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तीसरा मोर्चा

तीसरा मोर्चा

सारा मोहल्ला साँय-साँय कर रहा था। रहमान को राहुल कहीं नज'र नहीं आया। वह कुछ देर परेशान-सा राहुल के घर के सामने खड़ा रहा, फि़र जाने कैसे उसे इस सन्नाटे से भय लगने लगा। महसूस हुआ, बंद घरों से झाँकती आँखें उसे घूर रही हैं। वह तेज'ी से मुड़ा और लगभग भागता हुआ गली पार करने लगा। रीढ़ की हड्डी में अजीब सनसनाहट दौड़ रही थी, जैसे उसे पीछे से छूटती गोली का इंतज'ार हो।
दौड़ता रहमान अपनी फ़ूली साँस के साथ सड़क तक पहुँचा और चेहरे का पसीना पोंछता हुआ बस पर सवार हुआ। वह"ात उसके रोम-रोम में भर गई थी। राहुल से मुलाक"ात का न होना उसको कई तरह से ख़तरे की सूचना दे रहा था। कुछ महीने पहले कॉलेज के कई दोस्तों ने तय किया था कि वह किसी भी हालत में कश्मीर नहीं छोड़ेंगे, वरना यह सिरफि़रे लोग जाने क्या अनर्थ कर डालेंगे। मगर इस बीच राहुल के दूर-क"रीब के रि"तेदार, दोस्त और यहाँ तक कि बड़ा शादीशुदा भाई सपरिवार जम्मू की तरफ़" निकल गया था। वहाँ भी उन्हें जब परे"ाानी हुई तो वह दिल्ली जाकर टिके, मगर वहाँ भी दिल क्या ख़ाक लगता। न वह ख़ुशबू थी न वह मिट्टी, परेशानी से भटक रहे थे।
घर पहुँचकर भी रहमान का दिल नहीं सँभला। वक्'त दूसरे दोस्तों तक पहुँचने का नहीं था। उसने अपना सामान समेटा। उसके बूढ़े माँ-बाप काफ़"ी दिनों से जि'द बाँधे
हुए थे कि इससे पहले कि सिर पर कफ़"न बाँधे दस्ते उसे उठा ले जाएँ वह कुछ दिनों के लिए कहीं रूपो"ा हो जाए वरना वह भी दूसरे नौजवानों की तरह धर लिया जाएगा
और ग'लत रास्ते पर चलने पर मजबूर हो जाएगा या फि़र सुरक्षा पुलिस एवं फ़"ौज
की गोली का नि"ााना बन मर-खप जाएगा। बूढ़ों से किसी को क्या लेना-देना, सो उनकी फि़"क्र करना बेकार है। रोज'-रोज' के दबाव से तंग आकर रहमान कुछ महीने दूर-दराज' के किसी इलाक"े में जाने पर राज'ी हो गया था, जिसकी इत्तला वह राहुल को देना चाह रहा था।
माँ-बाबा से विदा होकर रहमान भारी मन पगडंडी उतरने लगा। उसे बराबर राहुल का ख़याल सता रहा था। राहुल और वह बचपन से साथ पढ़े थे। अब दोनों बेकार थे। दोनों को नौकरी की सख़्त ज'रूरत थी। वे न तो बाग'ान के मालिक थे न क"ालीनफ़"रोश ताजि'र, दस्तकारी उन्हें आती नहीं थी, बस अपने पुरखों की तरह उनके पल्ले नौकरी करना आया था, मगर इस हंगामे-भरे माहौल में नौकरी थी कहाँ|
बीहड़ बफ़"ीर्ले रास्ते से गुज'रने के बाद अब तिरछी ढलान थी, जहाँ चनार और पाइन के पेड़ों की रोक जगह-जगह उगी हुई थी। आसमान से बातें करते तनावर दरख़्तों को छूते, पकड़ते जब वह नन्हे आबशार के पास पहुँचा तो वहाँ किसी को औंधे बदन पड़ा देखा। डर के मारे उसके सारे बदन में झुरझुरी दौड़ी और वह रास्ता काटकर जाने लगा, मगर जब नंगी पीठ पर बाल बिखरे देखे तो वह ठिठककर खड़ा हो गया और पेड़ के पीछे छुपकर धुँधलके में आँखें फ़ाड़-फ़ाड़ उसे देखने लगा। तभी पैर की आहट हुई और पत्तों पर पदचाप की आवाज' सुनाई पड़ी। रहमान के माथे पर पसीना छलक आया और उसे लगा कि बंदूक" की तनी नाल उसकी तरफ़" उठी हुई है। वह दम साधकर पेड़ के पीछे तने से चिपक गया।
