विश्वनाथ ने पीटर से कहा....
इन दोनों को अपने अड्डे पर ले चलो,अभी बताता हूँ इन्हें कि विश्वनाथ से पंगा लेने का क्या अन्जाम होता है?
रंगा!अड्डे पर ही इसके भाई को फोन करके कह दो कि ये दोनों मेरे कब्जे में है अगर ज्यादा चूँ-चपड़ की तो इन दोनों का भेजा उड़ाने में ज्यादा टाइम नहीं लगेगा मुझे।।
यस बाँस,रंगा बोला।।
और पीटर लाज और प्रकाश को मोटर में बैठाकर अड्डे की ओर रवाना हो गया लेकिन विश्वनाथ को ये पता नहीं चला कि विकास वहीं पर छिपा हुआ था,आज वो दाढ़ी-मूँछ लगाकर आया था इसलिए विश्वनाथ ने उसे नहीं पहचाना।।
विश्वनाथ भी क्लब से बाहर आकर दूसरी मोटर में जा बैठा और वो भी अड्डे की ओर चला गया,तब विकास ने सोचा कि ये खबर करन तक पहुँचानी बहुत जरूरी है कि लाज दीदी और प्रकाश भइया को विश्वनाथ ने अपने कब्जे मे ले लिया है,तभी कुछ हो सकता है।।
विकास फौरन टैक्सी में बैठा और पुलिसचौकी की ओर चल पड़ा,विकास पुलिसचौकी पहुँचने ही नहीं पाया था कि करन के पास एक टेलीफोन आया....
इन्सपेक्टर करन! मैं रंगा बोल रहा हूँ,तेरी बहन लाज और वो सी.ई.डी.आँफिसर प्रकाश ,विश्वनाथ के कब्जे में हैं अगर उनका भला चाहते हो तो फौरन विश्वनाथ के अड्डे पर अपने बाप और अनवर के साथ पहुँच जाओ,हाँ और ध्यान रहें अपने पुलिस साथियों को लाने की कोई जुरूरत नहीं है,नहीं तो अपनी बहन का अन्जाम सोच लेना।।
कमीने मेरी बहन को कुछ हुआ तो तेरी बोटी बोटी नोच लूँगा,करन चीखा।।
इन्सपेक्टर ! ज्यादा चीख मत,काम पर ध्यान दें,रंगा बोला।।
तुम जैसा कहोगे मैं करूँगा,लेकिन मेरी बहन को कुछ मत करना,करन बोला।।
अब आया ना लाइन पर,ध्यान से सुन कि कहाँ आना है? और रंगा ने पता बताकर टेलीफोन काट दिया।।
रंगा की बताई हुई जगह पर करन ने बिना साथियों के जाने की तैयारी कर लीं,तब तक विकास भी पहुँच गया और उसने सारी बात कह सुनाई तभी करन बोला.....
हाँ!, मेरे पास भी विश्वनाथ के साथी का टेलीफोन आया था,उसने मुझे वहाँ पापा और अनवर चाचा के साथ बुलाया है।
मैं भी चलूँगा,विकास बोला।।
लेकिन कैसे?चौथा इन्सान वहाँ कैसे जाएगा?करन बोला।।
करन! तुम जाओ,मैं तुम्हारे पीछे पीछे आता हूँ,विकास बोला।।
लेकिन वहाँ खतरा है,तुम ऐसा करो पुलिस को साथ लेकर पहुँचो,करन बोला।।
नहीं! उनलोगों को अगर पुलिस के बारें मे भनक भी लग गई तो लाज दीदी और प्रकाश भइया की जान को खतरा हो सकता है,विकास बोला।।
ऐसा करते हैं तुम धर्मवीर अंकल और अनवर चाचा के साथ वहाँ पहुँचो,पीछे से मै भी पहुँच जाऊँगा,पुलिस ले जाने के लिए मै गिरधारी अंकल से कहता हूँ,वो पुलिस को खब़र कर देगें और पुलिस भी पहुँच जाएगी,विकास बोला।।
हाँ! यही सही रहेगा,करन बोला।।
तभी करन के पुलिसचौकी के टेलीफोन की घंटी दोबारा बजी,करन ने टेलीफोन उठाया तो उधर से सेठ गिरधारीलाल जी बोल रहे थे,उनकी आवाज़ सुनकर करन ने पूछा....
जी! डैडी कहिए...
