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हीरोइन - 4

वैजयंतीमाला फ़िल्मों में दक्षिण का ऐसा पहला चेहरा थीं जो जल्दी ही अखिल भारतीय चेहरा बन गईं। कुशल नृत्यांगना होने के साथ उनके चेहरे पर गजब का भोलापन और मासूमियत थी।
उनके डांस ने कई गीतों को अमर बनाया। नागिन, नया दौर, गंगा जमना, संगम, आम्रपाली और ज्वैल थीफ़ जैसी फ़िल्मों ने उनका कद बेमिसाल बना दिया।
फ़िल्म इंडस्ट्री में इसी को नंबर वन कहा जाता है।
नरगिस के फ़िल्मों से दूर होने, मधुबाला के कम उम्र में दुनिया से रुखसत होने और मीना कुमारी के अपने ही गम में डूब जाने के बावजूद वैजयंतीमाला का रास्ता आसान नहीं था। सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए उन्होंने चढ़ती जवानी की कमसिन उम्र को भी पार कर लिया था। इसका असर यह हुआ कि देखते देखते उनके सामने नई तारिकाओं की एक पूरी की पूरी जमात आकर खड़ी हो गई।
उनके ज़माने को माला सिन्हा का ज़माना भी कहा जा रहा था। हरियाली और रास्ता, धूल का फूल, हिमालय की गोद में, गुमराह,अनपढ़ और आंखें जैसी फ़िल्मों ने उनका जादू भी जमा छोड़ा था। नेपाल से आई इस सुंदरी ने लगातार सफ़ल फ़िल्में दीं।
लेकिन इस स्वस्थ स्पर्धा की परिणीति वैजयंतीमाला के पक्ष में ही हुई। जल्दी ही दर्शकों ने फ़ैसला कर दिया कि टॉप पर वैजयंती माला ही हैं। उनका व्यक्तित्व तत्कालीन महिला जगत के सिर चढ़ कर बोला।
वैजयंती माला के गाए गीतों, यथा तन डोले मेरा मन डोले... उड़ें जब जब जुल्फें तेरी, कंवारियों का दिल मचले... मैं का करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया... होठों में ऐसी बात मैं छिपा के चली आई... आदि ने युवाओं पर खासा असर छोड़ा। लोग ये सोच भी न सके कि दक्षिण से आई एक अभिनेत्री ने हिंदी फिल्मों का साम्राज्य अपने नाम लिख लिया है। जहां एक ओर ये समझा जाता था कि दक्षिण के लोग हिंदी को दिल से नहीं अपनाते हैं और उसका विरोध करते हैं वहीं दूसरी ओर हिंदी फ़िल्मों ने उन्हें इस तरह अपना लिया कि वैजयंती माला जैसी अहिंदी भाषी नायिका उनकी सिरमौर बन गई। वैजयंती माला एक ऐसी हीरोइन रहीं जिन्होंने व्यावसायिक सफ़लता में तमाम नायिकाओं को पीछे छोड़ दिया।
संगम उनकी हर वर्ग के लिए प्रभाव छोड़ने वाली फ़िल्म रही। कहते हैं कि राजकपूर और दिलीप कुमार ने एक बार आपस में शर्त लगा कर फिल्में की, और इसी शर्त के फलस्वरूप दर्शकों को "संगम" व "लीडर" देखने को मिलीं। दिलीप कुमार के साथ "गंगा जमना" फ़िल्म में तो वैजयंती माला ने क्षेत्रीय भाषा भी इस तरह बोली मानो ये उनकी मातृभाषा ही हो।
राज कपूर और दिलीप कुमार दोनों ही ने जब आपस में शर्त लगा कर फ़िल्में बनाईं तो हीरोइन के लिए दोनों की ही पहली पसंद थी वैजयंती माला। संगम फ़िल्म की भव्य सफ़लता ने राजकपूर के साथ साथ वैजयंती माला को भी खासा फ़ायदा पहुंचाया।
उन्नीस सौ साठ के आते आते नंदा, साधना, आशा पारेख, सायरा बानो जैसी लोकप्रिय तारिकाओं के पदार्पण से नए दशक में एक नई लहर ज़रूर आई किंतु वैजयंती माला का जलवा उतरते उतरते भी आधा दशक निकल गया और उनकी लोकप्रियता बनी रही। माला सिन्हा और वैजयंती माला की छवि में भी एक ख़ास अंतर देखा गया। माला सिन्हा बाद के दिनों में पारिवारिक फिल्मों में अधिक देखी गईं।
इस तरह दशक के आरंभिक कुछ सालों में नरगिस, मधुबाला,मीना कुमारी के बाद नंबर वन की चोटी पर वैजयंती माला का ही साम्राज्य रहा।


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