को जड़ से हिला दिया। मीना कुमारी और नूतन भारत के रजतपट के दो अनमोल रत्न सिद्ध हुए।