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इन्तजार एक हद तक (महामारी) - 17

काफी मुश्किल के बाद शायद यही एक घर बचा है यार। अमित ने कहा। रमेश ने कहा हां मुझे भरोसा है अम्मा जी पर। यहा तो शादी का माहौल लग रहा है। ये अमित ने कहा। रमेश ने कहा हां यही कोठी है।

फिर दोनों उतर कर घर के अंदर जाने लगें तो चौकीदार ने कहा अरे भाई किस से मिलना है।?रमेश ने कहा उर्मीला से। चौकीदार ने कहा अच्छा पर आज तो उनका शादी है। रमेश ने कहा नहीं नहीं ये नहीं हो सकता मुझे जाने दो अन्दर।
फिर दोनों अन्दर पहुंच गए। गाना बजाना हो रहा था। रमेश ने कहा परी की बात सच निकल गई। एक सज्जन आकर बोलें क्या बात है? रमेश ने तुरंत अपनी सारी बात बताई और फिर उर्मी की फोटो भी दिखाई।वो सज्जन ने उनको बैठने को कहा और खुद भी बैठ गए।
रमेश ने कहा क्या हम उर्मी से मिल सकते हैं? वो सज्जन बोले हां ज़रूर लेकिन उर्मी तुम को नहीं पहचान पाएंगी। क्योंकि तीन साल पहले वो हमें जब मिली थी तो उसकी याददाश्त जा चुकी थी। बेटा और आज हमसे बहुत बड़ा अपराध हो जाता अगर तुम लोग सही समय पर नहीं आते। अमित ने कहा क्या हुआ? वो बेटा मेरा अभागा उसी से शादी होने वाली थी आज। तीन साल से उर्मी मेरे पागल बेटे की देखभाल कर रही थी और फिर लोग समाज की डर से हम उसका विवाह करवा रहे थे। आज मैं बहुत बड़ी गलती का भागीदार बनने जा रहा था। बेटा पता नहीं क्यों उर्मी यहां पर तीन साल से रह तो रही थी पर उसके अंदर एक अकेलापन , विचलित हो जाती थी। डाक्टर का कहना है कि जब वो अपनी बच्ची से बिछड़ गई थी तभी से वो ऐसी हो गई है। आज शायद तुमको देख कर कुछ याद आ जाएं। रमेश ने रोते हुए कहा क्या मैं मिल सकता हूं? वो सज्जन ने एक नौकर को बुलाया और कहा कि उर्मी के कमरे में ले जाओ। फिर रमेश धीरे धीरे सीढ़ी चढ़ कर कमरे तक गया और बोला उर्मी। ये नाम सुनते ही उर्मी को एक कम्पन सा हुआ और उसने रमेश को देख कर दंग रह गई। और बोली आप, आपको कहीं देखा है। रमेश ने कहा उर्मी तुम मेरी उर्मी हो।हम हुकुलगंज में रहते थे याद करो। अम्मा जी, बाबूजी, घर के सभी लोग कालेरा नामक महामारी से चल बसे। मैं अलिगढ में रहता हूं। तुम्हारा पुरा परिवार था। ये तस्वीर देखो शायद तुम्हें कुछ याद आ जाएं। उर्मी तो अचंभित हो कर सब कुछ देखने लगी और सुनने लगीं। उर्मी तुम्हारी परी मेरे पास है। ये सुनकर ही उर्मी एक दम पागलों जैसी रोने लगी मुझे परी के पास जाना है। रमेश ने कहा हां चलो हम यहां से चले।
फिर रमेश उर्मी को लेकर नीचे आ गया। अमित भी उठ खड़ा हुआ। वो सज्जन बोले उर्मी बेटी तुम जाओ तुम्हारे अपने तुम्हें लेने आए हैं। उर्मी ने रोते हुए कहा पापा मेरी परी।। सज्जन बोले हां बेटा तुम जाओ।
रमेश और अमित ने उस सज्जन आदमी को धन्यवाद दिया और वहां से निकल गए।
चौकी दार भी आश्चर्य होकर देखता रहा।

पुलिस की गाड़ी में तीनों बैठ गए और फिर सीधे पुलिस अधीक्षक के पास जाकर जहां जहां हस्ताक्षर करना था कर दिया तीनों ने। फिर वहां से वापस होटल के लिए निकल पड़े। रमेश ने तो उम्मीद ही छोड़ दिया था पर शायद अम्मा जी की आत्मा ने ही ये सब कर दिखाया। कुछ देर बाद ही सब होटल पहुंचे और फिर कमरे में पहुंच कर ही चन्दू ने देखते ही कहा उर्मी बहु तुम। उर्मी को तो कुछ भी याद नहीं आ रहा था। रवि, रत्ना दोनों ही दौड़ कर चाची को गले लगा लिया।पर चाची तो उनको देख रही थी। फिर परी ने आते ही कहा मां ओ मां।ये आवाज़ सुनकर उर्मी दौड़ कर परी से लिपट गई और उसको चुमने लगी। फिर रमेश ने चन्दू को भी सारी बात बताई और रवि और रत्ना को भी सब कहा। अमित ने कहा हां इसी खुशी में मैं अभी मिठाई लेकर आता हूं। उर्मी ने कहा परी कहा चली गई थी बेटी।।परी ने कहा हां मां, मुझे तो बाबा ने बचाया।। आज मुझे तुम भी मिल गई।हम लोग हकीम पुर भी जाएंगे। उर्मी ने कहा नाम सुना सा लग रहा है पर कुछ याद नहीं। रमेश ने कहा तुम चिंता मत करो हम अलिगढ जाकर डाक्टर दिखाएंगे।
फिर अमित रसगुल्ले और खीर क़दम लेकर आया और चन्दू को बोला भाई सबको खिलाओ आज बहुत खुशी का दिन है। फिर चन्दू ने सबको मिलकर खाया। रमेश ने कहा चलो अब खाना खाने चले।परी तो बहुत खुश थी अपनी मां को पाकर।।पर उर्मी परी के अलावा किसी को पहचान नहीं पा रही थी। एक तो तीन साल गुजर चुका था। सभी होटल के नीचे पहुंच गए और खाने के लिए बैठ गए। रमेश ने सारा खाना जो,जो उर्मी को पसंद था वो सब मंगवा लिया। सभी लोग खाने लगे। उर्मी परी को खिलाने लगी।परी ने कहा मां तुम भी खाओ ना, देखो तो बाबा ने तुम्हारे पसंद का सारा खाना मंगवाया है।
उर्मी ने कहा हां पर मैं तो सिर्फ तुम्हें ही जानती हुं। रमेश ने कहा हां ठीक है कोई बात नहीं कर हमलोग वापस जा रहे हैं। अमित ने कहा हां ये ही ठीक है। बाबा के पास एक बार फिर जाना होगा। ये कहते हुए सब खाना खा कर कमरे में आ गए।परी अपनी मां के साथ ही सो गई। उर्मी ने चन्दू से सब बातें पुछ रही थी क्योंकि उर्मी को भी अजीब सा लग रहा था। बड़ी कशमकश में थी वो।। फिर सभी ने अपना बैग लगा लिया। रमेश ने कहा अमित टिकट बनाने गया है। उर्मी बड़े ध्यान से फोटो देख रही थी कि क्या सच में वो उर्मी ही थी या फिर कोई और।। अमित ने कहा कल दो बजे की ट्रेन है। रवि और रत्ना ने कहा चाचू आप बिल्कुल चिंता मत करो चाची को सब याद आ जाएगा।
रमेश ने कहा हां बच्चों। उर्मी बड़े ध्यान से सबकी बातें सुन रही थी। फिर इसी तरह उनको वापस जाने का दिन भी आ गया।सब तैयार हो नीचे पहुंच गए । दोपहर का भोजन करके ही निकल गए। एक गाड़ी बुक करवा लिया था।समय से पहले ही स्टेशन पहुंच गए थे।परी तो मां को छोड़ नहीं रही थी।

फिर सभी गाड़ी आने का इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद ही गाड़ी आ गई। सभी अच्छी तरह से गाड़ी में अपने सीट नम्बर पर बैठ गए।
उर्मी इधर उधर देखने लगी कि क्या बात है। रमेश ने कहा कुछ चाहिए क्या? उर्मी ने कहा हां मुझे अदरक वाली चाय चाहिए।। चन्दू ने कहा अरे हां उर्मी बहु को तो बहुत पसंद हैं। फिर एक चाय वाले से चाय और बिस्कुट खाने लगे। फिर गाड़ी चलने लगी। उर्मी ने कहा हम कहा जा रहे हैं? रमेश ने कहा हां हम अलीगढ़ जा रहें हैं वहां अपना घर है। तुम्हारा तो हमेशा से सपना था कि मेरे पास आकर रहो। आज तुम्हारा सपना पूरा हो जाएगा। शायद अम्मा जी का भी। उर्मी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। रत्ना और रवि तरह की बातों से अपनी चाची को याद दिलाने की कोशिश में लगे हुए थे। फिर सभी दोपहर में जब एक स्टेशन पर गाड़ी रुक गई तो अमित और चन्दू उतर गए और वहां से गर्म गर्म पुरी और आलू की सब्जी लेकर आ गए। फिर सभी ने खा लिया। और गाड़ी भी चल पड़ी। उर्मी परी को लेकर सो गई। रत्ना रवि भी सो गए अपनी अपनी सीट पर। अमित और रमेश बात करने लगे कि आगे अब क्या करना होगा। अमित ने कहा सबसे पहले उर्मी भाभी को लेकर हकीमपुरजाना होगा और वहां पर बाबा ने जैसा कहा था वैसा ही करना होगा। फिर वापस आ कर बाबा के पास भी जाना होगा। रमेश ने कहा हां ठीक कहा तुमने।।
फिर इसी तरह से अपना अलीगढ़ शाम तक आ गया। सभी लोग स्टेशन पर उतरने लगे। फिर एक कुली को रमेश ने बुलाया और कहा सारा सामान बाहर तक ले चलो। फिर सभी लोग उतर गए। उर्मी भी परी को गोदी लेकर उतर गई। फिर बाहर रमेश ने एक गाड़ी बुक करवा लिया। सभी लोग आराम से बैठ गए। अमित ने कहा अच्छा हुआ कि कल रविवार है। रमेश ने कहा हां दोस्त तुम रुक जाना। अमित ने कहा हां यार थकान सी हो गई है। फिर सब घर पहुंच गए। चन्दू ने सामान निकाल लिया और रमेश ने ड्राईवर को पैसे दिए और सबको लेकर अपने घर पहुंच गए। चन्दू ने जल्दी जल्दी साफ सफाई करके नहाने चला गया। फिर सबको नींबू वाली चाय पिलाई। रमेश ने कहा चन्दू आज सबके लिए अम्मा जी वाली खिचड़ी बनाओ और साथ आलू दम बना दो।क्यों बच्चों ठीक है ना।
रमेश ने उर्मी को कहां आओ उर्मी तुम्हारा कमरा दिखा दूं।परी ने कहा हां बाबा मै मां को लेकर जाती हुं। फिर सभी नहा धोकर कर भोजन करने बैठे। अमित ने कहा वाह क्या खुशबू।। फिर सभी देसी घी के साथ खिचड़ी और आलू दम के साथ खाने लगे। रमेश ने कहा उर्मी खाकर बताओ कैसा लगा? उर्मी ने कहा हां, स्वाद बहुत ही जाना पहचाना लग रहा है वहीं अदरक और हरी मिर्च का तड़का कहीं तो खाया है। पता है ये वाली खिचड़ी मैंने वहां भी कई बार बनाया था ना जाने कैसे जैसे मुझे पता हो। फिर सभी खाना खा कर सो गए। रमेश ने कहा अमित आज हम तुम साथ सोते हैं, पता नहीं उर्मी को कैसा लगें जब तक उसे सब याद ना आए तब तक।। अमित ने कहा हां भाभी को थोड़ा सा समय देना चाहिए।परी बोली हां मां चलो अब सोने चले। फिर दोनों अन्दर जा कर सो गए।
