loc-love appose crime - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 8



"रीनी, सुनो, मैंने इस मामले में बहुत सोचा और इस नतीजे पर पहुंची कि कही कुछ तो ऐसा हुआ है जिससे हम अंजान हैं । अभीनव मुझे धोखा दे सकता है, यह मैं मान हीं नहीं सकती ।"
" हां, नंदिनी, शायद ऐसा ही हो । " रीनी के चेहरे पर नंदिनी को सांत्वना देने के भाव थे ।
" हां रीनी! कोई तो बात है । मैं जब आखिरी बार उससे मिली थी तब उसका वर्ताव मुझे थोड़ा अजीब लगा । मेरे प्रति उसका ऐसा बर्ताव पहले तो कभी नहीं रहा, फिर उस दिन ही क्यों? उस दिन के बाद से उसका फोन भी ' नोट रिचेबल ' हो गया । "
" सही कहा तुमने नंदिनी... कही कुछ तो...। "
"हां रीनी! कुछ तो गलत हुआ है ।"
"नंदिनी बुरा मत मानना । ये भी तो हो सकता है कि अभीने जानबूझकर दोखा ही दिया हो । ये मर्द जाती होती ही इसी है । पुरुष प्रधान समाज में औरत ही हमेशा सबसे ज्यादा सहती है । प्रेम के चक्कर में पड़ कर इमोशनल फूल बनती रही है । अन्यथा औरत जैसी मजबूत कोई नहीं । थोडे दिन पहले अपनी एक सहेली की बात तुम्हें बताई थी । मेरी सहेली विभा का प्रेम चेतन से हुआ । चेतन उसके ऑफिस में काम करता था । हमेशा धर्म-कर्म और कबीर - तुलसी की बात करने वाला । चेतन ने बहला -फुसलाकर विभा के साथ शारीरिक संबंध भी बना लिए । जब विभा गर्भवती हो गई तो चेतन ने उससे झूठ-मूठ की शादी कर ली । पर शादी के तीन महीने बाद ही चेतन गायब हो गया । वह ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग...। ये मर्द की जाती इसी तरह होती है । ये अंततह धोखे में रखते हैं और एकदिन छोड़कर चले जाते हैं । यह सोचे बिना कि उनके जाने के बाद हमारा क्या होगा ।"
"रीनी, रीनी...रीनी...। अभी ऐसा नहीं है ।"
"राघव भी ऐसा नहीं था नंदिनी । फिर भी चला गया न...।''
" रीनी बस...। अब आगे कुछ न बोलना । " नंदिनी के चेहरे पर गुस्सा झलक आया ।
" सॉरी नंदिनी । मुझे माफ करना । "
" कोई बात नहीं रीनी । अब राधव को भूलना ही बेहतर होगा । तुम्हारे लिए ।''
"क्या तुम भुला पा रही हो अभी को ।" रीनी ने सलाह को दरकिनार करते हुए प्रतिप्रश्न कर डाला ।
" रीनी । " नंदिनी जोर से चिल्ला पड़ी । मानों रीनी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो । फिर उसे लगा कि उसने गुस्सा शायद ज्यादा कर लिया । वह संयत होकर बोली... " रीनी... बात भूलने - भुलाने की नहीं है । रीनी अभी के साथ गलत हुआ है, ऐसा मेरा मानना है । क्योंकि मेरा इंस्पेक्टर दोस्त भी काफ़ी प्रयास करने के बावजूद कुछ पता नहीं कर पाया । अब तो मेरी समझ में भी नहीं आ रहा है कि मैं क्या करू?"
" नंदिनी, तुम टेंसन न लो । ठंडे दिमाग़ से यह सोचो कि उस दिन क्या कोई इसी असामान्य बात हुई थी।शायद उससे ही कोई क्लु मिल जाए । "
" रीनी, उस दिन वो कुछ अजीब सा बर्ताव कर रहे थे । वे बार -बार मुझे देख रहे थे । आज सोचती हूं तो इस तरह से देख रहे थे मानो वो आखिरी बार मुझे देख रहे हो । "
" तब तुमने टोका नहीं था अभी को? "
" नहीं... मुझे तब कुछ असामान्य लगा ही नहीं था । "
"ओ. के. नंदिनी! क्या तुम उनके किसी दोस्त या परिचित को जानती हो? "
मैं उनके जितने भी दोस्तों को जानती हूं, सबसे पूछ चुकी हूं । एक बार -दो बार नहीं, बल्कि कई -कई बार ।पर कोई खास बात नहीं पता चल पाई । बस मेरे दोस्त इंस्पेक्टर नितिन को इतना ही पता चल पाया कि उसने शादी कर ली है । पर किससे, कब और कहां, यह पता नहीं चल पाया । "
" नंदिनी... किसी को तो जरूर ही अभी ने कुछ न कुछ बताया होगा । "
" एक मिनिट... रीनी... ओह हां... याद आया । चायवाला पप्पू । उसे कुछ तो जरूर पता होगा । "
" चायवाला, पप्पू । ये कौन है? "
" अरे वो गौरीपुर में हेमा एंकलेव बिल्डिंग है न! उसके निचे एक चायवाला है । अभी का पप्पू से परिचय स्ट्रगल टाइम से ही है । "
"अच्छा!!"
" हां रीनी! वो उनका फेवरिट चायवाला । अभी का रात में जब भी चाय पिने का मन होता था, वे पप्पू के पास जाते थे । एकादबार मैं भी जा चुकी हूं अभी के साथ । पर चूंकि मेरे कुछ सीरियल टी. वी पर हिट हो गई है इसलिये मुझे यकीन है कि पप्पू मुझे देखते ही पहचान लेगा । इस बारे में उसे जरूर कुछ न कुछ पता होगा। मिलने के बाद वाले दिन वो वहां गये थे क्यूंकि जब उस रात को मैंने उसे फोन किया था तब वो वही थे । "
" नंदिनी, आपने बहुत अच्छी बात बताई । पप्पू चायवाले को जरूर कुछ न कुछ पता होगा । कल उसके पास चलकर पूछेंगे "।
" कल नहीं! अभी!! "
" अभी! इतनी रात? नहीं नंदिनी कल जायेंगे । "
" नहीं रीनी, अभी चलो । "
" नंदिनी मेरी बात मानो । हम अगर अभी घर से निकले तो घरवाले पता नहीं क्या सोचेंगे? सुबह जाना बेहतर होगा । अभी तुम सो जाओ नंदिनी । "
" ठीक है कल सुबह चलेंगे। " फिर अचानक नंदिनी को जैसे कुछ याद आ गया। वह रीनी से बोली, " रीनी एक काम करो, वो कल की मिस्टर नायर से मीटिंग है न! मैं उसमे नहीं जा पाउंगी । मिस्टर नायर को तुम मैसेज कर देना ।
" ओ के नंदिनी! अब तुम आराम करो । "
नंदिनी रीनी के कमरे में सो गई । नंदिनी जब तक सो नहीं गई, रीनी उसके सर को सहलाती रही ।
* * *
लाइट्स...कैमरा... एक्शन...
वाडिया स्टूडियो में जे पी प्रोडक्शन की सीरियल ' कुछ अधूरी ख्वाहिशें ' की शूटिंग । जेपी प्रोडक्शन का नाम काफ़ी है । उसके कई सीरियल छोटे पर्दे पर सुपरहिट चल रही रहे हैं । नंदिनी ' कुछ अधूरी ख्वाहिशें 'की हीरोइन । अब तक उसके कई सीरियल दर्शकों द्वारा काफ़ी पसंद किए गए ।छोटे पर्दे की स्टार थी । यह सीरियल में उसका हीरो था आदित्य । आदित्य भी नामचीन एक्टर । पर नंदिनी और आदित्य की बिलकुल भी नहीं बनती थी । एक तरफ इन दोनों की केमेस्ट्री दर्शकों द्वारा बहोत पसंद की जाती थी । वही यहां दोनों के बीच बिना कारन 36 का आकड़ा था । सीन के बाद या सेट के बाहर एक दूसरे से बात करना तक पसंद नहीं करते थे ।शूटिंग के दौरान उस दिन डायरेक्टर ने एक लडके से नंदिनी का परिचय करवाया ।- "नंदिनी जी, ये अभिनव है । आदित्य के भाई का रोल करेंगे ।"
"ओ. के.।" नंदिनी ने अभिनव की ओर देखा । एकहरी कदकाठी का गोरा चिटठा, मासूम आखों वाला यह लड़का नंदिनी को अच्छा लगा ।
शूटिंग शुरु हो गई । नंदिनी की अभिनव से रूटीन हाय -हेलो से शुरु हुई बात कुछ महीने में आकर्षक में बदल गई । अभिनव प्रयागराज का मूल निवासी । एनऐसडी नई दिल्ली से पासआउट । मुंबई में काफ़ी स्ट्रगल व थिएटर के बाद उसे पहला ब्रेक जेपी प्रोडक्शन में मिला था । इंडस्ट्री में एक यही तो प्रोडक्शन हॉउस था जहां टेलेंट देखा जाता था । वर्ना भाई -भतीजा वाद, कोम्प्रोमाईज़ या इन्वेस्टमेंट के बिना काम मिलना मुश्किल था ।
आदित्य फेमस था । उसमे काफ़ी घमंड था । नंदिनी के सामने तो उसकी नहीं चलती थी । पर अभिनव के साथ रुड बन जाता था । अभिनव सीधा -सादा । भावुक भी । इसलिए आदित्य का बिहेवियर उसे अच्छा नहीं लगता ।
यह सीरियल में नंदिनी -आदित्य के साथ अभिनव के काम को भी दर्शकों ने सराहा । नंदिनी को अभिनव का भोलापन, कार्य के प्रति उसकी निष्ठा अच्छी लगी । उसे अभिनव अच्छा लगने लगा ।
पैकअप के बाद का कुछ समय दोनों साथ बिताने लगे । नजदीकियां बढ़ने लगी । नंदिनी ने अभिनव के बारे में जाना । उसकी एक छोटी बहन थी नव्या । जो कि हॉस्टल में रहकर पढ़ रही थी । उसका खर्च अभिनव ही उठाता था । नंदिनी को साफ -साफ लगा कि वो अभिनव के प्रति आकर्षित हो गई है ।एक शाम दोनों सीसीडी में बैठे थे तभी नंदिनी ने कहा -
"अभिनव... एक बात बोलूं...?"
"बोलो नंदिनी...।" अभिनव ने नंदिनी के चेहरे पर आखें गड़ा दी । नंदिनी शरमा गई । तब तक अभिनव को ही बात बढ़ानी पड़ी -
" नंदिनी!"
" बोलिए । "
" एक बात कहूं ?"
" कहिए । "
" नंदिनी... मैं...मैं...। "
"क्या मैं... मैं कह रहे हो यार!"
और दोनों समवेत स्वर में हंस पड़े । दोनों को उत्तर मिल चूका था ।
* * *
"आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती...।" नंदिनी ने धीरे से अपना एक हाथ अभिनव के कंधे पर रखा । अभिनव चुपचाप नंदिनी के चेहरे की ओर देखता रहा । फिर उसने कंधे पर रखा हुआ नंदिनी का हाथ धीरे से अपने हाथ में लिया औऱ होठों पर रख दिया ।
अभिनव व नंदिनी आज ख़ुश मुड़ में थे । सीरियल का शेड्यूल पूरा हुआ था । दो दिन का ब्रेक था इसलिए दोनों ने प्रियदर्शिनी पार्क जानेका का प्लान बनाया ।
इस बीच अभिनव को तीन सीरियल और मिल चुके थे । टी वी की दुनिया में उसका नाम होने लगा था । हालांकि लीड रोल के लिए उसके प्रयास जारी थे ।
अभिनव नंदिनी का हाथ पकडकर पार्क के बिचोबीच से कोने की ओर जाने लगा । यह रास्ता ठीक नहीं था । पर लोग कम थे । एकांत था । क्योंकि वो वाले रास्ते पर नंदिनी के फेन मिल जा रहे थे और ऑटोग्राफ फोटोग्राफ के लिए परेशान कर रहे थे । यह रास्ते पर थोड़ा आगे जाके नंदिनी ने अपने मुंह पर दुप्पटा बांध लिया । और दोनों चलते रहे ।
एक जगह एक चौडा पत्थर आसन की तरह बीछा हुआ था । अभिनवने नंदिनी को उस पत्थर पर बिठाया । खुद भी पास बैठ गया । नंदिनी इस तरह पहली बार बाहर के माहौल में आए थी उसे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था ।
" मेरी तबीयत ठीक है नंदिनी । पर थोड़ी बहुत चिंताएं तो रहती ही हैं । "अभिनव ने धीरे से नंदिनी का सिर अपने सीने से सटा लिया ।" पर जब तुम साथ रहती हो न नंदिनी तो मैं सारा दुख -दर्द भूल जाता हूं । "नंदिनी का स्पर्श एक ठंडे मरहम सा अभिनव के सीने पर लगा । वह दाएं हाथ से नंदिनी के बालों को सहलाने लगा । भले ही सीरियल में नंदिनी ने रोमेंटिक सीन दिये हो पर रियल लाइफ में नंदिनी के लिए यह इतना नया अनुभव और पहला था कि उसकी आखों में आंसू उमड़ पड़े ।
अभिनव ने अपने हाथों से नंदिनी के आंसू पोछे और फिर धीरे से उसके गालों चूमता हुआ बोला," पगली! क्यों रोने लगी । मैं हूं न तुम्हारे साथ । "
नंदिनी ने कहा, " अभी...! बड़ी कठिन हैं जिंदगी की राहे । इतनी कठिन की पूछो मत । यहां किसी को अपने मनसे कुछ करने को अवसर नहीं मिलता । मैं बनना चाहती थी डॉक्टर और बन गई एक्ट्रेस । "
" तो यह बहुत अच्छा ही हुआ न । फिर तुम मुझे कहां मिलती? फिर मेरी जिंदगी में बहार कैसे आती? नंदिनी, बहुत संघर्ष से मेरा जीवन गुजरा । मैं 6 साल का था और नव्या 4 साल की जब पिताजी गुजर गए ।मैं 18 साल पुरे भी नहीं पाया कि मां भी साथ छोड़कर चली गई थी । नव्या की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई । मैं एनएस डी गया तो दिल्ली में एक रिस्तेदार के पास नव्या को छोड़ा । वही से वो पढ़ाई करती थी । यहां आया तो साथ लेकर आया । में कुछ दोस्तों के साथ फ्लैट में रहता था इसलिए उसे हॉस्टल में रखा । उसने पढ़ाई के साथ साथ पार्ट टाइम जॉब भी ज्वाइन किया ।मैंने जॉब के लिए मना भी किया पर अपनी खुशी के लिए वो जॉब करना चाहती थी इसलिए उसके मन मुताबिक करने दिया । एक्टिंग के लिए मैंने बहुत कोशिश की पर हर जगह रिजेक्शन... जिस्म के भूखे दरिंदे न लड़का देखते थे न लड़की कोम्प्रोमाईज़ के लिए कहा जाता था । पर मुझे इस तरह से काम नहीं करना था । मैंने और स्ट्रगल करना मुनासिब समझा । नेपोटिझम की वजह से भी मेरे टेलेंट को सराहना नहीं मिली । पर काफ़ी कोशिश के बाद आख़िरकार यह सीरियल में ब्रेक मिला । और मेरे जीवन में तुम आयी । और तुमसे तुमसे प्यार हो गया । "
। इतनी कठिन की पूछो मत । यहां किसी को अपने मनसे कुछ करने को अवसर नहीं मिलता । मैं बनना चाहती थी डॉक्टर और बन गई एक्ट्रेस । "
" तो यह बहुत अच्छा ही हुआ न । फिर तुम मुझे कहां मिलती? फिर मेरी जिंदगी में बहार कैसे आती? नंदिनी, बहुत संघर्ष से मेरा जीवन गुजरा । मैं 6 साल का था और नव्या 4 साल की जब पिताजी गुजर गए ।मैं 18 साल पुरे भी नहीं पाया कि मां भी साथ छोड़कर चली गई थी । नव्या की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई । मैं एनएस डी गया तो दिल्ली में एक रिस्तेदार के पास नव्या को छोड़ा । वही से वो पढ़ाई करती थी । यहां आया तो साथ लेकर आया । में कुछ दोस्तों के साथ फ्लैट में रहता था इसलिए उसे हॉस्टल में रखा । उसने पढ़ाई के साथ साथ पार्ट टाइम जॉब भी ज्वाइन किया ।मैंने जॉब के लिए मना भी किया पर अपनी खुशी के लिए वो जॉब करना चाहती थी इसलिए उसके मन मुताबिक करने दिया । एक्टिंग के लिए मैंने बहुत कोशिश की पर हर जगह रिजेक्शन... जिस्म के भूखे दरिंदे न लड़का देखते थे न लड़की कोम्प्रोमाईज़ के लिए कहा जाता था । पर मुझे इस तरह से काम नहीं करना था । मैंने और स्ट्रगल करना मुनासिब समझा । नेपोटिझम की वजह से भी मेरे टेलेंट को सराहना नहीं मिली । पर काफ़ी कोशिश के बाद आख़िरकार यह सीरियल में ब्रेक मिला । और मेरे जीवन में तुम आयी । और तुमसे तुमसे प्यार हो गया । "
नंदिनी का गला भर आया । रुंधे गले से वह इतना ही क़ह पाई - ' अभी, आई लव यू! मुझे कभी छोड़ना नहीं...। " अभिनव ने एक छतराए पेड़ की तरह नंदिनी को अपने गले से लगा लिया ।
"नंदिनी तुमसे दूर होकर कहा जी पाऊंगा । हम जल्दी ही शादी कर लेंगे ।"
"मैं भी यही चाहती हूं अभी । मेरे घर का माहौल कुछ ठीक नहीं रहता । पिताजी तो बहुत अच्छे हैं । पर पता नहीं मा क्यों कटी -कटी सी रहती हैं । उन्हें मैं कभी समझ ही नहीं पाई । "
"डोंट वरी माई लव ।" अभिनव ने कहा ।
नंदिनी अभिनव के चेहरे की तरफ देखने लगी । चन्द्रमा ने बादल का टुकड़ा हाथ से दूर हटाया और अभिनव के चेहरे की और देखने लगा । वह भी शायद अभिनव की तरह चकित था ।
* * *
समय का चक्र तेजी से चलता रहा । तकरीबन एक साल होने को आ रहा था । ' कुछ अधूरी ख्वाहिशें 'के हिट होने के बाद अभिनव व नंदिनी को एक सीरीयल और मिला - 'ये नजदीकियां ' ये सीरियल भी काफ़ी चर्चित हुआ । अभिनव - नंदिनी की जोड़ी दर्शकों ने काफ़ी सराहा ।अभिनव का इसमें कुछ वक़्त का ही रोल था । पर इसके बाद आपोआप स्टेज और रियलिटी शोज में दोनों को बुलाने लगे । यह जोड़ी चलने लगी ।अभिनव डाउन टू अर्थ था । चर्चित हो जाने पर भी वह जमीन से जुड़ा इंसान था । फेम मिलने के बावजूद अपने संकट समय साथ रहने वाले दोस्तों के साथ ही वही फ्लैट में रहता था । वही दोस्तों के साथ पप्पू चायवाले के पास अक्सर चाय पीने जाते थे । और आज भी अभिनव ने क्रम बरकरार रख्खा था ।
एक बार अभिनव नंदिनी के घर जाकर मम्मी, डेडी व दीपक से भी मिल आया ।
एक दिन अभिनव अपने फ्लैट में अकेला था, चाय बनाने जा रहा था कि दरवाज़े पर दस्तक हुई । दरवाजा खोला तो सामने नंदिनी थी...
" अंदर आ जाऊं? "
"हां... हां..."
"मुझे देखकर कुछ हैरान से हो..."
"नहीं... बेहद ख़ुश हूं । दरअसल मैंने समझा था शायद कुरियर वाला हो । आज -'सारे जहां से अच्छा वाले इनविटेशन कार्ड भेजनें वाले हैं ।"
" हां कुरियर वाला ही हैं, पर यह कोरियर वाला, जो खत भी खुद लिखता हैं और फिर खुद देने भी आता हैं ।
कमरे में आकर नंदिनी ने हाथ का पर्स कुर्सी पर रखा दिया और खुद दिवान पर बैठते हुए पूछने लगी,-"क्या कर रहे थे? "
"तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था ।"अभिनव मुस्कुरा दिया ।
" क्या बात हैं...!" नंदिनी हस पड़ी ।
नंदिनी के कटे हुए बालों की लट उसके माथे पर झुमर की तरह पड़ा हुआ था, अभिनव ने वह हाथ की एक उंगली से परे किया ।
"अभिनव, मैं बहुत किस्मतवाली हूं ।"
"मैं भी ।"
"अभी! हम दोनों के प्यार को काफ़ी टाइम हो गया । इंडस्ट्री मैं भी अब तो हमारे प्यार के चर्चे हैं । अब हमें जल्दी ही शादी कर लेनी चाहिए ।"
"हा नंदिनी, पर मैंने सोचा हैं कि मेरा करियर थोड़ा और चमक जाए, दूसरा - नव्या की पढ़ाई पूरी हो जाएं । अच्छा लड़का देख शादी करा दु ।"
"नव्या कोई इस्यु नहीं हैं अभी... हमारी शादी के बाद वो हमारे साथ रहेंगी । फिर हम दोनों मिलकर अच्छा लड़का देख शादी करा देंगे ।" नंदिनी ने हसकर कहा ।
"ये बात भी सही हैं नंदू पर यू नो ना मैं अपने दम पर सब करना चाहता हूं ।और तुम्हारे हर सपने हर जरुरत पूरी करना चाहता हूं । बस इसलिए थोड़ा वक़्त चाहता हूं ।"
" जैसा तुम्हे ठीक लगे ।" नंदिनी कहते हुए मुस्कुराई ।
"नंदिनी एक बात कहू?"
"हा बोलो न..."
"नंदिनी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं ।आज मे बड़ा उदास था । पर तुम्हारे आने से मेरी उदासी गायब हो गई । बात आज की नहीं हैं नंदू... तुम्हारे आने से मेरी जिंदगी बदल गई । नंदू अगर तुम मुझे कभी छोड़कर चली गई...।"
नंदिनी ने अपने हाथ अभी के मुंह पर रख दिया । नजदीक गई फिर होठो पर होंठ रख दिया । अपने होंठों से वो अभी के होठों पर प्यार की इबादत लिखने मैं मशगूल हो गए । फिर नंदिनी का जिस्म अभिनव की देह में एकाकार हो गया ।
* * *
रात के बाद आने वाली सुबह आशा की किरणे लेकर आती हैं । जीवन जीने की आशा, जीवन में कुछ पोजीटिव होने की आशा । सुबह का सन्देश यही होता हैं की अब काली रात चली गई । आशा की रश्मियां जगा रही हैं । प्रातःकाल के आगमन से धरती चहक उठी थी ।इस प्रकार का माहोल नंदिनी को हर समय बेहद सुकून व खुशी देता था । उसे सुबह से बेहद प्यार था ।पर आज नंदिनी को सुबह भारी -भारी सी लग रही थी । इस सुबह के पंखो पर सुकून व शांति नहीं आई थी ।यह बोझिल सी सुबह थी । यह निराशाओं की सुबह थी ।इस सुबह की महक में उदासी थी । चिड़ियों की गुनगुन में दुःख था ।सूर्य की रश्मियों में विरह वेदना थी ।
ज्यादातर नंदिनी सूर्य के एकदम निकलने पर उठती थी।कई बार रीनी को उसे जगाना पड़ता था । पर आज वो जल्दी उठ गई थी। रात की बेचैनियों ने उसे रीनी से पहले जगा दिया था।यह देखकर उसकी मां भी हैरान हो गई ।
"नंदिनी बेटा, क्या बात है. बहुत जल्दी उठ गई।"
"कुछ नहीं मां,बस ऐसे ही।" यह कहकर नंदिनी फ्रेश होने चली गई ।
नंदिनी और रीनी तैयार होकर नास्ते की टेबल पर पहुंची।नंदिनी ने कहा, "मुझे बस थोड़े से फ्रूट दे दो।"इतने में वहां उसकी मां आ गई और सवाल किया ।
"नंदिनी बेटा, क्या बात है ! सुबह -सवेरे कही जाना है क्या ?"
"हां मां! एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट हैं । उसी के लिए मीटिंग है। "
"ठीक है बेटा …। मां ने कहा ।

* * *
पप्पू चायवाले की दुकान गौरीपुर इलाके में बहुत फेमस थी । उसके आसपास सैकड़ो निजी व सरकारी दफतर थे । लिहाजा दुकान पर हमेशा चाय पीने वालों की भीड़ रहती थी । पप्पू का असली नाम हुकुम यादव था।जब वह 20 साल की उम्र का था तब वह यु-पी से गौरीपुर आया था। हेमा एन्कलेव बिल्डिंग के फुटपाथ पर उसने चाय की एक टपरी डाल दी। धीरे-धीरे दुकान चल निकली।उसकी चाय में पता नहीं क्या था की चाय के दीवाने हुए-हुए से लोग उसके पास खींचे चले आते थे।चाय के साथ लोगों को पप्पू का व्यवहार भी बहुत अच्छा लगता था।
रीनी और नंदिनी पप्पू चायवाले की दुकान पर पहुंची। ड्राइवर ने उन्हें दुकान से थोड़ी दूर पर उतार दिया था।दुकान पर पूछने पर पता चला कि पप्पू कुछ सामान लाने बाजार गया है।नंदिनी ने दुकान से पप्पू का नंबर लेकर उसे कॉल किया ।
"पप्पू, मैं नंदिनी हूं. अभी की…"
"अरे मेमसाब, आप । नमस्ते...। अभी साहब हमेशा आपके बारे में बात करते रहते हैं।"
"हां पप्पू ।में वही हूं ।आपसे मिलना चाहती हूं ।"
"जी मेमसाब …।कहा हैं आप ?"
