विश्वासघात--(सीजन-२)-भाग(१७) Saroj Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात--(सीजन-२)-भाग(१७)

बाँस! शकीला और जूली ,इन्सपेक्टर करन से मिलीं हुई हैं,आपने मुझे उनकी मुखबरी करने के लिए कहा था और ये खब़र बिल्कुल पक्की है,वो ड्राइवर प्रकाश जो क्लब में आता रहता है ,उसे भी मैने जूली से मिलते हुए देखा है,हो ना हो कोई तो खिचड़ी पक रही है सबके बीच।।
और मैने एक दो बूढ़ो को भी जूली से मिलते हुए कई बार देखा है,उन्हें देखकर ऐसा लगा कि वें बुढ्ढे जूली के बहुत करीबी हैं,वो जब भी उन्हें विदा करती है तो हमेशा उनके गले लगती है,ये सब खबर विश्वनाथ को रंगा ने दी।।
ठीक है तो उस पर कड़ी नज़र रखों और करन जहाँ रहता है वहाँ पर भी दो एक लोग और मुखबरी के लिए लगा दो ,मुझे पल पल की खबर चाहिए,विश्वनाथ ने रंगा से कहा।।
यस! बाँस ! आपका काम हो जाएगा,रंगा बोला।।
और सुनो! आज रात हाइवे के रास्ते सोना आने वाला है,मुझे कोई भी गड़बड़ नहीं चाहिए,उस जगह जितने हो सके ज्यादा से ज्यादा आदमियों को भेज दो और याद रहें पुलिस को जरा भी भनक नहीं लगनी चाहिए,विश्वनाथ ने रंगा से कहा।।
यस ! बाँस! मैं अभी सबको जाकर ये खबर देता हूँ,रंगा बोला।।
बस,इन्सपेक्टर करन से जरा सावधान रहना,अगर उसे इस माल की आने की खबर लग गई तो ये माल भी हमारे हाथ से निकल जाएगा,विश्वनाथ बोला।।
यस! बाँस! आप टेंशन ना लें,आपका सारा काम हो जाएगा,रंगा बोला।।
टेंशन कैसे ना लू्ँ? जूली और इन्सपेक्टर करन ने मेरा जीना हराम कर रखा है,विश्वनाथ बोला।।
बाँस! लगता है इन्सपेक्टर करन की मौत नज़दीक आ गई हैं,इसलिए आपसे पंगा ले रहा है,रंगा बोला।।
मैने कितने बार उसकी जान लेने की कोशिश की लेकिन हर बार वो मेरे शिकंजे से निकल गया,विश्वनाथ बोला।।
लेकिन बाँस अबकी बार वो आपके पंजे से नहीं छूट पाएगा,लगता है उसे अपनी जिन्दगी प्यारी नहीं है,इसलिए तो उसने आपसे पंगा लिया है,रंगा बोला।।
बस मुझे जिस दिन ये पता चल गया ना कि जूली और करन के बीच क्या सम्बन्ध है ?उस दिन मैं दोनों को ही गोली से उड़ा दूँगा,विश्वनाथ बोला।।
यस ! बाँस! मैं अब जाता हूँ अगर कोई भी खबर मुझे मिलती है तो आपको फौरन आकर बताता हूँ,रंगा बोला।।
मुझे तुमसे यही उम्मीद है
ठीक है जाओ,विश्वनाथ बोला।।
और रंगा चला गया अपने मकसद को कामयाब करने।।
उस रात सी.आई.डी. आँफिसर प्रकाश ने इन्सपेक्टर करन को ये जानकारी दी कि शेख साहब की दरगाह वाली सड़क से विश्वनाथ का माल आने वाला है और किसी भी हालात में वो करन के हाथों से निकलने ना पाएं,ये माल अगर पकड़ा गया तो ये हमारी जीत होगी और उसकी हार,तब वो बौखलाहट में कोई ऐसा कदम उठाएगा जो उसके लिए खतरनाक़ साबित हो।।
और इन्सपेक्टर करन ने यही किया,वो अपने साथी हवलदारों के संग उस जगह पहुँचा और उसने सड़क पर नाकाबंदी करवा दी और अपने साथी हवलदारों से कहा...
यहाँ से गुजरने वाले हर वाहन की तलाशी की जिम्मेदारी आप लोगों की है,कोई मोटर कोई भी ट्रक छूटना नहीं चाहिए,मुझे पल पल की ख़बर दीजिए और आप लोगों को जिस पर भी श़क हो तो फौरन एक्शन लीजिए,गोली भी चला सकते हैं लेकिन कोई भी बचकर नहीं जाना चाहिए।।
सब हवलदारों ने करन की बात पर गौर फरमाया और अपने अपने काम में तल्लीन हो गए....
आधी रात होने को आई लेकिन कोई भी ऐसा ट्रक या मोटर ना गुजरी जिनकी तलाशी लेकर उन्हें कानून की गिरफ्त में लिया जाएं....
तभी वहाँ प्रकाश अपनी टैक्सी से आ पहुँचा और करन से बोला....
करन वो लोंग माल इस पक्की सड़क से नहीं इसी की बराबरी में थोड़ी दूर एक कच्ची सड़क गई है वहाँ से माल आने वाला है,हमें गुमराह करने के लिए गलत सड़क का जिक्र किया गया है,मैं अभी क्लब से लौट रहा हूँ और ये खबर मुझे वहीं से मिली है,हमें अभी उस सड़क पर पहुँचना होगा नहीं तो वो लोंग हमारे हाथ से निकल जाएंगे।।
मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूँगा ,प्रकाश भइया! करन बोला।।,
तो चलो! अपने सभी साथियों से कहो कि उस सड़क पर चलें और ऐसा ही किया गया,सुबह के करीब चार बजे माल उस पक्की सड़क से गुजरा और करन ने अपने साथी हवलदारों के साथ सबको माल सहित धर दबोचा,जिन्होंने भागने की कोशिश की तो उन पर गोली भी चलाई गई, बाद में उन सबको इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया गया।।
थाने पहुँचकर करन ने सभी स्मगलरों की जमकर ठुकाई की, कुछ ने जुबान खोली और कुछ के साथ करन सख्ती से पेश आया तो उन्होंने भी अपनी जुबान खोल दी और सब उगल दिया,अब इन्सपेक्टर करन को विश्वनाथ के खिलाफ सूबूत मिल गए थे लेकिन करन को अभी भी संतुष्टि नही थी ,वो और भी सुबूत विश्वनाथ के खिलाफ़ इकट्ठा करना चाहता था।।
ये खब़र जब विश्वनाथ तक पहुँची तो तो वो गुस्से से आग बबूला हो गया और करन की जान लेने को एक बार फिर से आमादा हो गया,बौखलाहट में उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें? इसी तरह शाम हुई और रात भी हो गई लेकिन विश्वनाथ का गुस्सा है कि ठंडा होने का नाम ही नहीं ले रहा था,तभी विश्वनाथ के पास रंगा आकर बोला....
बाँस! जो हमारे क्लब में एक आदमी आता है वो ही पुलिस का ख़बरी है और वो हरामजादा सी.आई.डी. में है उसने ही इन्सपेक्टर करन को खबर पहुँचाई थी और तो और वो ही जूली का आशिक भी है,जूली भी इन्सपेक्टर करन से मिली हुई है,बस इतना ही पता चला है और भी खबर मिलते ही आप तक फौरन पहुँचाता हूँ।।
अच्छा तो इन्सपेक्टर करन ,सी.आई.डी.आँफिसर प्रकाश के दम पर इतना उछल रहा है,जल्दी से पता करो और मुझे बताओ कि प्रकाश के घर में कौन कौन हैं? अभी उसकी सब हेकड़ी निकालता हूँ,बच्चू! मुझसे पंगा लेने चला है वो अभी जानता नहीं है कि मै कौन हूँ? उसके जैसों को मैं अपने जूतों की नोंक पर रखता हूँ,विश्वनाथ बोला।।
यस बाँस! मुझे थोड़ा वक्त दीजिए,मैं अभी बिल्ला को वहाँ भेजकर उसकी मुखबरी करवाता हूँ,देखते हैं बच्चू कब तक बचता है,कल शाम तक आपके पास हर खबर मौजूद होगी,रंगा बोला।।
अब तुम जाओ और जल्दी पता करके सबकुछ आकर मुझे बताओ,विश्वनाथ बोला।।
यस!बाँस! और इतना कहकर रंगा चला गया....

और इधर प्रकाश ने करन से कहा....
करन ! तुम विश्वनाथ के खिलाफ वारेंट निकलवा लो और उसे जेल में ठूस दो,बहुत अच्छा मौका है ये।।
लेकिन भइया! अभी उसकी काली कमाई का हमलोगों के पास कुछ ही हिस्सा आया है अभी और भी बाक़ी है,उसने बहुत से लोगों के साथ धोखा किया है,जरा और सुबूत मिल जाएं फिर खिलाता हूँ उसे जेल की हवा और फिर जेल में ठूँसूगा,करन बोला।।
लेकिन तब तक देर ना हो जाएं कहीं वो तुम्हें कुछ नुकसान ना पहुँचा दे,प्रकाश बोला।।
आप बेफिक्र रहें,ऐसा कुछ नहीं होगा,करन बोला।।
लेकिन अपना ध्यान रखना ,वो कुछ भी कर सकता है बौखलाया हुआ है,प्रकाश बोला।।
जी! आपकी बात पर ध्यान दू्ँगा,करन बोला।।
और सुनो! अब शर्मिला तुम्हारे घर में रह रही है,ये खबर उसे भी लग गई होगी,उसका भी ध्यान रखना,वो जरूर कोई ना कोई साजिश रच रहा होगा,प्रकाश बोला।।
जी! भइया! हाँ! इसलिए मैने घर पर भी चार हवलदारों को तैनात कर दिया है,करन बोला।।
ये बिल्कुल ठीक किया तुमने,प्रकाश बोला।।
ठीक है भइया! अब मैं चलता हूँ,सब घर पर खाने के लिए इंतज़ार करते होगें और जरा आप भी अपना ध्यान रखना,जाते जाते करन बोला।।
हाँ! ठीक है और इतना कहकर प्रकाश ने करन को अलविदा कहकर रवाना कर दिया।।

और उधर सेठ गिरधारी लाल जी के घर पर खाने की टेबल पर खाना लग चुका था और सब करन का ही इंतज़ार कर रहे थे,करन पहुँचा और सुरेखा बोली.....
आप! आ गए भइया! अब जल्दी से हाथ मुँह धोकर आइए,बहुत भूख लग रही है,हम लोंग आपका कब से इंतज़ार कर रहे थे?
बस! दो मिनट दो ,मैं अभी आया और करन इतना कहकर हाथ मुँह धोने चला गया,थोड़ी में लौटा तब तक सुरेखा ने सबकी प्लेट पर खाना परोस दिया था...
सब खाना खाने लगें,तभी शर्मिला ने दो निवाले मुँह में डाले और उठ गई तभी सेठ गिरधारीलाल जी बोले..
क्या हुआ बिटिया? खाना अच्छा नहीं बना,कुछ और बनवा दूँ।।
नहीं! अंकल जी! ऐसी कोई बात नहीं है,बस मन नहीं कर रहा और खाने का,शर्मिला बोली।।
अच्छा! ठीक है बिटिया! जैसी तेरी इच्छा,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।।
तभी शर्मिला ने सुरेखा से कहा....
खाना खाकर छत पर आ जाना ,मैं छत पर जा रही हूँ।।
ठीक है तू जा! बस मैं अभी खाना खतम करके आई,सुरेखा बोली।।
शर्मिला के जाने के बाद सेठ गिरधारीलाल जी बोले....
दुखी है बेचारी,इसलिए मन ना कर रहा होगा खाने का,अभी अभी तो बाप गुजरा है बेचारी का।।
हाँ! डैडी! दोपहर में भी ऐसे ही बिना खाएं उठ गई थी,सुरेखा बोली।।
अपनों के जाने का ग़म इन्सान जल्दी नहीं भूल पाता,थोड़ा समय लगेगा उसे भूलने में,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।
शायद आप ठीक कहते हैं डैडी! सुरेखा बोली।।

सबका खाना खतम हो चुका था,गिरधारीलाल जी खाना खाकर ,घर के लाँन में टहलने बाहर चले गए थे और सुरेखा सबकी झूठी प्लेट्स उठाकर रसोई में रखने जा रही थी और बचा हुआ खाना भी जैसे ही वो रसोई में जाकर रखने लगी तो करन ,सुरेखा से बोला....
खाना अभी रखा रहने दे और एक दूसरी साफ प्लेट लेकर आ।।
सुरेखा को पहले तो कुछ समझ नहीं और उसने कोई हस्तक्षेप नहीं किया,फिर जब उसने देखा कि करन प्लेट पर खाना लगा रहा है तो वो समझ गई कि ये प्लेट शर्मिला के लिए है फिर वो कुछ ना बोली...
जब करन ने प्लेट लगा ली तो वो सुरेखा से बोला...
अब तू ये खाना रसोई में रख दें,मैं ये खाना शर्मिला को खिलाने जा रहा हूँ फिर उसने प्लेट उठाई ,गिलास में पानी भरा और चल पड़ा छत की ओर शर्मिला को खाना खिलाने,छत पर जाकर उसने देखा कि शर्मिला उदास सी खड़ी है छत की चारदिवारी की टेक लगाकर और चाँद को निहार रही है....
करन,शर्मिला के पास पहुँचकर बोला....
लगता है आप बहुत उदास है ,इसलिए ठीक से खाना नहीं खा रहीं आजकल।।
जी! ऐसी कोई बात नहीं है,शर्मिला बोली।।
देखिए ना !मैं आपके लिए खाना लेकर आया हूँ ,करन बोला।।
अरे,आपने तकलीफ़ क्यों उठाई? सच मैं मुझे भूख नहीं है ,शर्मिला बोली।।
इसमे तकलीफ़ की क्या बात है? घर का मेहमान भूखा रह़े तो अच्छा लगेगा क्या? करन बोला।।
जी! आप अब मुझे मेहमान ही समझते हैं,शर्मिला ने पूछा।।
जी! मेहमान तो आप हैं लेकिन हमारे दिल की,करन बोला।।
ये कैसी बातें कर रहे हैं आप? शर्मिला शरमाते हुए बोली।।
वैसी ही जैसी कि एक आशिक को करनी चाहिए,करन बोला।।
मैं कुछ समझी नहीं,शर्मिला बोली।।
आपको इसलिए समझ नहीं आया कि आपने कभी भी मेरी आँखों में झाँककर नहीं देखा,करन बोला।।
अभी तो छत पर अँधेरा है,आपकी आँखों में कैसे झाँकू?शर्मिला बोली।।
सुबह झाँक लीजिएगा मेरी आँखों मेँ,पहले आप ये खाना खतम कीजिए और इतना कहकर करन ने एक निवाला शर्मिला के मुँह में डाल दिया.....
आप कितना ख्याल रखते हैं मेरा,शर्मिला खाते हुए बोली।।
जहेनसीब! करन बोला।।
और ऐसे ही करन और शर्मिला के बीच प्यार भरी बातें चलती रहीं...

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....