अध्याय -17
" अरे...! ये अल्बम...!! इसमें धीरज की तस्वीरे...!" नंदिनी की मां के चेहरे पर यादों की मुस्कान के साथ घबराहट फैल गई । उन्होंने अल्बम खोला । बचपन और युववस्था की रूटीन फोटो के बाद एक तस्वीर पर उनकी नजर जमी । यह फोटो स्कूल से बंक मारकर शहर में जाकर खिचवाई थी । उसमे उनके साथ धीरज था । उनका बचपन का दोस्त । स्कूल का सहपाठी । दोनों की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, किसी को पता तक नहीं चला । धीरज के साथ उनका प्यार परवान चढ़ता गया । उनका हसमुख और चंचलता एवं सुंदरता पे तो कई लडके फ़िदा थे पर धीरज ही उसका सर्वस्व था । धीरज उसे कहता था ।- " ममता, तुम मेरा पहला प्यार हो । तुम इतनी मासूम और भोली हो की क्या कहूं । तुम मेरे दिल के दरवाज़े तोड़कर दिल में बसी हो । मैं तुम्हें हमेशा कैद कर रखूंगा । "
" हां धीरज! मैंने आपको अपना सर्वस्व मान लिया । "
आज थोड़ी देर पहले नंदिनी और रीनी बाहर गई । फिर नंदिनी की मां और पिता ने भोजन किया । इतने में पिता जी को किसी का फोन आया तो वो टेरेस पर चले गए । तब नंदिनी की मां ममता ने कपड़े बदलने के लिए अलमारी खोली । अलमारी कपड़ो से ठसाठस भरी थी । उसमे से उन्होंने किसी तरह से पिले कलर की ड्रेस निकाली और अलमारी बंध की । अलमारी बंध नहीं हुई तो थोड़ा जोर लगाया । इस उपक्रम में अलमारी के ऊपर रखी हुई एक पुरानी बैग निचे गिर गई । बैग जिर्ण -शीर्ण थी । निचे गिरकर वह फट गई और उसके अंदर का सारा सामान बाहर बिखर गया । पुरानी पायल, कंगन, चूड़ियां,एक पुरानी साडी और पुराना अल्बम ।
नंदिनी उस अल्बम के पन्ने ऐसे पलटा रही थी मानो जिंदगी के पन्ने पलट रहे हो ।
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अल्बम ने ममता की यादों की वीणा के तार छेड़ दिए । एक दोपहर गांव के बगीचे में ममता और धीरज एक दूसरे का हाथ पकड़े बैठे थे ।ममता की सहेलियों को यह आखों को सुकून देने वाली जोड़ी लगती थी । ऐसा लगता था कि जैसे दो तरफ से आई नदियों की जलधारा एक जगह मिलकर किसी पावन तीर्थ का रूप ले रही हो । जैसे किसी पहाड़ की चोटी पर समाप्त होती राह और उगते सूरज के मिलन का दृस्य हो । आज ममता थोड़ा उदास थी । वो और धीरज अगले साल शादी करने वाले थे । हमेशा - हमेशा के लिए एक दूसरे के हो जाने वाले थे, पर उनके इस प्यार को किसी की नजर लग चुकी थी । गांव के सेठ मटरूमल के ऐयाश व बदचलन बेटे की बुरी नजर ममता पर पड़ चुकी थी । वो कई बार धीरज और ममता के घरवालों को धमका चुका था ।
" धीरज, क्या होगा अंजाम हमारे प्यार का? "ममता ने धीरज का हाथ पकड़ते हुवे कहा ।
" हम दोनों एक है, हमेशा एक ही रहेंगे । "
"पर अब इस गांव में रहना मुहाल हो गया है ।"
" कोई बात नहीं । हम यहां से शहर चले जायेंगे । " यह कहते हुए धीरज के चेहरे पर एक अजीब चमक आ गई । वह प्यार से ममता को ताकने लगा । उसकी इस दृष्टि को लक्ष्य कर ममता को ऐसा लगा कि जैसे घटाटोप अंधेरे के बीच किसी ने रोशनी जलाकर उसका मार्ग आलोकित कर दिया हो । धीरज ने फिर ममता को बाहों में भर लिया ।
उसके बाद तो ममता जैसे ख़ुशी में चहक उठी । उसका चेहरा एकदम पहले की तरह दमकने लगा । उसकी सारी उदासी और मायूसी जाती रही ।
दूसरे दिन ममता और धीरज भाग गए । यह खबर सुनकर मटरूमल के बेटे को बहुत बुरा लगा । उसे अपनी हार बर्दास्त नहीं हुई । उसने ममता और धीरज को ढूढ़ने के लिए गुंडे लगा दिए । कई महीने के बाद मटरूमल के बेटे को खबर मिली कि ममता और धीरज मुंबई में रहते है । दोनों ने शादी कर ली है । जोगेश्वरी में ममता के मामा के बेटे के यहां रहते है ।
सेठ मटरूमल का बेटा राजमल मुंबई पहुंचा । वह पूरी तैयारी के साथ गया था । मुंबई में भी उनके पिताजी का कारोबार था । बावजूद काफ़ी धन - दौलत लेकर वह आया था । ममता उसकी आखों में किरकिरी की तरह चुभी हुई थी । इस देश में युवा व सुंदर नारी का अभावग्रस्त होना सबकी नजर में भोग की सुलभ वस्तु बन जाता है । ऐसी वस्तु को कही भी और किसी भी तरह भोगने में क्या हर्ज और क्या आपत्ति?ऐसी सोच के साथ राजमल ने गायवाड़ी (जिस इलाके में ममता और धीरज रहते थे ) में पहले तो एक फ्लैट ख़रीदा । फिर एक दिन किराये के कुछ गुंडों को लेकर उसने ममता के घर पर घावा बोला । ममता और धीरज को पकडकर गायवाड़ी के फ्लेट में लाकर अलग -अलग बंद कर दिया ।
फिर शुरू हुआ ममता व धीरज को अलग -अलग टार्चर करने का दौर । दोनों को रोज मारा पिटा जाता । धमकियां दी जाती । ममता की करुण पुकार व विनम निवेदन कि " मैं धीरज के बच्चे की मां बनने वाली हूं " नक्कार खाने में टूटी की आवाज की तरह रह गई ।
एक दिन बाद ममता को पता चल गया कि धीरज को भी यही पर रखा गया है । वह किसी तरह धीरज के पास पहुंच गई । धीरज की हालत देखकर उसे रोना आ गया । वह एकदम पहचान में नहीं आ रहा था । कुछ दिनों में ही वह बूढ़े जैसा लग रहा था । वह बहुत दुबला भी हो गया था । उसके हाथ पांव की नसे दूर से ही नजर आ रही थी । उसके चेहरे की सारी ताजगी, नर्मी गायब हो गई थी ।
ममता धीरज से कोई बात कर पाती कि वहां मटरूमल का बेटा आ गया । ममता को धीरज के साथ देखकर वह गुस्से में आ गया । उसकी आंखे लाल हो गई । उसने अपने एक साथी से कहा, " यह बेवकूफ ऐसे नहीं मानेगी । कुछ तो इलाज करना होगा । तुम धीरज को ले जाओ यहां से । उसे टपका देना । "
ममता की चीख - पुकार, मिन्नतो का कोई असर नहीं पड़ा । वह इतना रोई कि बेहोश हो गई । उसकी बेहोशी टूटी कई घंटो बाद । उसके कानों में एक आवाज आई । " बोस... काम हो गया ।धीरज को ऊपर भेज दिया । एक गुंडा राजमल से कह रहा था । यह सुनकर ममता फिर बेहोश हो गई ।
ममता को होश तब आया जब उसके मुह पर ठंडा पानी पड़ा । वो तंद्रा से बाहर आई । उसने महसूस किया उसने खुद अपने सिर पर बोतल का सारा ठंडा पानी उडेल लिया ।' यह कैसे हुआ? ' ममता सोचने लगी ।उसमे थोड़ी चैतन्यता आने पर भान हुआ कि उसके सिर पर ठंडा पानी राजमल ने उड़ेला है ।... ओह... उसने फर्श पर पड़ा हुआ सारा सामान बैग में ठूसना शुरू किया । उसके कानो में कर्कश हसीं की आवाज सुनी । वहां पर राजमल डरावना अट्टहास्य करते हुए खडे थे, वह अट्टहास्य बिलकुल वैसा ही था, जैसा 27 साल पहले राजमल ने किया था ।
नंदिनी की मां कांप उठी । तब भी और अब भी...?
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