कौन है ख़लनायक - भाग १५ Ratna Pandey द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कौन है ख़लनायक - भाग १५

आज रुपाली समझ गई थी कि प्रियांशु उसे प्यार नहीं नफ़रत करता है। उसके पास आज पछतावे के सिवा और कुछ भी नहीं था। रुपाली रोती रही, उसने रोते हुए अजय को फ़ोन लगाया।

रुपाली का नंबर देखते से अजय ने फ़ोन उठाया, "हैलो, रुपाली बोलो?"

सिसकती हुई रुपाली ने कहा, "हैलो अजय, क्या तुम मुझसे मिलने आ सकते हो, अभी इसी वक़्त?"

"हाँ रुपाली, तुम रो क्यों रही हो? पहले चुप हो जाओ, मैं अभी आता हूँ।"

कुछ ही देर में अजय वहाँ आ गया। रुपाली की मम्मी को देखते ही उसने कहा, "हैलो आंटी"

"हैलो बेटा रुपाली ऊपर है, तुम वहीं चले जाओ। उसे समझाओ बेटा, बहुत अपसेट है शायद तुमसे कुछ बात करना चाहती है।"

"हाँ आंटी," कहकर अजय ऊपर चला गया।

अजय को देखते ही रुपाली उसके गले लग कर ख़ूब रोई। वह रोती ही जा रही थी, उसके बहते आँसुओं से अजय का पूरा कंधा गीला हो रहा था। वह कह रही थी, "अजय मुझे माफ़ कर दो। मैंने तुम पर विश्वास नहीं किया, यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी।"

"रुपाली इस तरह मुझ से माफ़ी माँगने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम सबसे पहले अपने आप को संभालो, रुको मैं तुम्हारे लिए पानी लेकर आता हूँ, तुम बैठो ।"

अजय ने पानी लाकर उसको पिलाया।

रुपाली ने कहा, "अजय मैं तुम्हें कुछ बताना चाहती हूँ?"

"हाँ बोलो, सब कुछ बता कर अपना दिल हल्का कर लो। दिल का हर दर्द, भारी पन निकाल दो।"

रुपाली ने अजय को अपने साथ घटा हुआ, उस लम्हे से लेकर अब तक का, जिस दिन वह मेहंदी लगे हाथों से हल्दी वाले पीले शरीर के साथ प्रियांशु से मिलने गई थी। वहाँ जो कुछ हुआ, उसने एक-एक सच्चाई अजय के सामने खोल कर रख दी।

उसके बाद जब प्रियांशु का फ़ोन आया और उससे मिलकर जो भी बातें हुईं, वह सारी बातें उसने अजय को रोते हुए सुना दीं; जो सच में किसी फ़िल्म की दर्दनाक कहानी की तरह ही लग रही थीं।

अजय की आँखें गुस्से से लाल हो रही थीं। रुपाली का दर्दे दिल सुनकर आँसू भी बहा रही थीं। गुस्सा था प्रियांशु पर और आँसू अपने प्यार की इस हालत पर बह रहे थे।

रुपाली ने कहा, "अजय, उसने बचपन की एक घटना के कारण मेरा पूरा जीवन ही बर्बाद कर डाला।"

"रुपाली जीवन ऐसे बर्बाद नहीं होता, यदि हम मान लें कि जीवन बर्बाद हो गया तो ही बर्बाद होता है। एक ग़लत इंसान ग़लत काम करके चला गया। अच्छा ही हुआ कि तुम्हारी उससे शादी नहीं हो पाई वरना वह तुम्हारा जीना मुश्किल कर देता। तुम्हारा अपमान बार-बार करता, बेरहमी से पेश आता तुम उस से बच गईं रुपाली।"

"लेकिन वह सब जो शादी से पहले नहीं होना चाहिए था अजय वह भी तो…"

"रुपाली शादी के बाद साथ रहते हुए भी तो कितने ही तलाक हो जाते हैं। भूल जाओ वह बीता समय और अपने जीवन में वापस लौट आओ।"

"अजय तुम मुझसे पहले की तरह दोस्ती रखोगे ना?"

"रुपाली जीवन की अंतिम साँस तक। तुम मेरी दोस्त थीं और हमेशा रहोगी। जीवन में कभी भी जब तुम्हें मेरी ज़रूरत होगी, जैसे मैं आज आया ना रुपाली तुम्हारे एक फ़ोन पर वैसे ही आऊँगा।"

"लेकिन अजय मेरी बातों का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि अब मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ।"

"रुपाली मैं कहाँ तुमसे कह रहा हूँ कि मुझसे शादी करो। मैं तो कल भी अकेला था और आगे भी अकेला ही रहने वाला हूँ," इतना कहकर अजय चला गया।

दूसरे दिन रुपाली से उसकी माँ ने पूछा, "रुपाली कल क्या बात हुई अजय से?"

"कुछ खास नहीं माँ।"

"तुमने ऐसे ही तो उसे नहीं बुलाया होगा ना बेटा, कुछ तो बात होगी।"

"नहीं माँ… "

"चलो छोड़ो, मैं तुमसे एक बात पूछूं?"

"पूछो माँ क्या पूछना चाहती हो तुम?"

"रुपाली तुम अजय के साथ शादी कर लो ना बेटा, कितना प्यार करता है वह तुम्हें।"

उसी समय अजय उनके घर आया लेकिन यह बात सुनते ही उसके कदम वहीं ठिठक गए।

"नहीं माँ, अजय से अब शादी करने का मतलब है अपने आप को उसके ऊपर थोपना।"

"यह क्या कह रही हो रुपाली तुम?"

"हाँ माँ जब वह मुझसे अपने प्यार के लिए बार-बार कहता था, तब मैंने कभी उसके प्यार को स्वीकार नहीं किया। अब जब मुझे अस्वीकार कर दिया गया है तब मैं उसके पास जाऊँ? यह उसका अपमान होगा माँ। यह उसका अपमान होगा और अपने इतने अच्छे दोस्त का अपमान में कभी नहीं करुँगी।"

इतना सुनते ही अजय अपनी आँखों में आँसू लिए वापस जाने लगा। तभी अचानक रुपाली की माँ ने दरवाज़ा खोला, "अरे अजय बेटा वापस कहाँ जा रहे हो?"

अजय अपनी जेब से आँसू पोछने के लिए रुमाल निकाल ही रहा था। आँसू पोंछते हुए रुपाली की माँ की आवाज़ सुनते ही वह रुका और फिर पलटा । तब रुपाली की माँ ने कहा, "अजय बेटा, सब बातें सुनकर आँसू बहाते हुए वापस जा रहे थे?"

रुपाली भी वहाँ आ गई, "अरे अजय! वापस क्यों जा रहे थे? आओ ना…"

"मैं तुमसे पूछने आया था…"

"क्या पूछने आये थे अजय?"

"…कि शाम के शो में फ़िल्म देखने चलना है क्या? अच्छी मूवी है, तुम्हें अच्छा लगेगा। डरो नहीं रुपाली एक दोस्त की हैसियत से पूछ रहा हूँ। थोड़ा घर से बाहर निकलो।"

"ठीक है अजय, शाम को हम मूवी देखने चलेंगे।"

इस तरह डेढ़ वर्ष निकल गया, अजय हमेशा उसका बहुत ख़्याल रखता था। हर रविवार वे साथ में मूवी देखने जाते और साथ में डिनर करके वापस घर आते। रुपाली के माता-पिता जानते थे कि अजय रुपाली को बचपन से प्यार करता है। उसने बचपन में ही अपनी मम्मी से कहा था कि रुपाली उसे बहुत अच्छी लगती है। तब यह बात अजय की मम्मी ने रुपाली की माँ को बताई थी। बचपन की बात समझ कर किसी ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन आज अरुणा को वह बात याद आ रही थी।

रत्ना पांडे, वडोदरा {गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः