Vishwasghat - Season - 2 book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Vishwasghat - Season - 2 is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
विश्वगसघात (सीजन-२) - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
मनोरमा.... मनोरमा! कहां हो भाई! धर्मवीर ने अपनी पत्नी को पुकारते हुए कहा।।
अभी आती हूं जी! जरा सी सांस तो ले लिया करो,बस पुकारते ही जा रहे हो और तुम ऐसे बेवक्त़ कैसे आ धमके,मनोरमा बोली।।
सांसें तो हमारी आपको देखकर बंद हो जातीं हैं,श्रीमती जी! धर्मवीर बोला।।
देखो जी ! मैं मज़ाक के मूड में बिल्कुल भी नहीं हूं,अभी बहुत से काम पड़े हैं मुझे ,जो बोलना है जल्दी बोलो, मनोरमा बोली।।
मैं तो ये कह रहा था कि आज बहुत बड़ा कोनट्रैक्ट मिला है,अगर वो सही समय पर पूरा हो गया तो हम लोगों के वारे-न्यारे हो जाएंगे, धर्मवीर बोला।।
अच्छा! भगवान आपको यूं ही आगे बढ़ाए,आप दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करो, मैं पहले भगवान के पास माथा टेक आऊं, फिर आपसे बात करती हूं, मनोरमा बोली।।
तुम भी क्या घड़ी घड़ी भगवान को परेशान करती रहती हो? धर्मवीर बोला।।
मनोरमा.... मनोरमा! कहां हो भाई! धर्मवीर ने अपनी पत्नी को पुकारते हुए कहा।। अभी आती हूं जी! जरा सी सांस तो ले लिया करो,बस पुकारते ही जा रहे हो और तुम ऐसे बेवक्त़ कैसे आ धमके,मनोरमा बोली।। सांसें तो ...और पढ़ेआपको देखकर बंद हो जातीं हैं,श्रीमती जी! धर्मवीर बोला।। देखो जी ! मैं मज़ाक के मूड में बिल्कुल भी नहीं हूं,अभी बहुत से काम पड़े हैं मुझे ,जो बोलना है जल्दी बोलो, मनोरमा बोली।। मैं तो ये कह रहा था कि आज बहुत बड़ा कोनट्रैक्ट मिला है,अगर वो सही समय पर पूरा हो गया तो हम लोगों के वारे-न्यारे हो
दूसरे दिन सुबह के वक़्त मनोरमा का मन कुछ उदास सा था,वो अपने कमरे की खिड़की के पास खड़े होकर बाहर की ओर देख रही थी,इतवार का दिन था बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, इसलिए उसने स्कूल जाने ...और पढ़ेलिए बच्चों को नहीं जगाया और ना ही अभी तक कोई काम शुरू किया था।। तभी धर्मवीर भी जागा और उसने मनोरमा को ऐसे परेशान सा देखा तो पूछ बैठा___ तुम वहां खिड़की के पास इतनी परेशान सी क्यों खड़ी हो? आप मेरी परेशानी समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, मनोरमा बोली।। मैं जानता हूं कि तुम्हारी परेशानी
अनवर चाचा ने कमरे का नज़ारा देखा तो उनके होश उड़ गए, लेकिन बच्चे.... एकाएक उन्हें बच्चों की याद आई,तब अनवर चाचा ने देखा कि विश्वनाथ , मनोरमा का खून करने के बाद , पिस्तौल धर्मवीर के हाथ में ...और पढ़ेके क्वाटर की ओर जा रहा है,तब अनवर चाचा ने इसी बात का फायदा उठाया, जैसे ही विश्वनाथ क्वाटर में घुसा,अनवर चाचा ने विश्वनाथ को भीतर की ओर जोर से धक्का देकर, क्वाटर का दरवाजा बंद कर दिया।। और फार्म-हाउस में आकर बच्चों को ढूंढने लगें, उन्हें करन तो मिल गया, क्योंकि वो अभी तक बिस्तर पर सो रहा
सुबह होने को थी,हल्का हल्का उजाला हो चला था,अनवर चाचा रेलगाड़ी के डिब्बे के भीतर पहुंचे , करन को अपनी गोद में लेकर करके बैठ गए और परेशान होकर खिड़की से बाहर देखने लगे कि कहीं विश्वनाथ उनका पीछा ...और पढ़ेहुआ वहां तो नहीं आ पहुंचा ,तभी एक सेठ जी जैसे दिखने वाले सज्जन भी डिब्बे में घुसे..... तभी करन की आंख खुली और बोला____ मुझे पानी पीना है,अनवर चाचा! अब वहां पानी कहां से आए, फिर रेलगाड़ी चलने का भी वक़्त हो गया था और बाहर विश्वनाथ का भी खतरा था,अनवर चाचा मुसीबत में पड़ गए कि
लेकिन आपने ये नहीं बताया कि आप उस बच्ची से इतनी नफरत क्यों करते हैं,?आखिर उस बच्ची ने आपका क्या बिगाड़ा हैं?शकीला बानो ने विश्वनाथ से पूछा।। उसने नहीं ,उसकी माँ ने बिगाड़ा था और अपनी माँ के कर्मों ...और पढ़ेभरपाई उसे ही करनी पड़ेगी,विश्वनाथ बोला।। ऐसा इसकी माँ ने क्या किया था आपके साथ ?जो आप उस बच्ची से बदला लेने पर अमादा हैं,शकीला बानो ने पूछा।। तुम्हें ये सब जानने की कोई जुरूरत नहीं है,तुम्हें जो काम सौंपा गया है तुम बस वो ही करो,अब लड़की चौदह साल की हो चुकी है,उसके रियाज़ मे कोई कमी नहीं आनी