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गोलू भागा घर से - उपन्यास
Prakash Manu
द्वारा
हिंदी बाल कथाएँ
आखिर जिस बात की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, वही हुई। गोलू घर से भाग गया।
गोलू के मम्मी-पापा, बड़ा भाई आशीष और दोनों दीदियाँ ढूँढ़-ढूँढ़कर हैरान हो गईं। रोते-रोते उसकी मम्मी का बुरा हाल हो गया। और वे बार-बार आँसू बहाते हुए कहती हैं, “मेरा गोलू ऐसा तो न था। जरूर यह किसी की शरात है, किसी ने उसे उलटी पट्टी पढ़ाई है। वरना...”
“वरना वह तो घर से स्कूल और स्कूल से घर के सिवा कोई और रास्ता जानता ही न था। घर पर बैठे-बैठे या तो किताब पढ़ता रहता था या फिर छत पर टहलता। थोड़ा-बहुत आसपास के दोस्तों के साथ खेल-कूद। गपशप। ज्यादा मेलजोल तो उसका किसी से था नहीं। लेकिन...पता नहीं, क्या उसके जी में आया, पता नहीं!” कुसुम दीदी कहतीं और देखते ही देखते मम्मी, कुसुम दीदी और सुजाता दीदी की आँखें एक साथ भीगने लगतीं। आस-पड़ोस के लोग जो दिलासा देने आए होते, वे भी टप-टप आँसू बहाने लगते।
गोलू था ही ऐसा प्यारा। शायद ही मोहल्ले में कोई बच्चा ऐसा हो जिससे उसका झगड़ा हुआ हो। मारपीट तो जैसे जानता ही नहीं था। कभी किसी ने आज तक उसकी शिकायत नहीं की थी। लेकिन आज...? कुछ ऐसा कर गया वह कि घर के ही नहीं, बाहर के लोग भी एकदम हक्के-बक्के से हैं।
............... 1 मक्खनपुर से दिल्ली रेलवे स्टेशन तक आखिर जिस बात की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, वही हुई। गोलू घर से भाग गया। गोलू के मम्मी-पापा, बड़ा भाई आशीष और दोनों दीदियाँ ढूँढ़-ढूँढ़कर हैरान हो गईं। रोते-रोते उसकी मम्मी ...और पढ़ेबुरा हाल हो गया। और वे बार-बार आँसू बहाते हुए कहती हैं, “मेरा गोलू ऐसा तो न था। जरूर यह किसी की शरात है, किसी ने उसे उलटी पट्टी पढ़ाई है। वरना...” “वरना वह तो घर से स्कूल और स्कूल से घर के सिवा कोई और रास्ता जानता ही न था। घर पर बैठे-बैठे या तो किताब पढ़ता रहता था
2 देखिए, मैं तो यहीं हूँ! गोलू क्यों भागा घर से?...गोलू घर से क्यों भागा? एक यही सवाल है जो मुझे इन दिनों लगातार तंग कर रहा है—रात-दिन, दिन-रात! ‘गोलू, गोलू, गोलू...।’ मैं गोलू की यादों के चक्कर से ...और पढ़ेक्यों नहीं पा रहा हूँ? अचानक जब-तब उसका भोला-सा प्यारा चेहरा आँख के आगे आकर ठहर जाता है जैसे कह रहा हो कि ‘मन्नू अंकल, मैं तो कहीं गया ही नहीं। मैं तो यहीं हूँ। देखिए, ऐन आपकी आँख के आगे...!’ और मैं हाथ बढ़ाकर जैसे ही छूने की कोशिश करता हूँ कि गायब, एकदम गायब...उसी तरह हँसते-हँसते। चारों तरफ
3 गोलू के आशीष भैया यह बात आपको बड़ी अटपटी लगेगी, पर सही है कि गोलू के घर से भागने का एक कारण और था—उसके आशीष भैया! सुनने में यह बात बड़ी अजीब लगेगी और गोलू तो अपने मुँह ...और पढ़ेकभी कहेगा नहीं। क्योंकि आशीष भैया तो इतने अच्छे हैं कि कभी किसी ने उन्हें कड़वा बोलते नहीं सुना। सब उनकी टोकरा भर-भरकर तारीफ करते हैं। सभी बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि आशीष सचमुच लायक है, कुछ बनकर दिखाएगा!...गोलू के सब दोस्त भी आशीष भैया की जमकर तारीफ करते हैं। पर सचमुच आशीष भैया का यह अच्छा होना ही उसके
4 मगर गोलू है कौन असल में हमने गोलू के मन की उथल-पुथल और एक सींग वाले पशु को लेकर उसके डर के बारे में इतना सब तो बता दिया, पर...बीच में कहीं कुछ छूट रहा है। गोलू है ...और पढ़ेकहाँ रहता है? उसके मम्मी-पापा, आशीष भैया और सुजाता दीदी कैसी हैं? थोड़ा उसके घर-परिवार का हालचाल भी तो हमें लिखना चाहिए था। पर याद ही नहीं रहा। तो भई, अब यहाँ लिख देते हैं। गोलू का जन्म एक छोटे से कस्बे मक्खनपुर में हुआ था। वह पैदा हुआ था 1 मई, सन् 1988 को। यानी जब वह भागा, तो
5 एक छोटी-सी चिट्ठी बहरहाल, अगला दिन। एक दुखभरे निर्णय का दिन। गोलू ने बस्ते में अपनी रखीं तो उसमें कॉपी के पन्ने पर लिखी एक छोटी-सी चिट्ठी भी सरका दी। वह चिट्ठी उसने आज सुबह ही लिखी थी। ...और पढ़ेचिट्ठी में लिखा था : ‘आदरणीय मम्मी-पापा, चरण स्पर्श। मैं जा रहा हूँ। कहाँ? खुद मुझे पता नहीं। कुछ बनकर लौटूँगा, ताकि आपको इस नालायक बेटे पर शर्म न आए। दोनों बड़ी दीदियों और आशीष भैया को नमस्ते। —आपका गोलू’ कॉपी के ही एक पन्ने को फाड़कर उसने जल्दी-जल्दी में ये दो-चार सतरें लिख ली थीं। उस चिट्ठी को बस्ते