अध्याय -19
किस तरह मामले सुलझते है, क्षण के ताप और उन्माद में राहे बनती है, इसका अनुमान असंभव ही है । रीनी बतरा साहब के यहां पहुंची, पहले तो बतरा साहब ने उससे मिलने से इनकार कर दिया, और उसके मुंह पर ही दरवाजा बंध कर दिया । पर रीनी दरवाज़े के बाहर खड़ी रही । आख़िरकार बतरा साहब ने उसे अंदर आने को कहा ।
रीनी ने सारी बातें बतरा साहब को बताकर कहा, "सिर्फ आप ही नंदिनी को इन सब समस्याओं से निकाल सकते हैं । आप अपनी बेटी को इतनी मुसीबत में कैसे छोड़ सकते हैं ।"
इसके बाद रीनी चुप हो गई और आवाजों की गर्जना छा गई । कोई पाताल था, जहां रीनी पहुंची थी । नंदिनी को लेकर उसका डर,उस माहौल में कुछ अमिट, कुछ पवित्र और अक्षत था । बत्तरा साहब की आंखो के भीतर अनकहे आंसूओं की एकझिल्ली थी । इस तरह के व्यामोह में न जाने कितने पल गुजरे फिर बतरा साहब ने ही चुप्पी तोड़ी ।
" अब तक तो मुझे पता नहीं था कि नंदिनी मेरी बेटी है । अब पता चल गया है तो अपनी बच्ची को उस हालत में मै नहीं छोड़ सकता । "
"अब तक नंदिनी ने बहुत दुख बर्दास्त किया है । ढेरों पीड़ाए सही हैं । सब कुछ होते हुए भी उसने हमेशा अकेलापन भोगा था । अभिनव को उसने अपनी जिंदगी बनाई तो अब अभिनव भी पता नहीं कहां खो गया है? मां की लाचारी तो मैं आपको बता ही चुकी हूं । अब आपही आशा की एकलौती किरण है नंदिनी के लिए ।"
" रीनी बेटा, तुम भी मेरी बेटी जैसी हो । चिंता न करो । सब ठीक हो जाएगा । चलो नंदिनी के पास चलते है । "
बतरा साहब की बात सुनकर रीनी मुस्कुरा उठी । तब रीनी की मुस्कान एक दोऱ से बांधती हुई विपरीत दोऱ तक फैल गई, तब मानो एक पैराग्राफ, एक अनुच्छेद बना, एक अध्याय को समापन और नए की शुरुआत । रीनी ने एक गहरी विभोर सांस खींची मानों जिसके अंधेरे के सभी विपरीत और विरोधी दोनों को भीतर जप्त कर लिया हो ।
* * *
बतरा साहब की कार तेजी से नंदिनी के घर की और दौड़ रही थी । बतरा साहब शांत थे पर स्मृति और संवेदनाओं के समंदर में उठते गिरते बुलबुले महसूस कर रहे थे । हाल -फिलहाल के दिनों में उनके साथ जो कुछ हुआ और घटा, उसकी रफ्तार चक्रवाती रही । उन्हें उसके पहले की बातें भी हूबहू याद आने लगी । प्रेम से पगा इंसान धीरज बतरा । इश्क और मोहब्बत में डूबा धीरज बतरा । हालांकि हरेक इंसान के अंर्तमन में एक तलघर होता है जहां विपरीत संवेदनाएं जैसे धृणा और अनुराग, इश्क़ और नफ़रत, आसक्ति और अवसाद, विद्वेष और हमदर्दी, राग और विराग लताओं की तरह आपस में लिपटी होती हैं । पर धीरज बतरा ने प्रेम को, अपनापन को, स्नेह को ज्यादा महत्व दिया । सीधे सरल धीरज को ममता के निस्वार्थ व समर्पित प्रेम ने एकदम बदल दिया । धीरज ने उन दिनों की याद की जब ममता के प्रेम का आवेग उन्हें बाढ़ के पानी की तरह प्रतीत होता था, जो अपने सामने पड़ने वाली हर चीज को वहां ले जाने में समर्थ है ।
उस दिन राजमल के गुंडों ने धीरज को बुरी तरह मारा था । राजमल के घर से अधमरी हालत में एक कार में डाला गया । कार में फिर उसे पिटा गया । इतना पीटा गया की धीरज बेहोश हो गया । गुंडों को लगा कि वो मर गया, तब उसे शहर से दूर एक निर्जन स्थान पर फेंक दिया ।
जब धीरज को होश आया तो उसका पोर पोर दर्द कर रहा था । किसी तरह से उसने ताकत बटोरी और उठ कर एक दिशा में चलना शुरु कर दिया । उससे चला नहीं जा रहा था पर ममता की याद उसे ऊर्जा दे रही थी । आधे घंटे चलने के बाद धीरज एक सड़क पर पहुंचा और बीच सड़क पर खड़ा होकर मदद की गुहार लगाने लगा ।