"तुम्हारी दुकान पर ।"
"मेमसाब में भी आपसे मिलना चाहता हूं ।में आपके घर पर भी गया था ।पर आप नहीं मिली ।मुझे आपको कुछ बताना है ।और साहब ने एक चिट्ठी भी दी है …वो …।"अचानक नंदिनी का फोन बंध हो गया ।उसके फोन की बैटरी डिसचार्ज हो गई थी ।उसने रीनी के फोन से फिर संपर्क किया तो पप्पू ने कहा की "रुकिए मैडम मैं 10मिनिट मैं दुकान पर आ रहा हूं ।आपको सभी बातें बताऊंगा ।"
10 मिनिट क्या आधा घंटा हो गया ।पप्पू की दुकान के पास एक बेंच पर बैठकर रीनी के साथ नंदिनी को इंतज़ार करते हुए ।धीरे-धीरे एक घंटे से ज्यादा का समय हो गया पर पप्पू नहीं आया ।इस बीच फोन करने पर उसका फोन 'नोटरीचेबल 'बता रहा था।तब नंदिनी चिंतित होने लगी । क्या हो गया पप्पू को, वो क्यों नहीं आया ? दुकान पर जो लड़का था, वह भी कुछ नहीं बता पाया की पप्पू आखीर कब तक आएगा ? थक हारकर दोनों वापस घर आ गई ।
"मीटिंग हो गई बेटा ? कैसी रही मीटिंग ?"घर में प्रवेश करते ही नंदिनी के पिताजी ने पूछा ।
नंदिनी बिना कोई जवाब दिए अपने कमरे में चली गई ।वह बहुत थक गई थी ।सीधे बिस्तर पर गिर गई ।
पप्पू से न मिल पाने की पीड़ा ने नंदिनी को हरदम निराश कर दिया था । उसका मन तो किया की एक बार फिर वहां पर जाकर पप्पू से मिलने की कोशिश करे ।पर उसे एक अन्य मीटिंग में जाना था।पर अभी मां ने इस मीटिंग की याद दिलाते हुए यह कहा की "बेटा, आज की मीटिंग कल पर पोस्टपोन हो चुकी है।"
यह सुनकर नंदिनी को राहत मिली । आज की मनस्थिति में वह किसी मीटिंग में जाना भी नहीं चाहती थी । उसका बिल्कुल मन नहीं था । पर घर के बंद कमरे में उसका दम घुट रहा था । वह बाहर जाना चाहती थी... एवं थोड़ा बहुत घूमना फिरना भी हो जाएगा और मन भी बहल जाएगा ।
नंदिनी और रीनी ड्राइवर के साथ निकल पड़ी । नंदिनी ने एसी बंध रखाकर खिड़की खोल दि । बाहर की हवा आने से उसे सुखद अहसास हुआ । "ड्राइवर, गाड़ी गौरीपुर की तरफ ले चलो । पप्पू की दुकान तक ।"
"जी मैडम ।" ड्राइवर ने आदेश का पालन किया ।
नंदिनी रास्ते भर सोचती रही कि अचानक पप्पू को क्या हो गया? 10 मिनट में आने का वादा करके भी नहीं आया । चलो कोई बात नहीं, कोई काम आ गया होगा । अब तक उसका काम हो गया होगा । वह दुकान पर आ गया होगा । नंदिनी के सोचों का क्रम चलता रहा । वही कार में अरिजीत सिंह का गाया हुआ सोंग चल रहा था ।-
पास आये दूरियाँ फिर भी कम ना हुई
इक अधूरी सी हमारी कहानी रही
आसमां को ज़मीं ये ज़रूरी नहीं
जा मिले, जा मिले
इश्क़ सच्चा वही
जिसको मिलती नहीं
मंज़िलें, मंज़िलें
रंग थे, नूर था, जब करीब तू था
एक जन्नत सा था ये जहां
वक़्त की रेत पे, कुछ मेरे नाम सा
लिख के छोड़ गया तू कहाँ
हमारी अधूरी कहानी...
यह गाना सुनकर नंदिनी कि आंखे भर आई । ज्यो त्यों अपने आंसू रोके । अभिनव का चेहरा बार बार नजर के सामने आ रहा था । बेचैनी बढ़ने लगी । वह सीट पर पहलू बदलती रही । उसे लग रहा था कि आज गाड़ी बहुत धीरे चल रही हैं । खैर, कुछ समय बाद ड्राइवर की आवाज कानों में सुनाई दि -
"मैम, पप्पू की दूकान आ गई ।"
नंदिनी ने सामने देखा तो पाया कि पप्पू की दुकान बंध थी । नंदिनी के साथ रीनी भी गाड़ी से उत्तरी...। उसे भी आश्चर्य हुआ कि' पप्पू की दुकान अचानक बंध क्यों हो गई?'
नंदिनी ने पड़ोस के दुकानवाले से पूछताछ की तो पता चला कि -'पप्पू का एक्सीडेंट हो गया हैं ।'
" हे भगवान! पप्पू का एक्सीडेंट! अचानक! कैसे?" नंदिनी ने एक साथ कई सवाल पूछ डाले ।
* * *

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