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सरहद के इस पार

सरहद के इस पार

खपरैल तड़ातड़ कच्चे आँगन में गिरकर टूट रही थी। मगर किसी में हिम्मत नहीं थी कि आँगन में निकलकर या फिर दालान से ही रेहान को आवाज़ देकर मना करता। अम्मा को दौरा पड़ गया था। हाथ-पैर ऐंठ गए थे। मुँह से झाग निकल रहा था। उनके पास सिप़फऱ् एक ही अभिव्यक्ति रह गई थी और वह थी गिरकर बेहोश हो जाना।

फ्मुसीबत जब आती है तो चारों तरप़फ़ से आती है!य् दद्दा ने अम्मा का हाथ सहलाते हुए कहा।
फ्रोने से काम नहीं चलेगा लड़की। पीछे की खिड़की से किसी को पुकारो। शायद शकूर घर पर मिल जाए।य् दद्दा ने नरगिस से कहा जो माँ का चेहरा देख-देखकर रो रही थी। दद्दा की बात सुनकर वह भागी।

फ्शकूर चचा---शकूर च---चा!य् नरगिस की भर्राई आवाज़ गूँजी।
फ्क्या है बन्नो?य् शकूर चचा शेव बनाते हुए सामने आए।
फ्भैया आज फिर सारे खपरैल आँगन में फ़ेंक रहे हैं!य् नरगिस ने रोते हुए कहा।
फ्आ रहा हूँ।य् कहकर शकूर कमरे में लपके।

खपरैल के टूटने की आवाज़ के साथ एक और आवाज़ उभर रही थीµफ्मैं बता दूँगा। गिन-गिनकर बदला लूँगा। मुझसे बचकर कोई नहीं भाग सकता है, मैं पूरी दनिया जलाकर रख कर दूँगा!य्
रेहान भाई को पीछे से पकड़कर शकूर चचा कमरे में ले आए थे। इस पकड़ा-

धकड़ी में उनके हाथ-पैर कई जगह ज़ख्मी हुए थे। नरगिस को रेहान भाई की हालत देख-देखकर सुरैया आपा से नप़फ़रत हो गई थी। वह अगर ऐसा न करती तो क्या भैया की ऐसी हालत बनती?
अम्मा को होश आ गया था। दद्दा ने रूह-अफ़ज़ा पिला रही हैं। अब्बा को शकूर चचा ने प़फ़ोन कर दिया है। भैया कमरे में बंद हैं। खिड़की से उसने झाँका। वह सुस्त, बेदम, प़फ़र्श पर पसीने से नहाए औंधे पड़े हुए हैं।
सात साल की नरगिस सब कुछ देख रही है। दद्दा सुरैया आपा को दुपट्टा फैलाकर कोस रही हैं। अम्मा उन्हें मना कर रही हैं। ऊपर नीम पर बैठी चील चीख़ रही है।
इन्हीं चीलों को रेहान भाई कितना परेशान करते थे। जिस दिन बाज़ार से वह गोश्त लाते, साथ में छिछड़े ज़रूर लाते थे। फिर आँगन के ऊँचे चबूतरे पर खड़े होकर छीछड़े उछालने का नाटक करते चीख़ते थेµअंडे-बच्चे वाली चील चिलोरिया।
एक बार खिसियायी चील उनकी उँगली को ज़ख्मी कर गई थी। कितना ख़ून निकला था। सुरैया आपा भी क्या चील है? भैया को पागल बना दिया है। दद्दा कहती हैं, ‘नासपीटी, जहन्नुमी है। जाने कितने घर उजाड़ेगी हराफऱ्ा!’
फ्नरगिस! इधर आओ!य् अम्मा की कमज़ोरी में डूबी आवाज़ उभरी।
फ्आई अम्मा!य् नरगिस दौड़ी हुई आई।
फ्मेरी तिलेदानी से ज़रा महीन वाली सुई निकाल लाना।य्
नरगिस भागती हुई असबाब वाली कोठरी में घुसी। अंदाजे़ से तिलेदानी टीन के बक्स से उठाई और कोठरी से बाहर भागी। इस अँधेरी कोठरी से नरगिस को बड़ा डर लगता है। जाने अम्मा इसमें कैसे सामान रखती-उठाती हैं।
फ्जाकर ज़रा खलिकुन को तो बुला लाओ। कहना, नवाब दुल्हन की तबीयत ठीक नहीं है। दद्दा ने फ़ौरन बुलाया है।य्
नरगिस दरवाजे़ की तरप़फ़ बढ़ी।
फ्बेकार आप परेशान हो रही हैं, मैं ठीक हूँ।य् अम्मा ने रेहान भाई की बुशर्ट उठाते हुए कहा।
फ्मेरे जीते-जी सारे चोंचलें हैं। मर गई तो कौन आएगा यहाँ पर? दद्दा ने कहा और मरतबान से कुछ मेवे, जड़ी-बूटी जैसी चीज़ें निकालकर पुडि़या बाँधने लगीं।

गली में सन्नाटा था। हिंदू-मुसलमान प़फ़साद हुए अभी दो ही दिन गुज़रे थे। मगर अम्मा के लिए दो युग। खपरैल पर बैठकर रेहान के जो मुँह में आता, बकता था। माँ-बाप को श²मदगी के सिवाय कुछ हाथ नहीं आ रहा था।
फ्मारो सारे हिंदुओं को, गले दबा दो इनके! साले, कहते हैं कि तुम पाकिस्तानी हो। जाकर पूछो इनसे, तुम्हारे बाँप-दादा कहाँ हैं? मेरे बाप-दादा इसी धरती के आगोश में गढ़े हैं। सबूत चाहिए तो जाकर देखो हमारे क़ब्रिस्तान, सबके सब मौजूद हैं वहाँµख्जुद गद्दार हैं और हम पर इल्ज़ाम लगाते हैं।---नौकरी न देने का अच्छा बहाना ढूँढ़ा है! आखि़र कहें भी क्या? मारो सब क़ातिलों को! मारो, ख़ून की नदियाँ बहा दो मार-मारकर!य्
सबको पता था, रेहान के दिमाग़ पर असर है। पैट्रोलिंग पुलिस के सिपाही भी हँसते गुज़र जाते थे। कुछ ‘पागल है’ कहकर थूकते और कुछ सिपाही जाने क्या सोचकर सिर हिलाते, जैसे वह सब समझ रहे हों।
शकूर कई बार नीचे से समझा चुका था, मगर कौन समझता है। पूरा मोहल्ला हिंदुओं का है, सिप़फऱ् तीन-चार घर मुसलमानों के हैं। गली के पार सारा का सारा मुहल्ला मुसलमानों का है। बात यही नहीं रुकी। जब कफऱ््यू ख़त्म हुआ तो जानबूझकर रेहान शेरवानी पहनकर निकला।
फ्देखें किस माई के लाल में ताक़त है मुझे छूने की!य्
दद्दा ने सिर पीट लिया, फ्यह हमें रुस्वा कराके रहेगा। भुस में चिंगी डाल रहा है। आग न लगती होगी तो लग जाएगी।य्
दोपहर में वर्मा जी की पत्नी अम्मा से कह गई थीं, फ्बहिन जी!य् परेशान न हों। हम रेहान को हमेशा से जानते हैं, अपना लड़का है। उसकी बातों को सब समझ रहे हैं। आप चिंता न करें।य्
इस तरह से कई पड़ोसिनें अम्मा के श²मदा सरापे को सहारा देकर और दद्दा के हाथों का पान खाकर चली गई थीं। अम्मा सुता मुँह लिए बैठी रहीं। क्या कहती?

