Kaun hai khalnayak book and story is written by Ratna Pandey in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Kaun hai khalnayak is also popular in प्रेम कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अजय और रुपाली बचपन से साथ में खेलते हुए बड़े हुए थे। दोनों की दोस्ती बड़ी ही अजीब थी। वे आपस में बहुत झगड़ा करते थे फिर बात करना भी बंद कर देते थे। लेकिन यह झगड़ा कभी भी ...और पढ़ेनहीं चल पाता था। दो-तीन घंटे में ही दोनों में से कोई एक बात करने चला आता था। वे दोनों आसपास की सोसाइटी में ही रहते थे। इसलिए मिलना, जुलना, खेलना हर रोज़ की ही बात थी। पहली से आठवीं क्लास तक उनका स्कूल अलग-अलग था। बचपन से ही अजय को रुपाली बहुत अच्छी लगती थी। एक दिन उसने
लेकिन रुपाली चुपचाप बैठे उसे देखती ही जा रही थी। उसके बाद प्रियांशु पीछे खाली सीट पर जाकर बैठ गया। कुछ लड़के उसके पास गए और बात करने लगे। दोस्ती करने में भी वह कभी देरी नहीं करता था। ...और पढ़ेही दिनों में उसके काफी दोस्त भी बन गए। रुपाली तो पहली नज़र में ही उसे अपना दिल दे बैठी थी। किंतु प्रियांशु लड़कियों में कोई ख़ास रुचि नहीं दिखाता था। एक से एक सुंदर लड़कियों को देखकर भी वह उनसे बात करने की कभी पहल नहीं करता था। रुपाली चोरी-छिपे तिरछी निगाहों से उसे देख लिया करती थी।
दूसरे दिन अजय और प्रणाली के आने के बाद भी रुपाली प्रियांशु के साथ कैंटीन चली गई। अजय और प्रणाली आपस में कुछ बात कर रहे थे। तभी वह चुपचाप से निकल गई। उसने प्रियांशु से कहा, ...और पढ़ेकैंटीन चलते हैं।" सुधीर भी उनके साथ में ही था। जैसे ही अजय का ध्यान गया उसने पूछा, "अरे प्रणाली! रुपाली कहाँ है?" "मालूम नहीं अभी तो यहीं थी, पूरी क्लास तो खाली है। चलो शायद कैंटीन निकल गई होगी।" अजय और प्रणाली जब कैंटीन आए तो यह देख कर दंग रह गए कि रुपाली उन्हें बिना
अजय ने कहा, "रुपाली नाराज़ी कैसी? मेरे जीवन का हर पल, हर लम्हा तुम्हारे लिए है। तुम्हें जीवन में कभी भी, किसी भी वक़्त, जीवन के किसी भी मोड़ पर यदि ऐसा लगे कि मैं तुम्हारे काम आ सकता ...और पढ़ेतुम सिर्फ़ एक आवाज़ दोगी ना तो मैं दौड़ा चला आऊँगा। तुम्हें सिर्फ़ इतना कहना चाहता हूँ कि तुम अपना ख़्याल रखना। किसी पर भी इतना विश्वास मत करना कि वह तुम्हारे लिए दुःख का कारण बन जाए।" "अजय तुम यह क्या कह रहे हो? क्यों कह रहे हो?" अजय बिना कुछ बोले, अपना टूटा हुआ दिल लेकर
कभी रुपाली के मन में ख़्याल आता कि अजय उसका इतना अच्छा दोस्त है, क्या वह उसके साथ ऐसा छल कर सकता है? अंततः रुपाली ने यह निश्चय कर लिया कि वह इस विषय में प्रियांशु से ही साफ़-साफ़ ...और पढ़ेकरेगी। उसने प्रियांशु को फ़ोन लगाकर कहा, "प्रियांशु आज शाम को फ़िल्म देखने चलो ना?" "हाँ रुपाली तुम्हारी इच्छा सर आँखों पर और क्या हुकुम है बोलो?" "उसके बाद बाहर ही डिनर करेंगे, ठीक है" "और कुछ?" "बस और कुछ नहीं।" शाम को फ़िल्म देखने के बाद वे दोनों डिनर के लिए निकले। प्रियांशु