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एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 7




रीनी ने बहुत मुश्किल से अपने को संभाला। उसकी सारी ताकत निचुड़ चुकी थी। किसी तरह से उठकर वो दरवाजे तक पहुंची। दरवाजे में दो ताले लगे हुए थे। इसका मतलब साफ था कि ये मकान मालिक के ताले हैं। यानी ' राघव घर छोड़कर जा चुका है।' मकान मालिक का पास की जल मंगल दीप सोसायटी में एक और मकान था, वहां भी ताला बंद था।
रीनी मीना के घर गई। मीना के दरवाजा खोलते ही रीनी ने सवाल दाग दिया- " मीना... वो राघव का फोन नहीं लग रहा है।... घर पर मकान मालिक का ताला लगा हुआ है... ?"
सच तो यह था कि रीनी को अभी तक राघव को फोन करने का ख्याल नहीं आया था।
" रीनी, राघव भैया ने आज सुबह ही मकान खाली कर दिया। सारा सामान बेचकर वह गांव चला गया। कह रहा था कि माँ की तबियत बहुत खराब है। अब वो गांव में ही रहेगा।"
" हे भगवान!" रीनी ने अपना सर पकड़ लिया। उसे सारी दुनिया घूमती हुई महसूस होने लगी। टेंशन से लग रहा था कि मानो उसका सर फट जाएगा।
" क्या हुआ रीनी? ये बात तुम्हें राघव ने नहीं बताई क्या? वो तो कह रहा था कि मैंने इसीलिए रीनी को पहले गांव भेज दिया था। अब खुद जा रहा हूं।"
रीनी और टेंशन में आ गई। यह क्या घोटाला हो रहा है? उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तब तक मीना उसे लेकर घर के अंदर आ चुकी थी। उसे बैठने के लिए कुर्सी पेश की। पानी दिया, चाय दी, तब रीनी की जान में जान आई। वह मीना से क्या बात करे, समझ नहीं पा रही थी।
" मीना, क्या मैं आज यहां पर रुक सकती हूं?" रीनी के मुंह से बस इतना ही निकल पाया।
" यह भी कोई पूछने की बात है?"
अब जाकर रीनी की जान में थोड़ा जान आई। सबसे पहले उसे ध्यान में आया राघव को फोन करने का। उसने कई कई बार ट्राई किया, पर राघव का नम्बर बंद आ रहा था। फिर उसने गांव में चाची को फोन किया, राघव के एक दोस्त साहिर को फोन किया। पर राघव का कोई पता नहीं चला। ' कुछ ही घण्टे का तो रास्ता है गांव का! राघव को कभी का वहां पहुंच जाना चाहिए था, पर वह गांव नहीं पहुंचा! फिर कहां चला गया वो?' रीनी की आंखों से गंगा- जमुना बहने लगी। फिर उसने अपने मन को तसल्ली देनी शुरू कर दी- 'चिंता न करो। मेरा राघव ऐसा नहीं हो सकता। सब ठीक हो जाएगा।' उसने सोचा कि कल सुबह राघव के ऑफिस जाकर पता करूंगी, पर ये क्या? उसे तो राघव के ऑफिस का पता मालूम ही नहीं था। उसने राघव से कभी पूछा नहीं और राघव ने कभी खुद से बताया भी नहीं। विश्वास इतना था कि रीनी को इस तरह की पूछताछ की कभी जरूरत ही नहीं पड़ी। उसके दिमाग में ढेर सारी निगेटिव बातें आ रही थीं। सोच- सोचकर वो पागल हुई जा रही थी। भूख- प्यास सब मर गई थी। नींद भी काफी देर बाद आई।
सुबह जब रीनी चाय पी रही थी तो उसे ध्यान आया कि एक बार राघव ने बताया था कि उसके चाचा भी इसी शहर में रहते हैं। रीनी ने तुंरत गांव फोन करके चाचा का पता नोट किया- 'फ्लैट नम्बर 20, संस्कृति अपार्टमेंट, लिंक रोड, संतोष नगर....।' चाय के बाद वह पूछते- पूछते वहां पहुंची। राघव की चाची ने उसे बताया, " बेटी, हमें उसके बारे में कुछ नहीं पता। वह यहां पर कभी नहीं आया है। हां, एक दो बार बाजार में मुलाकात हुई है बस!"
रीनी की घबराहट और बढ़ गई- ' किसी को राघव के बारे में कुछ पता ही नहीं।' नमस्ते करके वहां से निकल रही थी कि राघव के चाचा ने उससे कहा, " सुनो बेटी, एक बार बातों- बातों में राघव ने बताया था कि उसे पूनम ट्रेडर्स में जाना है। कोई काम है। शांति चौक के पास है यह। वहां जाकर एक बार पता करो। हो सकता है कि कुछ पता ही चल जाए।"
" ठीक है चाचा जी।" कहते हुए रीनी अपनी अपनी आंखों में आंसू लिए वहां से निकल पड़ी।
पूनम ट्रेडर्स में किसी को भी राघव के बारे में पता नहीं था।
यहां तक कि राघव का फोटो देखकर भी किसी को उसके बारे में कुछ याद नहीं आया। अब तो रीनी और भी ज्यादा डर गई। कल से जो शंका उसके मन में बैठी थी, वह उभरकर प्रतिपल 'धोखे' में बदलने लगी। उसे पूनम ट्रेडर्स से बड़ी उम्मीद थी, पर उसकी सारी उम्मीदें चकनाचूर हो गई। निराशा, दुख, दर्द, पीड़ा, तकलीफ, धोखे की आशंका और भविष्य की अनिश्चितता ने उसकी सारी ऊर्जा सोख ली थी। उसकी आंखों के सामने बार- बार अंधेरा छा जाता था। अब तो एक कदम भी चलने की उसकी हिम्मत नहीं थी। किसी तरह से ताकत जुटाते हुए वह पूनम ट्रेडर्स से बाहर निकली और वहां से चंद कदमों की दूरी पर स्थित एक पार्क में जाकर बैठ गई।
रीनी ने सुबह से कुछ भी खाया नहीं था, पर उसे भूख नहीं लगी थी। हां, थोड़ी प्यास महसूस हुई तो वह पानी पीने पार्क के बाहर आई। एक दुकान पर जब वह पानी की बोतल ले रही थी तभी उसकी नजर एक लड़की पर पड़ी। ' अरे, ये तो वही लड़की है जो उस शाम राघव के साथ बाइक पर थी!' रीनी ने उसे ध्यान से देखा तो एकदम पहचान गई....' हां, ये तो वही है।' रीनी चौंक गई और खुश भी हो गई कि ' चलो, राघव का कोई सूत्र तो मिला।'
" मैडम, सुनिए.... मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"
अचानक किसी के टोकने से वो लड़की अचकचा गई- " कौन हैं आप? क्या बात करनी है मुझसे?"
" मैडम, प्लीज! मेरा नाम रीनी है।"
" रीनी, कौन रीनी? मैं तो आपको जानती भी नहीं हूँ।" उस लड़की की आवाज में उपेक्षा का भाव था।
" मैडम, प्लीज। प्लीज। दो मिनट मेरी बात सुन तो लीजिए। शायद आप मेरी मदद कर सकती हैं? मैं बहुत परेशान हूँ।" रीनी गिड़गिड़ाने लगी थी।
" ओके... ओके... बताइए।"
रीनी ने उस लड़की को राघव की फोटो दिखाकर पूछा कि क्या आप इन्हें जानती है तो उसने तुरंत इंकार कर दिया पर जब रीनी ने बताया कि उसने एक शाम खुद उन दोनों को बाइक पर देखा, साथ ही अपनी कहानी भी संक्षेप में बताई, तब तक रीनी की आंखों से आंसू बहने लगे थे तो उस लड़की ने बताया- 'हां वह राघव को जानती है पर गौरव के नाम से। उसका 'बिजनेस पार्टनर' है गौरव। वह गौरव के बॉस की बेटी नहीं, बल्कि एक कॉल गर्ल है, गौरव उसके लिए दलाली करता था, उसे क्लाइंट लाकर देता था, क्लाइंट तक पहुंचाता था। गौरव कोई नौकरी नहीं करता था, वह इसी तरह के शायद कुछ और काम में लिप्त था क्योंकि उसे बड़ा आदमी बनने का शौक था, इसीलिए उसका मुंबई जाने का भी प्लान था।
यह सुनकर रीनी के ऊपर मानो आसमान टूट पड़ा। हे भगवान! राघव ने इतना बड़ा धोखा किया उसके साथ! इतना बड़ा नाटक! वह भांप भी नहीं पाई राघव के नाटक को। रीनी की सोच का क्रम उस लड़की की आवाज से टूटा।
" आप गांव लौट जाओ। आप शरीफ लड़की हैं। अब गौरव, आपका 'राघव' आपको कभी नहीं मिल पाएगा। वो मुंबई चला गया होगा, आपको छोड़कर। शायद, अब वो नहीं लौटेगा। उस धोखेबाज के चक्कर में अपनी जिंदगी मत खराब करो।..... अच्छा नमस्ते, मैं चलती हूं।" कहकर वो चली गई।
रीनी अपनी सुधबुध खो चुकी थी। ' अब क्या राघव उसे कभी नहीं मिलेगा?' यह एक सवाल उसे झिंझोड़ रहा था, उसकी आत्मा को मथ रहा था। उसकी सारी ताकत निचुड़ चुकी थी। लेकिन उसे हिम्मत तो जुटानी ही थी। बिना हिम्मत के कुछ नहीं होने वाला। रीनी ने उसी क्षण फैसला कर लिया कि वह राघव का पता लगाकर रहेगी। वह एक बार, सिर्फ एक बार राघव से मिलकर धोखा, झूठ, फरेब व विश्वासघात करने की वजह जानना चाहती थी। वह मुंबई जाएगी। जरूर जाएगी।..... लेकिन कैसे जाएगी मुंबई? उसके पास तो इतने पैसे भी नहीं थे। सुना था कि मुंबई बहुत मंहगा शहर है।
रीनी ने अपना पर्स टटोला। उसमें 200 रुपए और कुछ चिल्लर पड़े थे बस। वह रेलवे स्टेशन पहुंचकर मुंबई जाने वाली ट्रेन में सवार हो गई। बिना टिकट।
*****

जिस इंसान ने पतंगबाजी की होगी उसे यह जरूर पता होगा कि एक बड़ी पतंग जब सफलता के साथ आकाश की ऊंचाइयों की तरफ बढ़ती चली जा रही होती है तो उड़ाने वाले की मेहनत भी बढ़ती जाती है और एक समय ऐसा भी आता है जब बहुत ऊंचाई पर पहुंच चुकी पतंग को संभाले रखना और उसकी स्थिति को बनाए रखना बहुत कठिन हो जाता है तब पतंगबाज के सामने दो ही रास्ते बचते हैं, एक तो वो पतंग को और ज्यादा ऊंचाई तक उड़ाने का प्रयास करता रहे, भले ही उसकी डोर टूट जाए या फिर पतंग को वापस उतारकर कुछ समय बाद सारी ताकत बटोरकर फिर से उड़ाया जाए।
रीनी की ट्रेन जब तक मुंबई पहुंची तब तक उसने सारा कुछ सोच लिया था। उसने सोच लिया था अब एक बार राघव से मिल लेने के बाद वह अपना दूसरा रास्ता खोजेगी।
मुंबई सेंट्रल। रीनी के लिए एकदम अपरिचित और अनजान माहौल। चारों तरफ भीड़भाड़ और अफरातफरी जैसी स्थिति। सुबह 10 बजे का समय। हर कोई बहुत जल्दी में दिख रहा था इस सपनों के शहर में जिसकी कुछ छवियां रीनी ने फिल्मों में देखी थी। पैसे बचाने के लिए उसने ट्रेन में कुछ खाया पिया नहीं था। सारे रास्ते वो गुमसुम रहकर सोचती रही कि इतने बड़े शहर में राघव को कैसे खोजेगी?
रीनी स्टेशन के क्लॉक रूम में फ्रेश होकर बाहर आई। तब तक उसे थोड़ी भूख लग गई थी। उसने एक ठेले पर वडा पाव खाया, पानी पिया, चाय पी। फिर उसका अभियान शुरू हुआ- राघव को खोजने का- वो राघव की फोटो दिखाकर लोगों से पूछने लगी-
" भाई साहब, आपने इन्हें कहीं देखा है?"
" मैडम, मुझे इस आदमी की तलाश है।"
" सर... मेरी मदद कीजिए... इन्हें खोजने में!"
" इनका नाम राघव है। मैं इन्हें खोज रही हूँ।"
" मैं बड़ी दूर से आई हूं इन्हें खोजने।"

तब लोगों के जवाब इसी तरह से होते थे-
" नहीं जानता।"
" माफ करो।"
" नहीं देखा।"
" मुंबई बहुत बड़ा शहर है। इस तरह आप नहीं खोज पाओगी।"
" पुलिस स्टेशन चली जाओ।"
" टीवी व प्रेस में विज्ञापन देने से शायद बात बन जाए!"
