विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(६) Saroj Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(६)

जूली को सड़क पर गिरा हुआ देखकर उस टैक्सीड्राइवर ने जूली को सहारा देकर खड़ा किया,जमीन पर गिरा हुआ पर्स उठाया फिर उसके साड़ी के पल्लू को सम्भाला और अपनी टैक्सी की पीछे की सीट पर टेक लगाकर बैठा दिया,जूली को एक भी होश़ नहीं था और कुछ ही देर में वो आँखें मूँदकर सो गई......
जूली की जब आँख खुली तो तब तक सुबह हो चुकी थी,जूली ने खुद को एक टैक्सी की सीट पर आया,उसने कुछ याद करने की कोशिश की लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं आया,उसने देखा कि आगें की सीट पर टैक्सी ड्राइवर की वर्दी में एक आदमी सो रहा है और टैक्सी भी सड़क के किनारे खड़ी है,इसका मतलब है वो रातभर इसी टैक्सी मे सो रही थी,उसने सोते हुए टैक्सी ड्राइवर को जगाना ठीक नहीं समझा और चुपचाप ही टैक्सी से उतर कर जाने लगी.....
तभी पीछे से टैक्सी ड्राइवर ने आवाज़ दी....
ओ..मेमसाहब! बिना बताएं जा रहीं हैं...
आप सो रहे थे इसलिए आपको जगाना ठीक नहीं लगा,जूली बोली।।
कोई बात नहीं मेमसाहब! हम टैक्सी ड्राइवरों की किस्मत में चैन की नींद कहाँ लिखी होती है,टैक्सी ड्राइवर बोला।।
अच्छा,कल रात की मदद के लिए शुक्रिया,जूली बोली।।
शुक्रिया! किस बात का मेमसाहब! आप की हालत ठीक नहीं थी और आपको इस हालत में सड़क पर अकेले छोड़ना मुझे सही नहीं लगा,टैक्सीड्राइवर बोला।।
शरीफ़ इन्सान लगते हो! नाम क्या है तुम्हारा?जूली ने टैक्सी ड्राइवर से पूछा।।
जी,मेरा नाम प्रकाश है,टैक्सी ड्राइवर बोला।।
अच्छा लगा तुमसे मिलकर,जूली बोली।।
तो मेमसाहब! घर कैसें जाऐगीं,बुरा ना माने तो मैं घर तक छोड़ दूँ,टैक्सी ड्राइवर प्रकाश बोला।।
जी,नहीं शुक्रिया! मैं दूसरी टैक्सी लेकर चली जाऊँगीं,जूली बोली।।
जब टैक्सी ही पकड़नी तो मेरी टैक्सी से जाने में क्या हर्ज है?प्रकाश ने पूछा।।
कुछ नहीं,ऐसे ही ,मैं जाना नहीं चाहती,जूली बोली।।
कोई बात नहीं,जैसी आपकी मर्जी,वैसे मेमसाहब! दुनिया गोल है,कभी ना कभी दोबारा मुलाकात हो जाएगी,अच्छा मैं चलता हूँ और इतना कहकर टैक्सी ड्राइवर प्रकाश अपनी टैक्सी लेकर चला गया।।
प्रकाश की बातें सुनकर जूली मन ही मन मुस्काई,उसने दूसरी टैक्सी पकड़ी और अपने बंगलें को रवाना हो गई,टैक्सी बंगले के सामने रूकवाकर,वो टैक्सी से उतरी और टैक्सी ड्राइवर से बोली___
ड्राइवर! तुम यही ठहरो,मैं किसी नौकर के हाथ किराए के पैसे भिजवाती हूँ,क्योंकि रात को जूली अपनी मोटर में गई थी और उसका पर्स भी अभी उसके पास नहीं था,शायद वो अपना पर्स टैक्सी ड्राइवर की टैक्सी में छोड़ आई थी।।
वो बंगलें के अन्दर पहुँची ही थी कि शकीला बानो ने उससे पूछा___
रातभर कहाँ थीं,मुझे तेरी बहुत चिन्ता हो रही थी....
अरे,खालाज़ान! घबराइए नहीं,क्लबों में नाचने वाली लड़कियों को कुछ नहीं होता,जरा किसी के हाथ टैक्सी का किराया भिजवा दीजिए,गेट के बाहर टैक्सी वाला खड़ा है,जूली बोली।।
और तेरा पर्स कहाँ है? शकीला बानो ने पूछा।।
लगता है कहीं छूट गया है,जूली ने जवाब दिया।।
ज्यादा रूपये तो नहीं थे उसमे,शकीला ने पूछा।।
होगें भी तो फर्क पड़ता है,इसी बहाने किसी गरीब का भला हो जाएगा,जूली बोली।।
कैसीं बाते करती हो? बेटी! शकीला बोली।।
बस आज ऐसी ही बातें करने को जी चाह रहा है,कम से कम इस दुनिया में कोई तो भरोसे के काबिल मिला,जूली बोली।।
कौन मिल गया?जरा मैं भी तो सुनुँ,शकीला ने पूछा।।
कोई नहीं,था कोई भला इन्सान ,जिसने रात को मेरी मदद की,जूली बोली।।
क्या नाम था उसका?शकीला ने पूछा।।
प्रकाश....हाँ..प्रकाश...यही नाम बताया था उसने अपना,जूली बोली।
कहाँ मिला तुझे?शकीला ने पूछा।।
सब बाद में बताऊँगी अभी मैं ऊपर अपने कमरें में जा रही हूँ,बस आप नींबू पानी भिजवा दीजिए,जरा सिर चकरा है,रात को ज्यादा हो गई थी,जूली बोली।।
इतनी मत पिया कर बेटी! शकीला बोली।।
खालाज़ान नहीं पिऊँगी,तो जिऊँगीं कैसे? एक शराब का ही तो सहारा है जो थोड़ा देर के लिए ही सही,लेकिन अपने दुखों को तो भूल जाती हूँ,जूली बोली।।
अच्छा,तुम अपने कमरें में जाओं ,मैं नींबू पानी लेकर आती हूँ,शकीला बोली।।
और उधर प्रकाश की टैक्सी में कोई मुस़ाफिर बैठा तो बोला......
भाई! लगता है कि तुम्हारी टैक्सी में कोई औरत अपना पर्स भूल गई है....
ये सुनकर प्रकाश ने फौऱन अपनी टैक्सी किनारे में खड़ी की और उस मुस़ाफिर से बोला___
जरा देखूँ तो भला वो पर्स कैसा दिखता है?
उस मुस़ाफिर ने वो पर्स प्रकाश को देते हुए कहा....
ये देखो,ये रहा.....
अरे,ये पर्स तो मेमसाहब का है,प्रकाश बोला।।
अच्छी बात है,तो ये पर्स उन्हें लौटा देना,वो मुसाफिर बोला।।
जी,हाँ! अब तो लौटाना ही होगा,प्रकाश बोला।।
तो क्या तुम उन मेमसाहब को जानते हो? मुसाफिर ने पूछा।।
जी ,नहीं! प्रकाश बोला।।
जब उन्हें जानते नहीं तो कैसे ढ़ूढ़ोगे?मुसाफिर ने पूछा।।
साहब!दिल से दिल को राह होती है,अगर किस्मत में उनसे दोबारा मिलना होगा,तो मुलाकात हो ही जाएगी,प्रकाश बोला।।
बड़े दिलचस्प आदमी मालूम होते हो,मुस़ाफिर बोला।।
बस,साहब!अपना तो ऐसा ही है,जिस पर दिल आ गया तो उससे दिल लगा ही लेते हैं,प्रकाश बोला।।
लगता है उस मेमसाहब पर तुम्हारा दिल आ गया है,मुस़ाफिर बोला।।
ऐसा ही कुछ समझ लीजिए,प्रकाश बोला।।
चलो भाई!मेरी मंजिल तो आ गई,भगवान करें तुम्हें एक दिन तुम्हारी मंजिल भी मिल जाए,मुस़ाफिर ने उतरते हुए कहा।।
अच्छा,साहब! फिर कभी मिलेंगें और उस मुस़ाफिर से इतना कहकर प्रकाश ने टैक्सी घर की ओर मोड़ ली।।
प्रकाश घर पहुँचा.....
क्यों रे! रातभर कहाँ था? मैं रातभर तेरा इन्तज़ार करती रही,पता है कितना मन घबरा रहा था,प्रकाश की विधवा माँ सुभद्रा बोली।।
अरे,माँ! क्या बताऊँ? कोई मुसीबत में था तो उसे मेरी मदद की जरूरत थी,प्रकाश ने सुभद्रा से कहा।।
वो अब ठीक है,सुभद्रा ने पूछा।।
हाँ! माँ! ठीक है,अच्छा मैं नहाकर आता हूँ,तब तक तुम खाना बनाकर रखो,खाना खाकर थोड़ा आराम करूँगा,आज कुछ देर के बाद टैक्सी लेकर बाहर जाऊँगा,रातभर ठीक से सो नहीं पाया,प्रकाश बोला।।
अरे,भइया! माँ ने तो कब का खाना बनाकर रख दिया,मैने तो खा भी लिया,मैं काँलेज के लिए निकलता हूँ,देर हो रही है,प्रकाश का छोटा भाई विकास बोला।।
क्यों रे!आज मेरे बिना ही खाना खा लिया,प्रकाश बोला।।
काँलेज के लिए देर हो रही थी तो माँ बोली कि खा लो,विकास बोला।।
अच्छा ,कोई बात नहीं,ये ले रूपए तुझे कुछ किताबों की जुरूरत थी ना! प्रकाश ने विकास से कहा।।
जी,भइया! और इतना कहकर विकास ने रूपए लिए और अपनी साइकिल उठाकर काँलेज को रवाना हो गया।।
रास्ते में विकास अपनी धुन में मस्त साइकिल से चला जा रहा था,तभी ना जाने कहाँ से एक दुपट्टा हवा में उड़ता हुआ आया और उसके चेहरे को ढ़क लिया,विकास का संतुलन बिगड़ गया और वो साइकिल समेत जमीन पर गिर पड़ा.....
तभी एक मोटर उसके पास रूकी ,उसमे से एक लड़की उतरी ,उसने दुपट्टा उठाया,अपने काँधे पर डाला और जाने लगी तभी विकास फटाफट उठा और अपने कपड़ो पर लगी मिट्टी झाड़ते हुए बोला......
ऐ...ऐ..लड़की..! ये क्या बतमीजी है?तुम समझती क्या हो खुद को?अभी तुम्हारा दुपट्टा मेरी दो चार हड्डियाँ तुड़वा देता,जरा सम्भालकर रखा करो इस आफत को,बेवजह कभी कोई लूला-लँगड़ा ना हो जाए और तुम्हें लेने के देने पड़ जाएं...विकास ने उस लड़की से कहा।।
विकास की बात सुनकर वो लड़की मुड़ी और बोली....
मैं क्या करूँ?हवा ही इतनी तेज थी, मैं दुपट्टा सम्भाल ना सकीँ,उड़कर आ गया तुम्हारे चेहरे पर....
अच्छा!चोरी की चोरी ऊपर से सीनाजोरी,अभी मेरे हाथ पैर टूट गए होते तो कौन जिम्मेदार होता इसका?विकास ने उस लड़की से पूछा।।
ए...लड़के इसमे मेरी कोई गलती नहीं है ,क्यों इतनी देर से मेरा दिमाग़ खा रहे हो?उस लड़की ने कहा।।
निहायती बतमीज हो तुम,लगता है माँ बाप ने जरा भी संस्कार नहीं दिए कि गलती होने पर माँफी माँग लेते हैं ना कि अकड़ दिखाते हैं,विकास बोला।।
जब कह दिया कि मेरी कोई गलती नहीं है फिर भी पीछे पड़े हो,वो लड़की बोली....
पहले माँफी माँगों नहीं तो भीड़ इकट्ठी कर लूँगा,विकास ने उस लड़की से कहा....
अब उस लड़की के पास माँफी माँगने के सिवाय कोई और चारा नहीं था,इसलिए उसे माँफी माँगनी ही पड़ी ....
साँरी...बोलकर उसने पाव पटका ,अपनी मोटर में बैठी और घर को रवाना हो गई....
घर पहुँचकर उस लड़की ने अपने नौकर से पूछा.....
करन भइया कहाँ हैं,दीनू काका!
सुरेखा बिटिया! वो तो अपने कमरें में हैं तैयार हो रहे हैं,दीनू काका बोले....
वो लड़की टकटक करके सीढ़ियाँ चढ़ी और करन के कमरें में पहुँचकर बोली.....
भइया! एक लड़के को सबक सिखाना है...
लेकिन क्यों? मेरी प्यारी बहना! करन ने पूछा...
उसने मुझसे माँफी मँगवाई,सुरेखा बोली।।
कोई कारण तो होगा,करन ने पूछा।।
और सुरेखा ने सारी बात कह सुनाई,सुरेखा की बात सुनकर करन बोला....
तो यहाँ तो भाई तेरी गलती है,यहाँ उस लड़के का कोई कुसूर नहीं है,करन बोला।।
भइया ! आप भी ना! आप मेरे भाई होकर भी ऐसी बात कर रहे हो,सुरेखा बोली।।
मैं तो सही को सही ही कहूँगा,आखिर मैं एक पुलिसकर्मी हूँ,सच का साथ देना ही मेरा फर्ज है,करन बोला।।
तो इन्सपेक्टर करन ! आप अपनी बहन का साथ नहीं देंगें,सुरेखा बोली।।
नहीं....हर्गिज़ नहीं...मेरी प्यारी बहना,करन बोला....
उन दोनों की बातें सेठ गिरधारी लाल जी सुन रहे थे,वो दोनों के पास आकर बोले....
मुझे अपने बेटे से ऐसी ही उम्मीद है....
डैडी! ये तो आपके और माँ के दिए हुए संस्कार हैं,माँ तो सालों पहले हमें छोड़कर चली गई और आपने ही मुझे और सुरेखा को माँ और बाप दोनों का प्यार देकर बड़ा किया है,करन बोला।।
ये कोई एहसान नहीं है बेटा! ये तो मेरा फर्ज़ था,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
लेकिन वो तो एहसान ही कहा जाएगा ना! जो आपने मुझ अनाथ और बेसहारा को सहारा दिया,अपने घर और दिल में जगह दी,औलाद की तरह पाला,करन बोला।।
ऐसी बातें कर के तू मुझे पराया कर रहा है,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
नहीं...डैडी! मैं तो आपका शुक्रिया अदा कर रहा हूँ,करन बोला।।
अच्छा! छोड़ ये सब,चलो सब नाश्ता करते हैं,फिर तुझे ड्यूटी पर भी तो जाना होगा,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
हाँ! डैडी! और तू सुबह सुबह मोटर लेकर कहाँ गई थी,करन ने पूछा।।
अरे,मेरी सहेली शर्मिला है ना! वो विलायत से आई है,
अरे,कौन शर्मिला?करन ने पूछा।।
वो विलायत में रहती है,जब पिछली बार विलायत से आई थी तो मुझे एक बूटिक में मिली थी ,वहीं मेरी उससे दोस्ती हुई थी,सुरेखा बोली।।
अच्छा...ठीक है,चलो अब नाश्ता करते हैं....करन बोला।।
और सब नाश्ता करने बैठ गए.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....