बेटा गजब हो गया,गिरधारीलाल जी बोले।।
क्या हुआ डैडी?,करन ने पूछा।।
मेरे आँफिस में अभी विश्वनाथ का टेलीफोन आया था,उसने शर्मिला और सुरेखा को उठवा लिया है और अपने अड्डे पर ले गया है,अब क्या होगा बेटा! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा,गिरधारी लाल जी बोले।।
हाँ! डैडी ! लगता है उसे सारी सच्चाई पता हो गई है,उसने लाज दीदी और प्रकाश भइया को भी उठवा लिया है,करन बोला।।
क्या कहते हो बेटा? गिरधारीलाल जी बोले।।
हाँ! मेरे पास भी उसके किसी आदमी का टेलीफोन आया था,करन बोला।।
बेटा! अब क्या करें, गिरधारीलाल जी बोले।।
उसने मुझे पापा और अनवर चाचा के साथ उसके अड्डे पर आने को कहा है,करन बोला।।
बेटा! वहाँ तो बड़ा खतरा होगा,तुम तीनों वहाँ कैसे जाओगे?गिरधारीलाल जी बोले।।।
लेकिन डैडी जाना तो पड़ेगा ना!दीदी और प्रकाश भइया को तो किसी भी हालत मे बचाना ही होगा,करन बोला।।
हाँ!उन्हें मुसीबत में नहीं छोड़ सकते,गिरधारीलाल जी बोले।।
तो फिर मैं पापा और अनवर चाचा को जाकर ये बात बताता हूँ और फिर उनके साथ चूना पत्थर की खादानों वाले अड्डे पहुँच जाऊँगा,इसी जगह बुलाया गया है मुझे,करन बोला।।
तो ठीक है तुम निकलो और विकास से कहो कि मुझे भी साथ लिवा ले,गिरधारीलाल जी बोले।।
हाँ! यही सहीं रहेगा,करन बोला।।
और बारी बारी से सब अपनी योजना अनुसार चूना पत्थर की खादानों वाले अड्डे की ओर चल पड़े।।
और उधर प्रकाश के घर में विश्वनाथ के कुछ गुण्डे घुसे,प्रकाश की माँ ने पूछा...
कौन हो तुम लोंग? और घर के भीतर क्यों घुसे चले आ रहे हो?
बुढ़िया! तुझे तेरे बेटे की करतूत बताने आए हैं ,डेविड बोला।।
क्या किया है मेरे बेटे ने? सुभद्रा ने पूछा।।
लगता है तुझे उसने बताया नहीं कि वो सी.आई.डी.में हैं,उसने हमारे बाँस से पंगा लेकर अच्छा नहीं किया,उसे हमारे बाँस ने अगवा करके अपने अड्डे पर रखा है,तुझे भी वहीं ले जाने आएं हैं,डेविड बोला।।
क्या किया है तुमने मेरे बेटे के साथ?सुभद्रा ने पूछा।।
बस ये समझ ले कि उसका और तेरा आखिरी वक्त आ गया है,तेरा छोटा बेटा फरार है,उसका भी यही हश्र होगा जो तेरा होने वाला है,डेविड बोला।।
जैसे ही सुभद्रा ने बचाव ...बचाव...चिल्लाया तो डेविड ने सुभद्रा के मुँह पर हाथ रखते हुए अपने साथियों से कहा.....
बुढ़िया के हाथ पैर और मुँह बाँधकर मोटर की डिग्गी में डालो,ताकि जुबान ना खोल पाएं और यही किया गया।।
वे गुण्डे सुभद्रा को भी मोटर की डिग्गी में डालकर अड्डे की ओर ले गए।।
उधर शकीला के घर पर भी बिल्ला अपने साथियोँ के साथ पहुँचा और उसे देखते ही शकीला बोली..
तुम लोंग यहाँ क्या कर रहे हों?
तेरी खातिरदारी करने आए हैं,बिल्ला बोला।।
खातिरदारी....वो क्यों? शकीला ने पूछा।।
विश्वनाथ बाँस को धोखा देने की खुशी में,बिल्ला बोला।।
मैने कोई धोखा नहीं दिया है विश्वनाथ साहब को,वो बच्ची और उसके घरवालें बेकसूर थे,इसलिए मैने उनका साथ दिया और मुझे इस बात का कोई भी अफसोस नहीं है,शकीला बोली।।
अफसोस तो तुझे अब अपनी हालत देखकर होगा शकीला बानों!बिल्ला बोला।।
अब मेरा नहीं विश्वनाथ का बुरा वक्त आ गया है,उसका जो हाल करन करेगा ना ! उसकी तो कभी विश्वनाथ ने कल्पना भी नहीं की होगी,शकीला बोली।।
बहुत ज्यादा बोलती है,इसके भी हाथ पैर बाँधकर मोटर में डालो,बिल्ला ने अपने साथियों से कहा।।
और शकीला को भी विश्वनाथ के अड्डे ले जाया गया।।
वहाँ विश्वनाथ के अड्डे पर प्रकाश और लाज को अलग अलग खम्भों से बाँध दिया गया,फिर विश्वनाथ आया और बोला.....
