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जीवनधारा - उपन्यास
Shwet Kumar Sinha
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
रूपेश ट्रेन में अपने बर्थ पर आकर बैठा ही था, तभी जीन्स और टी-शर्ट पहने 25–26 साल की एक लड़की सामने आकर खड़ी हो गयी और सीट छोडने का इशारा करती हुई अपना भारी-भरकम बैग रूपेश के बर्थ पर रख दी ।
“हैलो मैडम । आप गलत सीट पर आ गयी हो । यह मेरी सीट है और टिकट भी है मेरे पास !” – रूपेश बोला ।
“मैं कुछ नहीं जानती । यह मेरी सीट है, हटो यहाँ से । ज्यादा परेशानी है तो जाकर टीटीई से मिलो । ” - उस लड़की ने जवाब दिया ।
उन दोनों की तू-तू, मैं-मैं देख टीटीई उनके पास आता है । टिकट चेक कर बताता है कि रूपेश सही सीट पर बैठा है और यह उसी के नाम से बूक है एवं वह लड़की, जिसका नाम पूजा था, उसकी बूकिंग ऊपर वाले बर्थ के लिए थी ।
अपनी गलती पर वह लड़की झेंप जाती है और सॉरी बोलकर अपने ऊपर वाले बर्थ की ओर बढ़ती है ।
रूपेश ने ध्यान दिया कि उस लड़की को ऊपर के बर्थ पर चढ़ने में परेशानी हो रही है तो वह उठा और उनसे कहा कि आप चाहे तो मेरे सीट पर आकर बैठ सकती हैं । मैं आपके सीट पर चला जाऊंगा और मुझे कोई दिक्कत नही है । फिर रूपेश ने टीटीई को बोलकर दोनों सीटों का अदला-बदली करा लिया ।
रूपेश ट्रेन में अपने बर्थ पर आकर बैठा ही था, तभी जीन्स और टी-शर्ट पहने 25–26 साल की एक लड़की सामने आकर खड़ी हो गयी और सीट छोडने का इशारा करती हुई अपना भारी-भरकम बैग रूपेश के बर्थ पर ...और पढ़ेदी । “हैलो मैडम । आप गलत सीट पर आ गयी हो । यह मेरी सीट है और टिकट भी है मेरे पास !” – रूपेश बोला । “मैं कुछ नहीं जानती । यह मेरी सीट है, हटो यहाँ से । ज्यादा परेशानी है तो जाकर टीटीई से मिलो । ” - उस लड़की ने जवाब दिया । उन दोनों की तू-तू, मैं-मैं
“शांत, शांत ! मैडम जी, शांत हो जाइए..... । पानी ले रहा था तो सोचा कि आपको भूख भी लगी होगी । इसलिए, कुछ खाना भी पैक करा लूँ ।” – पूजा को शांत करता हुआ रूपेश बोला । ...और पढ़ेचुपचाप रूपेश की बातें सुन रही थी, कुछ भी न कहा उसने । फिर, एक दूसरे को देखते हुए दोनों खिलखिला कर हंस दिए ।"मैं समझ सकता हूँ । खाली पेट गुस्सा आता है, सभी को । यह मुझे पता है ।" थोड़ी खिंचाई करते हुए रूपेश ने पूजा से कहा । “जी नहीं, ऐसी कोई बात नही हैं। चुप हो जाइए,
घर पहुँचकर पूजा नहाधोकर कपड़े बदली और बैग से कुछ निकालने के लिए आगे बढ़ी तो ये क्या ! उसके और रूपेश के बैग की अदला-बदली हो गयी थी । .... ...तभी, पूजा के मोबाइल की घंटी बजी । ...और पढ़ेतो रूपेश का ही फोन था । “आपका बैग गलती से मेरे पास आ गया है ।” – पूजा के फोन रिसिव करते ही रूपेश बोला । इस तरफ से पूजा ने भी यही बात दुहरायी और दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ें । “अच्छा, ठीक है ! आप चिंता न करें । अपने घर का पता बताइये । मैं बैग लेकर
...अगले दिन, शाम चार बजे । छूट्टी होने पर अन्य महिला सहकर्मियों के साथ, पूजा ऑफिस से बाहर निकल रही थी। तभी, रूपेश सामने से रूपेश अपनी कार से आता दिखा । “कॉफी हो जाये ।” – अपनी कार ...और पढ़ेनिकलते हुए रूपेश ने पूजा से पूछा । मुस्कुराते हुए पूजा रूपेश के साथ कार में आकर बैठ गयी और दोनों पास के ही एक कॉफी हाउस पहुँच गएँ । रूपेश ने दो कॉफी लाने का ऑर्डर दिया । “आपको कैसे पता चला कि मैं ऑफिस से अभी निकलती हूँ ?” – पूजा ने सवाल दागा । “आपके ऑफिस के
...अपनी आंखों के सामने अपने माता-पिता की बेइज्जती देख रूपेश आग बबूला हो गया था । मन तो कर रहा था कि पूजा के पापा को उनके कहे हरेक बात का जवाब दे । पर , मां-पापा के सामने ...और पढ़ेकरना ठीक नहीं समझा और फिर पूजा पर भी क्या गुजरती – यह सब सोचकर वापस लौट जाना ही बेहतर समझा । बस, अपने मां-पापा के सामने हाथ जोड़कर माफी मांगा कि उसके कारण ही उन्हे इतना कुछ सुनना पड़ा । रूपेश के मां पापा समझ रहे थें कि उनका बेटा अभी अंदर से टूटा हुआ है इसलिए उन्होंने रूपेश