विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(२) Saroj Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(२)

दूसरे दिन सुबह के वक़्त मनोरमा का मन कुछ उदास सा था,वो अपने कमरे की खिड़की के पास खड़े होकर बाहर की ओर देख रही थी,इतवार का दिन था बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, इसलिए उसने स्कूल जाने के लिए बच्चों को नहीं जगाया और ना ही अभी तक कोई काम शुरू किया था।।
तभी धर्मवीर भी जागा और उसने मनोरमा को ऐसे परेशान सा देखा तो पूछ बैठा___
तुम वहां खिड़की के पास इतनी परेशान सी क्यों खड़ी हो?
आप मेरी परेशानी समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, मनोरमा बोली।।
मैं जानता हूं कि तुम्हारी परेशानी की वजह विश्वनाथ है, धर्मवीर बोला।।
जब जानते हैं तो उसे आपने घर में पनाह क्यों दी? मनोरमा बोली।।
वो अब सुधर चुका है, उसे अपनी गल्तियों का एहसास हो चुका है, धर्मवीर बोला।।
ये आपकी गलत़फहमी है, आपको पता है कि वो मुझे पसंद करता था और मुझसे शादी करना चाहता था लेकिन मैंने उसका प्यार ठुकराकर आपसे शादी कर ली,वो तबसे चिढ़ा बैठा है,तभी तो उसने आपकी कम्पनी का नाम भी तो खराब करना चाहा था, उसने असली दवाइयों की जगह नकली और एक्सपायरी दवाएं बाजार में उतार दीं थीं,ना जाने कितने लोग आहत हुए थे और पुलिस आपको पकड़ने आ गई थी क्योंकि कम्पनी तो आपकी थी, लेकिन उनमें से एक पुलिस वाला आपकी जान पहचान निकला,आपने उससे अच्छी तरह जांच करने को कहा तब ये बात सामने निकल कर आई कि सब किया कराया विश्वनाथ का है,तब भी तो आपने उसे माफ़ कर दिया था, फिर उसने कम्पनी में ग़बन करके गद्दारी का एक और सुबूत दे दिया और आप फिर भी उस आदमी पर भरोसा कर रहे हैं, मनोरमा रोते हुए बोली।।
तो तुम ही बताओ कि क्या करूं? उससे जाकर कह दूं कि निकल जाओ मेरे घर से तुम्हारे लिए मेरे घर में कोई जगह नहीं है, धर्मवीर बोला।।
मैंने ऐसा करने को तो नहीं कहा, मनोरमा बोली।।
तो तुम ही कोई रास्ता सुझाओ, धर्मवीर बोला।।
ठीक है तो जब तक वो हमारे साथ रह रहा है तो हमें सावधान रहना चाहिए,कुछ दिन के बाद कह देना कि वो जाकर फ़ार्म हाऊस सम्भाले, खेतों में जाकर देखें कि ठीक से काम हो रहा है या नहीं, उसे काम और रहने की जगह भी मिल जाएगी और आपको शर्मिन्दा होने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, मनोरमा बोली।।
ये तो बहुत अच्छा सुझाव है,दो चार दिन उसे यहीं रहने दो, फिर उसे कहता हूं,अभी कह दूंगा तो उसे अच्छा नहीं लगेगा, धर्मवीर बोला।।
ठीक है ,बस वो यहां ना रहें, मैं बस यही चाहती हूं,दो चार दिन तो मैं बर्दाश्त कर लूंगी, मनोरमा बोली।।
अब तो प्रसन्न हो जाओ देवी! और एक अच्छी सी स्माइल दे दो, धर्मवीर बोला।।
ये सुनकर मनोरमा मुस्कुरा पड़ी।।
अब तो चाय मिलेगी या नहीं, धर्मवीर बोला।।
बस,अभी लाई और ये भी बता दीजिए की नाश्ते में क्या लेंगे? मनोरमा ने धर्मवीर से पूछा।।
आज तो भाई हमारा बेसन का चीला खाने का मन है वो भी हरी चटनी के साथ, मैं तब तक लाॅन में जाता हूं,तुम चाय वहीं भिजवा देना,धर्मवीर बोला।।
जी बस,कुछ ही देर में तैयार किए देती हूं,इतना कहकर मनोरमा किचन में गई, उसने घर की नौकरानी लच्छों के हाथ विश्वनाथ और धर्मवीर के लिए चाय भेजी और वो बच्चों को जगाने के लिए उनके पास पहुंची, बच्चों से फ्रेश होने को कहा,तब तक उसने बच्चों का दूध तैयार किया और किचन में नाश्ता तैयार करने लगी।।
उधर लाॅन में धर्मवीर ने विश्वनाथ से पूछा___
तुम्हें रात नींद तो ठीक से आई ना!
जिसे पेट भर खाना मिल जाए और रहने को छत मिल जाए,उसे भला नींद कैसे नहीं आएगी, मैं तो रात निश्चिन्त होकर सोया, शुक्रिया दोस्त! जो तुमने अपने घर में आसरा दिया, विश्वनाथ बोला।।
शुक्रिया किस बात का दोस्त! ये तो मेरा फ़र्ज़ था, धर्मवीर बोला।।
लेकिन सभी लोग तुम जैसे अच्छे नहीं होते, विश्वनाथ बोला।।
और तभी मनोरमा ने सबको नाश्ते के लिए पुकारा, मनोरमा की आवाज सुनकर सभी डाइनिंग टेबल तक पहुंच गए,तब तक बच्चों ने भी अपना दूध खत्म कर लिया था और वो भी नाश्ता करने बैठ गए,सबने गरमागरम बेसन के चीलों का हरी चटनी के संग आनन्द उठाया, नाश्ता करने के बाद फिर सब अपने अपने काम पर लग गए।।
मनोरमा ने लच्छों से कहा कि तुम जब तक घर की साफ सफाई करो मैं नहाकर आती हूं, फिर दोपहर का खाना भी तो तैयार करना है, वैसे भी आज जागने में देर हो गई है।।
अच्छा मालकिन! आप नहाने जाइए, मैं जब तक घर की सब साफ़ सफाई कर देती हूं और मुझे बता दीजिए कि कौन सी सब्जियां बनानी है तो मैं सब्जियां भी काटकर रख दूंगी,लच्छों बोली।।
तू ऐसा कर बगीचे से थोड़ी पालक और धनिया तोड़ कर ले आ और धोकर रख देना बाक़ी मैं बाद में सोचूंगी कि दोपहर के खाने में क्या बनेगा?
ठीक है मालकिन, लच्छों बोली।।
दोपहर हो चुकी थी,खाना बनकर टेबल पर लग चुका था, मनोरमा ने लच्छों से कहा___
लच्छों जा तो सबसे कहदे कि खाना टेबल पर लग चुका है,सब खाने आ जाएं।।
जी मालकिन! और इतना कहकर लच्छों सबको बुलाने चली गई,सबके आने पर मनोरमा ने सबकी प्लेट पर खाना परोसा और सबको गरमागरम रोटियां सेंक कर देने लगी,अनवर चाचा का खाना उसने लच्छों के हाथ उनके क्वाटर में भिजवा दिया।।
तभी विश्वनाथ बोला___
वाह! मनोरमा भाभी ! खाना बहुत ही स्वाददार हैं, तुम्हारे हाथों में तो साक्षात् अन्नपूर्णा विराजमान हैं।।
ये तो मानना पड़ेगा दोस्त! मुझे अगर किसी काम से कहीं बाहर जाना पड़ जाता है तो आफ़त आ जाती है, मनोरमा के खाने की ऐसी आदत लग गई है कि अब कहीं का भी खाना राश नहीं आता, धर्मवीर बोला।।
अब आप दोनों रहने भी दीजिए, चुपचाप खाना खाइए, मनोरमा बोली।।
जो हुकुम, धर्मवीर बोला।।
और सब हंस पड़े....
फिर खाना परोसते हुए मनोरमा ने कहा___
अगले हफ़्ते बच्चों की इतवार को मिलाकर दो तीन दिन की छुट्टी है,तो क्यों ना हम सब फार्म हाउस में बिताकर आएं,क्वार का महीना है,इन दिनों मौसम भी अच्छा हो जाता है, वहां की ताजी हवा में क्यों ना कुछ दिन गुजार कर आएं।।
सुझाव तो अच्छा है लेकिन ये देखना पड़ेगा कि उस समय मेरी कोई मीटिंग ना हो, नहीं तो बेवज़ह नुकसान हो जाएगा, धर्मवीर बोला।।
तो आप देख लीजिएगा,अगर आप ब्यस्त ना हुए तो फिर चल पड़ेंगे, मनोरमा बोली।।
और ऐसे ही बातों ही बातों में सबका खाना हो गया, सबसे बाद में मनोरमा और लच्छों ने खाना खाया ,किचन साफ की और आराम करने चल पड़ी।।
रात के खाने के बाद मनोरमा ने धर्मवीर से कहा____
पता है जी!शाम को लच्छों कह रही थी कि जब हम सब दोपहर के खाने के बाद आराम कर रहे थे तो विश्वनाथ ना जाने सारे क्या ढ़ूढ़ रहा था?
लच्छों ने पूछा भी कि साहब ! कुछ चाहिए क्या?
तो विश्वनाथ बोला___
कुछ नहीं,मुझे जेल में जरा बीड़ी पीने की आदत हो गई है, इसलिए तलब लग रही थी, वही ढ़ूढ़ रहा था,
ठीक है तो मैं माली काका से बीड़ी ले आती हूं,वो बीड़ी पीते हैं, लच्छों बोली।।
रहने दो, मैं खुद ही माली से मांग लूंगा,तुम जाओ, विश्वनाथ ने लच्छों से इतना कहा और फिर कहीं चला गया, फिर आपने खुद देखा वो खाने के वक़्त वापस लौटकर आया और आपसे कह रहा था कि वो कहीं सैर के लिए गया था।।
अरे,तुम तो खामखां में शक़ करती हो उस पर,पीने लगा होगा बीड़ी, इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है और वो सैर पर ही गया होगा,तुम भी क्या लच्छों की बातों में आ जाती हो, धर्मवीर बोला।।
पता नहीं, मुझे उस पर भरोसा नहीं हो रहा, मनोरमा बोली।।
भरोसा तो करना पड़ेगा, क्योंकि भरोसे पर ही ये दुनिया कायम है और तुम अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाना बंद करके सो जाओ,ये सब फालतू की बातें मन से निकाल दो, धर्मवीर बोला।।
लेकिन इसे जल्दी ही घर से जाने को कहो, मनोरमा बोली।।
तनिक धीरज धरो,हथेली पर आम मत उगाओ, तुमने कहा ना कि बच्चों की छुट्टियां हो रहीं हैं,बस तभी सब फार्म हाउस चल पड़ेंगे और उसे वहां कोई काम सौंप कर उसे वहीं रहने को कह देंगें और हम सब वापस आ जाएंगे, धर्मवीर बोला।।
ठीक है, मनोरमा बोली।।
और अब सोने की कोशिश करो, धर्मवीर बोला।।
ठीक है आप सो जाइए, मैं कोई किताब पढ़ती हूं तो नींद खुद-ब-खुद आ जाएंगी, मनोरमा बोली।।
ठीक है और इतना कहकर धर्मवीर सो गया।।
इसी तरह की दिनचर्या से दो चार दिन ब्यतीत हो गए,अब वो दिन भी आ पहुंचा जब सब फार्म हाउस छुट्टियां बिताने जाने वाले थे,इस दौरान धर्मवीर की कोई मीटिंग भी फिक्स नहीं हुई थी, इसलिए फार्म हाउस जाने में कोई अड़चन भी पैदा ना हुई।।
सब फार्म हाउस पहुंचे,दो मोटरें गई थीं,एक मोटर में मनोरमा और बच्चे थे,जिसे ड्राइवर चाचा अनवर ले गए थे और दूसरी मोटर में विश्वनाथ और धर्मवीर गए थे।।
सब सुबह ग्यारह बजे तक पहुंच गए थे, वहां के नौकर रघुवा और उसकी मेहरारू फुलमत ने सबके नाश्ते का इंतजाम किया,चने की दाल की भरवां पूरी , कद्दू की सब्जी और ताजा बघार वाला छाछ, चूल्हे का पका हुआ नाश्ता करके सबकी आत्मा तृप्त हो गई,सबने कहा कि अब दोपहर का भोजन नहीं करेंगे,अब तो सीधे शाम को ही भोजन होगा।।
तभी मनोरमा ने फुलमत से कहा___
बस, बच्चों के लिए दोपहर को थोड़ा दूध चाहिए, क्योंकि बच्चों को आदत है दूध पीने की।।
कछु बात नहीं मेमसाहिब! ये हमार गाय है ना काली बहुत दूध देती है,सुबह तीन सेर और शाम को तीन सेर, यहां खूब जंगल है तो हरा हरा चारा चरती है इसलिए इत्ता दूध देती है,हम बच्चन खातिर दूध ले आएंगे,आप चिंता नाही न करो,फुलमत बोली।।
ठीक है फुलमत! लेकिन अब यहां साहब लोग नहीं हैं,तुम अपना घूंघट तो हटा लो, मनोरमा बोली।।
ऊ का है ना मेमसाहिब! आदत पड़ गई है घूंघट की,फुलमत बोली।।
चलो अब हम लोग थोड़ा आराम कर लेते हैं, फिर शाम को बात होगी, मनोरमा बोली।।
ठीक है मेमसाहिब! अच्छा ये और बता देतीं कि शाम के खानें में क्या खाना पसन्द करेंगी तो हम इन्तज़ाम कर लेते,फुलमत ने पूछा।।
तुम ऐसा करो,ढ़ेर सारे बैंगन और टमाटर भूनकर भरता बना लेना,साथ में अरहर की दाल और साथ में चूल्हे की रोटी, मनोरमा बोली।।
ठीक है मेमसाहिब! अब हम जाते हैं ,आप आराम कीजिए, इतना कहकर फुलमत चली गई।।
ये थे रघुवा और फुलमत जो फार्म-हाउस के सर्वेंट क्वाटर में रहते हैं और फार्म-हाउस का ख्याल रखते हैं,उनके बच्चे पास के गांव में अपने दादा-दादी के पास रहते हैं, जिनसे वो कभी कभी मिल आते हैं।।
ऐसे ही एक दिन ही फार्म-हाउस में बीता था कि रघुवा ने धर्मवीर से विनती की कि गांव के एक आदमी ने खबर दी है कि उसके पिता की तबियत खराब है और वो उन्हें रात भर के लिए देखने जाना चाहता है,साथ में फुलमत भी जाएगी, सुबह का खाना वो सबको खिलाकर ,रात के खाने का भी इंतजाम करके जाएगी और दूसरे दिन सुबह सुबह ही वापस आ जाएंगे।।
धर्मवीर ने कहा___ठीक है तुम लोग चले जाओ,
बहुत बहुत शुक्रिया साहब! भगवान आपका भला करें,इतना कहकर रघुवा चला गया।।
फुलमत ने सुबह का खाना सबको खिलाकर, रात के खाने का इंतजाम कर दिया और दोपहर के समय दोनों पति-पत्नी अपने गांव की ओर निकल गए।।
दिन ऐसे ही निकल गया,सबने रात का खाना खाया और सोने चले गए लेकिन आधी रात के वक़्त___
पिस्तौल की आवाज़ ने सबको जगा दिया,अनवर चाचा अपने क्वाटर से भागकर आए और उन्होंने सावधानी पूर्वक खिड़की से झांककर देखा___
मनोरमा की लाश फर्श पर लहुलुहान पड़ी थी लेकिन धर्मवीर कहीं नहीं दिख रहा था, फिर उसने देखा कि विश्वनाथ , धर्मवीर का शरीर घसीटते हुए लाया,शायद धर्मवीर बेहोशी में था......
और ये कहते हुए उसके हाथ में पिस्तौल थमा दी कि ले मनोरमा मेरा बदला पूरा हो गया,तूने मेरी मौहब्बत को ठुकराया था ना! और इस नामुराद धर्मवीर से शादी कर ली,इसे मैंने पहले ही बेहोशी की दवा खिला दी ताकि तेरे खून का इल्जाम मैं इस पर लगा सकूं.......

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....