तो लैला-मजनू यहाँ बँधे हैं,पहले लैला का काम तमाम करूँ या मजनूँ का।
हिम्मत है तो हाथ खोलकर दिखा कुत्ते! फिर बताता हूँ,प्रकाश बोला।।
छी...छी...सी.आई.डी.आँफिसर साहब ! आपके मुँह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं,विश्वनाथ बोला।।
और तू जो ये काम कर रहा है,वो अच्छा कर रहा है क्या? प्रकाश बोला।।
मैं काम करना ही नहीं चाहता था,लेकिन तुम लोगों ने मजबूर कर दिया,इतने दिनों से मेरे पीठ पीछे मेरे खिलाफ साजिशें चल रही थीं और मुझे है कि पता ही नहीं चला,विश्वनाथ बोला।।
तू कितनी भी कोशिश कर ले विश्वनाथ! तूने जो कर्म किए थे उनकी सज़ा तो तुझे मिलकर ही रहेगी,प्रकाश बोला।।
ओहो...सज़ा दोगे तुम लोंग मुझे,किसी के बाप में दम नहीं है कि मुझे सजा दे,विश्वनाथ बोला।।
कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं विश्वनाथ! कब तक बचेगा तू,प्रकाश बोला।।
ऐसे कानून के हाथ काटने का दम रखता है विश्वनाथ,विश्वनाथ बोला।।
तूने अगर अपनी माँ का दूध पिया है तो कानून का दम भी देख लेना,जमीन की धूल चाटते नज़र आओगे,प्रकाश बोला।।
अपनी माँ का तो मुझे पता नहीं लेकिन तेरी माँ को भी हमने यहीं बुलवा लिया है,मैने सोचा अन्तिम समय में दोनों माँ बेटे आपस में मिल लें,विश्वनाथ बोला।।
कमीने! तू इतना गिरा हुआ है,तूने मेरी माँ को भी नहीं छोड़ा,प्रकाश बोला।।
कैसे छोड़ देता सी.आई.डी आँफिसर साहब ?तुम लोगों ने भी तो नहीं छोड़ा मुझे,विश्वनाथ बोला।।
तेरी यही औकात थी जो तूने इतने साल सबको धोखा दिया,लाज की माँ का खून किया ,तेरी वजह से उन सबकी जिन्दगी तबाह हो गई,प्रकाश बोला।।
इसकी माँ ने मुझसे ठुकराया था,विश्वनाथ बोला।।
तो तूने इस तरह से उन सबसे बदला लिया,प्रकाश बोला।।
क्यों नहीं लूँगा बदला? आखिर मेरा कुसूर ही क्या था?जो उसने मुझे ठुकराया,विश्वनाथ बोला।।
मेरी माँ तुमसे प्यार नहीं करती थी,वो पापा को चाहती थी ,लाज बोली।।
मैं ये सब कुछ नही जानता,मुझे बस बदला लेना था और मैने ले लिया,विश्वनाथ बोला।।
और अब मैं बदला लूँगी,तेरे हर बुरे काम का हिसाब करूँगी विश्वनाथ! लाज बोली।।
ऐ...लडकी! चीख मत,नहीं तो जुबान खींच लूँगा,विश्वनाथ बोला।।
चिखूँगीं और तेरे सारे बुरे कर्म सबको बताऊँगीं,लाज बोली।।
तू ये दिन देखने के लिए जिन्दा रहेगी तब ना! विश्वनाथ बोला।।
तू हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता विश्वनाथ! प्रकाश बोला।।
वो तो वक्त ही बताएगा,विश्वनाथ बोला।।
तभी डेविड आया और विश्वनाथ से बोला...
आपका काम हो गया है बाँस!
अच्छा तो कहाँ हैं वो,ठीक से खातिरदारी की ना उनकी,विश्वनाथ बोला।।
यस बाँस! बहुत शोर मचा रही थी,मुँह भी बाँध रखा है,डेविड बोला।।
लीजिए आपकी माँ को भी मैने बुला लिया, सोचा आखिरी बार माँ बेटे मिल लें,विश्वनाथ ने प्रकाश से कहा।।
कुत्ते! छोड़ दे मेरी माँ को,सुभद्रा को देखते ही प्रकाश ,विश्वनाथ से बोला।।
सुभद्रा के आँखों की पट्टी खोलते ही वो बोली.....
प्रकाश....बेटा! तुझे भी बाँध रखा है।।
ऐ....बुढ़िया! मिल ले अपनी बहु से ,फिर क्या पता कभी मिलना हो या ना हो? विश्वनाथ, सुभद्रा से बोला।।
ये सब क्या हो रहा है? प्रकाश! सुभद्रा ने पूछा।।
बस माँ! मुसीबत आ गई है,प्रकाश बोला।।
तभी एकाएक विश्वनाथ को देखकर सुभद्रा को कुछ याद आया और वो बोली....
प्रकाश बेटा! ये ही तेरे बाप का हत्यारा,उस रात इसने ही तेरे बाप का कत्ल किया था।।
क्रमशः...
सरोज वर्मा....