रात के लगभग आठ बज रहे थे। रुपाली चुपचाप से घर से निकल गई। जल्दी से उसने रिक्शा पकड़ा और प्रियांशु को फ़ोन किया और कहा, "प्रियांशु मैं आ रही हूँ।"
"अरे-अरे रुपाली वहाँ उस पार्टी प्लॉट में तो बहुत से मेहमान हैं। कोई तुम्हें देख ना ले। बाजू में ही विवेक का घर है ना, मैं वहीं पर हूँ। बुखार का माँ को पता ना चले इसलिए। "
"अरे तो वहाँ विवेक के पापा मम्मी होंगे ना, प्रियांशु?"
"वह सब तो मेरी फैमिली के साथ हैं।"
"प्रियांशु मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। मैं सिर्फ़ पाँच मिनट के लिए आ रही हूँ। तुम इतनी ज़िद कर रहे हो इसलिए।"
रुपाली विवेक के घर पहुँच गई। वहाँ जाकर आवाज़ लगाई, विवेक-विवेक। अंदर से प्रियांशु की आवाज़ आई, " इधर आ जाओ रुपाली विवेक दवाई लेने गया है।"
प्रियांशु को उसने देखा वह रजाई ओढ़कर विवेक के कमरे में लेटा हुआ था।
"क्या हुआ प्रियांशु?"
"बुखार था यार"
"ऐसे ही अचानक?"
"दोपहर से बार-बार आ रहा है, ठंड भी लग रही है और दो उल्टी भी हो चुकी हैं। आज ही होना था यह," नाराज़ी दिखाते हुए प्रियांशु ने कहा।
"कोई बात नहीं प्रियांशु, ठीक हो जाएगा। बच्चे की तरह ज़िद करके मुझे क्यों बुलाया तुमने?"
"मैं तुम्हारे बिना बहुत बेचैन हो रहा था शायद बुखार की वज़ह से। शादी अच्छे से निपट जाए बस।"
रुपाली ने प्रियांशु के सर पर हाथ रखते हुए कहा, "अब तो बुखार नहीं है प्रियांशु?"
"हाँ दवाई से उतर गया है पर अभी भी बहुत ठंड लग रही है।"
"तुम मुझे देखना चाहते थे ना, तो लो जी भर के देख लो। बस फिर मैं जाती हूँ।"
"रुपाली प्लीज़ कल हमारी शादी हो रही है। कल इस समय तक तो फेरे भी हो जाएँगे। हमारी शादी के पहले की यह आखिरी रात है। थोड़ी देर प्लीज़ मेरे पास बैठ जाओ ना। आज तुम्हें अपनी बाँहों में भरकर बहुत प्यार करने का मन हो रहा है। रुपाली मना मत करना, प्लीज़।"
"नहीं प्रियांशु इतने दिन धैर्य रखा है, अब सिर्फ़ 24 घंटे की ही तो बात है।"
"मैं कहाँ कुछ और बोल रहा हूँ रुपाली। सिर्फ़ थोड़ी देर मेरे पास आ जाओ, तुम्हें मेरी कसम रुपाली ।"
रुपाली प्रियांशु के मुँह से यह सब सुनकर ख़ुद को रोक ना पाई। प्रियांशु उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ़ खींच रहा था। उसकी आँखों में प्यार ही प्यार भरा देखकर रुपाली भी उसकी तरफ झुकती चली गई। धीरे से वह उसकी बाँहों में पूरी तरह समा गई। वह सोच रही थी कल ही तो विवाह है हमारा। बाँहों में एक दूसरे को ले लेने से क्या हुआ?
"आई लव यू रुपाली," बोलते हुए प्रियांशु उसके होंठों का चुंबन लेने लगा। रुपाली भी अपना धैर्य खोती जा रही थी और किसी भी तरह का विरोध नहीं कर रही थी। आखिरकार शादी से केवल एक रात पहले ही वह एक दूसरे के हो गए। उनके बीच वह सब कुछ हो गया जो एक पति पत्नी के बीच होता है । बेइंतहा प्यार करने वाली रुपाली प्रियांशु की बाँहों में खोने के बाद अपने ऊपर काबू ना रख पाई।
उसके बाद प्रियांशु ने कहा, "रुपाली इन सुखद पलों के एहसास को मैं कभी नहीं भूल सकता। आज मेरे तन के साथ, मन को भी सुकून मिल रहा है। तुम्हें पाकर ऐसा लग रहा है कि मैंने सब कुछ पा लिया है।"
"प्रियांशु में इसलिए नहीं आ रही थी। केवल एक ही दिन की तो बात थी। काश हम एक दिन और रुक जाते तो मैं ज़्यादा ख़ुश रहती।"
"तो क्या अभी तुम दुःखी हो?"
"तुम्हें अच्छा नहीं लगा? प्रियांशु! तुम्हारी बाँहों में तो मेरा स्वर्ग है। वह सुखद एहसास तो हमेशा हम दोनों को ही याद रहेगा। बस मैं चाहती थी कि यह सब शादी के बाद हो।"
"क्या फ़र्क पड़ता है रुपाली, कल शादी भी हो ही जाएगी ना। हमने कुछ ग़लत नहीं किया। बस एक दिन जल्दी कर लिया।"
रुपाली ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और वापस घर के लिए निकलने लगी।
"अरे प्रियांशु, विवेक अब तक दवाई लेकर लौटा नहीं?"
"देखो शायद बाहर ही होगा। हम दोनों अंदर थे इसलिए नहीं आया वह।"
रुपाली ने बाहर देखा तो सोफे पर टेबलेट रखी थी। उसने कहा, "प्रियांशु बाहर टेबलेट रखी है, मैं तुम्हें दे देती हूँ।"
"हाँ ठीक है"
रुपाली ने उसे टेबलेट दे दी और वहीं पानी की एक बोतल रखी थी। प्रियांशु ने उसके हाथ से ही टेबलेट खाई और उसे पकड़ कर फिर से किस करने लगा। "छोड़ो प्रियांशु सब चिंता करेंगे। मुझे जाने दो और तुम भी जल्दी से कल दूल्हे बनकर मुझे हमेशा के लिए लेने आ जाना।"
दूसरे दिन रुपाली के घर सुबह से सब बहुत ही व्यस्त थे। जोर-शोर से तैयारियाँ चल रही थीं, सब बेहद ख़ुश भी थे। धीरे-धीरे सूर्य अस्त होने लगा और बारात के आने का समय नज़दीक आने लगा। समय बीतता जा रहा था पर बारात के आने की कोई ख़बर नहीं आ रही थी।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः