गोलू भागा घर से - 25 Prakash Manu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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गोलू भागा घर से - 25

25

पुलिस जिप्सी वैन में

और जल्दी ही गोलू को मौका मिल गया। एक दिन जर्मन दूतावास के एक अधिकारी के पास गोलू को इसी तरह का लिफाफा पहुँचाना था। अपने चमड़े के बैग को लिए गोलू सतर्कता से आगे बढ़ रहा था। अचानक उसे बाहर सड़क पर एक पुलिस जिप्सी वैन दिखाई पड़ गई।

मिस्टर डिकी तो गाड़ी को पार्क करने के लिए एक साइड में ले गए थे। उधर गोलू के पैर धीरे-धीरे पुलिस जिप्सी वैन की ओर बढ़ने लगे। वह उसके पास जाकर खड़ा हो गया। अंदर से झाँककर पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, “क्या बात है भाई?”

“कृपया मुझे जल्दी से अरेस्ट कर लीजिए। मेरे पास कुछ जरूरी सूचनाएँ हैं—गोपनीय सूचनाएँ, जो इस देश की सुरक्षा को संकट में डाल सकती हैं। प्लीज जल्दी कीजिए, अरेस्ट मी!” गोलू ने उसके पास जाकर धीरे से कहा।

इस पर पुलिसवाला हक्का-बक्का रह गया। बोला, “कौन-सी सूचनाएँ? क्या...क्या...क्या कह रहे हो तुम?...तुम हो कौन?”

गोलू बोला, “मेरे पास ज्यादा बात करने का समय नहीं है। जल्दी से मुझे अरेस्ट करो और अपने किसी बड़े अधिकारी के पास ले चलो। हो सके तो डी.आई.जी मिस्टर रहमान खाँ के पास! मैं उन्हें सब कुछ बता दूँगा। मुझे गाड़ी में बैठाओ और जल्दी से वायरलेस पर उन्हें सूचना दो!”

अब पुलिस इंस्पेक्टर समझ गया था कि मामला गंभीर है। उसने झट दरवाजा खोलकर गोलू को जीप के अंदर बैठाया। पूछा, “कहाँ हैं सूचनाएँ?” गोलू ने अपने चमड़े के बैग की ओर इशारा किया। बोला, “इसमें! सारी बात बाद में बताऊँगा। पहले फोन करो डी.आई.जी रहमान खाँ को!”

पुलिस की जीप फर्राटे से दौड़ पड़ी और डी.आई.जी रहमान खाँ से संपर्क भी हो गया। उन्होंने तुरंत पुलिस इंस्पेक्टर को अपने दफ्तर पहुँचने के लिए कहा। उस इलाके की जितनी भी पुलिस जिप्सियाँ थीं, उन्हें उसी क्षण सतर्क कर दिया गया।