" पागल लड़की! फालतू कोशिश कर रही है। गांव लौट जा।"
कुछ लोग उससे बुरा व्यवहार करते, कुछ चिढ़ाते, कुछ भद्दे इशारे भी करते, पर रीनी निर्विकार भाव राघव के बारे में लोगों से पूछती रहती। दोपहर से रात के 9 बज गए। हजारों लोगों से पूछा। अब उसके पास सिर्फ 120 रुपए ही बचे थे। इतने से क्या होगा? न किसी होटल में रुक सकती थी, न धर्मशाला में। आगे के लिए भी पैसे बचाने थे, लिहाजा वो रेलवे प्लेटफॉर्म पर वापस आ गई रात बिताने के लिए।
दूसरे दिन सुबह फिर रीनी राघव की खोज में मुंबई की सड़कों की खाक छानने लगी। दिन भर भटकी। हासिल कुछ न हुआ। इसी तरह से चार दिन बीत गए। मुंबई की अनजान सड़कों, बस्तियों, इलाकों, गलियों में राघव की फोटो लिए वो पागलों की तरह घूम रही थी। कपड़े गंदे हो गए। पास में एक धेला भी नहीं बचा था। दो दिन से भूखी थी। शरीर की सारी ताकत निचुड़ चुकी थी। ' अब कैसे खोजूं मैं राघव को? न जाने कहां है राघव?' यह सोचती हुई बांद्रा पश्चिम के हेडगेवार रोड से गुजर रही थी कि पीछे से आती हुई एक कार ने उसे टक्कर मार दी।
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रीनी की जब आंखें खुली तो वह अस्पताल में थी। " पेशेंट को होश आ गया। अब आप उससे मिल सकती हैं।" नर्स की आवाज उसके कानों में पड़ी। उसके सामने एक सुंदर सी लड़की थी। घायलावस्था में भी इस सुंदरता ने उसे प्रभावित किया। हुश्न और नूर का शाहकार। उसके चेहरे की रूपरेखा ऐसी लुभावनी कि उस पर से रीनी की नजरें हट नहीं रही थी। उसके हाथों की उंगलियां पतली, लंबी, बाहें गोल, लंबी और भरी- भरी तथा सुराहीदार गर्दन। सर के बाल बड़े ही आकर्षक ढंग से पीछे की तरफ उठे हुए जूड़े में कैद। बहुत सुंदर आंखें- अमावस की रात के आसमान से भी ज्यादा काली, किसी अक्षत योनि कन्या- सी भोली।
" हेलो।" रीनी के कानों में बड़ी मधुर आवाज गई तो उसकी तंद्रा टूटी।
" हाय।" किसी से नंदिनी की आवाज निकली और उसने बेड से उठने की कोशिश की।
" उठो नहीं। लेटे रहो। क्या नाम है आपका?"
" रीनी।"
" वाह, बहुत प्यारा नाम है। मैं नंदिनी हूं। जब आपका एक्सीडेंट हुआ तब मैं वहीं थी।"
" थैंक यू नंदिनी जी।"
" मेंशन नाट। अभी कैसा फील कर रही हो?" नंदिनी की अपनत्व से भरी पूछताछ से रीनी भावुक हो गई। वह अपने पर काबू नहीं कर पाई और फ़ूट- फूटकर रो पड़ी। शांत होने पर उसने नंदिनी को अपनी सारी रामकहानी बता दी।
उस समय तक नंदिनी का करियर शुरू हो चुका था। वह एक असिस्टेंट रखने को सोच रही थी। रीनी पढ़ी- लिखी थी और बेसहारा भी।
नंदिनी भले उस फिल्मी दुनिया का हिस्सा थी, जिसे बड़ी निर्मम जगह माना जाता है। क्रूर, कठोर, पत्थरदिल व बियाबान जंगल की तरह, और यहां के कानून भी जंगली होते हैं। जो सबसे ज्यादा ताकतवर होता है, वही जिंदा रहता है। यहां एक शिकारी होता है तो दूसरा शिकार। पर नंदिनी बेहद संवेदनशील भी थी। वह रीनी को उसके हालात पर छोड़ भी नहीं सकती थी। उसे रीनी से एक लगाव- सा हो गया था। रीनी को अस्पताल से डिस्चार्ज करवा कर नंदिनी अपने घर लाई। स्वस्थ होने के बाद रीनी उसकी असिस्टेंट बन गई... साथ ही धीरे- धीरे अच्छी दोस्त भी। तब से रीनी और नंदिनी का सफर साथ- साथ कट रहा था।

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" खट! खट!! खट!!!"
रीनी के कमरे का दरवाजा कोई खटखटा रहा था। रीनी तंद्रा से बाहर आई। वॉशरूम में मुंह धोकर उसने दरवाजा खोला। बाहर नंदिनी थी।
" रीनी, तुमसे बहुत ही जरूरी बात करनी है।"
" क्या बात है बताओ, नंदिनी।"
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