इन्तजार एक हद तक - 1 - (महामारी) RACHNA ROY द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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इन्तजार एक हद तक - 1 - (महामारी)

ये कहानी सत्य घटनाओं पर आधारित है आशा करतीं हुं।आप सभी को अच्छा लगेगा।

हकीम पुर गांव अब पुरी तरह से कोलेरा महामारी की चपेट में आ गया था अब जो भी वहां से निकल गया तो उसकी जान बच गई थी पर जो गरीब,लाचार, अस्मर्थ लोग तो वहीं बिना इलाज के चलते मौत के घाट उतार गए।

अस्पताल में भी अब जगह नही बची थी शायद ही अब कोई बच पाता। किसी मां को अपने बेटे की चिंता ,तो किसी बहन को उसकी भाई की चिंता, किसी पत्नी को उसकी पती की चिंता ।

इन सब में एक मां की चिंता ऐसी चिंता होती है कि ये नौ महीने तक अपने गर्भ में रखती है और फिर जब ऐसी स्थिति हो कि मौत उसके दरवाजे पर दस्तक दे रही हो।उसकी इन्तजार करने में सारा जीवन व्यतीत कर दिया शायद उस बेटे को कुछ खबर नहीं की हकीम पुर में मौत का तांडव चल रहा है।

गांव के लोग बड़े ही सीधे -साधे होते हैं उनको अपने जीवन से ज्यादा जरूरी दूसरों के जीवन की रक्षा करना पर शायद ही कोई बच पाएगा।ये एक ऐसी महामारी है जो सिर्फ फैलती जा रही है। दस्त और उल्टियां ही इसके लक्षण थे।

हकीम पुर में एक बहुत ही सज्जन परिवार रहता था। परिवार के सदस्य बहुत ही अपनापन और प्यार था।कुल दस लोगों का परिवार था।
उर्मीला सबसे छोटी बहू थी और उसके पति रमेश जो शहर में सरकारी नौकरी करता था।
उर्मीला के ऊपर ही पूरे घर की जिम्मेदारी थी।

अभी तक इनका परिवार इस महामारी के चपेट से बाहर था पर एक डर सा बना हुआ था कि कल को क्या होगा पता नहीं।

अरे उर्मी बहु एक बार डाक खाने हो आओ। ये बात हमेशा की तरह रमेश की अम्मा सीता देवी ने कहा।
उर्मीला ने बताया हां अम्मा जाती हुं पर कोई फायदा ना होगा।
अखबार पढ़ते हुए रमेश के बाबूजी सीता राम ने कहा पता नहीं बेटा हकीम पुर बचेगा की नहीं पर रमेश शहर में है अच्छा है अगर आया तो यहां पता नहीं।।।

सीता देवी ने कहा इसी की बस चिंता है साथ रहता तो साथ ही मरते,पर रमेश का एक भी ज़बाब ना आया जी, इसी बात का रोना है मेरा बेटा सही सलामत रहे।

अरे अम्मा तू खामाखा परेशान हो रही हैं कल क्या होगा कुछ नहीं पता!! ये बात सीता देवी के मजले बेटे आकाश ने कहा। और आकाश की पत्नी सुनंदा ने कहा हां वो तो ठीक है पर उर्मी को तो रमेश के साथ होना चाहिए था पर वो तो हमलोग के लिए नहीं गई बिचारी का क्या दोष?

उर्मीला ने गम्भीर स्वर में कहा नहीं दीदी ऐसा मत बोलो मैं तो सबके साथ रहना चाहती थी ना कि अकेले।

अम्मा को बोला कि शहर चलते हैं जब ठीक हो जाता ये महामारी तब आ जाते पर ना ,अम्मा को तो सुबह का सूरज यहां ही देखना है।
ये बात सीता देवी के बड़े बेटे हर्ष ने कहा।

बड़ी बहु राधा ने कहा हां मैं तो ऐसे ही मर रही हुं ये बिमारी क्या मारेगी।
फिर चंद्रु रसोईघर से आकर सबको सुबह की चाय थमा दिया।
सीता देवी ने कहा मुझे सबकी चिंता है पर मैं इस घर से नहीं जा सकती हुं।

हर्ष ने कहा हां अम्मा अब तो मरना है सबको।पर रमेश ही जिन्दा रहेगा।हमारा क्या होगा पता नहीं अंतिम संस्कार भी नहीं हो पायेगा देखो।


शुभ शुभ बोलो पापा ये बात रवि ने कहा।

उर्मीला ने चाय पी कर तैयार हो कर निकल गई डाकखाने।
डाक खाना घर के पास ही था।
उर्मीला ने कहा डाकिया चाचा क्या कुछ पता चला?
डाकिया बोला अरे नहीं बहु कुछ गड़बड़ी हो गई है शहर में पहुंचा नहीं या देर से पहुंचे।
बड़ी मुश्किल होगा बेटी।
मायुस हो कर उर्मिला घर लौट आईं।

सभी उसका मुरझाया चेहरा देखकर समझ गए।
चंदू ने सबको नाश्ता करने को कहा।
फिर सभी बैठक में बैठ कर रोटी, सब्जी खाने लगे।
सीता देवी ने कहा मेरा तो एक भी निवाला गले से ना उतरेगा।मेरा लाल जाने किस हाल में होगा और जब वो आयेगा तब कहीं देर ना हो जाए।

सीता राम ने कहा अरे रमेश की अम्मा क्यों चिन्ता करती हो वो दूर है तो अच्छा है यहां कब क्या हो जाएं क्या पता।।
मझला बेटा आकाश ने कहा मैं बाबूजी की बात से सहमत हूं। उनकी बेटी रत्ना बोली हां दादू ने ठीक कहा।

सुनंदा ने कहा रत्ना चल पढ़ाई पुरी कर लें।रवि बोला अरे चाची मैं भी आता हुं पढ़ने।रवि हर्ष का बेटा था।

सभी के अन्दर एक खौफनाक मंजर था कि कल शायद पुरा हकीम पुर गांव नहीं बचेगा।
इसी तरह एक दिन एक महीना एक साल बीत गए।
कोलेरा महामारी इतना ही भयावह स्थिति हो गया कि ये मंज़र देखने लायक था।

उधर शहर में सरकारी नौकरी करते हुए रमेश ने भी बहुत कोशिश किया की किसी तरह छुट्टी मिल जाए तो गांव हो आए।पर उसके कानों में भी थोड़ी भी खबर नहीं मिली थी। और फिर एक दिन अचानक से एक साल से अम्मा की भेजा हुआ चिठ्ठी मिली ।
पढ़ते ही रमेश के होश उड़ गए और फिर बिना देरी किए छुट्टी की अर्जी देकर हकीम पुर के लिए निकल गया।

स्टेशन पर पहुंच कर एक टिकट निकाल लिया। दोपहर की ट्रेन थी।
रमेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ होगा वहां की हालत कैसी होगी। अम्मा की चिठ्ठियां जल्दी में पुरी ना पढ़ सका।
पर एक शब्द याद रह गया कि लाल तेरे आने की इंतज़ार में हुं तू अब तक ना आ सका।
प्लेटफार्म पर ही ट्रेन की प्रतिक्षा करने लगा।
क्रमशः