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इन्तजार एक हद तक - 2 - (महामारी)




रमेश ने मन में सोचा सब कुछ ठीक हो वहां।
उर्मी कैसी होगी? क्यों मैं नहीं सोच पाया कुछ एक साल में मैंने तो जाने की कोशिश नहीं की।


फिर प्लेटफार्म पर गाड़ी आकर रुकी और रमेश जाकर बैठ गया और फिर सोचने लगा रात तक पहुंच कर मां के हाथों का खिचड़ी खाऊंगा।
फिर इसी तरह गाड़ी रात के ग्यारह बजे तक हकीम पुर स्टेशन पर पहुंच गई।


रमेश अपना सामान लेकर उतरने लगा तो एक सज्जन बोले अरे भाई यहां कहा उतर रहे हो? यहां तो कुछ नहीं बचा है।

रमेश बोला अरे यहां पर मेरा घर परिवार है।
सज्जन बोले पर यहां मत जाओ।

रमेश बहुत ही परेशान था तो बिना सुने ही स्टेशन पर उतर गया और फिर देखा कि पुरा स्टेशन खाली था और एक भी इन्सान नजर नहीं आ रहा था।

फिर वो जल्दी-जल्दी जल्दी बाहर की तरफ जाने लगा और एक आवाज ने उसे रोक दिया।
स्टेशन मास्टर ने कहा अरे बेटा रमेश तुम।

रमेश बोला अरे मास्टर चाचा क्या बात है कुछ बदलाव सा लग रहा है। हकीम पुर में कोई चहल-पहल नजर नहीं आ रहा है।
स्टेशन मास्टर ने कहा हां बेटा बहुत कुछ हो गया पर तुमने आने में देर कर दिया।

रमेश बोला हां चाचा।अब चलता हूं।
रमेश थोड़ा सा नर्वस हो गया था पर स्टेशन मास्टर को देख कर कुछ ठीक नहीं लग रहा था।

बाहर आ कर देखा तो एक भी टांगा नजर नहीं आ रहा था और फिर अचानक एक टांगा आ गया और टांगें वाले ने बोला कहा जाना है बाबू जी?
रमेश बोला हकीम पुर गांव में डाक खाना के पास।
टांगे वाले ने कहा ठीक है बैठ जाओ।
रमेश उस टांगें वाले का चहेरा देखना चाहता था पर वो कम्बल से ढंक रखा था।

दिसंबर की रात थी और उस पर कड़ाके की सर्दी, सर्द हवाओं ने रमेश को ठिठूर दिया था।

रमेश टांगें पर बैठ गया और फिर टांगा चलने लगा और सर सर सर की आवाज से रमेश एक दम कांप रहा था और फिर रमेश ने पुछा कि ये हकीम पुर के लोग कहा गए इतना कभी खाली तो नहीं देखा?
तभी वो टांगें वाला बोला अरे सहाब बहुत देर कर दिया आने में, पहले आते तो सबको देख पाते।
रमेश फिर से बोला अरे ये यहां लाइट नहीं है क्या? टांगे वाला हंसने लगा और फिर बोला हां खराब हो गया है।
फिर रमेश का घर आ गया और रमेश उतर कर अपना सामान लेकर रखा और पुछा कि कितना पैसा हुआ भाई।

जैसे ही देखा तो वहां टांगा वाला वहां से गायब था।

रमेश एक दम आश्चर्य हो गया।

और फिर रमेश अपने घर के दरवाजे पर दस्तक देकर कहा अम्मा ओ अम्मा सो गई क्या?

कुछ देर बाद ही दरवाजा खुल गया और फिर रमेश ने देखा कि अम्मा एक लालटेन की धीमी रोशनी लेकर खड़ी थी और फिर बोली अरे रमेश आ गया तू बड़ी देर कर दिया बेटा।

रमेश ने अन्दर जाकर पैर छुने लगा पर सीता देवी जल्दी-जल्दी चली गई।

रमेश थोड़ा-सा डर गया और फिर हर्ष और राधा आ गए और बोले अरे भाई बहुत देर हो गई आने में।
रमेश बोला हां भाई आप सभी कैसे हो?
सीता राम ने कहा हां रमेश आएं हो अच्छा लगा बेटा।
आकाश और सुनंदा ने कहा कि बहुत इन्तजार कराया भाई। अम्मा जी तो हर बार तुम्हें याद करती थी और उर्मिला तो हर रोज डाक खाना जाकर बैठ जाती।


रमेश बोला हां आप सभी मुझे माफ़ कर दो, और अम्मा तो नाराज़ हो गई मुझसे मैं समय से ना आ सका।।

तभी उर्मी आ गई और फिर बोली अरे जी आप ने बहुत देर कर दिया हां।

रमेश ने कहा अरे तुम इतना घुंघट क्यों की हो? पहले तो ना किया कभी।।

अम्मा ने कहा जाने दो बेटा ।अब आ गए हो तो चलो थक गए हो मुंह हाथ धोकर आओ।

रमेश बोला हां ,हां अम्मा बहुत भुख लगी है वैसे क्या बना है?

सीता देवी ने कहा और क्या खिचड़ी बना है।

रमेश बोला अरे अम्मा आपको कैसे पता चला।

सीता देवी ने कहा मां हूं बेटा इतना तो पता था कि तू आयेगा जरूर पर इतना देर से आयेगा ये ना सोचा था।

रमेश बोला अरे अम्मा वो चिट्ठी जो भी लिखा था मुझे तो एक साल बाद मिला।


राधा ने कहा हां और इस एक साल में क्या-क्या न हो गया।

रमेश सोचने लगा और फिर पुछा कि भाभी ऐसा क्या हो गया इस एक साल में?
सीता राम ने कहा अरे जाने दो बेटा अब खाना खा लो।

फिर रमेश अपने कमरे में जाकर सामान रखा और फिर हाथ मुंह धोकर आया और उसे एक अजीब सा डर लग रहा था कि ऐसा क्या हुआ था। ये लोग कुछ बदले से लग रहे हैं।

फिर रमेश खाना खाने बैठ गया। देखा थाली में उसके पसन्द कि सारी चीज़ें थी।

अम्मा ने कहा खा ले बेटा बहुत दिनों से कुछ खाया नहीं अपनी अम्मा के हाथ का स्वाद।

रमेश ने सर हिला कर कहा हां अम्मा वो तो है।पर आप सब भी खा लिजिए न।

अम्मा ने कहा हां सबने खा लिया है बेटा। तेरी राह कब से देख रहे थे और अब जाकर आया तूं।

रमेश खाने लगा और फिर बोला क्या स्वाद बना है अम्मा। इसके साथ हमारे पेड़ का नींबू मिल जाए तो क्या बात।

अम्मा ने कहा हां क्यों नहीं अरे सुनंदा बहु जरा पेड़ से नींबू तोड़ दें।

रमेश ये बात सुनकर बोला अरे अम्मा रहने दो

इतनी रात सुनंदा भाभी बाहर कैसे जायेगी।

तभी सुनंदा ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर नींबू रमेश के थाली में रख दिया।

रमेश एक दम से चौंक गया और फिर जल्दी से खाना खा लिया।

अब सोचने लगा कि कुछ तो गडबड हो गया है यहां कुछ ठीक नहीं है।
अरे बेटा ठीक से खाया नहीं ये सीता देवी ने कहा।

रमेश बोला नहीं अम्मा पेट भर गया और फिर हाथ धोकर अपने कमरे में जाकर सोने लगा।

तभी उर्मी ने एक हाथ पंखे से हवा करने लगी और रमेश एक दम से डर गया और बोला अरे तुम कब आई?

उर्मी ने कहा मैं तो यही पर थी देखा कि इतने सदीं में तुम पसीने हो रहे हो।
रमेश बोला नहीं ठीक हूं मैं।
एक बात पूछूं रमेश ने कहा।
उर्मी ने कहा हां पुछो।
रमेश बोला यहां सब एक बात बोल रहे हैं कि देर कर दिया आने में ये क्यों।

उर्मी ने कहा क्या बताऊं तुम्हारा आसरा हम सब देख रहें थे पर तुम नहीं आ सके इसलिए।
अच्छा सफर से आये हो सो जाओ।

रमेश बोला मुझे कल वापस जाना होगा।

उर्मी ने कहा अब आ गए हो अम्मा नहीं जाने देगी।

रमेश ये सुनकर डर सा गया और फिर धीरे धीरे सोने की कोशिश करने लगा। फिर बहुत सारी रोने की आवाज सुनाई देने लगी और रमेश अपनी आंखों को खोल नहीं रहा था उसको समझ आ रहा था कि उस सज्जन ने क्यों मना किया था हकीम पुर जाने से।

फिर रमेश ने अपनी घड़ी देखी तो देखा रात के दो बज रहे थे और वो टांगें वाला भी याद आ गया।

रमेश ने सोचा कि अब शायद वो बच ना पायेगा वो शायद फस गया था और फिर अचानक देखा कि अम्मा उसके सर में हाथ फेरने लगी और फिर रमेश बोला अरे अम्मा सोई नहीं क्या?

अम्मा ने बोला, कहा सोई बेटा आज तू आया इतने दिनों बाद तो तुझे देखना चाहती थी बड़ा इन्तजार कराया बेटा तूने।

पर अब आ गया है पर कल तू वापस शहर लौट जाना बेटा। एक मां होकर मैं तुम्हें बोल रही हुं।

सुबह होते ही वापस चला जा मेरे लाल।
अब एक मां का इन्तजार खत्म हो गया।
रमेश सुनते-सुनते सो गया।

भोर हो गया और मुर्गे की बांग ने रमेश को उठा दिया और फिर जब उठा तो देखा कि पुरा घर खाली पड़ा है कोई भी नहीं है।
रमेश दौड़ कर रसोई घर गया और अम्मा ओ अम्मा कहा हो? सबके सब कहां चले गए??


क्रमशः

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