बागी स्त्रियाँ - भाग तेरह Ranjana Jaiswal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बागी स्त्रियाँ - भाग तेरह

मीता ने आनन्द को इनकार क्या किया कि वह मन ही मन उससे चिढ़ गया।उसकी चिढ़ तब और बढ़ गई जब उसने मीता और पवन की बढ़ती नजदीकियों के बारे में जाना।
फिर वह उन दोनों के बीच गलतफहमियाँ बोने लगा।मीता उसके नीयत को जानती थी इसलिए उस पर उसकी बातों का कोई असर नहीं होता था पर पवन कमजोर था।कमजोर ही नहीं वह तो उसके प्रति ईमानदार ही नहीं था।इससे भी बड़ा सच ये था कि वह उससे प्यार नहीं करता था।वह सिर्फ उसे पाना चाहता था।उसे भोगना चाहता था पर उसके प्रति कोई जिम्मेदारी महसूस नहीं करता था।आनंद तो खुली किताब की तरह था जिसे वह आसानी से पढ़ लेती थी पर पवन ऐसी बंद किताब था,जिसे पढ़ना तो क्या, खोलना भी मुश्किल था।एकांत में वह सिर्फ उसका हो जाता था और भीड़ में उसे पहचानता तक न था। वह गुनाह की तरह अपने सम्बन्ध को छुपाता था,उसकी यह बात मीता को आहत करती थी।पवन अपनी शर्तों पर प्रेम करना चाहता था और वह उसके प्रेम में इस तरह बावली थी कि उसे उन शर्तों को मानना पड़ रहा था।वह उसका तन मन सब लेकर भी बदले में कुछ नहीं देना चाहता था।

कोई भी स्त्री प्रेम में कितना बेवश हो सकती है,यह वह जान गई थी।वह पवन के लिए कुछ भी करने को तैयार थी ...कुछ भी।इतना कमजोर तो वो कभी न थी।क्या हो गया था उसे!सारा जीवन जिन आदर्शों,जिस नैतिकता की बात वह करती आई थी,वह कहां गुम हो गई थी।उसे बस पवन दिख रहा था।उसका साथ पाने के लिए वह सब कुछ छोड़ने को तैयार थी।दीन -दुनिया सब पर पवन इतना समर्पित नहीं था।उसके लिए प्रेम कुछ क्षणों का मन-बहलाव था बस।वह अपना कुछ भी उसके लिए छोड़ने को तैयार न था।समाज में बनाई अपनी झूठी वर्जिन की छवि भी नहीं।उसका अपने उपर पूरा नियंत्रण था।वह जब चाहता उससे मिल लेता ,जब चाहता उससे अलग हो जाता।जब चाहता समर्पित प्रेमी बन जाता ,जब चाहता एक अजनबी।वह अपना देह समर्पित करके भी अपना मन बचाए हुए था और वह अपनी देह को उसका मन पाने के लिए दिए जा रही थी।उसका स्पर्श उसकी छुअन पवन को दीवाना बनाती थी,पर एकांत में ही।किसी के सामने उसके नाम के आगे 'जी' लग जाता था।उसकी आँखें तटस्थ हो जाती।देह सध जाता।वह उसके परिर्वतन को आश्चर्य से देखती रह जाती ।उसे ईर्ष्या होती कि वह उसके जैसा क्यों नहीं बन पाती?
आनंद बार -बार उससे कहता कि पवन उससे प्रेम नहीं करता।बस अपने विवाह से पूर्व टाइम -पास कर रहा है।वह उसका इस्तेमाल कर रहा है और वह हो रही है।पवन कहता कि वह कभी और किसी से भी विवाह नहीं करेगा।उसके ऊपर अपने छोटे भाई -बहनों की शिक्षा- दीक्षा ,विवाह -शादी,परिवार- खानदान,खेती -बाड़ी,नात- रिश्तेदारी के साथ प्राध्यापक की नौकरी की ढेर सारी जिम्मेदारी है।इनके साथ वह प्रेम तो कर सकता है,विवाह नहीं।उसको उसे इन सबके साथ स्वीकार करना होगा।वह उसे अपना प्यार तो आजीवन दे सकता है नाम नहीं।उसके साथ रह नहीं सकता। कभी- कभार मिल जरूर सकता है।
मीता उसकी मजबूरी समझती थी इसलिए उसे कुछ नहीं कह पाती थी।पर उसने मीता की मजबूरी कभी नहीं समझी।एक स्त्री का समाज में अकेले रहना आसान तो नहीं ।प्रेम होते हुए भी चोरी- छिपे मिलना,गुनाह की तरह अपने रिश्ते को छिपाना उसे खल रहा था।पर वह कर भी क्या सकती थी!वह उसे किसी बात के लिए मजबूर भी तो नहीं कर सकती थी।
जिसके साथ वह हर पल गुजारना चाहती थी वह पखवारे का गैप करने को कहता।मिलता भी तो मात्र कुछ मिनटों के लिए।वह उससे जी- भर प्यार करना चाहती।रात -भर उसके सीने पर सिर रखकर सोना चाहती।उससे प्यार -भरी बातों की उम्मीद करती।वह डरा -डरा सा आता।न उसे चूमता न सीने से लगाता बस कुछ मिनट रोमांस करता और भाग खड़ा होता वह तन -मन दोनों से अतृप्त रह जाती।शायद पवन को उससे वह मिल जाता था,जो उसे चाहिए था और वह उससे वह कभी नहीं पाती थी जो उसे चाहिए था।उस पर भी वह आनन्द से मिलन की बात शेयर कर देता था और आनन्द को उस पर हँसने का मौका मिल जाता था।आनन्द से वह पवन की बात नहीं कह पाती थी क्योंकि उसने अभी तक उससे उम्मीद नहीं छोड़ी थी।मीता को उससे चिढ़ होती कि कोई अपने मित्र की प्रेमिका से प्रेम की बात कैसे कर सकता है?उसे पाने की ख्वाहिश कैसे रख सकता है? पवन से भी उसे शिकायत थी कि वह यह जानते हुए भी कि उसके मित्र की नज़र भी उसकी प्रेमिका पर है,उससे अंतरंग बातें कैसे शेयर कर सकता है?क्या वह अपनी मर्दानगी साबित करना चाहता है या उसे हार का अहसास कराना चाहता है। या फिर यहां प्रेम -प्यार का कोई मामला ही नहीं।दोनों उसे देह मात्र मानते हैं और उसे मिल- बांट लेना चाहते हैं।जिसने पाया वह दूसरे को जलाता है और दूसरा जलन में उसके दिल को जलाता है।
एक दिन आनन्द से उसकी खुलकर बात हुई और उसका सपनों का महल भरभरा कर जमीन पर गिर पड़ा।
--आप तो उसे प्यार करती हैं पर क्या वह आपको प्रेम करता है?
"क्यों नहीं?प्रेम नहीं करते तो अपना तन- मन कैसे समर्पित करते?"
--बहुत भोली हैं आप!पुरूष जाने कितनी जगह अपनी देह देता है ।मन की सिर्फ बात करता है देह पाने के लिए पर प्यार नहीं करता।जैसे मैं आपको पाना चाहता हूँ पर आपसे प्रेम नहीँ करता।
"ऐसा नहीं हो सकता।पवन मुझसे ही प्रेम करते हैं।"
--फिर शादी क्यों नहीं कर लेता?
"वे किसी से शादी नहीं करेंगे।"
--झूठ,उसकी शादी तय हो गई है ।उसकी ही जाति की खानदानी ख़ूबसूरत ,कमसीन नवयौवना से।आज उसी से मिलने गया है।कल रात- भर फोन पर आपसे रोमांटिक बातें करने के बाद बेचैन हो गया था।उसने मुझसे कहा कि स्थायी व्यवस्था करने में अब देर उचित नहीं ।सब कुछ मीता को ही दे दूँगा तो पत्नी के लिए क्या बचेगा?इसीलिए तो वह कभी रात -भर आप के साथ नहीं रहा।