‘यह तो राहुल है!’ रहमान ने संतोष की साँस ली और माथे से पसीना पोंछा।
राहुल चुल्लू से पानी उस लड़की के आधे चेहरे पर छिड़क रहा था। पत्तों की खड़खड़ाहट सुनकर वह झपटकर खड़ा हुआ और भागने को ही था कि रहमान उसके क"रीब पहुँचकर बोला, ”राहुल, मैं रहमान---“
”ओह!---मैं डर गया कि---“
”डर तो मैं भी रहा हूँ, चलो यहाँ से---“
”इसको छोड़कर|“
”जि'दा है|“
”शायद बेहोश।“
”कौन है|“
”पता नहीं।“
”यहाँ ठहरना ठीक है|“
”घरवाले आगे चल रहे हैं। मैं ज'रूरत पूरी करने के लिए रुका तो इस पर नज'र पड़ी और---“
”यह दुलाई इसे उढ़ा दूँ|“
”हाँ, कल रात रास्ते में एक लड़की हमें भागती हुई नज'र आई थी। उसके पीछे भारी जूतों की आवाज'ें भी, चाहकर भी हम कुछ न कर सके, स्वयं डरकर दुबक गए, साथ में बहन जो थी।“
”शायद---“
”होश आ गया।“
लड़की ने आँखें खोलीं। उन्हें अपने ऊपर झुका देखकर चीख़ मारी, फि़र घबराकर बदन के नंगेपन को महसूस कर घबराई, फि़र दुलाई अपने हाथों से पकड़ी और उठकर भागने की तैयारी करने लगी।
”बहन, हम तुम्हारी कुछ मदद कर सकते हैं|“
हमदर्दी-भरा स्वर सुन वह लड़की चौंकी और भयभीत नज'रों से उन्हें घूरने
लगी।

दोनों चुपचाप पेड़ के तने से पीठ लगाए बैठे रहे। उनके झुके सर पर नज'र डालती
हुई वह लड़की कराहती हुई धीरे-से उठी और दलाई से उसने अपने को लपेटा, फि़र पेड़ की आड़ में जाकर शायद फ़टे कपड़ों से किसी तरह बदन ढका हो। दोनों कुछ
समझ नहीं सके मगर जब वह घुटनों में मुँह छुपाकर बैठ गई तो उसकी सिसकियाँ उन्हें सुनाई पड़ीं।
”बहन, यहाँ ठहरना ख़तरनाक है---बुरा न समझो तो मेरा परिवार आगे चल रहा है, तेज' चलें तो उन तक जल्द पहुँच सकते हैं। फि़र कोई ख़तरा नहीं होगा।“
पेड़ के उधर ख़ामोशी छाई रही, फि़र कराहने की आवाज' आई जैसे वह खड़ा होना चाह रही हो मगर बदन में दम न हो। दोनों ने चाहा, लपककर मदद करें, फि़र कुछ सोचकर ठहर गए।
”तुम्हारा नाम क्या है|“
”किस मोहल्ले की हो|“
”तुम्हारे बाबा का नाम क्या है|“
हर सवाल पर ख़ामोशी छाई रही। फि़र राहुल और रहमान के मन में भी कई तरह के प्रश्न उठ रहे थे कि इसे साथ ले जाना भी ठीक है या नहीं| हो सकता है, यह ख़ुद भी हमारे साथ न जाना पसंद करे और अपने घर लौटना चाहे, मगर जब यह कुछ बोले तब ही तो आगे कुछ किया जा सकता है।
”गूजर है|“
”शायद पंडित।“
”मुसलमान भी हो सकती है|“
”मगर यह तय है कि कश्मीरी है।“
दोनों फि़र चुपचाप बैठ गए और इंतज'ार करने लगे कि वह कुछ कहे, कुछ बोले, मगर उधर सन्नाटा रहा। राहुल को घरवालों की भी चिता सता रही थी कि माँ, बहन और बाबा परेशान हो रहे होंगे। छोटे भाई को भी बुख़ार चढ़ा था।
”कुछ बोलो, साथ चलना है तो चलो बहन, यहाँ यूँ पड़े रहना हम सबके लिए ख़तरनाक है।“
”घर जाना है तो वह कहो, हम पहुँचा देंगे।“
