अनवर चाचा ने कमरे का नज़ारा देखा तो उनके होश उड़ गए, लेकिन बच्चे.... एकाएक उन्हें बच्चों की याद आई,तब अनवर चाचा ने देखा कि विश्वनाथ , मनोरमा का खून करने के बाद , पिस्तौल धर्मवीर के हाथ में थमाकर,अनवर के क्वाटर की ओर जा रहा है,तब अनवर चाचा ने इसी बात का फायदा उठाया, जैसे ही विश्वनाथ क्वाटर में घुसा,अनवर चाचा ने विश्वनाथ को भीतर की ओर जोर से धक्का देकर, क्वाटर का दरवाजा बंद कर दिया।।
और फार्म-हाउस में आकर बच्चों को ढूंढने लगें, उन्हें करन तो मिल गया, क्योंकि वो अभी तक बिस्तर पर सो रहा था लेकिन उन्हें लाज कहीं दिखाई ना दी,लाज को ढूंढने का उनके पास वक़्त भी नहीं था, इसलिए उन्होंने पहले करन को लेकर वहां से भागना उचित समझा।।
अनवर चाचा ने सोते हुए करन को गोद में उठाया और मोटर की पीछे की सीट पर उसे लिटा दिया फिर मोटर को स्टार्ट कर पुलिस स्टेशन की ओर रवाना हो गए, सुनसान रास्ता और सड़क के दोनों किनारों पर लगे लम्बे लम्बे पेड़,बस और कुछ नहीं,अनवर चाचा बदहवास से मोटर भगाए लिए जा रहे थे, लेकिन ये क्या अभी आधा रास्ता पार ही किया था कि एकाएक मोटर रूक गई,अनवर चाचा तो मुसीबत में पड़ गए,अब वो मोटर से उतरे, उन्होंने करन को गोद में उठाया और पैदल ही भागने लगे,तभी उन्हें लगा कि कोई मोटर आ रही है,अनवर चाचा को शक़ हो गया कि कहीं ये विश्वनाथ ना हो,ये सोचकर वो सड़क उतरकर कच्ची जमीन की झाड़ियों में जाकर छुप गए,अनवर चाचा की रूकी हुई मोटर को देखकर विश्वनाथ ने भी मोटर रोक दी और वो अनवर चाचा को यहां वहां ढ़ूढ़ने लगा, लेकिन उसे अनवर चाचा कहीं भी नज़र ना आए।।
फिर विश्वनाथ ने अपनी मोटर स्टार्ट की और चला गया,इधर अनवर चाचा बच्चे को लेकर पैदल चले जा रहे थे,तभी उन्हें एक ट्रक आता हुआ दिखाई दिया, उन्होंने दूर से ही हाथ देकर ट्रक वाले को ट्रक रोकने के लिए कहा।।
ट्रक ड्राइवर ने ट्रक रोक दिया,अनवर चाचा उसके पास पहुंचकर बोले___
भाई! थोड़ी मदद चाहिए,ये बच्चा मुसीबत में है, यहीं पास में ही एक पुलिस चौकी है,थोड़ा मुझे पुलिस चौकी तक छोड़ दोगे।।
जी पाजी! वाहेगुरु इस बच्चे की रक्षा करें,तुस्सी जल्दी से लारी बिच बैठ जाओ, मैं अभी पुलिस चौकी पहुंचाए देता हूं,वो ट्रक ड्राइवर बोला।।
शुक्रिया सरदार जी! आप इस वक़्त मेरे लिए खुद़ा बनकर आए हैं,अनवर चाचा बोले।
शुक्रिया की कोई बात नहीं है पाजी! इंसान ही तो इंसान के काम आता है,तुस्सी जल्दी से बैठो, सरदार जी बोले।।
और अनवर चाचा जल्दी से ट्रक में बैठे और पुलिस चौकी की ओर चल पड़े,कुछ ही देर में ट्रक ड्राइवर ने ट्रक पुलिस चौकी के सामने खड़ा कर दिया और बोला__
पाजी! जल्दी करो,क्या मैं भी आपके संग चल सकता हूं?ट्रक ड्राइवर ने पूछा।।
हां, क्यों नहीं , सरदार जी आप भी चलिए,अनवर चाचा बोले।।
लेकिन जैसे ही अनवर चाचा ट्रक से उतरे तो उन्होंने देखा कि विश्वनाथ जिस मोटर में आया था वो मोटर पहले से ही पुलिस चौकी के सामने खड़ी थी,मोटर को देखकर अनवर चाचा बोले.....
सरदार जी! बच्चे को आप अपने पास रखो, मैं चौकी के भीतर जा कर देखता हूं कि उस कमीने ने पुलिस से क्या कहा है?
पाजी!पूरी बात तो बताओं, सरदार ने पूछा।।
उस आदमी ने इस बच्चे की मां को गोली मारकर,इसके बेहोश पिता के हाथ में पिस्तौल थमा दी और यहां रिपोर्ट लिखाने आया है कि इसके पिता ने ही इसकी मां को मारा है,इसकी बड़ी बहन भी घर से गायब थी, मैं इसकी जान बचाने के लिए इसे ले भागा,
सरदार जी मैं पुलिस चौकी के भीतर जा रहा हूं,अगर देर हो जाए तो आप इस बच्चे को लेकर भाग जाना, मुझे रेलवे स्टेशन पर मिलना, वहां बनवारी लाल की पान की दुकान है, मेरा उसी दुकान पर इंतजार करना।।
जी,ठीक है पाजी! सरदार बोला।।
अनवर चाचा पुलिस चौकी के भीतर गए,तो वहां विश्वनाथ पहले से बैठा था,अनवर चाचा को देखते ही पुलिस के सामने विश्वनाथ घड़ियाली आंसू बहाते हुए बोला____
आप आ गए अनवर चाचा! देखिए ना धर्मवीर ने मनोरमा भाभी का ख़ून कर दिया है,पता नहीं कौन सा भूत सवार था उस पर, मैं फार्म हाउस का ताला लगाकर आया हूं कि कहीं वो भाग ना जाए, दोनों बच्चों की जिम्मेदारी अब मैं लेता हूं, मैं ही अब उन्हें पाल-पोस कर बड़ा करूंगा,जाइए इन्स्पेक्टर साहब आप फौरन धर्मवीर को गिरफ्तार कीजिए,ये अनवर चाचा हैं, धर्मवीर के ड्राइवर, इन्होंने कुछ नहीं देखा,ख़ून तो मैंने होते हुए देखा था,ये बेकसूर हैं।।
अब अनवर चाचा को कुछ नहीं सूझा कि वो अब क्या बोलें?
विश्वनाथ की अगली चाल का वो अन्दाजा नहीं लगा पा रहे थे, इसलिए उस समय उन्होंने वहां पर चुप रहना ही ठीक समझा, लेकिन अभी तो लाज को भी ढूंढ़ना है और धर्मवीर लल्ला को इस कमीने की करतूत भी बतानी है,करन तो सुरक्षित हाथों में है,सरदार जी रेलवे स्टेशन में मिलेंगे तो करन को मैं वापस ले लूंगा लेकिन अभी देखता हूं कि ये क्या करने वाला है?
तभी विश्वनाथ ने अनवर चाचा के पास जाकर कुछ फुसफुसाया,जिसे सुनकर अनवर चाचा दंग रह गए,
जब कुछ देर हो गई और अनवर चाचा नहीं लौटे तो सरदार बच्चे को लेकर रेलवे स्टेशन पहुंच गए।।
तभी अनवर चाचा बोले___
मोटर रास्ते में बंद पड़ गई थी,शायद पेट्रोल खत्म हो गया था,ये मोटर मुझे धर्मवीर लल्ला ने सौंपी थी, इसलिए उनकी अमानत फार्म-हाउस पर खड़ी करके चला जाऊंगा,
ठीक है तुम्हें पेट्रोल मिल जाएगा, इंस्पेक्टर साहब बोले।।
चलो मोटर फिर से मिल जाएगी तो करन को बचाने में आसानी होगी, अनवर चाचा ने मन मे सोचा।।
पुलिस ,अनवर चाचा और विश्वनाथ के संग फार्म-हाउस पहुंची और धर्मवीर को गिरफ्तार कर लिया, पुलिस के पहुंचने के पहले ही धर्मवीर को कुछ कुछ होश आ गया था और उसने अपने हाथ में पिस्तौल देखी,फिर मनोरमा की ख़ून से लथपथ लाश़ देखकर वो चीख पड़ा लेकिन जब तक उसे कुछ समझ में आता पुलिस वहां पहुंचकर उसे हथकड़ियां लगा चुकी थी।।
ये क्या कर रहे हैं? इंस्पेक्टर साहब! मैंने क्या किया? धर्मवीर ने चीखते हुए पूछा।।
तुमने अपनी पत्नी की हत्या की है,उसी जुर्म में तुम्हें गिरफ्तार किया जाता है, मौका-ए-वारदात पर तुम्हारे हाथों से ये पिस्तौल और तुम्हारी पत्नी की लाश़ बरामद हुई है, इंस्पेक्टर साहब बोले।।
लेकिन इससे ये साबित तो नहीं होता कि मनोरमा का ख़ून मैंने किया है, धर्मवीर बोला।।
तुम्हें ख़ून करते विश्वनाथ बाबू ने देखा है, इंस्पेक्टर साहब बोले।।
ये कमीना झूठ बोल रहा है,ये धोखेबाज है,इसने शायद मुझे बेहोशी की दवा खिलाई थी जिससे मुझे बहुत जोर की नींद आने लगी थी और मैं सोफे पर ही लेट गया, इसके बाद मुझे कुछ भी याद नहीं है, धर्मवीर बोला।।
तुम झूठ बोलते हो धर्मवीर! मैंने तुम्हें मनोरमा भाभी पर गोली चलाते देख लिया था इसलिए डर कर मैंने फार्म-हाउस में ताला लगा दिया कि कहीं तुम मुझे भी ना मार डालो और मैं फ़ौरन पुलिस को ख़बर देने पहुंच गया,ना हो तो अनवर चाचा से पूछ लो,ये भी पुलिस चौकी गए थे।।
बोलिए अनवर चाचा! क्या मैं मनोरमा का ख़ून कर सकता हूं, धर्मवीर ने अनवर चाचा से पूछा।।
लल्ला! मैंने कुछ नहीं देखा, मैं तो अपने क्वाटर में था,अनवर चाचा बोले।।
तो शायद आप भी इस कमीने के साथ मिले हुए हैं, धर्मवीर बोला।।
धोखेबाजी का इल्ज़ाम लगते देख अनवर चाचा की आंखें भर आईं लेकिन वो कुछ बोल ना सकें क्योंकि उनसे पुलिस चौकी में विश्वनाथ ने फुसफुसाकर कहा था कि लाज उसके कब्जे में हैं,कुछ मत बोलना।।
तभी धर्मवीर ने पूछा___
मेरे बच्चे कहां है?
विश्वनाथ बोला___
तुम्हें उनकी चिंता करने की जरुरत नहीं है,वो अनवर चाचा के पास सुरक्षित हैं।।
अब अनवर चाचा बुरी तरह फंस चुके थे क्योंकि अगर वो कुछ बोलते तो बच्चों को अगवा करने का इल्ज़ाम उन पर लग सकता था, विश्वनाथ उन्हें भी नहीं छोड़ता, इसलिए मौके की नज़ाकत को समझते हुए वो कुछ नहीं बोले, चुपचाप तमाशा देखते रहे।।
पुलिस ने मनोरमा की लाश़ को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और धर्मवीर को गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे डाल दिया, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और पिस्तौल पर लगें फिंगरप्रिंट की रिपोर्ट आने के बाद ही धर्मवीर पर जुर्म साबित हो सकता था।।
फार्म-हाउस के बाहर अब अनवर चाचा और विश्वनाथ ही थे___
विश्वनाथ ने अनवर चाचा से कहा कि कुछ बोलें तो लाज को कभी जिंदा ना देख सकोगे और उसे मैंने ही फार्म-हाउस के तहखाने में कैद कर रखा है,पहले तुम ये बताओं करन कहां है?
मुझे नहीं मालूम,अनवर चाचा बोले।।
तू ऐसे नहीं बताएगा, मैं इस घर में आग लगाए देता हूं,तो लाज भी नहीं बचेगी, विश्वनाथ बोला।।
नहीं... नहीं...ऐसा मत करों, मैं बताता हूं कि करन कहां है?अनवर चाचा बोले।।
तो जल्दी बताओ, विश्वनाथ बोला।।
मैं उसे शहर के बाहर वाले मंदिर के पंडित जी के पास छोड़कर आया हूं,अनवर चाचा ने झूठ बोलते हुए कहा।।
ठीक है तो अभी उसे लेकर आओ, विश्वनाथ बोला।।
मैं लेकर आता हूं तुम बच्ची को कुछ मत करना,अनवर चाचा बोले।।
अब तुमने बच्चे के बारे में बता दिया है, इसलिए अब तो मैं इस घर में आग लगा सकता हूं फिर विश्वनाथ ने मोटर की डिग्गी से शराब की दो तीन बोतलें निकाली और फार्म-हाउस पर जाकर तोड़ दीं, जिससे शराब फैल गई और विश्वनाथ ने फैली हुई शराब पर लाइटर से आग लगा दी,कुछ ही देर में फार्म-हाउस ने पूरी तरह आग पकड़ ली और फार्म-हाउस धू धू करके जलने लगा,
अनवर चाचा ने कहा कि ऐसा मत करो विश्वनाथ! जहन्नुम में भी जगह नसीब ना होगी।।
मुझे सारे सुबूत मिटाने थे,जो कि ऐसे ही मिट सकते हैं,आज रात मेरा बदला पूरा हुआ,अब मैं शुकून से सो सकता हूं, तुम बच्चे को लेकर जल्दी आओ, विश्वनाथ बोला।।
हां! जाता हूं लेकिन तुम बहुत ही ग़लत कर रहे हों,अनवर चाचा बोले।।
इतना कहकर अनवर चाचा मोटर में बैठे मोटर स्टार्ट की और जाने लगे तो विश्वनाथ बोला___
ठहरो! मुझे तुम पर भरोसा नहीं है, मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा,अनवर चाचा तो तैयार ही बैठे, वो मोटर को तेज़ रफ़्तार में विश्वनाथ की ओर ले गए और उसे बहुत जोर की टक्कर मारकर आगे बढ़ गए,करन को बचाने,वो कुछ ही देर में स्टेशन पहुंच गए, उन्होंने देखा कि बनवारी लाल की दुकान पर सरदार जी उनका करन के साथ इंतजार कर रहे हैं,
उन्होंने सरदार जी का शुक्रिया अदा किया, सरदार जी अपना ट्रक लेकर चले गए और इधर अनवर चाचा ने कहीं का टिकट लिया और करन को लेकर रेलगाड़ी में चढ़ गए।।
इधर विश्वनाथ के पैर में बहुत जोर की चोट आई थी,वो ठीक से चल नहीं पा रहा था,वो घिसट घिसट कर मोटर तक पहुंचा और उसमें बैठकर उसे स्टार्ट कर,शहर के बाहर वाले मंदिर की ओर चल दिया,कुछ देर के बाद पता चला कि वहां मन्दिर तो है लेकिन सालों हो गए, वहां कोई पुजारी जी नहीं रहते, विश्वनाथ को समझ में आ गया था कि अनवर ने उससे झूठ बोला है,हो ना हो अनवर ,करन को लेकर रेलवे स्टेशन गया होगा और विश्वनाथ ने अब स्टेशन का रूख़ किया___
क्रमशः....
सरोज वर्मा....