Pranava Bharti लिखित उपन्यास दास्ताँ ए दर्द ! | हिंदी बेस्ट उपन्यास पढ़ें और पीडीएफ डाऊनलोड करें होम उपन्यास हिंदी उपन्यास दास्ताँ ए दर्द ! - उपन्यास उपन्यास दास्ताँ ए दर्द ! - उपन्यास Pranava Bharti द्वारा हिंदी सामाजिक कहानियां (59) 15.6k 24.2k 10 दास्ताँ ए दर्द! 1 रिश्तों के बंधन, कुछ चाहे, कुछ अनचाहे ! कुछ गठरी में बंधे स्मृतियोंके बोझ से तो कुछ खुलकर बिखर जाने से महकी सुगंध से ! क्या नाम दिया जा सकता है रिश्तों को ?उड़ती सुगंधित ...और पढ़ेसूर्य से आलोकित देदीप्यमान प्रकाश स्तंभ? टूटे बंजारे की दूर तक चलती पगडंडी या ---पता नहीं, और क्या ? लेकिन वे होते हैं मन की भीतरी दीवार के भीतर सहेजकर रखी कुनमुनी धूप से जिन्हें मन में बर्फ़ जमने पर अदृश्य खिड़की की झिर्री से मन-आँगन को गर्माहट मिल सकती है सुन्न पड़े हुए मन केहाथ-पाँव क्षण भर में पढ़ें पूरी कहानी सुनो मोबाईल पर डाऊनलोड करें पूर्ण उपन्यास दास्ताँ ए दर्द ! - 1 4.1k 5k दास्ताँ ए दर्द! 1 रिश्तों के बंधन, कुछ चाहे, कुछ अनचाहे ! कुछ गठरी में बंधे स्मृतियोंके बोझ से तो कुछ खुलकर बिखर जाने से महकी सुगंध से ! क्या नाम दिया जा सकता है रिश्तों को ?उड़ती सुगंधित ...और पढ़ेसूर्य से आलोकित देदीप्यमान प्रकाश स्तंभ? टूटे बंजारे की दूर तक चलती पगडंडी या ---पता नहीं, और क्या ? लेकिन वे होते हैं मन की भीतरी दीवार के भीतर सहेजकर रखी कुनमुनी धूप से जिन्हें मन में बर्फ़ जमने पर अदृश्य खिड़की की झिर्री से मन-आँगन को गर्माहट मिल सकती है सुन्न पड़े हुए मन केहाथ-पाँव क्षण भर में सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 2 2k 2.5k दास्ताँ ए दर्द! 2 रवि पंडित जी ! ओह ! अचानक कितना कुछ पीछे गया हुआ स्मृति में भर जाता है | रीता व देव की देखा-देखीरवि पंडित जी भी उसे दीदी कहने लगे थे | यानि वहाँ वह ...और पढ़ेदीदी ही थी, एक ऎसी दीदी जो वैसे तो हर जात-बिरादरी से अलग थी लेकिन वैसे ब्राह्मण थी, पंडिताइन ! अब उसका क्या किया जाए जब ऊपर से ही उसने ब्राह्मण-कुलमें जन्म लिया था | रवि भी कुछ वर्ष पूर्व भारत से आकर वहाँ बस गए थे, पता नहीं उनकी ज्योतिष विद्या में कितना दमथा पर वे पंडिताई तो करते सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 3 1.3k 2k दास्ताँ ए दर्द! 3 वह दिन प्रज्ञा के लिए यादगार बन गया था | वह अकेली लंदन की सड़कों पर घूम रही थी, किसी भी दुकान में घुसकर'विंडो-शॉपिंग' करने में उसे बड़ा मज़ा आ रहा था | वह एक ...और पढ़ेज्वेलरी की दुकान में घुस गई थी और वहाँ की सरदार मालकिन से बातें करने लगी थी जिसका पति टैक्सी चलाता था और वह स्वयं एक दुकान की मालकिन थी| "कुछ ले लो बहन जी ----" काफ़ी शुद्ध हिंदी बोलती थीं वो, बता दिया उन्होंने, दिल्ली में जन्मी, बड़ी हुई थीं|शादी के बाद यहाँ आई थीं, पच्चीस बरस से ज़्यादा सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 4 1.3k 2k दास्ताँ ए दर्द! 4 कुछ देर बादरवि भी मंदिर पहुँच गए और भजनों के सम्मिलित स्वर में अपना स्वर मिलाने की चेष्टा करने लगे | बेसुरे थे वो किन्तुतबले व हारमोनियमके मद्धम सुरों ने उन्हें अपने सुर में ढालने ...और पढ़ेचेष्टा की, भजन-मंडली के चयनित भजन सबको आते थे सो रवि के साथ तबले की थाप पर सबने उनका साथ दिया| सबका एक ही मक़सद था, आनंदानुभूति ! वो हो रही थी और क्या चाहिए? शायद उस दिन थोड़े समय में ही रवि का'व्यापार' भी बहुत अच्छा हुआ था, उनके चेहरे पर लिखा था | होता ही है भई, आदमी सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 5 1k 1.8k दास्ताँ ए दर्द! 5 उस दिन प्रज्ञा वास्तव में बहुत थक गई थी, बाद में मानसिक रूप से भी उन महाराज के वचनों व वहाँ की परिस्थिति ने उसमें अजीब सी थकान भर दी थी! अगले दिन उसने सारी ...और पढ़ेरीता को बताई ; "दीदी ! अपने सर्वाइवल के लिए न जाने आदमी क्या-क्या नाटककरता है ---!!" उसने व्यंग्य से कहा | यह कहते हुए उसने एक लंबी साँस खींची थी | " सर्वाइवल नहीं केवल ----" वह कोई कठोर बात बोलने जा रही थी, रीता का उतरा चेहरा देखकर चुप रह गई | चतुरानन्द का काइयाँ चेहरा व दृष्टि सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 6 661 1.1k दास्ताँ ए दर्द! 6 लंदन के जिस शहरमें रीता रहती थी उसका नाम था 'लैमिंगटन स्पा'! प्रज्ञा इस बार भीआई तो अपने किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में थी पर जब आई ही थी तो थोड़ी छुट्टियाँ बढ़ाकर ही लाई ...और पढ़ेजिससे दोस्तों के पास, अघिकतररीता के पासरहकर कुछ दिनएन्जॉय कर सके, बीते दिनों की पुरवाईको छू सके| प्रज्ञा कई दोस्तों के पास कुछ दिन रहनाचाहती थी इस बार, जिनसे पिछली बार मिल भी नहीं पाई थीकिन्तुरीता औरदेव ने उसे कहीं जानेही नहीं दिया | या तो अपने घर पर उसके मित्रों को आमंत्रित कर लेते या समय होता तो उसे सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 7 697 1.1k दास्ताँ ए दर्द! 7 इस बार प्रज्ञा अप्रेलमाह के अंतमें इंग्लैण्ड पहुँची थी, उसे आश्चर्य हुआ लंबे, नंगेपेड़ोंको देखकर जो रीता ने बताया था, जिन्होंने हाल ही में अपनेवस्त्रउतार फेंकेथे, बिलकुल निर्वस्त्र हो गए थेलेकिन बगीचे में अनेक जातियों ...और पढ़ेरंग-बिरंगेफूल मुस्कुरा रहे थे| बगीचे को घेरती हुई एक फैंसिंग बनाई गई थी जिसके पीछे लंबे-लंबे पेड़ थे | इतनी दूरी से वह केवल उन वस्त्रविहीन पेड़ोंको देख पा रही थी, इससे अधिक कुछ नहीं |इस बार वह तीन माह यहाँ रही और इन तीन महीनों में उसने लंदन के कई रंग देखे, कई लोगों से उसका परिचय हुआ| एक सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 8 545 1k दास्ताँ ए दर्द! 8 दीक्षाउसे शहर की एक लायब्रेरी में ले गईं थीं जहाँ उसकी मुलाक़ात एक कैनेडियन स्त्री सोफ़ीसे हुई जो वहाँ की 'हैडलायब्रेरियन 'थी | बाद में जब भी अनुकूलता होती वह अपने आप लायब्रेरी में जाने ...और पढ़ेउसकी वहाँ और भी स्टाफ़ केकई लोगों से दोस्ती हो गई थी | " सी, इज़इटयू ?"मैकीजैक भी लायब्रेरी में काम करती थी | उसके हाथ में एक हिंदी की पत्रिका थी जिस पर प्रज्ञा की तस्वीर थी | "ओ !यस---वेयर डिडयू फ़ाइन्ड?"प्रज्ञा को अपनी पत्रिका वहाँ देखकर खुशी होनी स्वाभाविक थी | "इन द मैगज़ीन सैक्शन----" मैकी, सोफ़ीया वहाँ सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 9 487 991 दास्ताँ ए दर्द! 9 दीक्षाकी कार के रुकनेकी धीमी सीआवाज़ सुनाई दी |कोई शोर-शराबा, आवाज़ न होने से गाड़ी के हल्के से रुकने की आवाज़ दिन में भीवातावरण में सुनाई दे गई थी | "दीदी ! दीक्षा आ गईहैं, ...और पढ़ेचेंज करना है क्या ?" रीता उस समय किचन में थी, कार की आवाज़ से उसने कमरे में आकर खिड़की से दूर से ही देखा | "नहीं, ठीक तो है, चेंज की ज़रुरत नहीं लगती | तुम कहो तो ----भाई, आखिर तुम्हारे सम्मान की बात है" प्रज्ञा ने रीतासे पूछा | "हाँ, मुझे भी ठीक लग रहा है | चलिए, सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 10 414 792 दास्ताँ ए दर्द! 10 खाना-पीना समाप्त हुआ, सब अपने-अपने गंतव्य की ओर बढ़ चले | कुछ स्त्रियाँ अपनी गाड़ी से आईं थीं, अधिकांश को वही गाड़ी छोड़ने जा रही थी जो उन्हें लेकर आई थी | प्रज्ञा ने भी ...और पढ़ेधन्यवाद दिया और वापिस आने के लिए दीक्षा बहन की गाड़ी में बैठ गई | आई तो थी यहाँ कुछ जानने, समझने, कुछ बदलाव के लिए पर जो बदलाव उसे मिला उसमें वह और अधिक असहजहो गई | एक मानसिक गहरातीबदली उसके मन में डेराडालकर उमड़ घुमड़ करने लगी | "क्या बात है, आप यहाँ आकर बहुत चुप हो गईं सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 11 458 868 दास्ताँ ए दर्द! 11 प्रज्ञा के भारत वापिस लौटने के अब कुछ दिन ही शेष रहे थे, समय बीतता जा रहा था और उसके मन मेंसतवंत कौर यानि सत्तीके प्रति और भी अधिक उत्सुकता बढ़ती जा रही थी | ...और पढ़ेऔर रीता दोनों ही सप्ताह के पाँच दिनअपने -अपने काम में व्यस्त रहतेथे | सत्तीको घर पर लाने के लिएसमय निकालना था |शनिवार को यूँ तो रीता व देव मॉलजाकरसप्ताह भर का राशन-पानी, घर का ज़रूरी सामान इक्क्ठालाकर रख देते लेकिन उस दिन रीता ने कुछ ऐसा माहौल बनाया कि बच्चे देव के साथ बाज़ार चले जाएंगे और इस शर्त सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 12 404 779 दास्ताँ ए दर्द! 12 आज सत्ती काफ़ी सहज लग रही थी, उस दिन के मुकाबले | न जाने क्या कारण था ? शायद वह रीता से काफ़ी खुली हुई थी, रीता ने कभी उसके तंग समय में उसकी बहुत ...और पढ़ेकी थी | यूँ, देखा जाए तो उसका समय आज भी लगभग वैसा ही था किन्तुकिसी बात को बार-बार आख़िर कितनी बार दोहराया जा सकता है !कोई किसीकी कितनी सहायता कर सकता है ?किसी भी रूप में सही | चाय पीते समय भी एक सहमीहुई शांति पूरे वातावरण में पसरी रही, किसीको भी समझ नहीं आ रहा था बात कहाँ सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 13 443 899 दास्ताँ ए दर्द! 13 ज़ेड जैसे एक अलग सी लड़की थी, कुछ न कुछ ऊट -पटांग करती ही रहती |कभी बेकार ही रीता के घर की ओर देखकर मुस्कुराकर असमंजस में डाल देती तो कभी अजीबसे चेहरे बनाकर कुछ ...