थोड़ी देर ख़ामोशी छाई रही, फि़र आँसू पोंछती वह लड़की सर झुकाए, शर्म से ज'मीन पर धँसी-धँसी, छोटे-छोटे क"दम रखती सामने आन खड़ी हुई। रहमान और राहुल की बेचैन नज'रें उसके चेहरे को देखने के लिए बेक"रार-सी एकसाथ उठीं मगर बालों और दुलाई की ओट में मुँह छुपा था।
”मैं राहुल हूँ, यह रहमान, हम दोनों बचपन के दोस्त हैं---अगर तुम हिदू हुईं तो हमारी बहन, अगर मुसलमान हो तो रहमान के रि"ते से हमारी बहन ही लगीं
---यदि उचित समझो तो कुछ अपने बारे में कहो ताकि---“
”मैं एक औरत हूँ और औरत की अस्मत तो हिदू-मुसलमान नहीं होती
जो---।“ लड़की की टूटी मगर नफ़"रत में डूबी थकी आवाज' उभरी।
राहुल और रहमान चौंक पड़े। दोनों ही हिदू-मुसलमान के घेरे को तोड़ पास-पास खड़े थे, मगर यह तीसरा---यह तीसरा मोर्चा---
”हिदू और मुसलमान तो सिफ़"र् वह मर्द होते हैं जो अपने मज'हब के उन्माद में औरत की आबरू लूटकर अपना धर्म निभाते हैं---मैं कौन हूँ---मेरा नाम, मेरा मज'हब क्या है| मेरा मोहल्ला, मेरा पता क्या है| बताऊँ आपको कि मैं दो बच्चों की माँ हूँ और बच्चों का बाप साल-भर से लापता है|“
”बहन, हमें माफ़" करना---हमने तो---“ रहमान श²मदा-सा हकलाया।
”आखि़र वह थे कौन|“ राहुल ने उत्तेजित हो पूछा।
”पता नहीं उनका मज'हब क्या था। वर्दी में सब एक-से लगते हैं। पहले उन्होंने मेरे शौहर का पता जानना चाहा---मुझे ख़ुद कहाँ पता था|---मेरे इंकार पर उन्होंने भूखे चूहे मेरी शलवार में डाल दिए---मेरे दोनों बच्चों को इतना पीटा कि वह दम तोड़ गए, फि़र---फि़र मुझे---मैं डर से सुन्न हो गई थी---मेरे चारों तरफ़" अँधेरा था---मेरे अंदर भी अँधेरा छा गया और---“
वह जवान औरत तने से सर टकराकर रो पड़ी। रहमान और राहुल ने अजीब श²मदगी-भरी बेबसी से एक-दूसरे को देखा, जैसे कह रहे होें, धर्म का तंग दायरा ही घुटन का अहसास नहीं दे रहा है बल्कि सियासत की बढ़ती सत्ता में इंसानियत खड़ी विलाप कर रही है। दोनों की नज'रें झुक गईं।
”तुम दोनों जाओ भाई---। मैं माँ हूँ। मुझे बच्चों को दफ़"नाना है---पत्नी हूँ
---मुझे अपने शौहर का इंतज'ार करना होगा---औरत हूँ इसलिए ज'ुल्म के खि़लाफ़" मुझे जि'दा रहना है---मुझे भागना या मुँह छुपाना नहीं है---मुझे अभी जि'दा रहना है।“
उस औरत ने अपने को सँभाला और दोनों की तरफ़" एक गहरी नज'र डाली, फि़र धीरे-धीरे करके वह आगे बढ़ी। रहमान और राहुल ने एक-दूसरे को देखा जैसे औरत की वापसी में उन्हें एक छुपा पैग'ाम मिला हो और एकाएक उनको अपना वायदा याद आ गया। राहुल ने रहमान के कंधे को थपका। रहमान ने गर्दन धीरे-से हिलाई और वापस मुड़ गया।
अपमान का अहसास चेहरों को नहीं, पूरी घाटी को कालिमा में डुबो गया था। उस कालिमा को चीरती एक औरत की काया, उसके कुछ दूर पर एक मर्द की छाया और बहुत बाद एक परिवार के क"दमों की आवाज' अँधेरे में डोल रही थी। यह सब क्षितिज की ओर बढ़ रहे थे।

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