विश्वासघात--(सीजन-२)--(अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात--(सीजन-२)--(अन्तिम भाग)

बुढ़िया इतना मत चीख,हाँ! मैं ही तेरे पति का हत्यारा हूँ और तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती और ना ही तेरा बेटा,विश्वनाथ बोला।।
बेटा! उस रात हम लोंग किसी की शादी से लौट रहे थे,सड़क के किनारे लगे लैम्पपोस्ट की रोशनी थी,सुनसान सड़क थी,तुम दोनों छोटे थे,रास्ते में ये अपने दो तीन साथियों के साथ खड़ा था और इसने किसी के पेट पर चाकू भोंक दिया तेरे पिताजी उस समय हवलदार थे तो उन्होंने अपना फर्ज निभाया और इसे रोकने की कोशिश की थी तो ये तेरे पिताजी का खून करके फरार हो गया और मैं तुम दोनों के साथ सड़क पर रोती बिलखती रही,रात का समय था तो कोई भी उस ओर से ना गुजरा,जब तक लोंग आए तब तक बहुत देर हो चुकी थी,अगर तुम्हारे पिताजी को समय से अस्पताल ले जाया जाता तो शायद उनकी जान बच जाती,सुभद्रा बोली।।
कुत्ते! अब मैं तुझे नहीं छोड़ूगा,प्रकाश बोला।।
बर्खुरदार! मैं तुझे नहीं छोड़ूगा तो तू मुझे कैसे छोड़़ पाएगा? विश्वनाथ बोला।।
एक बार मेरे हाथ पैर खोल दे,फिर तमाशा देख,प्रकाश बोला।।
तुम्हें क्या लगता है? तुम ऐसा कहोगे और मैं ये गलती कर दूँगा,विश्वनाथ बोला।।
तुझे तेरे किए की सज़ा जरूर मिलेगी,सुभद्रा बोली।।
चुप कर बुढ़िया! तेरे जैसे ना जाने कितने लोंग मुझे बददुआएँ देते रहते हैं,लेकिन आज तक मेरा कुछ नहीं बिगड़ा,विश्वनाथ बोला।।
वो ऊपरवाला सबके साथ न्याय करता है,तेरे पाप का घड़ा फूट चुका है,सुभद्रा बोली।।
तुम लोगों की गालियाँ सुनने के सिवाय मुझे और भी बहुत काम है,मैं बाहर जाकर देखता हूँ कि वो करन अपने बाप के साथ अभी तक यहाँ क्यों नहीं पहुँचा और इतना कहकर विश्वनाथ बाहर चला गया.....
बाहर जाकर उसने अपने साथियों से पूछा.....
वो हरामजादा करन अपने बाप के साथ आया कि नहीं....
बाँस! अभी तक तो नहीं आया,विश्वनाथ का साथी बोला....
तभी विश्वनाथ को एक मोटर आती हुई दिखाई दी और उसने अपने साथियों से सावधान रहने को कहा....
और वो मोटर कुछ देर में अड्डे के करीब आ खड़ी हुई और उसमे से सुरेखा और शर्मिला उतरी ,जिनके हाथों और मुँह पर पट्टी थी,विश्वनाथ के साथी भी साथ में उस मोटर से उतरे और उनमें से एक विश्वनाथ से आकर बोला.....
बाँस! ये रहीं दोनों,बहुत हाथ-पैर मार रही थीं,अब दोनों का दिमाग दुरूस्त हो जाएगा।।
इनका दिमाग़ तो मैं ऐसा दुरूस्त करूँगा कि फिर कभी हाथ पैर हिलाने के लायक ही नहीं रहेंगीं,जाओ इन्हें भी जाकर बाँध दो,याद रहें इन्हें उनसे दूर ही बाँधना,विश्वनाथ बोला।।
यस बाँस! इतना कहकर विश्वनाथ के साथी सुरेखा और शर्मिला को लेकर अड्डे के भीतर चले गए।।
कुछ ही देर में करन भी अपने पिता धर्मवीर और अनवर चाचा के साथ आ पहुँचा,उन्हे देखकर विश्वनाथ बोला....
तुम लोगों के पास जो भी हथियार हो मुझे दे दो और अपने हाथ ऊपर करके मेरे साथ चलो...
करन ने अपना पिस्तौल निकाला और विश्वनाथ की ओर फेका और फिर तीनों अपने अपने हाथ ऊपर करके धीरे धीरे आगें बढ़ने लगें ,साथ में विश्वनाथ भी पिस्तौल ताने उनके पीछे पीछे चलने लगा,तभी मोटर की डिग्गी में से विकास भागकर आया और विकास ने विश्वनाथ के पीछे से वार किया और वो धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा.....
मौका देखते ही करन भी विश्वनाथ पर झपटा और उसकी काँलर पकड़कर उसे मारने लगा,करन , विश्वनाथ पर मुक्के पर मुक्के धरने लगा....ढिशूम...ढ़िशूम...
विकास ने भी मौका ना गँवाते हुए विश्वनाथ की हालत खस्ता कर दी,तभी मार पीट की आवाज़ सुनते ही भीतर से और भी गुण्डे आ पहुँचे,उन्होंने अपना दम लगाकर विकास और करन की पिटाई शुरु कर दी,उनकी तादाद ज्यादा थी और ये गिने चुने चार लोंग,कुछ देर की लात-मुक्को के बाद विकास,करन,धर्मवीर और अनवर चाचा को पकड़ लिया गया और उन्हें भी सबके साथ बाँध दिया गया....
तब विश्वनाथ ने करन से कहा.....
मैने कहा था ना कि कोई धोखाधड़ी मत करना लेकिन तू विकास को अपनी मोटर की डिग्गी में छुपाकर लाया,अब इसका अन्जाम तो तुझे भुगतना ही पड़ेगा,फिर विश्वनाथ ने दिलावर से कहा.....
दिलावर! ले जा तू गिरधारीलाल की बेटी को दूसरे अड्डे फिर देखता हूँ उसे कौन बचाता है?
हरामजादे ! मैं तुझे जिन्दा नहीं छोड़ूगा अगर तूने मेरी बहन को हाथ भी लगाया,करन बोला।।
ओहो....कितना कष्ट हो रहा है ना अपनी बहन के लिए,अब तो इससे ज्यादा कष्ट होने वाला है जब दिलावर इसकी इज्जत तार तार करेगा,विश्वनाथ बोला।।
कमीने ! तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगा,विकास बोला।।
तुझे क्यों इतनी तकलीफ़ हो रही है? ये तेरी महबूबा है क्या? विश्वनाथ बोला।।
और फिर दिलावर , सुरेखा को ले जाने लगा तो सुभद्रा बोली....
पापी! कुछ तो डर भगवान से,ऊपर जाकर क्या मुँह दिखाएगा?
मैं किसी से नहीं डरता और तुम लोंग ये भीख माँगना बंद करो,विश्वनाथ बोला।।
और दिलावर सुरेखा को बाहर लेकर आया.....
सुरेखा चिल्लाती रही ,छोड़ दो....मुझको....छोड़ दो मुझको....
दिलावर जैसे ही सुरेखा को थोड़ी दूर लेकर गया तो गिरधारीलाल जी डिग्गी से निकले वें भी विकास के साथ डिग्गी में छुपकर आएं थे और पुलिस को भी खबर कर आएं थे,वें डिग्गी में पुलिस के आने का इन्तजार कर रहे थे,वे निकलकर बाहर आएं और चुपके से एक बहुत बड़ा पत्थर उठाकर दिलावर के पीछे से उसके सिर पर वार किया ,सिर पर चोट लगते ही दिलावर नीचें गिर पड़ा और उन्होंने फिर से उसी पत्थर से उसके सिर पर वार किया और जब तक मारते रहे जब तक कि दिलावर बेहोश ना हो गया।।
दिलावर के बेहोश होते ही उन्होंने सुरेखा के हाथों की रस्सी खोली और सुरेखा अपने पिता के गले लग पड़ी फिर दोनों उस बेहोश गुण्डे को घसीटकर उसके हाथ पैरो में रस्सी बाँधकर एक बड़े से टीले के पीछे छोड़ आए ताकि किसी को कुछ पता ना चले... ....
तब गिरधारीलाल जी सुरेखा से बोले....
बेटी! जब तक पुलिस नहीं आ जाती तब तक हमें बड़ी सावधानी से काम लेना होगा नहीं तो सबकी जान को खतरा हो सकता है।।
लेकिन डैडी! हम तो दो लोंग हैं,इतने सारे गुण्डो का सामना कैसें कर सकते हैं? सुरेखा बोली।।
कैसे भी करके सामना तो करना ही होगा,क्योंकि सबकी जान जोखिम में है,गिरधारीलाल जी बोले।।
हाँ! डैडी ! शायद आप सही कह रहें हैं,सुरेखा बोली।।
तभी उन दोनों को एक और मोटर आती हुई दिखाई दी,गिरधारीलाल जी बोले....
बेटी! चलो उस टीले के पीछे छुप जाएं,क्या पता किसकी मोटर हो?
हाँ! डैडी चलिए,सुरेखा बोली।।
और दोनों ही एक बड़े से टीले के पीछे छुप गए,मोटर नजदीक आई तो उन्होंने देखा कि उसमें से शकीला बानो को विश्वनाथ के गुण्डे उतार रहे थे,
मतलब शकीला बहन को भी ले आएं ये लोंग,गिरधारीलाल जी बोलें...
डैडी! क्या हम दो तीन गुण्डो का सामना करके शकीला आण्टी को नहीं बचा सकते,सुरेखा बोली।।
कर तो सकते हैं लेकिन बड़ी सावधानी बरतनी होगी,गिरधारीलाल जी बोले।।
तो चलिए!तभी दोनों बाप बेटी गए शकीला को बचाने,उन सबके पीछे चुपके से गए,एक एक बड़ा सा पत्थर उठाकर दोनों गुण्डो के सिर पर दे मारा और फिर नीचे पड़ी धूल मुट्ठी में भरी और दोनों की आँखों में झोंक दी,तीसरे वाले की आँखों में भी धूल झोंककर उस पर भी पत्थर दे मारा,तीनों पर पत्थर से ही वार किया,जब तक कि वें बेहोश ना हो गए,फिर शकीला के हाथों की और मुँह की पट्टी खोल दी।।
अब वें तीन लोंग हो गए थे और विचार करने लगे कि कैसे और सभी को भी छुड़ाया जाए,अड्डे के भीतर कैसे घुसा जाएं?

और उधर अड्डे के भीतर सबके मन मे भी बहुत उथलपुथल मची हुई थी कि ना जाने अब क्या होने वाला है,विश्वनाथ के हाथ में पिस्तौल थी और वो उसी के इशारे पर सबको नचा रहा था,तभी विश्वनाथ ,करन से बोला....
तेरे छोटी बहन को लेकर तो दिलावर रंगरलियाँ मनाने गया है अब तेरी बड़ी बहन के साथ क्या किया जाए?
तभी गिरधारीलाल जी अड्डे के भीतर आकर विश्वनाथ से बोले...
विश्वनाथ! तू मेरी बेटी को छोड़ दे,मुझे करन से कोई लेना देना नहीं है और ना धर्मवीर से।।
लेकिन तू यहाँ कैसे आया? विश्वनाथ ने गिरधारीलाल जी से पूछा।।
मैं अपनी बेटी को छुड़ानेआया हूँ,कहाँ है मेरी बेटी? गिरधारीलाल जी ने पूछा।।
तू मेरा साथ देगा तभी तेरी बेटी को छोड़ूगा,विश्वनाथ बोला।।
हाँ! मैं तेरे साथ हूँ,गिरधारीलाल जी बोले।।
डैडी! आप!ये क्या कह रहे हैं ? करन ने पूछा।।
तू मेरा सगा बेटा नही है करन! लेकिन सुरेखा मेरी सगी बेटी है मुझे अब तुमसे कोई लेना देना नहीं,गिरधारीलाल जी बोले।।
आप भी बदल गए डैडी! करन बोला।।
मैं अपनी बेटी की जान तुम सबके लिए खतरे में नहीं डाल सकता,गिरधारीलाल जी बोले।।
और बातों ही बातों झटके से गिरधारीलाल जी ने विश्वनाथ के हाथों से पिस्तौल छीन ली और विश्वनाथ पर तानते हुए बोले....
अपने गुण्डो से कह कि छोड़ दे इन सबको नहीं तो भून कर रख दूँगा,तब तक शकीला और सुरेखा भी भीतर आ चुकीं थीं और वें दोनों बारी बारी से सबके हाथों की रस्सियांँ खोलने लगी......
तब विश्वनाथ ने गिरधारीलाल जी से कहा...
तूने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया,दिलावर कहाँ है?
उसे तो मैने ठिकाने लगा दिया और जो लोंग शकीला बहन को यहाँ लाएं थे उन्हें भी और रही धोखे की बात तो तूने भी तो जिन्दगी भर सबको धोखा ही दिया है,मैने थोड़ी देर के लिए तुझे धोखा दे दिया तो क्या हो गया?तू इसी काबिल है अब देखना तू कुत्ते की मौत मरेगा,गिरधारीलाल जी बोले।।
और जैसे ही सबके हाथों की रस्सियाँ खुल गई तो विश्वनाथ को अपनी जान खतरे में पड़ी मालूम हुई और उसने पिस्तौल लिए गिरधारीलाल जी को जो को जोर का धक्का दिया और वें जमीन पर गिर पड़े,विश्वनाथ ने फौरन ही उनके हाथ से पिस्तौल छीनी और बोला....
