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एलओसी- लव अपोज क्राइम - उपन्यास
jignasha patel
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
नशे से बोझिल नंदिनी की आंखों में थोड़ी चैतन्यता नज़र आने लगी। फाइव स्टार होटल के बार में बैठी नंदिनी के कानों में गीत संगीत की स्वर लहरियां धीरे धीरे गूंजने लगी-तेरे वादे की आस पलती रही,कोई शै दिल को यूं ही छलती रही।बेकरारी में कटी शामो- सहर-रात उम्मीद लिए ढलती रही।अपने होंठों पर कभी ला न सके,बात आंखों में ही मचलती रही।कभी गुलशन, कभी सहरा सी लगी,जिंदगी कितने रंग बदलती रही।कोई आहट सी आसपास रही, कोई रूह साथ साथ चलती रही।फिर सजी महफ़िल दीवानों की-फिर सरे शाम शमा जलती रही।नंदिनी ने अपने हाथ में जाम
नशे से बोझिल नंदिनी की आंखों में थोड़ी चैतन्यता नज़र आने लगी। फाइव स्टार होटल के बार में बैठी नंदिनी के कानों में गीत संगीत की स्वर लहरियां धीरे धीरे गूंजने लगी-तेरे वादे की आस पलती रही,कोई शै दिल ...और पढ़ेयूं ही छलती रही।बेकरारी में कटी शामो- सहर-रात उम्मीद लिए ढलती रही।अपने होंठों पर कभी ला न सके,बात आंखों में ही मचलती रही।कभी गुलशन, कभी सहरा सी लगी,जिंदगी कितने रंग बदलती रही।कोई आहट सी आसपास रही, कोई रूह साथ साथ चलती रही।फिर सजी महफ़िल दीवानों की-फिर सरे शाम शमा जलती रही।नंदिनी ने अपने हाथ में जाम
" दीदी, आज सुबह....!"दीपक कुछ और बोलता कि इतने में नंदिनी के मोबाइल की घण्टी बज उठी।" दीपक, एक जरुरी कॉल है। मैं बात करके आती हूँ। तब तक तुम इसे खाओ।" यह कहकर नंदिनी ने फल व ड्राईफ्रूट ...और पढ़ेप्लेट उसकी तरफ बढ़ा दी।" ठीक है दीदी। आप बात करके आओ। मैं आपका इंतजार करता हूं।""ओके, भाई।" नंदिनी ने दीपक के सर पर प्यार से हाथ रखा और कमरे से बाहर निकलकर वह बालकनी पहुंची।" हां, नितिन! बोलो। कुछ पता चला उसका? कहां है वो?"" नंदिनी, हर जगह खोजा। उसके गांव भी। पर कोई पता नहीं चला। सिर्फ इतना
नंदिनी ने कभी सोचा ही नहीं था कि अभिनव उसे इस तरह छोड़कर चला जाएगा। वो अभिनव से बहुत प्यार करती थी। अभिनव पर बहुत भरोसा था उसे। अपने से ज्यादा। सूरज, चांद, तारों, प्रकृति, धरती, अम्बर, कायनात से ...और पढ़ेभरोसा। पर उसे तनिक भी अंदाजा नहीं था कि अभिनव उससे अचानक मुंह मोड़ कर बेगाना बन जाएगा। बहुत फोन किया नंदिनी ने अभिनव को। इतनी बार किया कि उसकी उंगलियां थक गई। पर अभिनव ने कॉल रिसीव ही नहीं की। घण्टी बजती रही, बजती रही। मैसेज का भी जवाब नहीं दिया। कुछ दिन बाद
नंदिनी के दर्द को दो और आंखें भी महसूस कर रही थी। वे आंखें भी रो रही थीं। वो दिल भी नंदिनी के साथ सिसकियां ले रहा था। ये थी रीनी। दर्द उसके पास भी था- प्यार में थोखा ...और पढ़ेका दर्द। इस पीड़ा को उससे बेहतर कौन समझ सकता है! उस दर्द से वो गुजर चुकी थी और उस वक्त यदि नंदिनी रीनी की सहायता नहीं करती तो शायद आज रीनी इस दुनिया में नहीं होती। उसका जीवन बचाने वाली, उसे एक नया जीवन देने वाली नंदिनी ही थी।
आईने के सामने खड़ी रीनी आईने के भीतर अपने को ढूंढ रही थी। वह इस प्रक्रिया में खोई थी कि उसे अपने कानों में सरगोशियां सुनाई पड़ी-' रीनी, ये रीनी, रुको! अब रुक जाओ बाबा! तुम गिर जाओगी।' "अरे, ...और पढ़ेतो राघव की आवाज है!' रीनी चौंक पड़ी। उसे ये आवाज आईने के अंदर से आती लगी। ये आवाज सुनकर रीनी आईने को गौर से देखने लगी। आईने के उस पार राघव, उसके पीछे दौड़ रहा था। राघव को अपने पीछे दौड़ाने में रीनी को मजा आता था। रीनी आगे, राघव पीछे। दौड़ते- दौड़ते