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इन्तजार एक हद तक (महामारी) - उपन्यास
RACHNA ROY
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
ये कहानी सत्य घटनाओं पर आधारित है आशा करतीं हुं।आप सभी को अच्छा लगेगा।
हकीम पुर गांव अब पुरी तरह से कोलेरा महामारी की चपेट में आ गया था अब जो भी वहां से निकल गया तो उसकी जान बच गई थी पर जो गरीब,लाचार, अस्मर्थ लोग तो वहीं बिना इलाज के चलते मौत के घाट उतार गए।
अस्पताल में भी अब जगह नही बची थी शायद ही अब कोई बच पाता। किसी मां को अपने बेटे की चिंता ,तो किसी बहन को उसकी भाई की चिंता, किसी पत्नी को उसकी पती की चिंता ।
ये कहानी सत्य घटनाओं पर आधारित है आशा करतीं हुं।आप सभी को अच्छा लगेगा।हकीम पुर गांव अब पुरी तरह से कोलेरा महामारी की चपेट में आ गया था अब जो भी वहां से निकल गया तो उसकी जान बच ...और पढ़ेथी पर जो गरीब,लाचार, अस्मर्थ लोग तो वहीं बिना इलाज के चलते मौत के घाट उतार गए।अस्पताल में भी अब जगह नही बची थी शायद ही अब कोई बच पाता। किसी मां को अपने बेटे की चिंता ,तो किसी बहन को उसकी भाई की चिंता, किसी पत्नी को उसकी पती की चिंता ।इन सब में एक मां की चिंता ऐसी
रमेश ने मन में सोचा सब कुछ ठीक हो वहां।उर्मी कैसी होगी? क्यों मैं नहीं सोच पाया कुछ एक साल में मैंने तो जाने की कोशिश नहीं की।फिर प्लेटफार्म पर गाड़ी आकर रुकी और रमेश जाकर बैठ गया और ...और पढ़ेसोचने लगा रात तक पहुंच कर मां के हाथों का खिचड़ी खाऊंगा।फिर इसी तरह गाड़ी रात के ग्यारह बजे तक हकीम पुर स्टेशन पर पहुंच गई।रमेश अपना सामान लेकर उतरने लगा तो एक सज्जन बोले अरे भाई यहां कहा उतर रहे हो? यहां तो कुछ नहीं बचा है।रमेश बोला अरे यहां पर मेरा घर परिवार है।सज्जन बोले पर यहां मत
पुरे घर में रमेश ने सबको ढुंढ लिया पर कोई ना मिला।फिर वो रोने लगा कि सब के सब कहा गए? मैं क्यों नहीं देख पा रहा हूं।रमेश अपने कमरे में पहुंच गया जहां पर उसने देखा कि एक ...और पढ़ेपर पुरे परिवार की फोटो लगी थी उसे उठा लिया और बैग में रख कर बाहर की तरफ निकल गया।देखा कि बाहर दूर दूर तक कोई भी नहीं था वो दौड़ने लगा जितना भी शरीर में दम था वो दौड़ता गया और उसे अम्मा की कहीं हुई बात याद आ रही थी।किसी भी तरह वो स्टेशन तक पहुंचना चाहता था।हांफते
रत्ना बोली चाचू आप ने बहुत ही देर कर दी।रवि बोला हां चाचा जी पापा, मम्मी सब चले गए कोई नहीं बचा। फिर चन्दु ने कहा ,हां भईया मैंने आपके घर का नमक खाया था। मांजी ने मेरे साथ ...और पढ़ेबच्चों को भेज दिया था कह कर रोने लगा।रमेश ने कहा हां मुझे अब पता चला तो मैं यहां आ गया अब तुम सब चलो अपना सामान पैक कर लो।रत्ना के मामा बोले। हकीम पुर की दशा मेरे आंखों देखा हाल है मैंने सबको कहा था कि यहां से चले पर आपकी अम्मा को आपका इन्तजार था। रमेश ने कहा हां
इसी तरह एक साल बीत गए रत्ना और रवि अपने चाचा के साथ बहुत ही राजी खुशी रहने लगे।हर गर्मी की छुट्टियों में रमेश बच्चों को और चन्द्रू काका को लेकर घुमाने निकल जाते थे कभी दिल्ली तो कभी ...और पढ़ेके ताजमहल।इसी तरह जिंदगी चलने लगा था रमेश हमेशा अम्मा को याद किया करता था उसे हमेशा ये दुःख सताता रहता कि काश वो सभी की रक्षा कर पाता। तो आज पुरा परिवार मेरे साथ होता।।हकीम पुर गांव अब धीरे -धीरे बसने लगा था जो लोग शहर चले गए थे वो अब अपने घर वापस आ रहें थे।रमेश ने मन