Intzaar ek had tak - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

इन्तजार एक हद तक - 5 - (महामारी)

इसी तरह एक साल बीत गए रत्ना और रवि अपने चाचा के साथ बहुत ही राजी खुशी रहने लगे।


हर गर्मी की छुट्टियों में रमेश बच्चों को और चन्द्रू काका को लेकर घुमाने निकल जाते थे कभी दिल्ली तो कभी आगरा के ताजमहल।



इसी तरह जिंदगी चलने लगा था रमेश हमेशा अम्मा को याद किया करता था उसे हमेशा ये दुःख सताता रहता कि काश वो सभी की रक्षा कर पाता। तो आज पुरा परिवार मेरे साथ होता।।




हकीम पुर गांव अब धीरे -धीरे बसने लगा था जो लोग शहर चले गए थे वो अब अपने घर वापस आ रहें थे।


रमेश ने मन में सोचा कि वो घर तो खाली पड़ा है
वहां पर कुछ ऐसा अच्छा कार्य हो जिससे उन लोगो की आत्मा को शांति मिल जाए।

रमेश को हमेशा अम्मा की अनुभूति होती रहती थी तो उसने मन में ही ये काम करना उचित समझा।कि हकीम पुर गांव के अपने घर को तुड़वा कर वहां पर एक बड़ा अस्पताल खोलने का निर्णय लिया।


इसी सिलसिले में वो हकीम पुर गांव गया और सारी बातचीत कर काम शुरू करवाया ताकि कोई भी व्यक्ति ला इलाज नहीं मर जाएं।


उस अस्पताल में मरीजों को मुफ्त दवा और इलाज कराया जाने की सारी व्यवस्थाएं सुनिश्चित करवा दिया।



रमेश मन में सोचा और फिर बोला अम्मा अब पुरी तरह से तुझे शान्ति मिल जाएगी और तेरा मेरे लिए इंतजार करना साकार हो गया अब मैं समझ गया कि तूने वो अन्तिम चिठ्ठी में क्या बताने की कोशिश किया था। देखना अम्मा अब कोई भी बिना इलाज से महरूम नहीं रह जायेगा।

रमेश ने अपनी पुरी जिंदगी अपने उर्मी को ही समर्पित कर दिया और उसने दूसरी शादी भी नहीं की।

रत्ना और रवि भी पिता समान चाचू को लेकर फिर से अपनी खुशियां खोजने लगे।


इसी तरह रमेश को एक बड़ा प्रमोशन मिला वो मैनेजर से एम डी बन गया।
नया घर,नयी गाड़ी भी मिला। अम्मा की आशीर्वाद से ये सब सम्भव हो पाया था।



उधर हकीम पुर गांव में वो घर धीरे धीरे एक बहुत बड़ा अस्पताल बनने वाला था बस और कुछ महीनों बाद ही अस्पताल तैयार होने वाला था। रमेश बहुत ही उत्साहित था और वो हकीम पुर जा कर काम करवाता था।

उस अस्पताल में सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाने वाली थी।


रमेश ने उस अस्पताल का नाम सीता राम रखवाया था क्योंकि ये नाम उसके परम पूज्य अम्मा और बाबूजी का नाम था।


आज शायद अम्मा की आत्मा को शांति मिल गया होगा क्योंकि वो अस्पताल आज बन कर तैयार हो गया है और आज ही उसका उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया था।

रमेश दोनों बच्चों और चन्दू को लेकर हकीम पुर गांव पहुंच गया।

बच्चे अपना बचपन याद करके रो रहे थे।
रमेश ने अस्पताल के बाहर ही अम्मा और बाबूजी की मुर्तियां बनवाईं थी।ये देख चन्दू रो पड़ा। फिर रमेश ने रत्ना और रवि से ही अस्पताल का फीता करवाया और सभी अन्दर पहुंच गए।

अस्पताल बहुत ही खूबसूरत बना था।।


सभी वाह !वाह ! कर रहे थे।

रमेश बोल अब हकीम पुर गांव में सीता राम अस्पताल में कोई भी मरीज बिना इलाज कराये नहीं जायेगा। दवा और इलाज भी मुफ्त में ही दिया जाएगा।।

आज सही मायने में अम्मा को शांति मिल गई होगी।


रमेश कभी-कभी अपने हकीम पुर गांव जाता और वहां अपने अस्पताल में जाकर सब चीज देखकर आता था।


देखा दोस्तों एक मां का इन्तजार इस कदर रंग लाया और एक बेटे ने कर दिखाया।।।
इन्सान अपने अच्छे कर्म से ही बड़ा होता है ना कि ओंधे से।।


क्रमशः।।

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED