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एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 10

अध्याय -10
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सवालों के चक्रव्यूह में फंसी नंदिनी घर पहुंची। हजार तरह के सवालों ने उसकी शिराओ में उबलती निराशा को बढ़ा दिया था। रही- सही उर्जा को ठंडा करने लगे कई तरह के सवाल। उसका रक्त मानो बर्फ की तरफ जमने लगा। फिर भी किसी तरफ साहस बटोरकर वह वाशरूम गई। पानी के कुछ छींटों से उसकी उर्जा वापस आई। आज सुबह से घटी सारी घटनाओं के दृश्य उसकी आंखों के सामने घूमने लगे... एक के बाद एक सवाल भी उठ रहे थे, पर उसे किसी भी सवाल का उत्तर नहीं मिल रहा था । वह अपने ही भीतर उठ रहे भावों में बह रही थी। मां का, रीनी का सब कहा सुना उसके ऊपर से जा रहा था। रीनी ने कहा भी कि 'नंदिनी बहुत थक गई हो । तुम्हारा चेहरा उत्तर गया है। कुछ खा लो ।'फिर भी नंदिनी पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
थोड़ी देर बाद नंदिनी ने डॉ. मल्होत्रा को फोन किया औऱ पप्पू की तबियत के बारे में पूछा। तो पता चला कि 'पप्पू कोमा में जा चुका था और कुछ कहा नहीं जा सकता कि कब कोमा से बाहर आएगा ।' नंदिनी के लिए यह एक बड़ा सदमा था । आखिर ये सब क्या हो रहा है? छोटे भाई का नाम लेकर पप्पू क्या कहना चाहता था? उसने रीनी को बोला भी था कि भाई को नीचे लेकर आए। पर वो सो रहा था। नंदिनी रीनी को बार- बार भाई के कमरे में भेज रही थी कि अगर वो जाग गया हो बताओ ।
थोड़ी देर बाद रीनी ने आकर बताया कि 'भाई उठ गए हैं।' नंदिनी तुरंत कमरे में गई । कमरे में मां भी मौजूद थी और दीपक को तैयार कर रही थी।
" मेरा भाई! उठ गया तू! "
"हां! दीदी!!"
" मां, कही बाहर जा रही हो क्या? "
"हां बेटा,! दीपक का रूटीन चेकअप है आज।'
"ओह...! हां याद आया। इसे हर महीने डॉक्टर के पास ले जाना होता है।"
" हां बेटा, आज इसकी दवाईयां भी लानी है।"
"मां मै भी चलूं साथ में?"
" नहीं बेटा! तुम आराम करो। शाम को तुम्हे जाना भी है। तुम्हारे पापा चले जायेंगे। "
नंदिनी मन मसोसकर रह गई । गीता में कर्म के बारे में बहुत सारी बातें कही गई हैं। इंसान का कर्म करने पर ही अधिकार है, फल पर नहीं, इसलिए कर्म अवश्य करें और फल की कामना न करें । व्यक्ति को कर्म की स्वतंत्रता है, फल पाने की नहीं। दीपक के साथ जाने की नंदिनी ने कोशिश की परन्तु मां ने मना कर दिया। दीपक के साथ जाने का उसे मौका मिलता तो शायद उसे कुछ बातें पता चलती। इस दिशा में नंदिनी ने कर्म तो किया पर उसे फल प्राप्त नहीं हो पाया। छोटे भाई के सिर पर हाथ रखकर उसके बालों को सहलाते हुए बड़े प्यार से नंदिनी ने कहा- "अपना ख्याल रखना।" फिर वह अपने कमरे में चली गई ।
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रीनी भी काफ़ी परेशान थी । सुबह से जो भी घटनाएं घट रही थी, वो उसे हजम नहीं हो पा रही थी। आश्चर्यजनक! रहस्यमय!! रोमांचक! थ्रिल और सस्पेंस से भरपूर। ऐसा तो उसे डबल्यू बी ई की उस इवेंट में भी नहीं लगा था जिसमे से एक बॉक्सर की 12 वें राउंड में बेहद भीषण हालत हो गई थी । जीवन की अभिव्यक्ति के सारे संकेत उससे जा चुके थे। उसका चेहरा एक मानव खोपड़ी जैसा - मौत के सिर जैसा लग रहा था, जिससे खून का फुहार छूट रहा था, उसकी आँखों में खून था ।नाक से खून बह रहा था और मुँह से भी खून भरे झाग निकल रहे थे। वह वास्तविक मनुष्य नहीं, बल्कि एक असाधारण प्राणी की तरह लग रहा था। फ़िर भी तब रीनी शांत थी । वह डरी नहीं। पर नंदिनी के मामले में पिछले कुछ समय से जैसा घट रहा था उसने रीनी को हिला कर रख दिया था। रीनी को साफ- साफ पता चल गया था कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है,पर यहां भी वही सवाल बार -बार आ जाता था कि आखिर ऐसा कौन कर सकता है?
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नंदिनी और रीनी दोनों दीपक की वापसी का इंतजार करने लगी। इस दौरान नंदिनी ने अभी के जितने दोस्तों के नंबर उसके पास थे, उन सभी को फोन किया । परन्तु किसी से कोई खास सूचना नहीं मिली । गुजरते पल के साथ नंदिनी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। 'अभी के साथ क्या हुआ?' इसे जानना अब नंदिनी का ध्येय बन गया था । उसके मन में आशंकाएं भी आती थी कि अभी को कहीं कुछ हो तो नहीं गया?, यह विचार मात्र से ही नंदिनी कांप उठती थी, पर दूसरे ही पल अपनेआप को संभालते हुए वह खुद को ही सांत्वना देती थी कि, 'नहीं नहीं, मेरे अभी को कुछ भी नहीं हो सकता।'
एक - एक मिनट भी नंदिनी को भारी लग रहा था। इंतजार की घड़ियां लम्बी हो रही थी । वो भाई से बात करने के लिए उतावली थी। परन्तु इंतजार के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं था।
उस वक़्त बाहर किसी कार के रुकने की आवाज आई। नंदिनी को लगा कि छोटा भाई वापस आ गया पर नहीं वो तो उसकी डिजाइनर आई थी। नंदिनी को नई ड्रेस देने के लिए। उसमें नंदिनी की पसंदीदा कई परिधान थे। इसमें उसकी डिजाइनर ने काफ़ी कल्पनाशीलता दिखाई थी।क्रॉप टॉप, विद क्रेप, चिकनकारी अंगरखा, घेरदार जम्पशूट । ब्लॉक प्रिंट के मोटिब्ज और कलर्स से लेकर कट व स्टीचिंग में नए एक्सपेरीमेंट वाले बंद गला टॉप, कॉटन शरारा, जार्जेट सिल्क लहंगा चोली, इवनिंग गाउन, टू पीस बैकलेस प्रोम, डिजाइनर अनारकली सलवार सूट आदि आदि। एक भरा पूरा वॉर्डरोब । पर नंदिनी ने कोई रूचि नहीं दिखाई, उसने यंत्रवत भाव से सभी पैकेट अलमारी में रख दिए। अपनी आदत के अनुरूप ड्रेसेज पर एक बार न बात की, न उन्हें चेक करके देखा। डिज़ाइनर भी हैरान रह गई, दरअसल ऐसा आज पहली बार हुआ था कि नंदिनी ने अपने ड्रेस चेक नहीं किए । पर नंदिनी से कुछ बोलने की उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ी। वह जाते- जाते सिर्फ इतना कह पाई कि "ओके मैम। अब मैं चलती हूं। ड्रेसेज में कुछ प्रॉब्लम हो तो प्लीज इन्फॉर्म मी।"
"ओके" नंदिनी ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
"मैडम, एक बात और।"
"क्या है, बोलिए।"
"मैडम वो क्या है न कि अभिनव सर की सिस्टर ने कुछ ड्रेसेज आर्डर किए थे। मैं उसकी हॉस्टल में दो बार जा चुकी हूं, पर वो नहीं मिली। वो ड्रेस मैं आपको देती हूं, आप प्लीज, उन तक पहुंचा दीजियेगा।"
"क्या? नव्या हॉस्टल में नहीं मिली?''
''जी मैडम, मैं दो बार वहां जा चुकी हूं, मुझे वार्डन ने बताया कि नव्या नहीं है।''
'' ठीक है मुझे दे दीजिये, मैं पंहुचा दूंगी।''
डिज़ाइनर का ड्रेस देकर रुखसत होना और दीपक व मां - पिता का आना एक साथ हुआ। छोटे भाई को उसके कमरे में छोड़कर मां- पिता अपने कमरे में चले गए ।
नंदिनी तुरंत दीपक के कमरे में गई और पूछा,
" चेकअप हो गया छोटू? "
" हां दीदी, दवाइयां भी ले ली।"
" ठीक है!बढ़िया...,समय से दवा लेते रहो... जल्दी ठीक हो जाओगे । कोई चिंता न करो। "
"जी दीदी!"
"छोटू एक बात पूछूं? "
" हां दीदी । "
" छोटू,मेरे भाई तुम्हें तो सब पता ही है कि अभिनव पता नहीं कहां चला गया है और वो जो पप्पू चायवाला है न, गौरीपुर में, उसका अचानक एक्सीडेंट हो गया है। "
" एक्सीडेंट! कैसे हुआ दीदी। कब हुआ?" दीपक चौंक पड़ा।
" वो मैं बाद में बताउंगी भाई । विशेष बात यह है कि छोटू ने बेहोश होने के पहले तुम्हारा नाम लिया था। "
" अच्छा । वैसे दीदी पप्पू यहां आया था, उसने एक चिट्ठी दी थी। वो चिट्ठी मां ने मुझसे छीन ली थी। जबरदस्ती। मैं नहीं दे रहा था तो मुझे मारा भी ।'
"अच्छा! पर यह बात तुमने मुझे क्यों नहीं बताई? "
" दीदी, मैं बताना चाहता था, पर मुझे मौका ही नहीं मिला "
" ओह । "
" दीदी, पप्पू यह भी बता रहा था कि अभिनव .....। "
दीपक उससे ज्यादा और कुछ बताए, उससे पहले ममता और राजमल उस कमरे में आ गए ।
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