रेहान ने फ़र्स्ट क्लास में एमॉएॉ पास किया था। पाँच साल से नौकरी की तलाश थी। पी-एचॉडीॉ से मन उचटा हुआ था। सुरैया ने उसकी दोस्ती बीॉएॉ में हुई थी। दोस्ती इश्क़ में बदली और फिर शादी के वायदे में, मगर जब घरवालों को पता चला तो उन्होंने सुरैया से साप़फ़ कह दिया कि सैयद की लड़की शेखों में नहीं जाएगी। ख़ानदान भी छोटा, औसत लोग हैं, फिर दो वर्ष से बेकार लड़का। लड़की का गला न घोंट दें ऐसे घर में शादी करने से।
बहुत दिनों तक यह बात रेहान से छुपी रही, मगर जब सुरैया की मँगनी हो जाने की बात उसके कान में पहुँची तो उसे एकाएक यक़ीन ही नहीं आया। परसों ही तो सुरैया से उसकी मुलाक़ात हुई थी। उसने ज़रा भी जो इशारा किया हो। अपनी बेबसी पर वह बेक़रार हो उठा।
सुरैया के घर तो जा नहीं सकता था। घुटता रहा। वायदे के मुताबिक़ सुरैया जुमे के दिन आई भी नहीं।
बेकारी, इश्क़ में नाकामी और बेवप़फ़ाई ने रेहान को दीवाना बना दिया। दद्दा का ख़याल था कि सुरैया की फ़ुफ्फ़ी ने रेहान पर जादू-टोना किया है। वह बहुत जल्लाद दिल की औरत है। उसने अपनी सौत के गुप्त अंगों को जलते चिमटे से दाग़ा थ। ऐसे बुरे लोगों के बीच में रेहान जाकर फ़ँस गया। जितना रेहान को सुरैया से नप़फ़रत दिलाई, उतना ही वह उसके लिए अधिक व्याकुल होता गया।

प़फ़साद फिर हो गया। शहर में तनाव बढ़ गया। पुलिस हरकत में आ गई थी और रेहान बेकरार। ऊपर छप्परों पर बैठा फिर औल-फ़ौल बकने लगा। आज उसे नौकरी मिल जाती तो क्या सुरैया की शादी की तारीख़ तय हो पाती? नारायण जी का जुम्ला नश्तर चुभो रहा थाµ‘रहते हैं हिंदुस्तान में, मगर सपने देखते हैं पाकिस्तान के!य् दिल चाहा, पटख-पटखकर नारायण को मारकर पूछेµमंदिरों की मूर्तियाँ डॉलर और पाउंड के लालच में कौन बेचता है? उसकी बातों की हक़ीक़त को कोई समझना नहीं चाहता है। सब उसे पागल, दीवाना कहते हैं। कोई नहीं पकड़ता इन गद्दारों को जो शराप़फ़त का लिबास पहनकर दूसरों पर कीचड़ उछालते हैं। उसका ख़ून फिर गर्म होने लगा। सुरैया की छत पर उसके कपड़े फैलाकर बुआ नीचे आ गई है। धानी दुपट्टा हवा में लहरा रहा है। छींटदार शलवार व कमीज़ हवा में फ़ड़फ़ड़ा रही है।
फ्मारो क़ातिलों को, मारो मेरे क़ातिल को। सब नामर्द अंदर बैठे हैं। कोई नहीं बाहर निकलता है। यह मेरा वतन है, मेरा वतन। देखता हूँ कौन मुझे जीने से रोकता है? हिम्मत है तो आओ, निकलो। एक-एक का सिर फ़ोड़ डालूँगा!य् कहकर उसने खपरैल फ़ेंकने आरंभ कर दिए। गनीमत यह थी कि दो घंटे के लिए क़फऱ््य हटा था।
शकूर चचा गुज्स्से से काँपते हुए ऊपर चढ़े। बिना कुछ कहे दो ज़ोरदार चाँटे रेहान के मुँह पर जड़े और पीठ पर दो घूँसेµ‘बदतमीज! बेअदब! जो मुँह में आता है, बकता चला जा रहा है!’ धक्का देकर नीचे आँगन में रेहान को गिराया और लात-घूँसों की बारिश कर दी।
फ्सुरैया सिर पर सवार है! हिम्मत है तो उसके बाप को गालियाँ दो। उससे डरता है। डरपोक!य् शकूर चचा रेहान भाई को मार-कूटकर दद्दा के पास आकर बैठ गए। उनके चेहरे से दुःख और ग्लानि टपक रही थी।
फ्मोहल्ले में इसकी बेहूदगी की वजह से नज़रें चुरानी पड़ती हैं। कंबख़्त ने कहीं का नहीं रखा।य् अभी शकूर कुछ और कहते कि बम के धमाके से वह चौंक पड़े। लपककर बाहर भागे।
आँगन में रेहान भाई औंधे पड़े थे। मुँह से राल बहकर आँगन की मिट्टी भिगो रही थी। नरगिस का दिल भैया के सिर से मिट्टी झाड़ने का चाह रहा था, मगर सबके फ़ूले मँुह देखकर वह सहमी बैठी रही।
ऊपर नीले आसमान पर बेशुमार चीलें पंख फैलाए ऊँची उड़ान भर रही थीं। बाहर ख़ामोशी छा गई। क़फऱ््यू शुरू हो गया था। शकूर चचा ने खिड़की से पुकारकर कहा, फ्अम्मा! कल्लन मियाँ चल बसे। अफ़ज़ल के बनाए बम फ़ट गए। पुलिस उनके घर में है। कल्लन मियाँ की बीवी भी ज़ख्मी हुई हैं और अफ़ज़ल, उसकी बोटियाँ छत की बल्लियों से लटक रही हैं!य्
फ्हाय---कैसा बुरा ज़माना लगा है।य् दद्दा इतना कहकर रह गईं। नरगिस की आसमान पर टिकी आँखें खौप़फ़ज़दा हो गईं। कहीं भैया को मरा समझकर चीलें उनसे बदला लेने न आ जाएँ? इस ख़याल के आते ही नरगिस भागी और रेहान भैया की चौड़ी पीठ से लिपट गई।

रात अँधेरी थी। शहर ख़ामोश। धड़कते भयभीत दिल, भारी बूटों और लाठियों की ठक-ठक को सुनते-सुनते सो गए थे। रेहान चुपचाप छप्पर पर बैठा दूर तक फैली खाली सड़क पर नज़रें गाड़े जाने क्या देखने की कोशिश कर रहा था।
रेहान के मन में आज सुरैया के लिए नप़फ़रत ही नप़फ़रत ऊन रही थी। सुरैया का विवाह पाकिस्तान में किसी बड़े ऑफि़सर से हो रहा था। इसीलिए वह चुप रही थी कि शादी के बाद सरहद के पार निकल जाएगी। सरहद के इस पार किसी के दिल पर कौन-सी बिजली गिरेगी, वह इन सारे अहसासों से पूरी तरह से आज़ाद होगी।
घंटाघर ने बारह बजाए। रात की ख़ामोशी फ़ट गई। रेहान ने आसमान पर नज़र डालीµतारे छिटके थे। वह व्याकुल हो उठा। खड़े होकर उसने चारों तरफ़ देखा। पीली मलगिजी रोशनी में गलियाँ बंद दरवाज़ों से लिपटी सिसक रही थीं। मन में बवंडर उठा। छप्परµछप्पर आगे बढ़ने लगा। गर्मी के दिन थे। लोग अपने आँगनों में लेटे सो रहे थे। सुरैया का पक्का ऊँचा मकान पल-पल उसके समीप होता जा रहा था। काश! एक बार उस बेवप़फ़ा से मुलाक़ात हो जाती तो बताता कि नप़फ़रत में भी उतनी ही शिद्दत होती है, जितनी इश्क़ में। अपने अलफ़ाज़ों से आग लगा दूँगा उसके ख़ामोश सरापे में, सारी उम्र अंगारों पर लोटती रहेगी।
नीचे आँगन में कोई भयभीत आवाज़ उभरी, फ्कौन है? कौन है?य्
फ्क्या हुआ?य् नीचे आँगन में घरवाले जाग गए थे और एक-दूसरे से पूछ रहे थे। रेहान चौंक पड़ा। जाने किसका घर है? वह दबे पाँव घर की तरप़फ़ लौटने लगा।
फ्कुछ नहीं, बिल्ली होगी, तुम सो जाओ।य् आँगन से आवाज़ उभरी। फिर ख़ामोशी छा गई।
लौटते हुए उसके कानों में उन्हीं घरों में से एक से दबी-दबी महीन आवाज़ पहुँची, ‘बचाओ! बचाओ!’ बढ़ते क़दम रुक गए। ठीक उसी के पैरों के नीचे कुछ घट रहा है। तड़पकर वह उस घर के आँगन में कूदा और तेज़ी से दालान की तरप़फ़ बढ़ा। आवाज़ कमरे से बुलंद हो रही थी। पैर की ठोकर दरवाजे़ पर मारी। दरवाज़ा भिड़ा हुआ था। दोनों पट भड़-से खुल गए।
एक लड़की को पकड़े दो लड़के खड़े थे और वह उनसे अपने को छुड़ा रही थी। पास ही सूखा-सा लड़का बैठा बीड़ी पी रहा था।
फ्क्या बात है?य् रेहान की आवाज़ से वह चौंककर उछले और फिर उग्रता से आगे बढ़े।
फ्कौन हो तुम? इस घर में कैसे घुसे?य् एक ने लड़की की कलाई मोड़ते हुए कहा।
फ्पहचाना नहीं? अपना पार्टनर है यार! रेहान है रेहान!य् एक ने हँसते हुए कहा।
फ्वह दीवाना रेहान?य् दूसरे ने हैरत से पूछा।
फ्यह कौन है?य् रेहान ने अंदर घुसते हुए पूछा।
फ्दिखता नहीं है क्या? लड़की है और कौन है?य् एक लड़के ने हँसकर कहा।
फ्सुझाई तो तुम्हें कुछ नहीं दे रहा है दरिंदे!य् इतना कहकर रेहान ने उसके मुँह पर घूँसा मारा। ख़ून का प़फ़व्वारा छूटा और सामने के दाँत उछलकर दूर जा गिरे।
लड़की हिंदू थी और कमसिन भी। क़फऱ््यू लगने की आपा-धापी में यह लोग उसे उठा लाए थे। भीड़-भड़क्के में किसी को पता भी न चला, कौन किधर जा रहा है। सबको इतने कम वक़्त में सामान ख़रीदना, मिलना-जुलना रहता था कि बौखलाए लोग यह समझ नहीं पाते थे किउनके आसपास क्या घट रहा है।
घृणा की आग में वासना की लकड़ी दहक उठी थी। दोनों लड़के पगलाए हुए थे। इतनी मुश्किल व कोशिशों से वह बहला-फ़ुसलाकर लड़की लाए थे। रेहान सारा मज़ा किरकिरा कर रहा है।
फ्तुमको बड़ी हमदर्दी हो गई है इस हिंदू लौंडिया से?य् दादा टाइप दूसरे लड़के ने गर्दन से रूमाल निकालकर पैर पर मारते हुए बड़ी शाने बेनयाज़ी से कहा, जिसमें भिड़ने की चुनौती थी।
फ्बहुत---!य् रेहान ने कूल्हों पर अपने बड़े-बड़े हाथ रखते हुए कहा।
फ्सारे दिन साला दीवाना बना हिंदुओं की माँ-बहन तौलता है और अब रात के अँधेरे में हिंदू लौंडियों की वकालत करने निकला है!य् उस मरियल-से लड़के ने बीड़ी हाथ से फ़ेंकते हुए कहा।
फ्इस वक़्त मेरे तन-बदन में उतनी ही आग लगी है, जितनी तुम्हारी बहन को किसी हिंदू के घर में इस हालत में देखकर लगती।य् रेहान ने सीना तानकर गर्दन ऊपर उठाई।
फ्या, मज़ाक मत करो! तुम्हारा भी हिस्सा होगा, समझे!य् दादा टाइप लड़के ने पैंतरा बदलते हुए रेहान को आँख मारते हुए कहा।
फ्फिर निकाला मुँह से यह अल्फ़ाज़ तो---य् काँपता हुआ रेहान का हाथ उठा।
फ्हिंदू लौंडिया के लिए मुसलमान भाई पर हाथ उठाओगे?य् उसी लड़के ने आस्तीन चढ़ाई।
फ्कोई अपनी जगह से हिला तो मार-मारकर भूसा भर दूँगा!य् रेहान ने धीरे-धीरे लड़की की तरप़फ़ बढ़ते हुए लड़कों को धमकाया।
फ्हमारे घर कौन जला रहा है? हमारी माँ-बहन को कौन ख़राब कर रहा है? हम या वह?य् ख़ून आस्तीन से पोंछता हुआ पहला लड़का बोल उठा।
फ्इस पर दूसरा पागलपन का दौरा पड़ा है।य् मरियल लड़के ने धीरे-धीरे से कहा।
फ्मेरे जीते-जी इस मोहल्ले में किरपी ज़ालिम और औरंगजे़ब की पैदाइश नहीं हो सकती। तारीख़ दोबारा मेरे सामने नहीं दोहराई जाएगी वरना---।य् रेहान ने लाल आँखें तरेरीं। लड़की को आगे बढ़कर कंधे के पास से सहारा दिया।
फ्उसे यहीं छोड़ दो वरना हम तीन हैं।य्
फ्मैं एक ही काप़फ़ी हूँ तुम सबको सँभालने के लिए। हाथ-पैर मरोड़कर फ़ेंक दूँगा! सुलझाते रह जाओगे!य् रोहन ने मरियल-से लड़के को एक लात घुमाकर मारी और दूसरों की घूँसों से खातिर की। लड़की से कहा कि बाहर खड़ी हो जाए।
मार-कूटकर उसने तीनों लड़कों को कमरे में बंद किया और लड़की को लेकर कच्ची दीवार पर चढ़ा। फिर लड़की को दोनों हाथों से ऊपर उठाया। नरगिस से दो-तीन साल ही बड़ी होगी। छप्पर पर बिठाकर धीरे-से बोलाµ
तुम्हारे पिताजी का नाम?य्
फ्रामखिलावन।य् लड़की ने काँपते हुए कहा।
फ्नुक्कड़वाली पंचूरिया की दूकान?य्
फ्हाँ, वह हमारे बापू की है।य् लड़की ने उत्साहित होकर कहा।
फ्अच्छा! अब इस भयानक माहौल से तुम्हें घर तक कैसे पहुँचाऊँ?य्
फ्हमार चचा पुलिस में सिपइया है।य् लड़की ने भोलेपन से कहा।
फ्होंगे।य् लापरवाही से रेहान ने कहा। उसके दिमाग़ में एक ही बात थी कि लड़की की बदनामी न हो। सामने एक ही रास्ता है। छप्पर-छप्पर चलता उधर जाए, मगर यह लड़की---?
फ्तुम चल पाओगी छप्पर पर बिना शोर किए?य् रेहान ने पूछा।
फ्काहे नाहीं!य् लड़की उसी उत्साह से बोली।
घंटाघर से तीन का गज़र गूँजा।
फ्चलो।य् रेहान उठा।
फ्मगर भैया!य् बीच में गली पडि़ये, ओका कैसे लाँघव?य्
फ्चलो उठो तो!य् रेहान ने लड़की के सिर पर चपत मारी।
ख़ामोश क़दम छप्परों पर उठ रहे थेµखपरैल के बीच में रास्ता बनाते हुए। काम ज़ोखिम का था। तैश में भी रेहान को लड़की की बदनामी का डर लगा हुआ था। नीचे गलियों में गश्त करती पुलिस भी ऊँघ रही थी।
लड़की को उसके घर की छत पर चढ़ाकर रेहान जब लौटने लगा तो सुबह का उजाला फैलने वाला था। सामने सुरैया का मकान गर्दन ऊँची किए खड़ा था। रेहान ने नप़फ़रत से मुँह फ़ेर लिया।

दावतनामा अम्मा की पलँग पर पड़ा था। सुनहरे हप़फऱ्ों से सुरैया और एमतेयाज़ का नाम लिखा हुआ था। परसों सुरैया की शादी थी। नायन ने बताया कि चौथी के दूसरे दिन सुरैया पाकिस्तान चली जाएगी।
नायन के जाने के बाद अम्मा चुपचाप हाथ में पकड़े कपड़े की बखिया उधेड़ती रहीं, मगर दद्दा ने कोसना शुरू कर दिया। नरगिस को एक ही बात समझ में नहीं आ रही थी कि हर एक से भिड़ने वाले निडर रेहान भैया सुरैया आपा से क्यों डरकर बैठ गए? उनका सारा जु़ल्म सह रह हैं, जबकि हमेशा खुद कहते थे, ‘अम्मा! जुज्ल्म सहने वाला ज़ालिम के हाथ और मज़बूत करता है।’ तो क्या रेहान भाई की ख़ामोशी सुरैया आपा के हाथ और मज़बूत कर देगी? बहुत बड़े और भारी हो जाएँगे उनके हाथ क्या?य्
फ्उस हुराप़फ़ा के सीने में मर्द का दिल है, इस निगोड़े के सीने में लड़की का दिल है। उलटी गंगा बह रही है।य् दद्दा सुरमेदानी में सुरमा भरती हुई बोलीं।
