उधर प्रियांशु के पापा भी पूरी बारात की तैयारी करके घोड़ी सजा कर प्रियांशु का इंतज़ार कर रहे थे किंतु प्रियांशु गायब था। प्रियांशु के पापा बेचैन होकर उसे और उसके दोस्तों को फ़ोन लगा रहे थे। प्रियांशु का फ़ोन तो बंद था और उसके सारे दोस्तों का एक ही जवाब था, अंकल हमें नहीं मालूम।
"क्यों अंकल, प्रियांशु को क्या हुआ? यह तो बारात निकलने का समय है," विवेक ने पूछा।
"पता नहीं विवेक वह कहाँ चला गया है। मैं रुपाली के माता-पिता को क्या मुँह दिखाऊँगा?"
"अंकल मैं भी उसे कब से फ़ोन लगा रहा हूँ पर उसका फ़ोन बंद ही आ रहा है।"
"हां बेटा हम लोगों को बहुत चिंता हो रही है।"
अरुणा ने रुपाली के पापा से पूछा, "विजय बारात निकली कि नहीं, काफी समय बीतता जा रहा है?"
"अरुणा नाचते गाते आ रहे होंगे।"
"नहीं विजय आप प्रियांशु के पापा से बात करो?"
"ठीक है पूछ लेता हूँ ।"
विजय ने प्रियांशु के पापा को फ़ोन लगाकर कहा, " नमस्कार समधी जी "
"नमस्कार विजय जी"
"आप लोग कहाँ तक पहुँचे, काफी समय हो गया है। सब ठीक तो है ना?"
"विजय जी मैं आपको ही फ़ोन करने वाला था। प्रियांशु वहाँ आया है क्या?"
"कैसी बात कर रहे हैं आप? इस वक़्त प्रियांशु यहाँ कैसे हो सकता है? क्यों, क्या वह वहाँ आपके पास नहीं है?"
"विजय जी पता नहीं वह कहाँ है। मैं दो घंटे से फ़ोन लगा रहा हूँ पर उसका फ़ोन बंद ही आ रहा है। मुझे बहुत फ़िक्र हो रही है।"
विजय घबरा गया और वहीं धड़ाम से नीचे बैठ गया।
अरुणा भी वहीं थी, "क्या हुआ विजय? क्या बात है?"
विजय चुप था, "आप चुप क्यों हैं? बताइए ना क्या हुआ?"
विजय ने कहा, "प्रियांशु गायब है अरुणा। उसके पापा भी चिंता कर रहे थे। पता नहीं उसे क्या हुआ? कहाँ गया? उसका फ़ोन भी बंद आ रहा है । उसके पापा ने कहा था घोड़ी तैयार है, बाराती तैयार हैं, दूल्हा ही नहीं है विजय जी! मैं बारात लेकर कैसे आऊँ?"
रुपाली इन सब बातों से बेखबर दुल्हन बनी अपने हीरो के आने का इंतज़ार कर रही थी। तभी नीचे कुछ शोर सुनाई दिया और किसी के रोने की आवाज भी उस शोर में शामिल थी ।
रुपाली दौड़ कर नीचे आई, देखा तो उसकी माँ रो रही थी। रुपाली ने कहा, "मम्मा आप रो क्यों रही हो? अभी तो विदाई में बहुत समय है।"
इतना कहते हुए उसकी नज़र विजय पर गई। उनकी आँखों में भी आँसू डबडबा रहे थे, आँखें लाल हो रही थीं। उसके बाद उसने मंडप की तरफ नज़र दौड़ाई तो देखा सब शांत थे। लाइटें जो जगमगा रही थीं, वह बुझ चुकी थीं।
रुपाली डर गई, वह कुछ कहे उससे पहले उसकी माँ ने कहा, "विदाई, कैसी विदाई? बेटा तेरी शादी होगी तब तो विदाई होगी ना।"
"माँ आप यह क्या कह रही हो?"
"देख ना अभी तक बारात नहीं आई?"
"तो आ जाएगी माँ, इतनी चिंता क्यों कर रही हो आप?"
"नहीं रुपाली, बारात नहीं आएगी।"
"आख़िर क्यों? क्या हुआ है?"
"प्रियांशु के पापा से तुम्हारे पापा ने बात की। वह कह रहे थे विजय जी, घोड़ी तैयार है, साफा पहन कर वह ख़ुद तैयार हैं, सारे बाराती भी तैयार हैं लेकिन प्रियांशु नहीं है।"
"प्रियांशु नहीं है, मतलब! पापा देखो ना, माँ क्या कह रही हैं?"
"बेटा तुम्हारी माँ सही कह रही है।"
"नहीं पापा, मैं अभी फ़ोन लगाती हूँ प्रियांशु को।"
"कोई फायदा नहीं बेटा। अब तक तो ना जाने कितने लोग उसे फ़ोन कर चुके हैं। उसका फ़ोन बंद आ रहा है। पता नहीं उसे क्या हुआ होगा, मुझे बहुत चिंता हो रही है। मुझे तो लगता है अजय ने उसके बारे में जो भी कहा था शायद वह सब सच ही था। शायद वह यह शादी ही नहीं करना चाहता," नाराज़ी दिखाते हुए अरुणा ने कहा।
"नहीं मम्मा नहीं, ऐसा नहीं हो सकता," कहते हुए रुपाली एकदम शक्तिहीन होकर सोफे पर बैठ गई। उसे प्रियांशु पर पूरा विश्वास था। उसने उसे फ़ोन लगाया लेकिन नतीजा वही फ़ोन स्विच ऑफ था। वह बार-बार फ़ोन लगा रही थी पर कोई फायदा नहीं हुआ। फिर उसने विवेक को फ़ोन लगाया।
"हैलो रुपाली"
"विवेक, प्रियांशु कहाँ है?"
"मुझे नहीं पता रुपाली।"
"तो तुम्हें क्या पता है विवेक? तुम्हें जो भी पता हो सब सच-सच बता दो। आज मुझसे झूठ मत कहना विवेक।"
"मुझे कुछ नहीं मालूम रुपाली, मैं केवल इतना जानता हूँ कि काफी देर से उसका फ़ोन स्विच ऑफ ही आ रहा है।"
"तो क्या वह ठंड लगना, उल्टी होना बुखार आना सब नाटक था विवेक।"
"रुपाली मुझे यह भी नहीं पता। उसने मुझसे कहा था, बहुत ठंड लग रही है यार, बुखार भी आया था। टेबलेट लेकर आया हूँ इसलिए उतर गया है। मम्मी पापा चिंता करेंगे इसलिए यहाँ तेरे पास आ गया हूँ। तू दवाई ला दे ताकि शाम तक ठीक हो जाए। उसने मुझे कहा था कि मैं शादी से पहले एक बार उसे देखना चाहता हूँ, मिलना चाहता हूँ। उसके मन में क्या चल रहा था रुपाली, मैं नहीं जानता, मेरा विश्वास करो।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः