विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग(१२) Saroj Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग(१२)

लगता है कि ये हरदयाल थापर भी नमकहरामी करेगा,इस पर नज़र रखनी होगी,विश्वनाथ ने मन में सोचा....
तभी एकाएक उसने पीटर को बुलाने के लिए आवाज़ दी.....
पीटर! फौऱन इधर आओ...
आया बाँस!,पीटर ने आवाज़ दी....
यस बाँस! क्या बात है,पीटर ने विश्वनाथ से पूछा।।
ऐसा है जरा अपने आदमियों से कह दो की हरदयाल थापर पर नज़र रखें,वो कहाँ कहाँ जाता है और किस किसे मिलता जुलता है,विश्वनाथ बोला।।
यस बाँस! मैं सबसे हरदयाल पर नज़र रखने को कह देता हूँ,पीटर बोला।।
और सुनो! जरा जूली को जल्दी ढ़ूढ़ो ना जाने कहाँ चली गई,मुझे जल्द से जल्द उसकी खबर चाहिए,विश्वनाथ बोला।।
यश बाँस! जैसे ही कुछ पता चलता है मैं आपको आकर खबर देता हूँ,पीटर बोला।।
पक्की खब़र लाकर दो कि वो कहाँ है,नहीं तो तुम सब की भी ख़ैर नहीं,विश्वनाथ बोला।।
ठीक है बाँस! और इतना कहकर पीटर चला गया.....
कहाँ मिलेगी ये लड़की?ये अगर चली गई तो मैं अपना बदला कैसे लूँगा? विश्वनाथ मन में बुदबुदाया.....
फिर विश्वनाथ ने शराब की बोतल खोली एक पैग बनाया और चढ़ा गया.....

इधर हरदयाल थापर के घर में....
डैडी! कल मैं अपनी फ्रैंड के संग पिकनिक के लिए फार्महाउस जाना चाहती हूँ,अगर आप इजाजत दे दे तो,शर्मिला ने अपने पिता हरदयाल थापर से पूछा....
हाँ...हाँ...क्यों नहीं?तुम जा सकती हो,हरदयाल बोले।।
थैंक्यू डैडी! शर्मिला बोली।।
लेकिन बेटा! याद रखना यहाँ विलायत जैसा माहौल नहीं है,हरदयाल थापर बोला।
जी,डैडी! मैं अच्छी तरह समझती हूँ,शर्मिला बोली।।
वैसे तुम्हारी कितनी सहेलियाँ जा रहीं हैं? थापर ने पूछा।।
यही होंगीं कोई तीन चार,शर्मिला बोली।।
तो तुम दो मोटरें ले जाओ,अच्छा रहेगा ,थापर बोला।।
नहीं,डैडी! हम सब एक ही मोटर में चले जाऐगें,शर्मिला बोली।।
ठीक है! जैसी तुम्हारी मर्जी,लेकिन सम्भाल कर जाना,थापर बोला।।
ओ के डैडी! शर्मिला ने जवाब दिया.......

और उधर विश्वनाथ के अड्डे पर.....
बाँस...बाँस..! पीटर हड़बड़ाते हुए विश्वनाथ के पास आया....
क्या हुआ?...पीटर!विश्वनाथ ने पूछा....
बाँस!कल रात फिर उस इन्सेपेक्टर करन ने हमारा माल पकड़ लिया,पीटर बोला....
इडियट..! तुम लोगों से कोई काम ढ़ंग से नहीं होता,उड़ा दो ....उड़ा दो उस इन्सेपेक्टर करन को ,अब मुझे वो इस दुनिया में जिन्दा नहीं चाहिए,कैसे भी करके आज ही उसका काम तमाम कर दो,पिछली बार तो बच गया था वो लेकिन इस बार बचना नहीं चाहिए और अगर अब की बार वो बच गया तो मैं तुम सबको नहीं छोड़ूगा.....
जाओ...जाओ अब यहाँ ,खड़ें खड़े मेरा मुँह क्या देख रहे हो?विश्वनाथ बोला।।

दोपहर होने को थी,तभी पुलिसचौकी के टेलीफोनपर फोन आया....
इन्सपेक्टर करन ने फोन उठाया और बोला....
यस!इन्सपेक्टर करन स्पीकिंग.....
जी,मैं आपका एक शुभचिंतक बोल रहा हूँ,मेरी जान खतरें में हैं,उस ओर से आवाज आई...
लेकिन तुम बोल कौन रहे हो? इन्सपेक्टर करन ने पूछा।।
मैं एक पत्रकार हूँ और मुझे यहाँ के बारें में बहुत कुछ पता चल गया था इसलिए विश्वनाथ के अड्डे पर मुझे कैद कर लिया गया है,मौका मिलते ही मै आपको यहाँ के टेलीफोन से टेलीफोन कर रहा हूँ,आप जल्दी से यहाँ आ जाइए,उस ओर से आवाज आई....
ठीक है तुम जल्दी से वहाँ का पता ठिकाना बताओ,इन्सपेक्टर करन ने कहा ...
और उस पत्रकार ने जल्दी से अपना पता ठिकाना बता दिया....
अच्छा! तो मैं अभी वहाँ जल्दी से पहुँचता हूँ,इतना कहकर इन्सपेक्टर करन ने टेलीफोन रख दिया...
करन ने फौरन अपनी मोटरसाइकिल उठाई और चल पड़ा उस ठिकाने पर...
करन रास्ते पर तेज रफ्तार से अपनी मोटरसाइकिल पर चला जा रहा था....उसे तो जल्द से जल्द विश्वनाथ के उस अड्डे पर पहुँचकर उस पत्रकार को बचाना था....
कुछ ही देर में करन एक वीरान और सुनसान सड़क पर था,दोपहर का समय था सूरज भी अपने शिखर पर था,ऊपर से सड़क पर कोई भी वाहन नहीं दिख रहा था,तभी करन ने देखा कि सड़क के बीचोबीच कुछ पड़े पत्थर रखें हैं और उन्हें हटाए बिना आगें नहीं जाया जा सकता था,
करन ने अपनी मोटरसाइकिल एक ओर खड़ी की और उतर कर वो उन पत्थरों को हटाने के लिए आगें ही बढ़ा ही था कि तभी झाड़ियों से कुछ लोंग झुण्ड में निकले और करन पर वार पर वार करने लगे,करन भी बड़ी हिम्मत के साथ उन सबका सामना करने लगा,वो अपनी भरपूर कोशिश से अपना बचाव कर रहा था लेकिन तभी किसी ने उसे जोर का धक्का दिया और करन का सिर नीचे पड़े बड़े से पत्थर से जा टकराया,करन के सिर से खून की धार बहने लगी,ये देखकर उन गुण्डों में से एक बोला....
चलो! हमारा काम और भी आसान हो गया,इसे जान से मारने में अब वक्त नहीं लगेगा....
लेकिन तभी उन्हें किसी मोटर के आने की आवाज सुनाई दी और फिर से सब जाकर झाड़ियों में छिप गए...
करन जमीन पर खून से लथपथ पड़ा था और कराह रहा था,तभी वो मोटर उसके पास रूक गई और उसमें से तीन चार लड़़कियाँ उतरीं,जिनमें से एक शर्मिला भी थी...
करन को घायल देखकर शर्मिला बोली.....
ये तो पुलिस की वर्दी में हैं,लगता है इनका कोई एक्सीडेंट हुआ है,चलो इन्हें फौरन अस्पताल ले चलें....
हाँ! सही कहती हो,उनमें से एक बोली....
पहले शर्मिला ने जल्दी से आइसकेस से बर्फ निकाली जिसमें उसने ठंडे पेय की बोतलें रखी थी,उस बर्फ को उसने रूमाल में लपेटा और करन की चोट वाली जगह पर रख दिया जिससे खून का बहाव कुछ कम हो गया और सबने मिलकर उसे उठाकर मोटर में डाला फिर चल पड़ी फौरन अस्पताल की ओर...
इमरजेंसी वार्ड में पहुँचकर उसने फौरन नर्स से कहकर डाक्टर को बुलवाया और करन का इलाज शुरू हो गया,करन बिल्कुल ठीक था,सिर की चोट ज्यादा गहरी नहीं थी,बस खून ज्यादा बह गया था,करन पूरी तरह बेहोश भी नहीं हुआ था,उसे सब याद था कि किस तरह उस लड़की और उसकी सहेलियों ने उसकी मदद की थी....
थोड़ी देर के बाद डाक्टर शर्मिला से बोले ....
मरीज बिल्कुल ठीक है,क्या आप मरीज को जानती हैं?
जी,नहीं! डाक्टर साहब ! वो तो हमें सड़क पर घायल मिलें थे इसलिए हम उन्हें आपके पास ले आए,शर्मिला बोली।
ये आपने बहुत अच्छा किया,जो समय पर उन्हें ले आई,डाक्टर साहब बोले....
वो होश मे तो हैं ना! शर्मिला ने पूछा।
जी,वो बिल्कुल ठीक हैं और आपसे मिलना चाह रहे हैं, डाक्टर साहब बोले...
और उनके घरवालों को खबर की आपने,शर्मिला ने पूछा।।
जी,बस उनसे उनका पता पूछने ही जा रहा था,डाक्टर साहब बोले।।
कोई बात नहीं ,अगर आपको एतराज ना हो तो मैं उनसे पूछ लेती हूँ और उनके घर जाकर ये खबर देती हुई अपने घर चली जाऊँगीं,शर्मिला बोली।।
ठीक है तो ऐसा कर लीजिए,भला मुझे क्या एतराज़ हो सकता है?डाक्टर साहब बोले...
फिर शर्मिला,करन के पास पहुँची और बोली....
आप ठीक तो हैं ना!
बस आपकी मेहरबानी है जो मैं सही सलामत हूँ,करन बोला।
आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? ये तो मेरा फर्ज था,शर्मिला बोली।।
और उस फर्ज़ को आपने बहुत अच्छी तरह निभाया,करन बोला।।
जी,आप तो मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं,शर्मिला बोली।।
जी,नहीं मैं तो आपका शुक्रिया अदा कर रहा हूँ जो आप सबने मिलकर मेरी जान बचाई,करन बोला।।
जी,मैं अब चलती हूँ,शर्मिला बोली....
इतनी जल्दी चली जाइएगा,मेरा हाल तो पूछ लीजिए,करन बोला।।
जी,मैं कुछ समझी नहीं,शर्मिला बोली।।
अन्जान मत बनिए,करन बोला...
अच्छा,अपने घर का पता बता देते तो मैं आपके घर खबर करती हुई अपने घर निकल जाती,शर्मिला बोली।।
अब और कितनी मेहरबानी कीजिएगा मुझ पर? करन ने पूछा।।
मेहरबानी किस बात की? शर्मिला बोली।।
आप रहने दीजिए,मैं टेलीफोन किए देता हूँ,करन बोला...
ठीक है तो मैं अब चलती हूँ,अपना ख्याल रखिएगा,शर्मिला बोली।।
अब ख्यालों में तो हम डूबने वाले हैं किसी के ,करन बोला।।
भला किसके ख्यालों में डूबेगें,मै भी जरा सुँनु,शर्मिला बोली....
रहने दीजिए,फिर कभी सुनिएगा,करन बोला....
ठीक है और इस बार मै चली ही जाती हूँ ,नहीं तो फिर से आप मुझे अपनी बातों में उलझा लेंगें,शर्मिला बोली...
अरे,उलझ तो हम गए हैं,करन बोला।।
कहाँ उलझे आप?शर्मिला ने पूछा।।
किसी की जुल्फों में,करन बोला...
ठीक है तो आप उलझे रहिए,मैं चलती हूँ और इतना कह कर शर्मिला वहाँ से चली गई....
शर्मिला को जाते हुए करन तब तक देखता रहा जब तक कि वो आँखों से ओझल ना हो गई...

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....