लेकिन रुपाली चुपचाप बैठे उसे देखती ही जा रही थी। उसके बाद प्रियांशु पीछे खाली सीट पर जाकर बैठ गया। कुछ लड़के उसके पास गए और बात करने लगे। दोस्ती करने में भी वह कभी देरी नहीं करता था। कुछ ही दिनों में उसके काफी दोस्त भी बन गए। रुपाली तो पहली नज़र में ही उसे अपना दिल दे बैठी थी। किंतु प्रियांशु लड़कियों में कोई ख़ास रुचि नहीं दिखाता था। एक से एक सुंदर लड़कियों को देखकर भी वह उनसे बात करने की कभी पहल नहीं करता था। रुपाली चोरी-छिपे तिरछी निगाहों से उसे देख लिया करती थी।
प्रियांशु ने कई बार उसे इस तरह अपनी तरफ निहारते हुए देख लिया था। कई बार तो उसने इस तरफ ध्यान नहीं दिया किंतु बार-बार ऐसा होने से कई बार उनकी आँखें आपस में टकरा जाती थीं। जिसे कहते हैं ना आँखें चार होना। एक दिन पीरियड ख़त्म होने के बाद जैसे ही रुपाली ने धीरे से पीछे मुड़कर देखा तो प्रियांशु से फिर उसकी नज़र मिल गई। इस बार रुपाली ने अपनी एक प्यारी सी मुस्कुराहट बिखेर दी। रुपाली को इस तरह मुस्कुराते हुए देख प्रियांशु ने भी मुस्कुराते हुए अपना हाथ हिला कर हाय कर दिया।
आज यह पहली बार हुआ था, रुपाली ने भी हाय का इशारा कर दिया। अब रुपाली के मन में उससे बात करने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। लेकिन आज भी रिसेस होते से ही वह उठ कर अपने एक दोस्त के साथ बाहर निकल गया।
अजय ने उठते हुए रुपाली से कहा, "चलो यार जल्दी कैंटीन चलते हैं, जोरों की भूख लगी है।"
"नहीं आज मेरा मन नहीं है, तुम दोनों चले जाओ।"
"नहीं रुपाली यहां अकेले बैठे-बैठे तो सर दर्द करने लगेगा। चलो ना, कुछ खा लोगी तो अच्छा लगेगा।"
रुपाली अजय को मना नहीं कर पाई और वे तीनों कैंटीन आ गए, जहाँ पहले से ही प्रियांशु और सुधीर इडली सांभर लेकर खा रहे थे।
अजय ने उसे देखते ही कहा, "हैलो प्रियांशु"
"हैलो अजय"
प्रियांशु इतना कहकर सुधीर के साथ बातें करने लगा। उसने अब भी रुपाली की तरफ ध्यान नहीं दिया क्योंकि वह खाने में कुछ ज्यादा ही व्यस्त था। रुपाली को ऐसा लग रहा था मानो वह महीनों का भूखा है। इधर उधर देखता ही नहीं, कैसे जल्दी-जल्दी खा रहा है।
प्रणाली और अजय भी इडली सांभर खा रहे थे और रुपाली अपनी प्लेट से ज़्यादा प्रियांशु को देख रही थी।
इतने में अजय ने कहा, "रुपाली तेरा ध्यान किधर है यार! खाती क्यों नहीं? चल जल्दी कर लेक्चर का टाइम हो रहा है।"
प्रियांशु ने तो फटाफट अपनी प्लेट का नाश्ता ख़त्म किया और वह सुधीर के साथ वहां से बाहर निकल गया।
प्रियांशु से बातें करने की बेचैनी मन में लिए रुपाली ऐसे किसी मौके की तलाश में थी, जब वह उसे कभी अकेले में मिल जाए। कुछ दिनों के इंतज़ार के बाद आख़िर एक दिन उसे वह अवसर मिल ही गया। उस दिन प्रणाली और अजय कॉलेज नहीं आए थे। प्रियांशु का दोस्त सुधीर भी दो लेक्चर अटैंड करके घर चला गया था।
आज जैसे ही रिसेस हुई रुपाली ने बिल्कुल देर नहीं की और ख़ुद ही प्रियांशु के टेबल के पास चली गई। उसने कहा, "हाय प्रियांशु"
"हाय रुपाली"
"क्या आज हम कैंटीन चलें? “रुपाली ने सीधा प्रश्न कर दिया।
"कैंटीन…," कुछ सोच कर प्रियांशु ने कहा, "चलो ठीक है चलते हैं।"
चलो ठीक है वह ऐसे कह रहा था जैसे कोई एहसान कर रहा हो। लेकिन रुपाली को तो मानो ज़माने भर की दौलत मिल गई थी। वह बहुत ख़ुश हो गई।
प्रियांशु कोई बच्चा तो था नहीं, इतने दिनों से रुपाली की हरकतों से वह यह तो समझ ही गया था कि यह लड़की उसकी तरफ आकर्षित हो रही है। वहां पहुँच कर रुपाली की हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि क्या बात करे? कैसे शुरू करे? वह गहरी सोच में डूबी थी।
तभी चुटकी बजाते हुए प्रियांशु ने कहा, "रुपाली कहाँ खो गई हो तुम? खाने के लिए कुछ आर्डर नहीं करना है?"
रुपाली ने चमकते हुए कहा, "मैं समोसा खाऊंगी।"
"ठीक है," कहते हुए प्रियांशु ने दोनों के लिए समोसे लिए।
बात को आगे बढ़ाते हुए प्रियांशु ने पूछा, " क्या तुम्हें समोसे बहुत पसंद हैं?"
"हां बहुत पसंद हैं।"
"अच्छा "
"और तुम्हें इडली सांभर।"
"तुम्हें कैसे मालूम? हम तो आज पहली बार साथ में कैंटीन आए हैं।"
"तुम रोज़ ही तो इडली सांभर खाते हो।"
"अरे तो क्या तुम रोज़ मुझे ही देखती रहती हो कि मैं क्या खा रहा हूँ?"
रुपाली शरमा गई और अपनी ओढ़नी के पल्लू को उंगली में लपेटने लगी। वह बिना कहे ही अपने प्यार का पूरा ग्रीन सिग्नल दे रही थी। प्रियांशु समझ भी रहा था पर वह शायद अभी इसके लिए तैयार नहीं था।
रत्ना पांडे वडोदरा गुजरात
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः