विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(८) Saroj Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(८)

जूली क्लब के भीतर गई और इधर प्रकाश ने उदास मन से अपनी टैक्सी घर की ओर घुमाई,आज जूली की बेरूखी ने उसका मन खराब कर दिया था,उसने मन में सोचा कि मैं तो इसे एक शरीफ़ लड़की समझता था लेकिन....ये तो...,अब क्या बोलूँ? मुझे खुद समझ नहीं आ रहा,कहीं ऐसा तो नहीं वो एक शरीफ़ लड़की हो और मैं उसे गलत समझ रहा हूँ,इसी सब जद्दोजहद के बीच प्रकाश घर पहुँच गया,खाना खाया और बिस्तर पर सोने के लिए पहुँचा,लेकिन नींद तो आँखों से दूर थी,क्योंकि जूली उसके लिए एक पहेली थी,जिसको वो सुलझा नहीं पा रहा था।।
मुझे उसी दिन उसके बारें में समझ जाना चाहिए था,जब वो मुझे पहली बार शराब के नशे में सड़क पर मिली थी,इतना मासूम दिखने वाला चेहरा ऐसा भी हो सकता है,मुझे नहीं मालूम था अगर मालूम होता तो मैं कभी भी उससे दोबारा मुलाकात के बारें में नहीं सोचता,कितनी बड़ी भूल हुई मुझसे और इसी उधेड़बुन में प्रकाश को कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला।।
क्लब में कैबरे करते हुए जूली पर एक आदमी की नज़र थी,जूली का डान्स खतम होते होते काफ़ी रात हो गई थी,वो अपने मेकअप रूम में गई,सारा मेकअप उतारा,डान्स ड्रेस चेन्ज करके उसने सादे से सलवार कमीज पहन लिए और पीछे के दरवाज़े से बाहर आकर टैक्सी का इंतज़ार करने लगी क्योंकि आज वो मोटर नहीं ला सकी चूँकि उसकी मोटर तो रास्ते मे बंद हो गई थी।।
सुनसान सड़क इक्का दुक्का मोटरें ही निकल रहीं थीं,तभी वो क्लब वाला आदमी जूली के पीछे से आया और उसने जूली का दुपट्टा खीचने की कोशिश की,जूली ने उसे जोर का थप्पड़ दिया और सड़क पर भागने लगी,वो आदमी भी उसका पीछा करने लगा,अब जूली ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी और एक टैक्सी से जा टकराई,जूली को टैक्सी से टकराता हुआ देखकर वो आदमी रफूचक्कर हो गया।।
टैक्सी ड्राइवर ने अपनी टैक्सी फौरन रोकी और उतरकर जूली के पास आकर पूछा......
क्या हुआ बेटी? ज्यादा चोट तो नहीं आई,
जूली को वो आवाज़ कुछ पहचानी सी लगी और उसने फौरन उस टैक्सी ड्राइवर का चेहरा देखा,टैक्सी ड्राइवर का चेहरा देखकर वो एक पल को बुत बन गई,क्योंकि वो टैक्सी ड्राइवर तो उसके पापा धर्मवीर थे,
उसे ऐसे बुत बना हुआ देखकर धर्मवीर ने एक बार फिर जूली से पूछा....
बोलो बेटी!डरो नहीं,कहीं तुम्हें चोट तो नहीं आई और कौन था वो आदमी?
अब जूली को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था,फिर हिम्मत करके वो बोली...
मैं ठीक हूँ चाचा जी! अनाथ और बेसहारा हूँ,उस आदमी के पास काम माँगने गई थी लेकिन....लेकिन..वो तो....
बस....बस...बेटी! आगे बोलने की जुरूरत नहीं हैं,मैं सब समझ गया,बोलो कहाँ छोड़ दूँ,धर्मवीर ने पूछा।
लेकिन मेरा तो कोई घर नहीं है,जूली ने झूठ बोलते हुए कहा।
तो तुम मेरे घर चलों,वहाँ मेरे पिता समान अनवर चाचा हैं,तुम्हें वहाँ कोई तकलीफ नहीं होगी,धर्मवीर बोला।।
तब जूली ने पूछा ....,आपकी पत्नी और बच्चे नहीं हैं,वे क्या सोचेंगे मेरे बारें में?
एक हादसे मे मुझसे मेरा पूरा परिवार बिछड़ गया,एक ही रात में मेरी पूरी दुनिया उजड़ गई,उस रात मेरी पत्नी इस दुनिया को छोड़कर चली गई और मेरे बच्चे भी मुझसे बिछड़ गए,धर्मवीर बोला।।
ये सुनकर जूली चीखना चाहती थी,रोना चाहती थी लेकिन उसने अपने आँसुओं को रोक लिया बहने नहीं दिया ,वो धर्मवीर से ये भी तो नहीं कह सकती थी कि पापा मै आपकी बेटी लाज हूँ,मुझे अपने सीने से लगा लीजिए,वो अब लाज नहीं जूली बन गई है जो क्लब में अपने जिस्म की नुमाइश करके गैर मर्दों का दिल बहलाया करती है,किस मुँह से ये सब मैं पापा को बताऊँ,वो ये सोच ही रही थी कि फिर धर्मवीर ने कहा....
चलोगी ना बेटी! मेरे घर...
जूली बोली,चलिये चाचा जी और इतना कहकर जूली धर्मवीर के संग चली आई।।
घर आकर जूली ने जब अनवर चाचा को देखा तो खुशी से उसके आँसू बह निकले,वो अब अपने आँसू रोक ना पाई....
तब धर्मवीर ने अनवर चाचा से कहा.....
दुखियारी,अनाथ है बेचारी! हम लोंग अपने जैसे लगे इसलिए शायद अपने आँसू रोक नहीं पाई।।
कोई बात नही बिटिया!आज के बाद तुम अकेली नहीं हो,हम दोनों तुम्हारे साथ हैं,अनवर चाचा बोले।।
आप लोंग अपने से लगे इसलिए आँसू नहीं रोक पाई,जूली बोली।
तुम्हारा नाम क्या है? बिटिया! अनवर चाचा ने पूछा।।
जी,जूली नाम है मेरा,जूली बोली।।
अच्छा तो ईसाई परिवार से हो,अनवर चाचा बोले।।
जी,जूली बोली।।
चलो हाथ मुँह धुलकर कुछ खा लो,अनवर चाचा बोले।।
जी,नहीं ठीक है,मुझे भूख नहीं,जूली बोली।।
आज जो भी जैसा खाना बना है खा लो ,कल से तुम बनाकर खिलाना,धर्मवीर बोला।।
लेकिन चाचा जी! मुझे खाना बनाना नहीं आता,कभी ये सब सीखने का समय ही नहीं मिला,जूली बोली।।
कोई बात नहीं बिटिया! मैं सब सिखा दूँगा,अनाथ बच्ची भला खाना बनाना कैसे सीखेगी,अनवर चाचा बोले।।
फिर सबने साथ मिलकर खाना खाया,आज रूखा सूखा ही सही लेकिन उसे खाकर जूली की भूख मिट गई थी,अपनों के साथ इतने सालों बाद जो बैठकर खाया था।।
बिटिया तुम अब इस घर में आराम से रहो,कल मैं तुम्हारे लिए एक दो साड़ी ले आऊँगा,तुम अनवर चाचा से खाना बनाना सीखो,हम सब इसी घर में रहेंगें,धर्मवीर बोला।।
खाना खाकर सब अपने अपने बिस्तर आकर लेट गए,धर्मवीर दिनभर का थका था इसलिए उसे लेटते ही नींद आ गई,अनवर चाचा भी कुछ देर बाद सो गए।।
जूली यही तो चाहती थी कि कभी उसे भी सुख के दो पल नसीब हों और आज उसे ये सब नसीब हो गया था,धर्मवीर के साथ जाने के लिए ही तो उसने झूठ बोला था कि मेरा कोई घर नहीं है लेकिन एक तरह से सही भी तो है वो घर थोड़े ही हैं वो तो मकान है,घर तो अपनो से बनता है,जो वो उसे आज मिल गए थे,जूली को आज इतनी खुशी हो रही थी जो कि जिन्दगी में पहले उसे कभी नहीं हुई थी,वो अपने पापा के साथ थी,अनवर चाचा के साथ थी लेकिन माँ ...माँ तो हमें छोड़कर जा चुकी है और करन कहाँ हैं?यही सब सोचते सोचते उसे ना जाने कब नींद आ गई।।
दूसरे दिन प्रकाश बड़े ही बोझिल मन से उठा,वो रात की बातों को भूल नहीं पा रहा था,उसने उस पर भरोसा कैसे कर लिया?वो तो भरोसे के काबिल ही नहीं थी,उसका उखड़ा उखड़ा सा मन देखकर सुभद्रा ने पूछ ही लिया....
क्यों रे! क्या बात है? ऐसा उखड़ा उखड़ा सा क्यों दिख रहा है?
कुछ नहीं माँ! बस थोड़ा थक गया हूँ,प्रकाश बोला।।
तो आज काम पर मत जा,सुभद्रा बोली।।
नहीं माँ! ऐसा भी थका नहीं हूँ,घर पर रहकर भी क्या करूँगा? प्रकाश बोला।।
ठीक है जैसी तेरी मरजी,तू जल्दी से नहा ले,मै तब तक खाना तैयार करती हूँ,इतना कहकर सुभद्रा खाना बनाने चली गई।।
उधर जूली आज सुबह उठी तो घर के आँगन में आ पहुँची,आज बाहर की खुली हवा और सूरज की किरणें एक अजीब सी शान्ति दे रहीं थीं उसे,वो आकर आँगन में पड़ी लकड़ी की कुर्सी पर बैठ गई और आकाश में उड़ते हुए पंक्षियों को निहारने लगी कि किस तरह से वो अपने पंख फैलाकर खुले आसमान में उड़ रहे हैं,आज वो भी ऐसा ही महसूस कर रही थी।।
तभी रसोई से अनवर चाचा ने आवाज़ दी....
चाय तैयार है बिटिया! चाय पी लो।।
जी,अनवर चाचा! अभी आई।। जूली ने जवाब दिया।।
इस तरह जूली अपनो के बीच पहुँचकर बहुत खुश थी ।।
उधर सुबह हो चुकी थी लेकिन जूली का कुछ अता पता नहीं था,शकीला बानो बहुत घबरा गई क्योंकि ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि जूली क्लब से इतनी देर तक ना आई हो,यही सोच सोच कर उसका दम निकला जा रहा था,दिनभर उसने जूली का इन्तज़ार किया लेकिन सुबह से शाम होने को आई और जूली घर नहीं पहुँची थी,तब उसने घबराकर विश्वनाथ को टेलीफोन किया.....
हैलो! उधर से विश्वनाथ की आवाज आई...
जी! मैं शकीला बोल रही हूँ,शकीला बोली।।
कहो क्या बात हैं? विश्वनाथ ने पूछा।।
जी! हुजूर! जूली रातभर से क्लब से नहीं लौटी है,मन बहुत घबरा रहा है कि कहीं किसी मुसीबत में ना फँस गई हो,शकीला बोली।।
उसने कोई टेलीफोन भी नहीं किया क्या?विश्वनाथ ने पूछा।।
नहीं हुजूर! इससे पहले वो टेलीफोन करके बता दिया करती थी,शकीला बोली।।
ठीक है !तुम टेलीफोन रखों मै देखता हूँ,विश्वनाथ बोला।।
जी!हुजूर! और इतना कहकर शकीला ने टेलीफोन रख दिया।।
अब विश्वनाथ ने जूली के बारें में पूछताछ के लिए सबसे पहले नाइट स्टार क्लब में टेलीफोन किया,वहाँ के मालिक ने बताया कि वो तो रात को आई थी और उसने हमेशा की तरह कैबरे भी किया,घर के लिए भी उसी वक्त निकली होगी जैसे हमेशा निकलती होगी,इसके बाद का तो मैं कुछ नही कह सकता कि उसे क्या हुआ होगा?
ये सुनकर विश्वनाथ ने फोन रख दिया और मन ही मन बुदबुदाया कि ....
आखिर ये लड़की जा कहाँ सकती है? कुछ भी हो ढ़ूढ़ना तो पड़ेगा ही.....
तब विश्वनाथ के गुण्डों ने जूली को ढूंढना शुरू किया लेकिन वो कहीँ भी ना मिली,सबने आकर यही कहा कि...
बाँस! छोकरी कहीं नहीं मिली,ना जाने कहाँ गई?
मुफ्त के पैसे लेते हो हरामखोरों! इतना छोटा सा काम भी नहीं कर पाए,फिर से जाकर ढ़ूढ़ो,आखिर गई कहाँ वो? आसमान खा गई या जमीन निगल गई उसे,विश्वनाथ चीखा।।
यस !बाँस! फिर से कोशिश करते हैं और इतना कहकर वे सब अड्डे से चले गए।।
और उधर जूली मज़े से अपने घर पर थी,दिनभर उसने आराम किया,अनवर चाचा के संग रसोई के कुछ काम किए,इस तरह से आज फिर दिन ढ़ल गया,तभी अनवर चाचा बोले....
बिटिया! मैं बाजार तक जा रहा हूँ,सब्जी और कुछ राशन का सामान लेने,दरवाजा भीतर से बन्द कर लो,जब मै आवाज़ दूँ तभी दरवाजा खोलना।।
ठीक है अनवर चाचा! जूली बोली।।
अनवर चाचा बाजार पहुँचे,उन्होंने सामान और सब्जियाँ खरीदीं और दुकान पर जाकर जब वो अपने बटुए से पैसे निकालने लगे तो एक चोर ना जाने कहाँ से आया और उनका बटुआ चुराकर भागने लगा,अनवर चाचा ने चोर ....चोर....कहके सबसे मदद को पुकारा,लोगों की भीड़ ने उस चोर को धर दबोचा और तभी अनवर चाचा बोले इस चोर को थाने लेकर चलो नहीं तो ये फिर किसी का बटुआ चुराएगा......
सब लोंग पुलिस चौकी पहुँचे,उस चोर को लेकर साथ में अनवर चाचा भी थे....
तभी इन्सपेक्टर साहब ने पूछा....
कहो क्या बात है? इतनी भीड़ क्यों इकट्ठी कर रखी है?
जी! इन्सपेक्टर साहब! ये चोर है,इसने इन बुजुर्ग का बटुआ चुराया है,उस भीड़ में से कोई बोला....
ठीक है आप सब लोग जाइए,मैं देखता हूँ कि इस चोर के साथ क्या करना है? इन्सपेक्टर साहब बोले।
भीड़ चली गई,अनवर चाचा और वो चोर बस रह गए पुलिसचौकी में....
जी! जनाब!तो इस चोर ने आपका बटुआ चुराया है,इन्सपेक्टर ने अनवर चाचा से पूछा।।
जी! साहब! भीड़ ने इसे पकड़ लिया था,वो तो इसे मार मारकर भरता बना देते,इसे चोट ना लगे इसलिए मैं इसे आपके पास ले आया,आखिर ये भी तो किसी का बेटा होगा और जब पेट की आग ईमानदारी से नहीं बुझती तो इन्सान चोर बन जाता है,रही होगी इसकी भी कोई मजबूरी शायद इसलिए इसने ये काम किया,अनवर चाचा बोले।
बहुत ही सुलझे हुए इन्सान मालूम होते हैं आप! अच्छा लगा आपसे मिलकर ,इन्सपेक्टर साहब बोले।।
जी! इन्सान अगर सुलझा हुआ ना हो तो बहुत सी उलझनें जुड़ जातीं हैं,इसलिए सुलझा रहना ही ठीक है ,अनवर चाचा बोले।।
बिल्कुल सही,अच्छा तो ये बताइए कि इस चोर के साथ क्या करना है?इन्सपेक्टर साहब ने पूछा।।
जी! इसे आप कोई काम दिलवा दीजिए तो अच्छा रहेगा,अनवर चाचा बोले।।
आप बहुत ही रहमदिल और दिलचस्प इन्सान है,अच्छा लगा आपसे मिलकर ,देखता हूँ कि इसे कोई काम दिलवा सकूँ,इन्सपेक्टर साहब बोले।।
आप भी बहुत ही नेकदिल हैं साहब! अनवर चाचा बोले।।
साहब! मत कहिए,मेरा नाम करन है,आप नाम लेकर पुकारेगे तो मुझे अच्छा लगेगा,इन्सपेक्टर साहब बोले।।
करन नाम सुनकर अनवर चाचा कुछ परेशान से हो गए फिर बोले.....
अच्छा तो मैं चलता हूँ,देर हो रही है।।
जी,बहुत अच्छा! नमस्ते,इन्सपेक्टर साहब ने अनवर चाचा को नमस्ते करते हुए कहा और अनवर चाचा पुलिस चौकी से चले गए।।
तभी इन्सपेक्टर करन ने उस चोर से पूछा....
क्यों रे! मेरे घर मे काम करेगा,माली की जगह खाली है,
हाँ! हुजूर करूँगा,बस दो वक्त की रोटी चाहिए,चोर बोला।।
अच्छा तो चल मेरे घर चल.....और इतना कहकर इन्सपेक्टर करन उस चोर को अपने घर ले गए....

क्रमशः....
सरोज वर्मा......