Kaun hai khalnayak - Part 13 books and stories free download online pdf in Hindi

कौन है ख़लनायक - भाग १३

बारात के नहीं आने की ख़बर अब तक अजय के पास भी पहुँच चुकी थी। यूँ तो वह इस शादी में बुलाया नहीं गया था किंतु यह ख़बर सुनते ही वह सब कुछ भूल कर वहाँ चला आया।

अजय को देखते ही रुपाली की मम्मी उठ कर खड़ी हो गईं, वह रो रही थीं। उन्होंने रोते हुए कहा, "अजय, यह सब क्या हो गया बेटा?"

उधर अजय ने रुपाली की तरफ देखा उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। अजय को देखते ही रुपाली तेज़ी से उसकी तरफ़ गई और अपने दोनों हाथों से उसकी कॉलर पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से उसे झकझोरते हुए कहने लगी, "अजय कहाँ है मेरा प्रियांशु? तुमने कहाँ छुपा रखा है उसे? तुम्हीं ने अगवा किया है ना उसे? बोलो अजय चुप क्यों हो?"

अजय हैरान होकर रुपाली का यह पागलपन देखे जा रहा था।

रुपाली ने चिल्लाते हुए पूछा, "वह ज़िंदा भी है या मार डाला तुमने?"

इतने में अरुणा तेज़ी से वहाँ आई और रुपाली को पकड़ा। उसके हाथों से यह कहते हुए अजय की कॉलर छुड़ाई कि रुपाली होश में आओ, यह क्या कर रही हो? रुपाली का ऐसा रूप देखकर अजय की आँखों से भी आँसू बहे जा रहे थे।

अजय की कॉलर छोड़ने के बाद उसने फिर कहा, "तुम्हें क्या लगता है अजय, तुम प्रियांशु को गायब कर दोगे तो मैं तुमसे…"

अरुणा ने बीच में ही कहा, "रुपाली चुप हो जा। तू बिना सोचे समझे इल्ज़ाम लगा रही है उस पर।"

रुपाली निढाल होकर अपनी माँ के सीने से लग गई। वह अपने आप को संभाल ही नहीं पा रही थी।

उसने फिर मंडप की तरफ देखा, सजे हुए अपने घर की तरफ देखा और फिर धीरे-धीरे ऊपर जाने लगी।

तभी उसके कानों में आवाज आई, "अजय बेटा रुपाली की यह ग़लती माफ़ कर देना, वह अभी होश में नहीं है। हमें तुम्हारी बात पर विश्वास करना चाहिए था। हमें माफ़ कर दो बेटा। इस तरह बारात का ना आना, लड़की के लिए काला दिन बन जाता है, अशुभ होता है। अब कौन करेगा मेरी रुपाली से शादी?"

रुपाली जाते-जाते यह सारी बातें सुन रही थी। उसने पलट कर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उस तरफ़ देखकर उंगली से इशारा करते हुए, बिना कुछ कहे ही कह दिया कि सोचना भी मत। रुपाली ऊपर चली गई। घर के सादे कपड़े पहन कर वह तुरंत नीचे आई और उसने कहा, "चलो-चलो फटाफट यह मंडप, यह डेकोरेशन हटाओ और किसी को रोने-धोने की ज़रूरत नहीं है। "

इतना कह कर उसने फूलों के कुछ हार अपने ही हाथों से तोड़ कर फेंक दिए और वापस ऊपर चली गई।

उसने अपना दरवाज़ा बंद करने के लिए जैसे ही दरवाज़े को हाथ लगाया तभी पीछे-पीछे अरुणा भी वहाँ आ गई और कहा, "प्लीज़ रुपाली बेटा दरवाज़ा बंद मत करो।"

"माँ तुम्हें क्या लगता है, मैं इतनी कमज़ोर हूँ कि मर जाऊँगी। नहीं माँ आप बेफ़िक्र रहो, मैं ऐसा कभी नहीं करुँगी।"

"लेकिन मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं हो रहा बेटा! मुझे अपने साथ रहने दो प्लीज़!"

"मुझे आज की यह एक रात अकेले रहने दो ना माँ प्लीज़। मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी। भगवान ने मुझे जितनी साँसें दी हैं, हर साँस का मैं सम्मान करुँगी।"

"ठीक है बेटा, तुम जानती हो ना हमारा भूत, वर्तमान और भविष्य सब कुछ तुम ही तो हो। हमारी इकलौती संतान, हमारी सब कुछ।"

"मैं सब जानती हूँ, आप बिल्कुल परेशान मत होओ। मुझे आज की एक रात अकेले रहने दो माँ।"

"ठीक है बेटा तुम अकेली ही रहो लेकिन अंदर से दरवाज़ा बंद मत करना।"

"ठीक है माँ।"

अरुणा नीचे आ गई, मेहमान हैरान थे। कुछ तो जा चुके थे, कुछ नज़दीकी रिश्तेदार और दोस्त अभी भी रुके हुए थे। ऐसा तो क्या हुआ होगा? वह लड़का क्यों नहीं आया? सभी के मन में यह एक ही सवाल था।

प्रियांशु के पापा का फिर से फ़ोन आया उन्होंने विजय से माफ़ी मांगते हुए कहा, "विजय जी मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। हमें बिल्कुल नहीं पता था कि प्रियांशु ऐसा करेगा। उसने ऐसा क्यों किया, हमें तो वह भी नहीं पता। अब तक तो वो ख़ुद कहाँ है, यह भी नहीं पता लेकिन मैं उसे माफ़ हरगिज़ नहीं करुँगा। हमारे घरों में भी बेटियाँ हैं, हम जानते हैं आपके दिल का हाल, रुपाली बेटी के दिल का दर्द ।"

विजय ने चुपचाप सारी बातें सुनीं। उनकी बात ख़त्म होने पर वह बोले, "भगवान की मर्जी के आगे किसकी चलती है। मेरे परिवार का और मेरी बेटी का भाग्य ही खराब है। आप क्या कर सकते हैं?"

रुपाली बिस्तर पर लेटे-लेटे सोच रही थी, आख़िर प्रियांशु ने ऐसा क्यों किया? आख़िर क्या कारण था? क्या सिर्फ़ उसका जिस्म ही प्रियांशु की चाहत थी? क्या उसने कल रात सिर्फ़ इसलिए उसे बुलाया था? क्या बुखार, तबीयत, उल्टी, ठंड सब बहाना था? क्या वह उसके पीछे पड़ी थी? क्या अजय सब कुछ सच बोल रहा था? या अजय ने ही उसे…नहीं-नहीं अजय इतना नीचे नहीं गिर सकता। तरह-तरह के सवालों ने उसे सोने नहीं दिया। वह रात भर बेचैन रही। उसकी मम्मी थोड़ी-थोड़ी देर में दरवाज़े की दरार में से उसे झांक लेती थीं। सब परेशान थे, मजबूर थे, करें तो क्या करें?

अरुणा को आज अजय के बोले सारे शब्द याद आ रहे थे। वह सोच रही थी, काश अजय की बातों पर विश्वास कर लिया होता। काश रुपाली ने उसके प्यार को स्वीकार कर लिया होता।

अगले ही दिन से रुपाली ने अपनी रूटीन लाइफ जीना शुरु कर दिया। बाहर आना-जाना सब कुछ। वह नहीं चाहती थी कि उसके माता-पिता और ज़्यादा परेशान और ज़्यादा दुःखी हों। माँ -बाप तो अपने बच्चों को जानते ही हैं। रुपाली के माता-पिता भी समझ रहे थे कि रुपाली बाहर से यह सब दिखावा कर रही है। अंदर से वह बिल्कुल टूट चुकी है।

रुपाली बार-बार प्रियांशु को फ़ोन लगाती रही। वह केवल इतना जानना चाहती थी कि आख़िर उसने ऐसा क्यों किया? वह तो इससे पहले कभी उससे मिली तक नहीं, उसे जानती तक नहीं थी, फिर उसने किस बात की दुश्मनी निकाली। रुपाली यह सोच-सोच कर परेशान हो रही थी।

आज उस काले दिन के बाद का तीसरा दिन था। आज अजय रुपाली के घर आया। रुपाली की मम्मी से मिलकर उसने पूछा, "आंटी रुपाली कैसी है?"

"क्या बताऊँ बेटा, कुछ समझ नहीं आ रहा। ऊपर से वह सब कुछ ठीक दिखाने की कोशिश करती है पर हम जानते हैं वह ठीक नहीं है। बहुत बड़ा आघात लगा है उसे।"

"आंटी मैं उससे मिलना चाहता हूँ पर डर लगता है। वह पता नहीं क्या सोचेगी?"

"अजय बेटा, थोड़ा सा रुक जाओ और दो-चार दिन बाद ही मिलो तो अच्छा होगा।"

"ठीक है, आंटी मेरे लायक कुछ भी काम हो तो ज़रूर कहना। मैं आधी रात को भी आ जाऊँगा।"

"थैंक यू बेटा।"

"ठीक है, आंटी अब मैं चलता हूँ।"

धीरे-धीरे पूरा एक सप्ताह गुजर गया लेकिन प्रियांशु ने रुपाली का फ़ोन नहीं उठाया, ना ही उसने अपने किसी भी दोस्त से कांटेक्ट किया। अलबत्ता वह अपने घर आ चुका था। उसके पापा के लाख पूछने पर भी उसने उन्हें कोई कारण नहीं बताया कि आख़िर उसने ऐसा क्यों किया।

नौ दिन इसी तरह बीत गए और दसवें दिन अचानक रुपाली के फ़ोन की घंटी बजी। नया नंबर था, रुपाली ने फ़ोन उठाते हुए पूछा, "हैलो कौन?"

उधर से आवाज़ आई, "हाय रुपाली, कैसी हो?"

यह प्रियांशु की आवाज़ थी।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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