काफ़ी प्रयास के बाद एक कार वहां रुकी । दरअसल, रात के समय कोई रुक नहीं रहा था, पर एक कार वाले को दया आई । उन्होंने धीरज को कार में बिठाया । कार वाले ने धीरज का नाम पता आदि जानने की काफ़ी कोशिश की पर धीरज ने कुछ नहीं बताया । वह काफ़ी डर गया था । उसने अपनी जबान बंध रखी । गाड़ी वाले से उसने कहा कि, "भाई साहब में बहुत बड़ी समस्या में फसा हूं । अस्पताल जाता हूं तो मेरे बारेमे सभी को पता चल जाएगा । जो मेरे पीछे पड़े है, वे लोग काफ़ी खूंखार है, मुझे जान से मार डालेंगे । मेरी प्रेमिका को उन्होंने अब तक मार भी डाला होगा । इसलिए आप महेरबानी कीजिए और मुझे इंदिरानगर पुलिस चौकी के पास उतार दीजिए, वहां मेरे दोस्त रहते है । मैं उनके पास चला जाउंगा ।
धीरज बतरा ने कुछ दिनों तक उनके दोस्त के घर में पनाह ली । वह एक प्रकार से छुप कर रहा । बाहर बहुत कम निकलना था । डर था कि कोई पहचान न ले । वो एकदम निराश हो चूका था । उसकी जिंदगी में अब कुछ नहीं बचा था । वह हारा हुआ जुआरी था । उसका सब कुछ लूट चूका था । एक डेढ़ महीने में उसकी सेहत सुधरी, उसने अपने दोस्त से कहकर ममता के बारे में पता भी करवाया । परन्तु कुछ पता नहीं चला । दोस्त से कुछ पैसे कि मदद मांगी और वो शहर छोड़ दिया ।
हैदराबाद को धीरज बतरा ने अपना ठिकाना बनाया ।हैदराबाद में उसे जानने पहचानने वाला कोई नहीं था । उसने एक मल्टीनेशनल कम्पनी ज्वाइन कर लिया ।
यह ठीक है कि धीरज बतरा ने प्रेम किया और उसका प्रेम सच्चा भी था । लेकिन प्रेम कोई मूर्त वस्तु तो नहीं जिसका आना और जाना हम देख सके और जिसे पकड़ सके । प्रेम तो व्यक्ति के मन के भीतर की ऊर्जा है और विज्ञान ने यह साबित भी कर दिया है कि ऊर्जा का कभी नाश नहीं होता । सिर्फ उसका रूपांतर होता रहता है । धीरज के लिए ममता को भूलना आसान नहीं था । वह एकांत के पलो में ममता के बारे में, सोचकर, ममता के प्यार की उष्मा को याद कर -अक्सर रोता रहता, पर कुछ नहीं कर सकता था । तड़प कर रह जाता ।
उस मल्टीनेशनल कंपनी में कुछ सालों में धीरज ने काफ़ी तरक्की की । बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर के रूप में वह भर्ती हुआ था... वो समय के साथ तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते हुए वह कंट्री हेड के रूप में दिल्ली में तैनात हुआ । कुछ साल में प्रमोशन और ट्रांसफर दोनों एक साथ मिले धीरज को । वो कंपनी के लॉस एंजेल्स ऑफिस में वाइस प्रेसीडेंट नियुक्ति होकर अमेरिका चला गया ।
धीरज बतरा की कंपनी को मुंबई कार्य वर्ल्ड वाइस विज्ञापन, इवेंट मैनेजमेंट, प्रोडक्ट लांन्चिंग, पोर्टफोलियो मैनेजमेंट था । वर्ल्ड मैनेजमेंट ग्रुप नामक यह कंपनी दुनिया भर में' डब्ल्यू एम जी ' के रूप में विख्यात थी । दुनिया भर में उसका कारोबार फैला हुआ था । अपने क्षेत्र की नामचीन कंपनीयों में एक थी डबल्यूएमजी ।
कुछ साल नौकरी करने के बाद अब धीरज बतरा ने खुद की कंपनी खोलने की सोची तो उसने उसी क्षेत्र का चयन किया, जिसमे डबल्यू एम जी सक्रिय थी । धीरज ने अपनी कंपनी का नाम भी ऐसा चुना जिसमे अंतराष्ट्रीयता थी - इंटरनेशनल मैनेजमेंट ग्रूप -आईएमजी ।
ईस्वर की कृपा देखिए धीरज बतरा की कंपनी का कारोबार चल निकला । कुछ महीनो में उसकी कंपनी लास एंजेल्स की सीमाए लांघकर पुरे अमेरिका में चर्चित हो गई । वही उन्होंने और एक कंपनी ' बतरा इंडस्ट्रीज ' भी लॉन्च की जो लॉन्च होते ही चल पड़ी । इसी दौरान धीरज की निजी जिंदगी में भी बदलाव हुआ । एक लड़की धीरज के जीवन में आ गई । एक नामचीन कंपनी के सीईओ की बेटी वर्तिका उसी कंपनी में सीईओ चीफ फाइनेंशियल अफसर भी थी । प्रोफेशनल मीटिंग्स में हुई मुलाकाते दिल के दरवाज़े को खटखटाने लगी । हालांकि वर्तिका देखने भालने में कोई खास नहीं थी फिर भी उसमे ऐसा कुछ था जो उसे आकर्षक बनाता था। बावजूद उसकी नीली आखें काफ़ी थी किसीको भी अपनी और आकर्षित करने के लिए । वर्तिका अपने बालों को बड़ी लापरवाही से बांधकर एक पोनीपेल बना लेती थी जो कि एक घंटे में कम से कम 6-7 बार बिखरकर निचे आ जाती थी, वह लंबी नहीं थी, पर जिस तरह वह अपने कंधो को पीछे उचकाते और सिर को ऊंचा रखते हुए किसी के सामने पेश होती थी, उसके बांकपन से लोगों का ध्यान उसकी तरफ खींच जाता था । उसकी ओवरऑल पर्सनालिटी में दमखम, निडरता और भरपूर आत्मविश्वास झलकता था ।
धीरज और वर्तिका की नजदीकियां बढ़ने लगी । इन नजदीकियों को वर्तिका के पिता राजीव रोहित की सहमति प्राप्त थी । दामाद के रूप में उन्हें धीरज परफेक्ट लगा और एक दिन वर्तिका व धीरज ने सात फेरे ले लिए ।
शुरुआत के कुछ सालों तक तो ठीक -ठाक रहा ।उसके बाद दोनों के वैवाहिक जीवन को पता नहीं किसकी नजर लग गई । सबसे पहले तो वर्तिका में जानवरों से प्रेम जागा और एक -दो नहीं 6 कुत्तों को वह एक दिन अचानक घर लेकर आ गई । धीरज के विरोध को उसने ताक पर रख दिया । ये छहो कुत्ते बेहद तुनक मिजाज के थे, फिर वर्तिका का ज्यादा समय इन कुत्तो के साथ बीतने लगा । वह धीरज की उपेक्षा करने लगी ।
कुछ महीने बाद एक शाम वर्तिका का कार से एक एक्सीडेंट हो गया । काफ़ी महगें इलाज के बाद भी वर्तिका को बचा नहीं पाये । वर्तिका के निधन के बाद धीरज नें 'डबल्यू एम जी ' और ' बतरा इंडस्ट्रीज ' को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया ।
कुछ सालों में उनकी कंपनी की ब्रांच जर्मनी, युके, दुबई, हांगकोंग, सिंगापूर में भी खुल गई । धीरज बतराने इंडिया में भी उनकी कंपनी की शाखा खोलने का मन बनाया । इंडिया से उन्होंने कुछ एक्ट्रेस की प्रोफइल मंगवाई थी कंपनी की एड के लिए ।यह खबर कही से राजमल को मिली थी । किसी भी हालत में वह कोशिश कर रहे थे की यह प्रोजेक्ट नंदिनी को मिले । इन दिनों एड व टीवी में नंदिनी का नाम चर्चा में था । तो उन्हें भरोषा था की यह प्रोजेक्ट उन्हें मिलेगा । हुआ भी ऐसा ही धीरज नें नंदिनी की प्रोफाइल देख फैसला कर लिया की वे स्टार्टअप नंदिनी के साथ ही करेंगे ।
धीरे -धीरे बात बढ़ी । नंदिनी उनके साथ जुड़ने के लिए तैयार हो गई । प्रोजेक्ट शुरु हो गया । नंदिनी से पहली मुलाक़ात में ही धीरज बतरा को अपनेपन का अहसास हुआ... उन्हें क्या पता था कि नंदिनी उनकी ही बेटी है । उनका ही खून । ममता और उनके प्यार की निशानी ।
* * *
आज पता नहीं क्यों धीरज बतरा को नंदिनी के घर का रास्ता काफ़ी लम्बा लग रहा था । उन्होंने अपने ऑफिसर से भी कुछ लोगों के साथ पहुंचने को कहा ताकि राजमल को पकड़ सके ।
बतरा की कार नंदिनी के घर के सामने रुकी । वे और रीनी अंदर गए तो पता चला कि नंदिनी बेहोश हो गई है ।बतरा साहब और रीनी नें एक साथ पूछा, " क्या हुआ नंदिनी को? "
* * *