बेदराम प्रजापति "मनमस्त" लिखित उपन्यास मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन | हिंदी बेस्ट उपन्यास पढ़ें और पीडीएफ डाऊनलोड करें होम उपन्यास हिंदी उपन्यास मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - उपन्यास उपन्यास मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - उपन्यास बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा हिंदी कविता (21) 960 5.1k 3 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 1. सरस्वती बंदना (मॉं शारदे) मॉं शारदे! मृदु सार दे!!, सबके मनोरथ सार दै!!! झंकृत हो, मृदु वीणा मधुर, मॉं शारदे, वह प्यार दे।। अज्ञान तिमिरा ध्वंस मॉं, ज्ञान की अधिष्ठात्री। विश्व ...और पढ़ेकण-कण विराजे, दिव्य ज्योर्ति धात्री।। हम दीन-जन तेरी शरण, सब कष्ट से मॉं! तार दे।।1।। तुम्हीं, तुम हो भवानी अम्बिके, अगणित स्वरूपों धारणी। सुख और समृद्धि तुम्हीं, सब कष्ट जग के हारिणी।। कर-वद्ध विनती है यहीं, सु-मनों भरा उपहार दे।।2।। पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें पूर्ण उपन्यास मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 1 150 504 मैं भारत बोल रहा हूं 1 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 1. सरस्वती बंदना (मॉं शारदे) मॉं शारदे! मृदु सार दे!!, सबके मनोरथ सार दै!!! ...और पढ़ेहो, मृदु वीणा मधुर, मॉं शारदे, वह प्यार दे।। अज्ञान तिमिरा ध्वंस मॉं, ज्ञान की अधिष्ठात्री। विश्व मे कण-कण विराजे, दिव्य ज्योर्ति धात्री।। हम दीन-जन तेरी शरण, सब कष्ट से मॉं! तार दे।।1।। तुम्हीं, तुम हो भवानी अम्बिके, अगणित स्वरूपों धारणी। सुख और समृद्धि तुम्हीं, सब कष्ट जग के हारिणी।। कर-वद्ध विनती है यहीं, सु-मनों भरा उपहार दे।।2।। सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 2 99 375 मैं भारत बोल रहा हूं 2 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 4. मैं भारत बोल रहा हूं मानवता गमगीन, हृदय पट खोल रहा हूं। सुन सकते ...और पढ़ेसुनो, मैं भारत बोल रहा हूं ।। पूर्ण मुक्तता-पंख पांखुरी नहीं खोलती। वे मनुहारी गीत कोयलें नहीं बोलती। पर्यावरण प्रदुषित, मौसम करैं किनारे। तपन भरी धरती भी आँखें नहीं खोलती। जो अमोल, पर आज शाक के मोल रहा हूं।।1।। गहन गरीबी धुंध, अंध वन सभी भटकते। भाई भाई के बीच,द्वेष के खड़ग खटकते विद्वेषित हो गया धरा का चप्पा सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 3 66 378 मैं भारत बोल रहा हूं 3 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 8.जागना होगा फिर घिरा, घर में अंधेरा, जागना होगा। नींद में डूबे चितेरे, जागना होगा।। ...और पढ़ेभी ऐसी घनी काली निशा आई- तब चुनौती बन गयी थी तूलिका तेरी। रंग दिया आकाश सारा सात रंगो से- रोशनी थी चेतना के द्वारा की चेरी। सो गया तूं, सौंप जिनको धूप दिनभर की- ले चुके बे सब बसेरे-जागना होगा।।1।। नींद में ................................................ दूर तक जलते मरूस्थल में विमल जल सा सहज-शीतल, गीत उसका नाम होता सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 4 81 372 मैं भारत बोल रहा हूं 4 ( काव्य संकलन ) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 11.परिश्रम व्यर्थ होता है कभी क्या-यह परिश्रम, कर्म की गीता ...और पढ़ेबोलता है। बिन्दु में वैभव, प्रगति प्रति बिम्ब बनते, श्वास में बहकर सभी कुछ खोलता है।। सृष्टि की सरगम, विभा विज्ञान की यह, क्रांन्ति का कलरव, कला की कल्पना है। विग्य वामन का विराटी विभव बपु है, गर्व गिरि, गोधाम जम की त्रास ना है। श्रवण करना है, श्रवण को खोल कर के, मुक्ति गंगा का विधाता बोलता सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 5 93 561 मैं भारत बोल रहा हूं 5 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 15.संकल्प करलो निराला न्याय की होंली जले जहॉं, सत्य का उपहास हो, संकल्प लो! ...और पढ़ेराज-सी दरबार की दहरी चढ़ो ना।। जन हृदय की बीथियों की धूल को कुम-कुम बनाना, शुष्क मुकुलित पंखुडी को, शीश पर अपने बिठाना। अरू करो श्रंगार दिल से-धूल-धूषित मानवी का- सोचलो पर, दानवों की गोद में नहीं भूल जाना।।1।। फूंस की प्रिय झोंपडी में, सुख अनूठे मिले सकेंगे, दीपकों की रोशनी में, फूल दिल के खिल सकेंगे। सदां सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 6 348 मैं भारत बोल रहा हूं 6 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 19.गीतः- यतन येसे करो प्यारे यतन येसे करो प्यारे, सभी साक्षर जो हो ...और पढ़ेधन्य जीवन तभी होगा, निरक्षरता मिटा पाये।। अनेकों पीढ़ियाँ वीती, जियत दासत्व का जीवन। बने साक्षर हमी में कुछ, गुलामी तब भगा पाये।। अभी आजाद हो कर भी, निरक्षरता गुलामी है। यहीं अफसोस हैं प्यारे, इसे कब दूर कर पायें।। प्रशिक्षण हैं इसी क्रम में, चलें हम कर कलम लेकर रहेगा नहिं अंधेरा अब, जो साक्षर रवि- सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं -काव्य संकलन - 7 63 306 मैं भारत बोल रहा हूं 7 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 24.कवि की महता बृहद सागर से भी गहरे, सोच लेना कवि हमारे। और ...और पढ़ेआसमां से, देखना इनके नजारे।। परख लेते हवा का रूख, चाल बे-मानी सभी। बचकर निकल पाता नहीं, ऐक झोंखा भी कभी। तूफान, ऑंधी और झॉंझा-नर्तनों को जानते। हवा का रूकना, न चलना, उमस को पहिचानते। दोस्ती के हाथ इनसे, प्रकृति ने भी, है पसारे।।1।। सूर्य का उगना और छिपना, इन्हीं की जादूगरी है। रवि जहॉं पहुंचा नहीं सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 8 378 मैं भारत बोल रहा हूं 8 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 28.करार इक करार ने, कई करारें ढहा दईं। गहरी दरारें, मानवी में आ ...और पढ़े क्या कहैं इस देश के परिवेश को, भाव, भाषा, भावना अरू वेष को। हर कदम पर मजहवी पगडंडियाँ, हर दिशा में, ले खड़े सब झण्डियाँ।। धर्म के थोथे, घिनौने खेल की, चहु दिशा में घन-वदलियाँ छा गईं।।1।। अर्थ की खातिर मनुजता खो दयी, देख कर हर आँख कितनी रो दयी। करवट बदलते ही रहे सब हौंसले हौंसले समुझे, जो सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 9 51 315 मैं भारत बोल रहा हूं 9 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 33. शहीदों को........... अब-भी कुछ ऑंखों से अश्क बहालो साथी! पाषाणों का हृदय दरकता ...और पढ़ेआ रहा। वे-शहीद सीमा पर कैसे हुऐ हलाहल क्या कहता आबाम, नहिं कुछ नजर आ रहा?।। सोचो! फिर भी कैसे-कैसे जश्न हो रहे, तंदूरी का काण्ड, ताज को भूल गऐ क्या? कितने वर्ष बीत गऐ, ऐसी खिलबाड़ों में, चंद्र, भगत, आजाद का पानी उतर गया क्या? ऐसी गहरी नींद सो गऐ, इतनी जल्दी, अब तो जागो वीर! समर-सा नजर सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं -काव्य संकलन - 10 54 291 मैं भारत बोल रहा हूं (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 37. कवच कुण्डल विना व्याकरण ना पढ़ा, व्याख्या करते दिखा, शब्द-संसार को जिसने जाना नहीं। स्वर से व्यजंन बड़ा, या व्यजंन से स्वर, फिर भी हठखेलियाँ, बाज माना ...और पढ़े नहीं मौलिक बना, अनुकरण ही किया, ऐसे चिंतन-मनन का भिखारी रहा, आचरण में नहीं, भाव-भाषा कहीं, नीति-संघर्ष से दूर, हर क्षण रहा।। जिंदगी के समर, अन्याय पंथी बना, बात की घात में, उन संग जीवन जिया। अनुशरण ही किया, उद्वरण न बना, मृत्यु के द्वार नहीं कोई धरणा दिया।। कोई साधक बना, न कहीं उपकरण, विना कवच-कुण्डल सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 11 54 324 मैं भारत बोल रहा हूं11 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 43. सविधान की दहरी आज तुम्हारे इस चिंतन से, सविंधान की दहरी कॅंपती। श्रम पूंजी के खॉंडव वन में, जयचंदो की ढपली बजती। कितना दव्वू सुबह हो गया, ...और पढ़ेसोचा था कभी किसी ने- किरणो का आक्रोश मिट गया, शर्मी-शर्मी सुबह नाचती।। कलमों की नोंके क्या वन्दी? इन बम्बो की आवाजों में। त्याग-तपस्या का वो मंजर, लगा खो गया इन साजों में। पगडण्डी बण्डी-बण्डी है, गॉंव-गली की चौपालें-भी- लोकतंत्र में दूरी हो गई, प्रजातंत्र नकली-वाजों में।। तरूणाई झण्डों में भूली, डण्डों की बौछार हो रही। धर्मवाद के सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 12 51 330 मैं भारत बोल रहा हूं12 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 47. तौंद का विस्तार तौंद की पैमाइस, किसने कब लई। जो मलाई देश की, सब चर गई।। आज जनता मै, यही तो रोश है। लोग कहते ...और पढ़ेयह दोष है। फिर कहो? भंडार खाली क्यों हुऐ- अंतड़ी क्यों? यहाँ पर वेहोश है। यह अंधेरी रात, कहाँ से छा गई।।1।। तौंद का विस्तार, दिन-दिन बढ़ रहा। जो धरा से आसमां तक चढ़ रहा। ऐक दूजे की, न कहते, बात सच- बो बेचारा पेट खाली, दह रहा। ईंट, पत्थर, लोह, सरिया खा गई।।2।। यदि नहिं तो सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 13 54 285 मैं भारत बोल रहा हूं13 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 51. खूब कबड्डीं खिली------ खूब कबड्डीं खिली कि,अब तो पाला बदलो। अंदर लग गई जंग कि,अब तो ...और पढ़ेबदलो। भुंसारो अब भयो, रात की करो न बातें। खूब दुलत्तीं चलीं, चलें नहीं अब वे लातें। उठ गई अब तो हाठ, अपऔं सामान बॉंध लो- सबें ऑंधरों करों, चलें नहीं अब वे घाते। गयीं चिरईयाँ बोल कि,करबट लाला बदलो।। खूब पुजापे दऐ, मिन्नते करी रात-दिन। सौ तक गिनती भयी, लौटके फिर से अब गिन। तुमने एक न सुनो अभी पढ़ो मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 14 57 294 मैं भारत बोल रहा हूं14 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 56. सोच में गदहे.......... राजनीति से दुखित हो, गदहे करत विचार। सुसाइड करते पुरूष, हमरो नहीं यह कार्य।। ...और पढ़ेसंघर्षी जीवन जिया, कर्मठता के साथ। हलकी सोच न सोचना, जिससे नव जाये माथ।। इनने तो हम सभी का, चेहरा किया म्लान। धरम-करम और चरित्र से, हमसे कहाँ मिलान।। जाति पंचायत जोरकर, निर्णय लीना ऐक। तीर्थांचल में सब चलो, छोड़ नीच परिवेश।। संत मिलन पावन धरा, हटै पाप का बोझ। चलो मित्र अब वहॉं सभी, जहॉं जीवन सुनो अभी पढ़ो अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ बेदराम प्रजापति "मनमस्त" फॉलो