और पढ़ेसी देती रहती | प्रज्ञा ने महसूस किया उसका व्यवहारनॉर्मल तो नहीं ही था | जैसे किसी से बदला लेने की उलझन में सदा उसके दिमाग़ की चूलें ढीली होतीं तो कभी बेबात ही जैसे ज़रूरत से अधिक कस जातीं | जब भी प्रज्ञा की दृष्टि उस पर पड़ती, वह असहज हो उठती | उसने रीता से कई बार इस सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 14 436 819 दास्ताँ ए दर्द! 14 इस बार प्रज्ञाअपने मन पर एक ऐसा बोझ लेकर लौटी जिसको उतारना उसके लिए बेहद ज़रूरी था | वह दिन-रात असहज रहने लगी थी |एक ऎसी बीमारी से ग्रसित सी जिसका कोई अता-पता न था ...और पढ़ेभी भीतर से वह उसे खाए जा रही थी | सत्ती कभी भी उसे झंझोड़ देती और वह चौंककर, धड़कते हुए हृदय से उसके साथ हो लेती | सत्ती रातों को उसे जगाकर जैसे झंझोड़ डालती और जैसे उससे पूछती --बस, हो गया शौक पूरा ? जीवन में अनजाने, अनचाहे ऐसे मोड़ आ जाते हैं जो मनुष्य को सहज तो सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 15 443 824 दास्ताँ ए दर्द! 15 सत्ती के मायके के लोग वैसे ही निम्न मध्यम वर्ग के थे | उनसे जितनी सहायता हुई उन्होंने की |उनकी भी सीमाएँ थीं | बिंदरकी दोस्ती पीने-पिलाने के चक्कर मेंसत्ती के गाँव वाले बल्ली से ...और पढ़ेगई |उसे यह तो पता नहीं था कि बल्ली उसके तयेरे भाईयों का पक्का दोस्त है और उनका रोज़ का ही उठना-बैठना, पीना-पिलाना है| बस, जाल में फँसता ही तो चला गया और बल्ली से उसकी ऎसी दोस्ती हुई कि वह अपनी सारीसलाहें उससे ही लेने लगा|वह घर से रात-रात भर ग़ायब रहने लगा | बल्ली तो जाने कबसे सत्ती सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 16 418 772 दास्ताँ ए दर्द! 16 हीथ्रो, बहुत बड़ा, लोगों से भरचक हवाईअड्डा ! और कोई पल होता तो सत्ती न जाने कितनी ख़ुश होती, उछल-कूद मचाती ! सत्ती क्या कोई भी युवा लड़की आश्चर्य व उल्लास से भरी अपने चारों ...और पढ़ेके नज़ारों को देखती, स्फुरित होती | बस, एक बार रेल में बैठी थी सत्ती, जब स्वर्ण मंदिर के दर्शन करने अपने परिवार के साथ गई थी | पूरे रास्ते रेल की छुकर-छुकर के साथ टप्पे गातीरही थी, चौदह बरस की सत्ती !कैसे ताल दे रही थी छुकर-छुकर करती गाड़ी ! अक्सर उसके टप्पों की कोमल आवाज़ से झूमकर सीटी सुनो अभी पढ़ो दास्ताँ ए दर्द ! - 17 - अंतिम भाग 446 855 दास्ताँ ए दर्द! 17 प्रज्ञा को बहुत समय लगासत्तीके ऊपर कुछ लिखने में ! वह जैसे ही उसकी किसी स्मृति को लिखना शुरू करती, उसकी आँखों से आँसुओं की धारा निकल जाती और दृष्टि धुंधला जाती| इतना भी कठोर ...और पढ़ेसकता है विधाता अपने बच्चों के लिए ? फिर अगर सत्ती कठोर हो गईथी तो क्या बड़ी बात थी ?जब उसने सत्ती को देखा था, वह चिड़चिड़ी हो चुकी थी | सहित-धवल वस्त्रों में सुसज्जित सत्ती के चेहरे पर वैसे तो मायूसी पसरी रहती पर चेहरे का निष्कपट भाव लुभा लेता | पता नहीं लोग उसकी इस मूरत को क्यों सुनो अभी पढ़ो अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ Pranava Bharti फॉलो