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बागी स्त्रियाँ - उपन्यास
Ranjana Jaiswal
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
समाज ने स्त्रियों के लिए कुछ ढांचे बना रखे हैं उनमें फिट न होने वाली स्त्रियों को बागी स्त्रियाँ कह दिया जाता है।ऐसी स्त्रियों को पारंपरिक समाज एक खतरे की तरह देखता है और उन्हें तोड़ने की हर कोशिश करता है।
सभी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।छोटी- बड़ी, जरूरी- गैरजरूरी, जायज -नाजायज़ हर तरह की लड़ाइयाँ हैं।सबको अपनी लड़ाई ही महत्वपूर्ण लगती है।सभी चाहते हैं कि दुनिया का ध्यान उनकी लड़ाई की तरफ जाए। सभी उनकी तरफ़ से लड़ें ।कम से कम सहयोग तो करें ही।सहयोग नहीं तो सहानुभूति ही रखें ।उनकी लड़ाई को जायज ही ठहराएं।जब ऐसा नहीं होता तो वे दुःखी हो जाते हैं।उनको सारा समाज ...सारा संसार अपना दुश्मन नज़र आने लगता है।वे एक बार भी नहीं सोचते कि वे भी तो वही कर रहे हैं।एक बार तो वे खुद से बाहर निकलकर देखें ।अपने से ऊपर उठकर देखेंगे तो उन्हें हँसी आएगी कि वे किस तरह तिल को ताड़ बनाते रहे हैं।किस तरह गैरजरूरी मुद्दे उनके लिए जीवन- मरण के मुद्दे हो गए हैं।तब उन्हें औरों से सहानुभूति होगी। उन पर दया आएगी।उनसे ईर्ष्या,घृणा,शत्रुता या शिकायत नहीं होगी।
समाज ने स्त्रियों के लिए कुछ ढांचे बना रखे हैं उनमें फिट न होने वाली स्त्रियों को बागी स्त्रियाँ कह दिया जाता है।ऐसी स्त्रियों को पारंपरिक समाज एक खतरे की तरह देखता है और उन्हें तोड़ने की हर कोशिश ...और पढ़ेहै।सभी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।छोटी- बड़ी, जरूरी- गैरजरूरी, जायज -नाजायज़ हर तरह की लड़ाइयाँ हैं।सबको अपनी लड़ाई ही महत्वपूर्ण लगती है।सभी चाहते हैं कि दुनिया का ध्यान उनकी लड़ाई की तरफ जाए। सभी उनकी तरफ़ से लड़ें ।कम से कम सहयोग तो करें ही।सहयोग नहीं तो सहानुभूति ही रखें ।उनकी लड़ाई को जायज ही ठहराएं।जब ऐसा नहीं होता तो
औरत की गरिमा बचाने की जद्दोजहद में तू पूरी औरत नहीं बन पाई" --मीता ने एक दिन अपूर्वा से हँसते हुए कहा। 'क्या मतलब है तेरा?क्या मैं पूर्ण स्त्री नहीं?' मीता--मेरे हिसाब से तो नहीं।अरे मेमसाब,बिना पुरूष के स्त्री ...और पढ़ेपूर्ण हो सकती है?अर्धनारीश्वर के बारे में नहीं सुना क्या!जब ईश्वर तक स्त्री और पुरूष दोनों का मिला हुआ रूप है, तो साधारण स्त्री अकेले कैसे पूर्ण हो सकती है?तू ही बता क्या तेरा दिल कहीं कसकता कि तुम्हें किसी पुरुष का प्रेम मिले? अपूर्वा--'जरूर कसकता है....प्रेम की कहानियां,प्रेम के दृश्य मुझे आज भी तड़पा जाते हैं पर प्रेम किसी
उम्र बीत जाने से बचपन और यौवन नहीं बीत जाता |ये भावनाएँ तृप्त होकर ही मरती हैं |वरना और अधिक शक्तिशाली हो जाती हैं | जो अपनी जिंदगी से बहुत कुछ पाता है उसके ही व्यवहार में एक थिरता ...और पढ़ेहै |अपूर्वा भी थिर नहीं थी|यह थिरता तब आई होती ,जब कोई सच्चा प्यार उसकी ज़िंदगी में आया होता |अपनी मेहनत और हौसले से वह एक ऊंचाई पर जरूर पहुँच गयी है पर खुश नहीं है | कभी –कभी उसे लगता है कि स्त्री कितनी भी ऊँचाई पर पहुँच जाए पुरूष का साथ उसके लिए जरूरी है ।मगर वह साथ
मीता को ग्रीष्म ऋतु की तपती दुपहरी के बाद शाम को छत पर टहलना बहुत अच्छा लग रहा है|दूर-दूर तक फैले वृक्षों की कतारें जैसे सिर हिला-हिलाकर उससे कुछ कह रही हों |आकाश में कई रंग हैं |पक्षी उड़ ...और पढ़ेहैं |आस-पास के छतों पर भी कोलाहल है |बच्चे-बूढ़े-जवान सबके चेहरों पर नाना प्रकार के भाव दीप्त हैं |दूर-दूर तक खेत नजर आ रहे हैं, जिनमें कुछ पर पके फसलों की उदासी तो कुछ पर हरे फसलों का उल्लास है –सब कुछ बड़ा सम्मोहक! दिन-भर की थकी-थमी हवा भी गुनगुनाती हुई बह रही है |सड़क पर बाहनों का शोर है
मीता का रोग बढ़ता जा रहा है निदान पवन उपचार भी पवन|फिर वह क्यों उसका तमाशा देख रहा है?वह तो उससे अलग होने की कल्पना से भी परेशान हो जाती है| क्या उसने पवन को समझने में भूल की ...और पढ़े?क्या पवन वह है ही नहीं जिसे उसने उसमें देखा ,जाना और समझा था | उसकी रातें खत्म होती हैं पर उसके मन के अंधेरे.. धुंधलके शेष नहीं होते |बैठे-बैठे अचानक उसका मन उचाट हो जाता है |पर जब वह पवन के साथ होती है तब उसे ऐसा लगता है जैसे कोई बहुत बड़ी निधि उसके हाथ लग गयी हो |वह