एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 18 jignasha patel द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 18

अध्याय -18

" हां,हां,नंदिनी ये राघव ही था । मेरा राघव । " रीनी ने भावुक होते हुए कहा ।
" अच्छा । " नंदिनी की आखें आश्चर्य से फैल गई । राघव ही रघु है, यह जानकर नंदिनी और रीनी दोनों स्तब्ध थे । ऑफिसरों ने रघु का पीछा किया, पर रघु अंधेरे का फायदा उठाकर नौ दो ग्यारह होने में कामयाब हो चूका था ।
' सालों बाद राघव दिखा भी तो इस तरह से । एक गुंडे के रूप में । ' यह सोचकर रीनी की हालत ख़राब थी । ऐसा लगता था कि उसकी सारी ऊर्जा, उसका सारा रक्त किसी ने सोख लिया हो । उसे बहुत बड़ा सदमा लगा था । नंदिनी और बतरा साहब ने सहारा देकर रीनी को कार में बिठाया । बतरा साहब के मन में उठ रहे सवालों को नंदिनी ने पढ़ा फिर उन्हें सारी बात बताई । रीनी के साथ जो कुछ हुआ, उसे सुनकर बतरा साहब की आंखे गीली हो गई । यह सब बातें पार्किंग में खड़ी कार में बैठ कर हो रही थी । बाहर के मौसम में ठंडक थी और हवा में धुंधकला । रात के आकाश में पत्ते सा चांद टंगा था, उसके प्रकाश की आबरू कुछ अलग सी थी । पिछले कुछ दिनों से मौसम ने खुशगवारी बहती थी । बदली छाई रही, बादलो की बनावट सुबह -शाम बदल जाती, पर हल्की बूंदा -बांदी और बादलो की गर्जना के अलावा कुछ नहीं होता । अगर उसका ज्यादा महसूस नरम हवाए चलने लगी । उस संभले मौसम मैं न जाने किसके प्रति आश्वाशन था । कम से कम नंदिनी और रीनी के प्रति तो नहीं ही था ।
वापसी में ट्रैफिक बेपनाह था । रात में सड़क की लाइटें प्रकाश के धब्बे बना रही थी और हॉर्न के तीखे स्वर लगातार जारी थे । रीनी के मन में राघव की सारी यादें निरंतर आ रही थी । गाड़ी बतरा साहब के घर पहुंची । सभी ड्राइंग रूम में बैठकर ऑफिसरों का इंतजार करने लगे । तकरीबन आधे घंटे बाद सूर्यभान अपनी टीम के साथ वहां पहुंचा ।
रघु ने भागते समय स्पेशल ब्रांच के अफसरों को तो देखा था, परन्तु बतरा साहब, रीनी और नंदिनी को वह नहीं देख पाया था । "अब तो रघु को पकड़ना ही होगा । किसी भी हालत में।" बतरा साहब ने सूर्यभान से कहा । " जी सर! डोंट वरी । वी विल ट्राई अवर बेस्ट टू कैच रघु । "सूर्यभान ने बताया ।
रीनी अभी भी सदमे में थी । उसका चेहरा उत्तर गया था । वह अपने को संभाल नहीं पा रही थी । मुश्किल में 2 सेकंड ही वह राघव को देख पाई थी । हैरान - परेशान राघव की तस्वीरे उसकी आंखो में तैर रही थी ।
सब लोग बात कर रहे थे कि नंदिनी के पिताजी का फोन आया," बेटा नंदिनी! तुम लोग कब तक घर आओगे? " नंदिनी ने बताया, " बस, थोड़ी देर में । " तो उन्होंने पूछा कि " क्या बतरा साहब साथ आने वाले है? " इस पर नंदिनी ने जवाब दिया, " जी आएंगे । बतरा साहब हमें घर छोड़ने आएंगे । "
थोड़ी देर बाद सभी निकले । निकलते समय बतरा साहब के हाथों में एक गिफ्ट बॉक्स देखकर नंदिनी इस बाबत पूछा तो मुस्कुराते हुए बतरा साहब ने कहा, " बेटा मैं पहली बार तुम्हारे पिता से मिलूंगा । तो कुछ तो तोहफा -शोहफा होना चाहिए कि नहीं । नंदिनी कुछ न बोली ।
* * *
बतरा साहब की कार नंदिनी के घर के सामने रुकी । नंदिनी ने बतरा साहब को ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठने को कहा फिर पिताजी को आवाज दी, " पिताजी आइए । बतरा साहब आ गए है । "
बतरा साहब सोफे पर बैठ गए । नंदिनी और रीनी कुर्सीयो पर बैठे । दो मिनट में पिताजी और मां आए । उन्हें देखकर बतरा साहब चौंक गए । वे तुरंत उठ खड़े हुए । नंदिनी के पिता व मां भी बतरा साहब को देखकर आश्चर्यचकित हो गए ।
नंदिनी की मां के मुंह से निकल पड़ा..."धीरज... तुम...! " ठीक उसी समय बतरा साहब बोल पड़े, "ममता... तुम और यहां?" उधर नंदिनी के पिता के मुंह से भी निकला, " धीरज बतरा तुम । तुम जिंदा कैसे हो? तुम्हे तो...!
बतरा साहब तब तक नंदिनी के पिता के पास पहुंच कर उनका कॉलर पकड़ चुके थे । " हां मैं धीरज बतरा । और तुम सेठ मटरूमल की नालायक औलाद राजमल । हमारे प्यार के दुश्मन । बदमाश इंसान । छुपकर वार करने वाले । हां मैं वही धीरज बतरा हूं ।जिसे मारने में तुमने कोई कसर नहीं छोडी थी । पर ऊपरवाले का खेल देख । तुम्हें ताज्जुब हो रहा होगा राजमल कि आखिर मैं जिंदा कैसे हूं? " तब तक उनका हाथ नंदिनी के पिता की गरदन पर कस चूका था । नंदिनी के पिता के गले से गों... गों... की आवाज निकलने लगी । नंदिनी ने बतरा साहब की और देखा । बतरा साहब की उंगलियों का कसाव ढीला पड़ गया ।
नंदिनी की मां की तरफ देखकर बतरा साहब ने कहा, " धोखेबाज । " फिर सभी की और देखकर कहा - " मैं यहां एक पल भी नहीं ठहर सकता । नंदिनी बेटा... सोरी । मैं किसी को छोडूंगा नहीं । तुम सबको एक एक को देख लूंगा । " फिर वे एक झटके के साथ बाहर निकल गए ।
* * *
नंदिनी और रीनी के लिए यह और एक झटका था । नंदिनी के मां व पिताजी भी भौचक्के थे । बतरा साहब के जाने के काफ़ी देर बाद भी किसी के मुंह से जबान नहीं निकल पा रही थी । नंदिनी ने ही शुरुआत करने का फैसला किया ।
" मां, बतरा साहब को तुम कैसे जानती हो? उन्हें तो कोई नहीं जानता । वह तो सालों से विदेश में है। ' बतरा इंडस्ट्रीज ' साइड पर भी उनके बारे में कुछ नहीं है ।न कही और उनके बारे में माहिती उपलब्ध है । तो आप उन्हें कैसे जानती हो । और उन्होंने आपको 'धोखेबाज ' क्यों कहा? "
"और पिताजी आप क्या कहेंगे इस मामले पर? थोड़ी देर पहले तक तो आप यही कह रहे थे कि बतरा साहब को न आप जानते है और न ही उनसे कभी मिले है?... तो फिर बतरा साहब आपको देखकर क्यों आपे से बाहर हो गए? क्या किया था आपने बतरा साहब के साथ, बताइए ।" पिताजी कि और मुख़ातिब होते हुए नंदिनी ने कहा ।
नंदिनी के पिताजी कुछ न बोल पाए । वे जमीन की तरफ देखने लगे... लेकिन मां ने अपना मुंह खोला -
"नंदिनी बेटा ! धीरज बतरा तुम्हारे पिता है ।"
" क्या? मेरे पिता! धीरज बतरा मेरे पिता है? क्या बोल रही हो मां? " नंदिनी का सर घूमने लगा । उसने अपना सर पकड़ लिया । रीनी दौड़कर एक ग्लास पानी लाई । पानी पिने के बाद नंदिनी थोड़ा संभली ।
" चुप करो ममता। अपना मुंह बंध रखो । "राजमल चिल्लाई ।
"नहीं राजमल । आज तु जितना भी चिल्ला ले... अब में चुप नहीं रह सकती । बस अब और नहीं । अब चुप नहीं रहूंगी ।"
राजमल ममता की और गुस्से से बढे । मां भी सावधान थी । वे मां पर हाथ उठाते इसके पहले ही मां ने उन्हें तेजी से धक्का दे दिया ।
उस समय नंदिनी की मां साक्षात् रणचंडी बन गई थी । "आज चाहे मेरी जान ले लोगे, पर अब चुप नहीं रहूंगी । अपनी बेटी को सच्चाई बताकर रहूंगी ।" फिर वे नंदिनी की तरफ मुड़कर बोली, "हां बेटी, यह सच है कि धीरज बतरा ही तुम्हारे पिता है । बेहतर है कि आज मैं सारी बात तुमको सिलसिलेवार बता ही दूं..."
नंदिनी की मां ने इसके बाद अपनी और धीरज की प्रेम कहानी, दोनों की घरसे भागने की वजह, मुंबई में हुए हादसा बया किया । दोनों के अपहरण करने का मामला बताने के बाद कहा कि -
" राजमल के एक गुंडे ने जैसे ही कहा कि धीरज का इंतजाम हो गया है, वैसे ही मैं बेहोश हो गई । जब होश आया तो मेरी सोचने -समझने की शक्ति -क्षीण हो गई थी । जब धीरज ही नहीं रहा तो मैं जीकर क्या करूंगी । धीरज के बगैर मेरी दुनिया अंधेरी हो गई । पर राजमल पर मेरी पीड़ा का कोई असर नहीं पड़ता था । जब मैं रोती - चिल्लाती थी तो वह हंसता मुस्कुराता था । मेरे प्यार की दुनिया तबाह कर वह बहुत ख़ुश था । वह मुझे एक कमरे में बंध रखता था । खिड़की से खाना -पानी दे दिया जाता था । मैं तो मर जाना चाहती थी, पर मेरे पेट में धीरज की निशानी तुम पल रही थी । उसका मोह मुझे मरने से बार -बार रोकता । मैं दिनभर उस कैद से रिहाई पाने की योजनाएं बनाती । आख़िरकार एक दिन मैं वहां से भागने में कामयाब हो गई ।"
" मैं बेतहाशा चली जा रही थी । मुझे कुछ होश नहीं था । बस मन में यह था कि इस राक्षस से जितनी दूर भाग सको वो अच्छा होगा ।तीन चार घंटे लगातार चलने के बाद मैं थककर चूर हो गई थी । अब और चलने की हिम्मत नहीं थी । एक नदी के किनारे पेड़ की छांव के निचे मैं रुकी । वहां मुझे थोड़ी शांति मिली । मैं बैठ गई और जोर -जोर से रोने लगी । मेरी रोने की आवाज सुनकर एक महिला मेरे पास पहुंची । मैंने उसे सारी बात बताई । वो बोली, " बिटिया चिंता मत करो । मेरे घर चलो । सब ठीक हो जाएगा । "
" वो नदी के पास ही स्थित एक गांव में अकेले रहती थी । पति की मौत हो चुकी थी । बच्चे कोई नहीं थे । अकेले रहती थी । थोड़े बहुत खेत -बाड़ी थी, जिससे उसका गुजारा चल जाता था । वो माजी दिलकी भी बहुत अच्छी थी । उन्होंने मुझे बेटी बना लिया और गांव वालों से बता दिया की मेरी बहन की बेटी है,मेरी देखरेख करने आई है । मेरे आने से मां जी के जेठ (जो की उनके पड़ोस में ही रहते थे ) बहुत दुखी हुए । मां जी की प्रापर्टी पर उनकी नजर थी, इसलिए वे हमेशा मां जी को खूब सताते थे । अब मेरे आने के बाद मां जी को सहारा मिल गया तो वे मेरे प्रति खुन्नस रखने लगे । बहरहाल... धीरे धीरे समय बीतता रहा।6 महीने बाद तुम्हारा जन्म हुआ तो मां जी बेहद ख़ुश हुई । उन्होंने ही तुम्हारा नाम नंदिनी रखा -मेरे नंदन वन की राजकुमारी । तुम्हारे जन्मदिन पर मां जी पुरे गांव को निमंत्रण देकर बड़ा जश्न मनाया था । "
" पर...नंदिनी बेटा होनी बहुत प्रबल होती है । मुझे और भी तकलीफे सहनी लिखी थी । जब तुम 2-3 महीने की थी तो मां जी अचानक बीमार पड़ गई । मैंने उनकी काफ़ी दवा -दारू कराई । बहुत कोशिश की पर एक डेढ़ महीने बाद उन्होंने प्राण त्याग दिए । मै एक बार फिर बेसहारा हो गई । उनके मरने के बाद मेरी परेशानियां बढ़ गई । घर व जमीन के लालच में मांजी के जेठ ने मुझे परेशान करना शुरु कर दिया । उनकी तरफ से प्रताड़ना इतनी बढ़ी कि एकदिन सुबह -सुबह मैंने तुम्हें गोद में उठाया, थोड़े -बहुत पैसे जो मेरे थे, उन्हें लेकर घर से निकल पड़ी। "
"गांव के पास वाले स्टेशन से ट्रेन पकड़ी । अगला स्टेशन आया । वहां उत्तर गई । स्टेशन रोड पर एक बोर्ड दिखा - आशा धर्मशाला!वहां चली गई -और मैनेजर के हाथ पांव जोड़कर एक कमरा ले लिया । किराये पर ।"
" मेरे पास पैसे ज्यादा नहीं थे । जो थे तेजी से ख़त्म हो रहे थे । दूसरी और धर्मशाला में एक जवान औरत का अकेली 6 महीने की बिटिया के साथ रहना, लोगो को खटक रहा था । रोज मुझे गन्दी -गन्दी बातें सुनने को मिलती । गंदे इशारे का सामना करना पड़ता । लोगों के सवाल मुझे परेशान करते । कुछ दिनों बाद धर्मशाला छोड़कर एक छोटा सा रूम किराए पर लेकर रहने लगी तो वहां भी परेशानियों ने मेरा पीछा न छोड़ा । वहां भी पड़ोसियों की बुरी नियतों ने मेरा जीना दुभर कर दिया था । "
बेटा नंदिनी, परेशानियों व तकलीफो के उस दौर में धीरज के प्रेम ने ही मुझे संघर्ष करने की ताकत दी । मैं यही सोचती रहती धीरज तों अब रहा नहीं पर वह मुझसे गहन प्रेम करता था । तुम उसकी निशानी हो । उसके प्यार का प्रतिक, तों मुझे कैसे भी करके तुम्हारे लिए जीना है । तब वे बातें मुझे याद आ गई थी कि प्रेमी -प्रेमिका के बीच जब प्रेम गहरा जाता है तब वे एक दूसरे से चाहे कितना ही दूर क्यों न रहे, प्रेम सूक्ष्म होकर एक -दूसरे के मन में एक -दूसरे के सुख- दुख की प्रतिती कराता रहता है । शायद इसलिये प्रेम को अशरीर और अलौकिक भी कहा जाता है । "
"बेटा, सबकुछ समयानुसार ही होता है । लोहे को हम गर्म करते हैं, पर वह पिघलता तभी है जब तापक्रम के उस बिंदु पर पहुंच जाता है जहां पिघलना उसकी नियति होती है । बहरहाल, लोगों के व्यंगबाणों ने मुझे जितना आहत किया, उतनी ही मेरी ताकत बढ़ती गई । एक दिन मैं तुम्हें लेकर कुछ सामान खरीद रही थी कि अचानक ये प्रकट हो गए । एकदम से मेरे सामने आ गए । मेरी डर गई । मेरा हाथ पकड़ लिया । मैंने प्रतिवाद करने की कोशिश की, इससे पहले ही वे मेरे कदमो पर लोट गए । घड़ियाली आंसू बहाने लगे," माफ कर दो मुझे ममता । बहुत बड़ी गलती हुई मुझसे। अब तुम्हे मायके जाने से कभी नहीं रोकूंगा । चलो घर चलो । अपने घर चलो । नंदिनी मेरी बिटिया बहुत कमजोर हो गई है । "
" इनकी इस नौटंकी से लोगों को लगा कि 'मैंने नाराज होकर पति का घर छोड़ दिया है ।' वहां पर कोई मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं था । उलटे लोग मुझे ही नसीहत देने लगे ।' बेटी मान जाओ । पति परमेश्वर होता है ।' 'इसे माफ कर दो । तुम्हारे पैर पड़ रहा है ।' मजबूरन इसके साथ मुझे होना पड़ा । तुम्हे खोने के डर के मारे में इनके साथ चल दी ।
वापस आने के बाद असली चेहरा दिखाते हुए मुझे बहुत मारा -पिटा । फिर इसने मुझसे जबरजस्ती शादी की । यह धमकी देकर की अगर शादी न की तों मैं तुम्हारी बेटी को मार डालूंगा । मैंने डर के मारे इनकी बात मान ली । सोचा कि शायद यही मेरी किस्मत है । "
" नंदिनी बिटिया, तब से अब-तक मैं इसकी क्रूरता को सहन कर रही हूं । यह आदमी इंसान के रूप में सैतान है । दरिंदा है । डायन भी सात घर छोड़ देती है । पर यह तों अपने ही खून दीपक को प्रताड़ित करता है । यह भेड़िया है । लालच और हैवानियत उसके रग रग में है । यह सिर्फ नाम के लिए तुम्हारे पिता है । इसलिए यह तुमसे भी सीधे मुंह बात नहीं करना चाहता, पर क्या करें इसकी मजबूरी है । "
" बेटा, मैं सिर्फ तुम्हारी भलाई के लिए ही आज तक चुप रही । इसके सभी जुर्म सहती आई । "
मां की बात सुनकर नंदिनी के मन शंका के सारे बादल हट गए । वो मां के गले लग गई । मां -बेटी दोनों की आंखो से गंगा -जमुना बहने लगी ।
" बहुत हो गया तुम लोगों का इमोशनल ड्रामा । जाओ अपने -अपने कमरे में और मुंह बंद रखना वर्ना नव्या जिंदा नहीं बचेगी । " राजमल की यह आवाज से दोनों कांप गई ।पर नंदिनी ने हिम्मत दिखाई ।
नंदिनी अपनी जगह से उठी । इसने दौड़कर राजमल का कॉलर पकड़ा और चिल्लाते हुए बोली, " खबरदार नव्या को कुछ हुआ तो । बताओ कहां है नव्या? "
* * *