जीवनधारा - 6 Shwet Kumar Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जीवनधारा - 6

...सौरभ घर में सबसे बड़ा था ।

जतिन, सौरभ का छोटा भाई । उम्र में सौरभ से एक साल छोटा, पर कोई कामधाम न करता । दिनभर दोस्तों के साथ मटरगस्ती करता फिरता ।

सौरभ के मां-बाप सीधी-साधे एवम सरल स्वभाव के थें ।

अगले दिन सुबह, पूजा जल्दी तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आ गयी ।

सास-ससुर का पैर छूकर आशीर्वाद ले रसोई में सबके लिए सुबह का नाश्ता बनाने में लग गयी ।

थोड़ी देर बाद, सौरभ बाहर आया तो पूजा को काम करते देख उससे कहा कि तुम काम क्यूँ करने लगी । नौकरानी को कह देती तो वह नाश्ता तैयार कर देती ।

“आज से घर का खाना मैं ही बनाऊँगी, न कि नौकरानी । आप चिंता न करो, बैठ कर अखबार पढ़िए, मैं आपलोगों के लिए चाय लेकर आती हूँ ।“” अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरकर पूजा, सौरभ से बोली ।

तभी, ऊपर के कमरे से भागता हुआ जतिन नीचे आया और नौकरनी को चाय के लिए आवाज़ लगाया । उसकी आवाज सुन पूजा रसोईघर से चाय लेकर आयी ।

“माँ, क्या तुमने घर में नई नौकरानी रखी है? बड़ी खूबसूरत है ।” – पूजा की तरफ घूरता हुआ जतिन अपनी माँ से पूछा।

“यह तुम्हारी भाभी है । और, इसके साथ मैं किसी तरह की बदतमीजी बर्दाश्त नही करूंगा।” - जतिन को सख्त हिदायत देते हुए सौरभ बोला ।

“ओह, मुझे माफ करना भाभी । पर एक बात तो है, भइया के दिल में आपने एक ही रात में इतनी जगह बना ली । वेरी गुड, आई लाइक इट ।”– ठहाका लगाकर हँसते हुए जतिन ने पूजा से कहा । जतिन की बातों का बिना कोई उत्तर दिए पूजा रसोई में जाकर अपने कामों में व्यस्त हो गयी ।

हालांकि, सौरभ को जतिन का ऐसा व्यवहार तनिक भी अच्छा न लगा ।

अपनी चाय खत्म कर सौरभ रसोई में गया और पूजा को बताया कि दो–तीन दिन के बाद घूमने के लिए शिमला चलना है । इसलिए, पैकिंग आज से ही शुरू कर दे । अपने कामों में व्यस्त पूजा ने हामी में सिर हिला दिया ।

पूजा अपने ससुराल में रमने का हरसंभव प्रयास कर रही थी । सौरभ जैसा सुलझा एवं समझदार इंसान पाकर उसे अपना अतीत भूलकर आगे बढ़ने में आसानी भी हो रही थी।

कुछ ही दिनों के बाद, पूजा और सौरभ शिमला की वादियों में पहुंचे, जहां उन्हे एक-दूसरे को समझने और करीब आने का मौका मिला ।

एक सप्ताह के बाद दोनों वापस पटना लौटें और अपनी खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी में व्यस्त हो गयें ।

कुछ ही दिनों बाद पूजा गर्भवती हो गयी और उसने एक बेटी को जन्म दिया, जिसका नाम उसने नंदिनी रखा ।

समय बीतता गया । पूजा की शादी के करीब छह वर्ष गुजर गएँ ।

अपने सास-ससुर, सौरभ और नंदिनी के साथ पूजा अपने ससुराल में हंसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रही थी । केवल, जतिन के व्यवहार से घर पर सभी दुःखी रहते थें । हालांकि, जतिन अपने बड़े भाई-सौरभ से डरता था और अपनी मर्यादा बनाए रखने की कोशिश करता था । लेकिन, गलत संगत की वजह से आए दिन खुद को और घरवालों को परेशानी में डालता रहता ।

एक दिन, सौरभ अपनी कार से ऑफिस जाने के लिए घर से निकला ।

उसके जाने के करीब एक घंटे बाद पूजा की मोबाइल बजी । किसी अंजान नंबर से फोन था । पूजा ने फोन रिसिव किया । दूसरे तरफ से कोई पुलिसवाला था और उसने पूजा को तुरंत सिटी हॉस्पिटल आने को कहा ।

बेटी-नंदिनी को घर पर ही उसके दादा-दादी के पास छोड़ पूजा सिटी हॉस्पिटल की तरफ भागी ।

“मैडम, आपके पति-मिस्टर सौरभ की कार दुर्घटना में मृत्यु हो गयी है।” – सिटी हॉस्पिटल पहुँचते ही पुलिसवाले ने पूजा को बताया ।....