जो जहाँ खड़ा है खड़ा हो जाए नहीं तो मैं सबकी धज्जियाँ उड़ा दूँगा और सब विश्वनाथ की बात सुनकर जो जहाँ खड़ा था वहीं खड़ा हो गया,फिर विश्वनाथ बोला...
अब आज मैं अपना सारा हिसाब किताब पूरा करूँगा,पहले तो करन मेरी गोली का निशाना बनेगा....
तभी प्रकाश ने अपने हाथ के पास पड़ा हुआ लकड़ी का टुकड़ा विश्वनाथ के हाथ पर जोर से फेंका और उसके हाथों की पिस्तौल छूटकर जमीन पर गिर पड़ी और फिर सभी गुण्डो पर झपट पड़े,करन ने विश्वनाथ को पकड़ा और ले ढिशूम... ढिशूम....करके उसके चेहरे का हुलिया बिगाड़ दिया।।
काफ़ी देर तक घमासान लड़ाई चली,सभी औरतों ने भी कमर कँस ली थी,उनसे भी जो बन पड़ रहा था वो ले लेकर गुण्डो को मार रही थीं,सभी गुण्डो और विश्वनाथ की अच्छे से धुलाई हो रही थी।।
विश्वनाथ की मार मार खा खा कर हालत खराब हो गई थी,अब उसमें इतना दम नहीं रह गया था कि वो करन से लड़ सके,अब उसकी हिम्मत जवाब दे चुकी थी,तब तक पुलिस की जीप की आवाज सुनाई दी ,पुलिस अड्डे पर पहुँच गई थी।।
सभी पुलिस वालों ने बारी बारी से सभी गुण्डो को पकड़ लिया,विश्वनाथ भागने का मौका ढ़ूढ़ रहा था फिर उसने जमीन पर पड़ी हुई पिस्तौल देखी और लपककर उठा ली और उसने करन पर गोली चलाई लेकिन ऐन मौके पर अनवर चाचा करन के सामने आ गए और गोली अनवर चाचा को लग गई......
अनवर चाचा को गोली लगते ही विश्वनाथ बाहर की ओर भागा लेकिन करन इस बार चूकना नहीं चाहता था फिर उसने एक पुलिस वाले का पिस्तौल छीना और विश्वनाथ पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दीं,विश्वनाथ जमीन पर गिर पड़ा,पुलिस उसके पास पहुँची देखा तो वो मर चुका था,करन भागकर अनवर चाचा के पास आया,
धर्मवीर अनवर चाचा का सिर अपनी गोद में लेकर बैठे,अनवर चाचा ने एक झलक करन को देखा और आँखें मूद लीं,वो हमेशा के लिए सबको छोड़कर जा चुके थे।।
करन जोर से चीखा....नहीं....आप हम सबको छोड़कर नहीं जा सकते अनवर चाचा!
लेकिन अनवर चाचा जा चुके थे,मरते दम तक उन्होंने नमक का कर्ज अदा किया,जीवन भर केवल धर्मवीर के परिवार की ही भलाई की,बचपन में भी करन की जान उन्होंने ही बचाई थी और आज भी।।
अनवर चाचा को उनके धर्म की विधि के अनुसार दफनाया गया,उनके एहसानों को धर्मवीर का परिवार कभी भी नहीं भूल पाएगा।।
और फिर कुछ दिनों बाद प्रकाश और लाज की शादी हो गई,लाज अपने बंगले में आकर प्रकाश के परिवार के साथ रहने लगी,लाज के परिवार में प्रकाश,सासू माँ सुभद्रा ,देवर विकास और देवरानी सुरेखा थे,लाज ने शकीला को भी अपने साथ रख लिया,
करन और शर्मिला की भी शादी हो गई और अब धर्मवीर अकेले पड़ गए थे इसलिए उन्होंने जेलर साहब का घर छोड़ दिया और करन ने उन्हे अपने घर में ही रख लिया अब गिरधारीलाल जी को भी धर्मवीर का साथ मिल गया,दोनों आपस में खूब गप्पें लड़ाते।।
इस तरह से जो विश्वासघात विश्वनाथ ने धर्मवीर के परिवार के साथ किया था,उसे उसका फल भुगतना।।

समाप्त....
सरोज वर्मा...🙏🙏😊😊