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जीवनधारा - 14

...तभी, जतिन के पास आकार पूजा उससे अपने सास-ससुर के बारे में पूछती है । पर, बिना कुछ कहे वह सिर झुकाए खड़ा रहता है ।

"दादा-दादी मर गए, मम्मा ।" पूजा की गोद से ही नंदिनी बोलती है । पुलिस इंस्पेक्टर के द्वारा थोड़ी सख्ती से पूछने पर जतिन बताता है कि वे दोनो मेरे चंगुल से निकलकर भाग रहें थें और एक ट्रक के नीचे आ जाने से दोनो की मृत्यु हो गई।

अपने सास-ससुर के देहांत की खबर सुन पूजा दुखी हो जाती है और वह पुलिस इंस्पेक्टर से जतिन को सख्त से सख्त सजा दिलवाने का अनुरोध करती है । पुलिसवाले जतिन को अपने कस्टडी में लेकर चले जाते हैं ।

रूपेश और पूजा, शंभू को धन्यवाद देतें है कि अगर वह इतनी मदद नहीं करता तो नंदिनी को ढूंढ पाना मुश्किल था।

नंदिनी को अपने गोद में लिए पूजा, रूपेश के साथ घर वापस लौट आती है ।

नंदिनी के वापस आने और पूजा के चेहरे पर लंबे समय के बाद खिली मुस्कान देख पूजा के माता-पिता भी फूले नहीं समा रहें थें ।

"रूपेश, तुमने आज जो कुछ भी किया है। हम जिंदगी भर तुम्हारे आभारी रहेंगे । पूजा के चेहरे पर लौटी मुस्कान देख आज काफी अच्छा लग रहा है और इसके लिए हम बूढ़े मां-बाप तुम्हारा तहे दिल से शुक्रगुजार हैं, बेटा ।" द्रवित आंखों से पूजा के माता-पिता रूपेश से बोलते हैं ।

"ऐसा बोलकर आपलोग मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं, आंटी-अंकल । प्लीज। मैं तो केवल पूजा के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहता था और कुछ भी नही ।" - अपना हाथ जोड़े रूपेश पूजा के माता-पिता से कहता है । फिर, वहीं बैठी पूजा व उसकी गोद में खेल रही नंदिनी को देख उसके चेहरे पर मुस्कान खिल जाती है ।

रूपेश की आंखों में अपनी बेटी के लिए प्यार और निष्ठा देख पूजा के पिता को एहसास हुआ कि जात-पात और ऊंच-नीच जैसी दक़ियानूसी विचारों में पड़ रूपेश और पूजा को अलग करके उन्होने बहुत बड़ी गलती कर दी ।

"ठीक है, पूजा । अब मैं चलता हूँ । कोई भी जरूरत हो तो बेझिझक होकर मुझे कॉल करना । अंकल-आंटी, आपलोग भी अपना ध्यान रखिएगा ।” - कहते हुए रूपेश पूजा से विदा लेता है ।

अपनी गोद में नंदिनी को लिए पूजा रूपेश को दरवाजे तक छोड़ने आती है और रूपेश का धन्यवाद देते हुए कहती है - "आज तुमने जो कुछ भी किया है, मैं ज़िंदगी भर तुम्हारा एहसानमंद रहूंगी" ।

"पूजा, तुम हमेशा मेरे दिल में रहती हो और मैं तुम्हे कभी भी तकलीफ में नहीं देख सकता । कभी भी और कोई भी जरूरत हो तो बेझिझक मुझे बताना । मैं नहीं होकर भी हमेशा तुमलोगों के आसपास ही रहूंगा ।" पूजा को आश्वासन देता हुआ रूपेश वापस अपने घर लौटता है।

घर आकर रूपेश नहाधोकर आराम करने अपने कमरे में चला जाता है ।

तभी रूपेश के घर पर किसी की दस्तक होती है ।

रूपेश की मां घर का दरवाजा खोलती है। सामने पूजा के मां और व्हील चेयर पर बैठे उसके पिताजी थें।….

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