दास्ताँ ए दर्द ! - 16 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दास्ताँ ए दर्द ! - 16

दास्ताँ ए दर्द !

16

हीथ्रो, बहुत बड़ा, लोगों से भरचक हवाईअड्डा ! और कोई पल होता तो सत्ती न जाने कितनी ख़ुश होती, उछल-कूद मचाती ! सत्ती क्या कोई भी युवा लड़की आश्चर्य व उल्लास से भरी अपने चारों ओर के नज़ारों को देखती, स्फुरित होती | बस, एक बार रेल में बैठी थी सत्ती, जब स्वर्ण मंदिर के दर्शन करने अपने परिवार के साथ गई थी | पूरे रास्ते रेल की छुकर-छुकर के साथ टप्पे गाती रही थी, चौदह बरस की सत्ती ! कैसे ताल दे रही थी छुकर-छुकर करती गाड़ी ! अक्सर उसके टप्पों की कोमल आवाज़ से झूमकर सीटी भी बजा देती |

ये सत्ती अलग थी, हवाई जहाज़ में उड़ने वाली, गुमसुम उन्नीस बरस की सत्ती! एक मुरझाई माँ सत्ती, एक लताड़ी हुई औरत, जीवन से निराश सत्ती ! माँ होकर भी अपना दूध बच्ची को पिला न पाने वाली सत्ती !टूटी हुई सत्ती !पल-पल चकनाचूर हो रही थी वह | लगा, उसके शरीर के पिंजर में टूटी हुई हड़ियाँ और नसें कड़ कड़ कर रही हैं | कुछ भी साबुत न था, न तन और न ही मन !

हरमिंदर बुरा आदमी नहीं था, उसकी माँ लगभग नब्बे साल की वृद्धा थी | बहुत प्यार लुटाने वाली औरत ! लेकिन वह कुछ कर पाने में असमर्थ थी | ' ओल्ड-एज -होम' से वह रोकर भाग आई थी और बेटा उससे अपना पल्ला झाड़ नहीं पा रहा था | जब तक पत्नी रही, वही माता जी की देखभाल करती रही लेकिन उसके गुज़र जाने के बाद माँ उसके लिए एक मुसीबत बन गई थी | न छोड़ते ही बनता, न रखते ही ! वैसे ऐश वाला बंदा था, सब उसे मि. हैरी कहकर बुलाते |

लगभग दो बरस सत्ती ने बूढ़ी माँ की सेवा की | हरमिंदर उसे टूरिस्ट वीज़ा पर लाया था, उम्मीद थी कुछ जुगाड़ कर लेगा पर हो नहीं पाया और सत्ती को इधर-उधर छिपकर रहना पड़ा | जब तक हैरी की माँ थी तब तक तो समय निकलना ही था | कभी रात में माँ के पास रहती तो कभी हैरी उसे कहीं और सुला आता | मौका देखकर फिर ले आता | जहाँ सुलाकर आता, वहाँ क्या मुफ़्त में सोती, देह का लगान तो भरना ही था |

सुंदर युवा औरत को देखकर पड़ौसी कहाँ आँखें मूंदकर बैठने वाले थे ? उन्होंने हैरी से कहा कि जब खाली रहती है, उस घर का काम भी कर दिया करेगी, नहीं तो----इस नहीं तो का कोई तोड़ हैरी के पास नहीं था | उसे इजाज़त देनी ही पड़ी | जब उस घर की मोटी गँवार मालकिन बाज़ारी करने या तैराकी करने जाती तब उसका मोटा, हाथी सा मरद सत्ती का खून चूसता |

माँ के जाने के बाद हैरी ने उसे उसके घर भेजने का सोचा भी लेकिन यदि वह उसे भेज देता तो वह हमेशा के लिए चली न जाती !हैरी को भी अब तक उसकी आदत पड़ गई थी | हैरी और उसका पड़ौसी दोनों ही बढ़िया ठेकेदारी करते थे | पैसे की कोई कमी थी नहीं | बस, सत्ती इन सबके बीच पिसती रही और भूलती रही कि उसका अपना कोई परिवार है |

उसके घर पैसे भेजने में हैरी हमेशा ईमानदार रहा, बस रह नहीं पाया तो उसके शरीर के साथ | सत्ती को कभी प्याज़ के खेतों में प्याज़ इक्क्ठा करने भेज दिया जाता तो कभी मंदिर में सफ़ाई करने | जो भी आज्ञादेख होती, सत्ती को बजानी थी | भूल गई थी कि उसके एक बच्ची है | एक लाश सी इधर से उधर सोलह बरस भटकती रही वह !

" देख, एक चीज़ दिखाऊँ --खुश हो जाएगी तू ----" मोने हैरी ने उसे कुछ कागज़ दिखाए | न जाने कैसे उसे सोलह साल बाद ब्रिटिश नागरिकता मिल गई थी |

" अब क्या करने का इरादा है ? जाएगी पँजाब ?" उसने ख़ुश होकर पूछा था | वह भी अब काफ़ी बूढा होने लगा था और सत्ती अधेड़ हो रही थी | चेहरे की मुस्कान तो न जाने कब से खो गई थी उसकी, कद-काठी अब भी खूब मज़बूत थी |

हैरी ने सोचा था कि वह खुश हो जाएगी और वह उसे लेकर पँजाब का चक्कर मार आएगा लेकिन सत्ती के चेहरे पर कोई खुशी, ग़म न था | जाए भी तो क्या, न जाए भी तो क्या ?

"तेरी धी जवान हो गई है, मैंने तेरे आदमी से कहा है उसकी तस्वीर भेजने को ---"

हैरी उसे उसके घर की खबरें बताता रहता था, फ़ोन पर उसके पति से बात भी करता था लेकिन केवल एक बार बात करने के बाद सत्ती ने क़सम खा ली थी कि वह उससे कोई बात नहीं करेगी | क्या ठहाका लगाया था उसने !

" खूब मज़े कर रही है न वहाँ, मेम बन गई होगी, कितने फँसे --? यह सत्ती के आने के दो बरस बाद की बात थी | यह एक पति का अपनी पत्नी के लिए तोहफ़ा था |

सत्ती का रहा सहा लगाव भी उस दिन अलाव में जलकर राख़ हो गया था | पता चला आठ बरस बाद उसकी सास भी गुज़र गई थी, पिंकी नाना के घर चली गई थी | सत्ती के माँ-बाप अभी ज़िंदा थे, उन्होंने पिंकी को अपने पास रख लिया था |

हैरी ने कितनी बार उसकी बात उसके घरवालों से बात करवाने की कोशिश कर चुका था लेकिन सत्ती हमेशा टालती रही थी | किस मुह से, किसलिए और क्या बात करती? उन्हें सब मिल तो रहा था जो वो चाहते थे | ज़िंदगी ने उससे सबके बदले पूरे करवा दिए थे | इस जन्म में तो कुछ याद नहीं, उसने किसीका ग़लत किया हो, पता नहीं किस जन्म के बदले उतार रही थी वह !

सत्ती के घाव बढ़ते ही गए, दिल क्या था, छलनी बन चुका था जिसमें से लगातार रक्त रिस रहा था |कौन था जो उसके घावों पर मरहम लगाता ? जो भी मिला उसके घावों के छेद बड़े करने वाला ही मिला | छलनी से भी ज़्यादा छेद ! जिनमें से लगातार टीस और घुटन का बहाव सत्ती को निचोड़ता रहा |

माना ज़िंदगी कभी एक लकीर पर नहीं चलती लेकिन इतना उतार-चढ़ाव ! क्या उसने जितने जन्म लिए होंगे उतने ही दुष्कर्म किए होंगे? अगर ऐसा है तो ऐसा ही सही | उसे किसीसे कुछ नहीं कहना था, कुछ शिकायत नहीं करनी थी | कब दिया ज़िंदगी ने उसके सवालों का जवाब जो अब कभी देगी? साँस की डोरी जब तक है, उसे ज़बरदस्ती तोडा नहीं जा सकता | उसमें ये भी हिम्मत नहीं थी नहीं तो कहीं कटकर ही न मर जाती !

वह इंग्लैण्ड में पक्की हो गई थी, उसने अपनी बेटी की तस्वीर देखी जो हूबहू सत्ती थी, खिली कली सी | हाथ जोड़कर रब से प्रार्थना की उसने, इसे बचा लेना |

"अब पक्की हो गई है तो किसे बुलाएगी ? बिंदर को या अपनी पिंकी को ?हैरी ने पूछा था |

"मुझे कौनसे लाल मिल गए हैं जो पिंकी को बुलाऊँ? ---और ये बिंदर है कौन ?"

हैरी ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया था और न जाने कितने सालों बाद सत्ती खुलकर रोई थी | कहीं न कहीं वह अपने आपको सत्ती का गुनहगार मानता ही था | सत्ती के पास भी उसके आलावा कोई नहीं था अपना कहने को | कुछेक सालों बाद हैरी भी ख़तम हो गया |

सत्ती का सफ़र अभी बाक़ी था | हैरी काफ़ी कुछ दे गया था उसे पर उसे चाहिए ही कितना था ? ज़िदगी भर जो तलाशती रही, तड़पती रही जिसके लिए, वही जब नहीं मिला | पता चला था पिंकी की शादी कर दी गई है | ठीक है, जैसा रब को मंज़ूर ! ज़रा सी आहट से पूरी ज़िंदगी काँपी है सत्ती !यह सोचकर भी कि उसकी बेटी पर उसका साया न पड़ जाए !

ज़िंदगी के उजाले -अँधेरे कैसी आँख मिचौनी खेलते हैं | हम सोचते हैं हमने ये किया, वो किया और वो जो सर्वत्र है और किसीको दिखाई नहीं देता, अपना खेल-खेलकर निश्चिन्त बैठ जाता है|

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