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नासिरा शर्मा की चुनिंदा कहानियां - उपन्यास
Nasira Sharma
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
तीसरा मोर्चा सारा मोहल्ला साँय-साँय कर रहा था। रहमान को राहुल कहीं नज'र नहीं आया। वह कुछ देर परेशान-सा राहुल के घर के सामने खड़ा रहा, फि़र जाने कैसे उसे इस सन्नाटे से भय लगने लगा। महसूस हुआ, बंद घरों से झाँकती आँखें उसे घूर रही हैं। वह तेज'ी से मुड़ा और लगभग भागता हुआ गली पार करने लगा। रीढ़ की हड्डी में अजीब सनसनाहट दौड़ रही थी, जैसे उसे पीछे से छूटती गोली का इंतज'ार हो।दौड़ता रहमान अपनी फ़ूली साँस के साथ सड़क तक पहुँचा और चेहरे का पसीना पोंछता हुआ बस पर सवार हुआ। वह"ात उसके रोम-रोम में
तीसरा मोर्चा सारा मोहल्ला साँय-साँय कर रहा था। रहमान को राहुल कहीं नज'र नहीं आया। वह कुछ देर परेशान-सा राहुल के घर के सामने खड़ा रहा, फि़र जाने कैसे उसे इस सन्नाटे से भय लगने लगा। महसूस हुआ, बंद ...और पढ़ेसे झाँकती आँखें उसे घूर रही हैं। वह तेज'ी से मुड़ा और लगभग भागता हुआ गली पार करने लगा। रीढ़ की हड्डी में अजीब सनसनाहट दौड़ रही थी, जैसे उसे पीछे से छूटती गोली का इंतज'ार हो।दौड़ता रहमान अपनी फ़ूली साँस के साथ सड़क तक पहुँचा और चेहरे का पसीना पोंछता हुआ बस पर सवार हुआ। वह ात उसके रोम-रोम में
नई हुकूमत हाजरा अधेड़ उम्र की दहलीज़ पारकर लुटी-पिटी तन व तन्हा शौहर के घर से जब माँ की चौखट पर पहुँची तो जबानी की दौलत लुटा चुकी थी। खिचड़ी होते बाल, रूखा चेहरा, वीरान आँखें और साथ में ...और पढ़ेचंद रंग-उड़े टीन के बक्से जो रिक्शेवाले ने दरवाज़े के अंदर धकेल दिए थे।आँगन में कबूतरों को दाना डालती हाजरा की माँ ने फ़ीकी आँखों से बेटी को ताका फि़र जज्वात से बिलबिला घुटनों पर हाथ रख बड़ी मुश्किलों से उठी और बेटी की बलाएँ ले, उसे छाती से लिपटा सुबक पड़ी। माँ-बेटी जब गले मिल चुकीं तो एकएक हाजरा
मेरा घर कहाँ लाली धोबिन की मिट्टी तभी से पलीद थी जब से उसका मरद मरा था। तीन बच्चों के संग अड्डे पर जाना और घर-घर से जाकर कपड़े समेटना अब उसके बस की बात नहीं रह गई थी। ...और पढ़ेलड़का साल भर का था। कभी गरम इस्तरी पकड़ लेता तो कभी धुले कपड़े पर अपना लकड़ी का चटुवा फ़ेंक धब्बा लगा देता। तंग आकर लाली ने घरों में काम करने की ठानी। बरतन, झाड़ू और आटा गूँधने से उसके पास इतने पैसे आने लगे कि वह चैन से रोटी के साथ लहसुन की चटनी खा सकती थी। बड़ी लड़की
यहूदी सरगर्दान शराबख़ाने में मेरी मेज़ के ठीक सामने वह बैठा था। मुझे यहाँ बैठे लगभग चार घंटे हो रहे थे और इस बीच मैं उसे सिप़फऱ् मयख़ोरी करते देख रहा था। अपने में डूबा जाने किन वादियों का ...और पढ़ेतय कर रहा था। बड़ी देर से दबी ख़्वाहिश को अब ज़्यादा देर न दबा सका। बैरे को बुलाकर मैंने कार्ड पर उसके लिए पैग़ाम लिखा और बैरे को थमा दिया।बैरे के हाथ से लेकर उसने पैग़ाम पढ़ा। देर तक उस पर नज़र गड़ाए रहा। फिर उसने मेरी तरप़फ़ देखा और बहुत शालीनता के साथ अपनी कुरसी से खड़ा हो
सरहद के इस पार खपरैल तड़ातड़ कच्चे आँगन में गिरकर टूट रही थी। मगर किसी में हिम्मत नहीं थी कि आँगन में निकलकर या फिर दालान से ही रेहान को आवाज़ देकर मना करता। अम्मा को दौरा पड़ गया ...और पढ़ेहाथ-पैर ऐंठ गए थे। मुँह से झाग निकल रहा था। उनके पास सिप़फऱ् एक ही अभिव्यक्ति रह गई थी और वह थी गिरकर बेहोश हो जाना। फ्मुसीबत जब आती है तो चारों तरप़फ़ से आती है!य् दद्दा ने अम्मा का हाथ सहलाते हुए कहा।फ्रोने से काम नहीं चलेगा लड़की। पीछे की खिड़की से किसी को पुकारो। शायद शकूर घर पर