कमरे में बिस्तर पर बैठ गए दोनों दोस्त और फिर अमित बोला भाई तू सबसे पहले भाभी को हुकुलगंज लेकर जा शायद उन्हें कुछ याद आ जाएं।
उधर ने अपनी मां को कहा मां लोरी सुनाओ ना। उर्मी ने तुरंत जैसे वहीं धुन गुनगुनाने लगी जो रोज रमेश गुनगुना कर परी को सुलाता था।गाने की आवाज से रमेश भी आश्चर्य हो गया कि ये गाना तो हम और उर्मी भी गाया करते थे।
फिर सभी थके हुए थे तो सो ही गए। अगले दिन चन्दू ने सबको चाय नाश्ता कराया। रमेश ने पूछा उर्मी रात को नींद आई थी? उर्मी ने कहा हां बहुत अच्छी नींद आईं। आश्चर्य की बात थी कि रमेश को भी अच्छी नींद आ गई थी कहीं ना कहीं अम्मा जी की आत्मा को थोड़ी शांति मिल गई होगी ये बात रमेश मन में सोचा । फिर सभी लोग उर्मी को हर के बात ,हर एक उत्सव याद दिलाने की कोशिश करने लगे। फिर सभी कैरम खेलने बैठ गए। उर्मी बहुत आश्चर्य से देख रही थी और फिर बोली अरे क्या आप लोगों का खिट पिट शुरू हो गया। ये बात सुनते ही रमेश ने कहा अरे उर्मी तुम पहले भी ये बोला करती थी जब सर्दी में हम जाते थे और सब छत पर जाकर खेलते थे तभी तुम वहां पापड़ सुखाने आती थी और ये सब कहती थी। उर्मी ने कहा कुछ कुछ धुंधला सा याद है।
फिर सभी दोपहर का खाना खाने बैठ गए।आलू गोभी की सब्जी, दाल, चावल, भाजी सब खाने लगे। रमेश ने कहा वाह चन्दू क्या बनाया है। चन्दू ने कहा बेटा उर्मी बहु ने आज सब खाना बनाया वहीं सारे मसाले जो अम्मा जी दिया करती थी। रमेश की आंखों में एक खुशी के आंसु बहते जा रहे थे।
शाम को सोने के बाद सभी नाश्ता करने बैठ गए तो रमेश ने कहा कल हमलोग हकीम पुर जा रहें हैं। रमेश ने मन में सोचा एक आखरी कोशिश कर लेना चाहिए। और इन सब के बीच रमेश ने हकीम पुर के बारे में जानकारी सब दे दिया उर्मी को। कहानी सुनकर उर्मी रोने लगी और फिर बोली पर मुझे कुछ कुछ याद आ रहा है। मैं जोधपुर कैसे पहुंची नहीं पता। रमेश ने कहा कोई बात नहीं उर्मी।तुम मिल गई हो और मुझे मेरे घर को और कुछ नहीं चाहिए।
अमित ने कहा भाई मुझे अब निकलना होगा कल से फिर आफिस भी जाना है। रमेश ने कहा हां मैं और तुम्हें नहीं रोकुगा। तुम्हारा ये कर्ज मैं कैसे चुकाऊंगा भाई। अमित ने कहा दोस्ती में ये सब नहीं होता। चन्दू ने कहा ये लिजिए रात का खाना आलू के परांठे और साग उर्मी बहु ने जल्दी जल्दी बना कर दिया। अमित ने कहा अरे वाह और क्या चाहिए मुझे। रमेश ने कहा आते रहना भाई।



क्रमशः

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