विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(७) Saroj Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(७)

उधर जेल में...
आओ धर्मवीर! आओ...कैसे हो ?जेलर साहब ने धर्मवीर से पूछा।।
जी !बहुत अच्छा हूँ,कहिए कैसे याद किया मुझे?धर्मवीर ने जेलर साहब से पूछा।।
बस,खुशखबरी थी तुम्हारे लिए इसलिए याद फरमाया,जेलर साहब बोले.....
मेरे नसीब में ,वो भी खुशियाँ,क्यों मज़ाक करते हैं साहब! मै भला अभागा कब से खुशियों का हकदार होने लगा,खुशियों ने तो सालों पहले ही मुझसे दामन छुड़ा लिया था,धर्मवीर बोला।।
अरे,कैसी बातें करते हो धर्मवीर! हमेशा रात नही रहती,जब खुशियाँ नहीं रहीं तो ग़म भी नहीं रहेंगें,जेलर साहब बोले।।
ये तो सब कहने की बातें हैं जिसका एक रात में ही सबकुछ उजड़ गया हो वो भला कैसे अच्छी बातें कर सकता है,धर्मवीर बोला।।
अच्छा....भाई! अब थोड़ा अपने ग़म से भी निकलो,लो तुम्हारे अच्छे चाल-चलन की वजह से तुम्हारी छः महीने की सजा माफ़ हो गई है,जेलर साहब बोले।।
सच! जेलर साहब!पन्द्रह साल! इतना बड़ा अरसा मैने जेल में गुजारा है,धर्मवीर ने कहा।।
हाँ! भाई बिल्कुल सच! तुम्हारे पन्द्रह सालों की सज़ा में छः महीने कम हो गए हैं, जेलर साहब बोले।।
कल वैसे भी अनवर चाचा मुझसे मिलने आने वाले हैं,पन्द्रह दिनों में तो एक बार वो मुझसे मिलने आ ही जाते हैं,तो इसका मतलब है कि मैं उनके साथ जा सकता हूँ,धर्मवीर बोला।।
हाँ,आज तुम्हारा इस जेल में आखिरी दिन है,आज तुम अपने सारे दोस्तों से मिल लो और कल अनवर चाचा के साथ चले जाना,जेलर साहब बोले।।
लेकिन जेल से छूटकर जाऊँगा कहाँ? ये समझ में नहीं आता,अपने घर जा नहीं सकता क्योंकि अब उस पर तो विश्वनाथ का कब्जा हो गया है,अनवर चाचा ने मुझे बताया था,धर्मवीर बोला।।
तो अगर तुम कहों तो तुम्हारे रहने का कुछ इन्तजाम करूँ,जेलर साहब बोले।।
आपकी बहुत मेहरबानी जेलर साहब! अच्छा होता अगर मुझे किसी और शहर में आसरा मिल जाता ,धर्मवीर बोला।।
हाँ,वही तो मैं कहना चाहता था कि तुम दूसरे शहर चले जाओ,वहाँ मेरा एक छोटा सा मकान है,जो हमेशा खाली पड़ा रहता है,तुम वहाँ जाकर रहने लगो और अगर तुम्हें मुफ्त में रहना अखरता है तो तुमसे जितना भी सकें मुझे महीने का किराया भेज दिया करो,वो मेरा पुश्तैनी मकान है,पुराने जमाने का बना हुआ,दो तीन कोठरियाँ हैं,स्नानघर हैं,आँगन में कुआँ और छोटी सी छत भी है,कल जब तुम यहाँ से जाओगे तो मैं तुम्हें उस मकान की चाबियाँ दे दूँगा,वैसे वहाँ तुम्हें कोई ना कोई काम तो मिल ही जाएगा और अगर ना मिले तो मुझे एक ख़त लिख देना,जेलर साहब बोले।।
ये तो बड़ा एहसान होगा मुझ पर,मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ? समझ में नहीं आता,धर्मवीर बोला।।
इसमे एहसान की क्या बात है? धर्मवीर! तुम एक नेकदिल इन्सान हो,जो तुम्हारे हाथों हुआ या नहीं हुआ,ये मुझे नहीं पता,लेकिन अभी कुछ सालों पहले मैं इस जेल मे जेलर बन कर आया हूँ,तब से मैने तुम्हें एक अच्छे इन्सान के रूप मे ही देखा है,जेलर साहब बोले।।
ये तो आपकी दरियादिली है जेलर साहब! नहीं तो मैं किस काबिल हूँ,धर्मवीर बोला।।
अब तुम ये सब बातें छोड़ो और आज जो तुम्हारा मन करे वो करो,जेलर साहब बोले।।
ठीक है जेलर साहब! अब मैं जाता हूँ,कल मुलाकात होगी,धर्मवीर बोला।।
और उस दिन धर्मवीर ने जेल मे अपना आखिरी दिन हँसी खुशी सबके साथ बिताया,दूसरे दिन अनवर चाचा भी धर्मवीर से मिलने जेल पहुँच गए और जब अनवर चाचा ने ये सुना कि आज ही धर्मवीर को रिहाई मिलने वाली है तो वे भी बहुत खुश हुए।।
और दोनों ने ही जेलर साहब का शुक्रिया अदा किया,उनके पुश्तैनी मकान की चाबियाँ ली और चल पड़े तभी अनवर चाचा बोले....
लल्ला!मै जिस साहब के घर की मोटर चलाता था ,मैं उन्हें कहकर आता हूँ कि अब मैं आपकी नौकरी छोड़़ रहा हूँ....
लेकिन क्यों अनवर चाचा! धर्मवीर ने पूछा।।
वो इसलिए लल्ला कि अब मैं भी तुम्हारे साथ ही रहूँगा,आज ही गाँव जाकर सारी जमीन और घर बेच देता हूँ,उनसे जो भी रूपए मिलेंगें,अब उस नए शहर में नई टैक्सी खरीद लेंगें,गुजर बसर के लिए कुछ तो करना होगा,अनवर चाचा बोले।।
लेकिन आप मेरे लिए अपना घर जमीन क्यों बेचेंगे? धर्मवीर ने पूछा।।
वो सब भी तो ऐसे ही पड़ा है,तुम्हारे काम आ जाए तो अच्छा है,वैसे भी मेरा बुढ़ापा आ गया है,अब मोटर चलाने में दिक्कत होती है,अनवर चाचा बोले।।
तो फिर ठीक है अनवर चाचा! लेकिन अब टैक्सी आप नहीं मैं चलाया करूँगा,बहुत कुछ किया है आपने मेरे लिए,धर्मवीर बोला।।
अच्छा! ठीक है लल्ला,अनवर चाचा बोले।।
फिर क्या था? अनवर चाचा अपने साहब की ड्राइवरी छोड़कर धर्मवीर के संग गाँव पहुँचे,वहाँ उन्होंने साहूकार को घर और जमीन बेची,इतनी रकम तो जुट गई थी कि एक टैक्सी खरीदी जा सके और पैसे लेकर वे जेलर साहब के पुश्तैनी मकान पहुँच गए वहाँ रहने के लिए,दो चार दिनों के भीतर ही उन्होंने नई टैक्सी भी खरीद ली,अब धर्मवीर दिनभर टैक्सी चलाता और शाम को अनवर चाचा उसका इन्तज़ार करते,ऐसे ही दिन बीत रहे थे ....

उधर एक रात जूली अपनी मोटर लेकर क्लब के लिए निकली,आधा रास्ता पार ही किया कि एकाएक मोटर बन्द हो गई,जूली ने मोटर फिर से स्टार्ट करने की कोशिश की लेकिन मोटर स्टार्ट ना हुई,मजबूरी में जूली को मोटर से उतरना पड़ा ताकि वो कोई टैक्सी लेकर जल्दी से क्लब पहुँच सके और सड़क पर आकर हाथ हिलाते हुए वो टैक्सी रूकवाने की कोशिश करने लगी,बहुत देर की मशक्कत के बाद कोई भी खाली टैक्सी ना रूकी,जूली को बहुत देर हो रही थी क्योंकि क्लब पहुँचकर उसे मेकअप भी तो करना था,अब जूली को गुस्सा भी आने लगा था......
तभी एकाएक एक खाली टैक्सी उसके पास रूकी और उसके ड्राइवर ने कहा......
नमस्ते! मेमसाहब! मैं जानता था कि दुनिया गोल है,एक ना एक दिन आपसे जुरूर मुलाकात होगी।।
अरे,तुम...!जूली चौंकते हुए बोली।।
हाँ,मैं प्रकाश!पहचाना मेमसाहब! आइए....बैठिए..प्रकाश बोला।।
भला तुम्हें कैसी भूल सकती हूँ? जूली टैक्सी में बैठते हुए बोली।।
पता है उस दिन से मैं आपको कहाँ कहाँ ढ़ूढ़ता फिर रहा हूँ,प्रकाश बोला।।
क्यों? मुझे क्यों ढूंढ़ रहे हो,जूली ने रुखाई से पूछा।।
वो आपका पर्स रह गया था मेरे पास ,मैं हमेशा इसे अपने पास रखता हूँ कि क्या पता आप से कहाँ मुलाकात हो जाए? प्रकाश बोला।।
भला !तुमने इतनो दिनों से पर्स क्यों सम्भाल कर रखा है?जूली ने पूछा।।
वो....मेमसाहब...बस कुछ नहीं ऐसे ही,प्रकाश ने अपना सिर खुजाते हुए कहा।।
तुमने जवाब नहीं दिया.....जूली बोला।।
कुछ नहीं मेमसाहब! कुछ सवालों का कोई जवाब नहीं होता,ये लीजिए अपना पर्स,रूपए भी गिन लीजिए,सब वैसे का वैसे सही सलामत है,बस इसमे से मैने एक ही चीज निकाली है,प्रकाश बोला।।
वो क्या? जूली ने पूछा।।
इसमे आपकी एक तसवीर थी,जो कि मैने अपने पास रख ली है,प्रकाश बोला।।
वो क्यो? भला तुम्हें मेरी तसवीर से क्या काम? जूली ने पूछा।।
बस,पसन्द आ गई तो रख ली,प्रकाश बोला।।
और मैं! क्या मैं पसन्द नहीं आई,जूली ने पूछा।।
जी....ऐसी कोई बात नही हैं,प्रकाश बोला।।
तो फिर क्या बात है?जूली ने पूछा।
बस,ऐसे ही कुछ नहीं,वैसे आप जाएंगीं कहाँ?प्रकाश ने पूछा।।
मैं....अच्छा! नाइट स्टार क्लब जाऊँगी मैं,उसी तरफ मोटर ले लो,जूली बोली।।
लेकिन मैने तो सुना है,वो अच्छी जगह नहीं है,आप जैसी अच्छे घरों की लड़कियांँ वह नहीं जाती मेमसाहब! प्रकाश बोला।।
ज्यादा बकवास मत करो,जो कहती हूँ वैसा करो,अब तुम मुझे बताओगे कि मेरे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा? जूली गुस्से से बोली।।
बस,मैने सुना था उस क्लब के बारें में इसलिए कह दिया,प्रकाश बोला।।
तुमसे जरा ठीक से बात क्या कर ली? तुम तो सिर पर चढ़ने लगे,जूली बोली।।
माफ़ कीजिए,मेमसाहब! गलती हो गई,प्रकाश बोला।।
ठीक है....जूली बोली।।
और कुछ देर तक टैक्सी में खामोशी छाई रही,ना प्रकाश ही कुछ बोला और ना ही जूली,प्रकाश के चेहरे की श़िकन साफ साफ बता रही थी कि उसे जूली की बात का बहुत बुरा लगा है और उधर जूली भी प्रकाश से ज्यादा घुलना मिलना नहीं चाह रही थी,वो नहीं चाहती थी कि प्रकाश जैसे अच्छे इन्सान पर उसकी छाया भी पड़े,इसलिए उसने ऐसे बात की।
कुछ देर के सफ़र के बाद नाइट स्टार क्लब आ गया,जूली ने पर्स से पैसे निकाले और प्रकाश को दे दिए,प्रकाश ने जूली को बाकी के पैसे लौटाए लेकिन जूली बोली.....
बख्शीस समझकर बाकी के पैसे रख लो।।
मेमसाहब! ड्राइवर हूँ,भिखारी नहीं,ये अपनी दरियादिली किसी और को जाकर दिखाइए,प्रकाश गुस्से से बोला।।
लगता है बुरा मान गए और इतना कहकर जूली पैसे लेकर जाने लगी,तभी उसके पास क्लब का मालिक आकर उसका हाथ पकड़ते हुए बोला....
डार्लिंग! आज बड़ी देर कर दी और तुम्हारी मोटर कहाँ हैं?
वो तो रास्ते में खराब हो गई,जूली क्लब के मालिक से बात करते हुए क्लब के भीतर चली गई और प्रकाश उसे जाते हुए देखता रहा.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....