पलँग पर सोए रेहान भाई के पास दबे पाँव नरगिस पहुँची। धीरे-धीरे उनके बाजुज्ओं पर हाथ फ़ेरा। मछलियों की सख़्ती का अंदाज़ा लगाया। पत्थर है पत्थर, नरगिस ने सोचा। मुड़कर सामने गई ताकि चेहरे का मुआयना करे। गाल अब भी लाल हैं। बीमार कमज़ोर होते तो चेहरा पीला होता। मुँह पर बैठी मक्खी हँकाते हुए नरगिस को इतमिनान हुआ।
फ्क्या है, भाई के क्यों चक्कर लगा रही है? सोने दे उसे।य् दद्दा ने नरगिस को झिड़का।
आँगन में चबूतरे पर बैठकर नरगिस चुपचाप ऊपर आसमान को ताकने लगी। नीले आसमान पर पंख फैलाए चीलें उड़ रही थीं।

फ्होली जल रही है क्या?य् हँसते हुए किसी का जुम्ला उछला।
फ्हाँ, ख़याल और परवाज़ की होली नहीं, बल्कि चिता कहें।य् रेहान ने काग़ज़ के ढेरों से लपकते शोलों को देखकर कहा।
फ्किसके ख़याल और परवाज़ की चिता है?य् सड़क से गुज़रते हुए किसी ने पूछा।
फ्इक़बाल! शायरे अज़ीम, जिसने पाकिस्तान बनने का ख़्वाब देखा था! रेहान ने किताब के और पन्ने फ़ाड़े और ढेर पर डाले। शोले लपके।
फ्अरे-अरे रेहान! यार, तुम वाकई पागल हो गए हो? क्या इसीलिए सुबह-सुबह इक़बाल का दीवान माँगने आए थे?य् परेशान-सा परवेज़ कह उठा।
फ्सब घरों से इक़बाल को बटोर लाया हूँ।य् रेहान ने शोलों को ताकते हुए कहा।
फ्मगर क्यों?य् परवेज़ ने पूछा।
फ्जो शायर दिलों को काटने की बात करते हैं, इंसानी रिश्तों को तोड़ने की बात करते हैं उनका अदब कोयला है, जिसे छूकर हाथ काले होते हैं और दिमाग़ तारीक़। समझे मियाँ परवेज़!य् रेहान ने, वहीं गली में उकड़ूँ बैठते हुए कहा।
फ्खुद इक़बाल आए थे कहने तुमसे क्या?य् सलीम ने उसे झिंझोला। गली में चारों तरप़फ़ इक़बाल के शेर काला काग़ज़ बनकर उड़ रहे थे।
फ्नहीं! मगर जो कहते हैं और समझते हैं वह यह जान लें कि ऐसे इल्ज़ाम के कटघरे में खड़ा करके कोई उस शायर की शखि़्सयत के परखचे भी उड़ा सकता है।य् रेहान ने गोद में रखे काग़ज़ उसमें फ़ेंके।
फ्कौन उड़ा सकता है सिवाय जनाब रेहान, दीवाने नंबर वन के! इतने अहमक होंगे यार, मुझे मालूम न था? निरे पागल ही हो उठे हो क्या?य् असलम ने ग़म और गुज्स्से से कहा।
फ्सुरैया का ग़म इक़बाल को जलाकर कम हो जाएगा क्या?य् परवेज़ ने धीरे-से कहा।
फ्कौन सुरैया?य् रेहान ने हँसकर पूछा।
फ्तुम्हारी महबूबा और कौन?य् असलम जलकर बोला।
फ्दीवाने हो क्या?य् मेरी महबूबा मेरे दिल के दायरे में होती। किस कम्बख्त का नाम ले रहे हो, जो अपनी सरहद का आर-पार भी नहीं समझती है अहमक़!य् रेहान ने क़हक़हा लगाते हुए कहा।
फ्अंग्रेज़ों ने हमें फ़साद की शक्ल में पाकिस्तान तोहप़फ़े में दिया है और हम इस ज़ख्म को जब तक जीएँगे, पालते रहेंगेµकरें भी क्या? कर ही कुछ नहीं सकते हैं। अपाहिज जो ठहरे---।य् रेहान ने बुझते, अधजले काग़ज़ों को डंडी से हिलाया। पूरी गली में जले छोटे-बड़े काग़ज़ के टुकड़े उड़ रहे थे।
फ्मेरे ग़म को सुरैया की सरहदों में कै़द करके तुम सब हक़ीक़त से फ़रारी चाहते हो।य् रेहान ने हँसते हुए कहा।
जेब से सुनहरी डिबिया निकालकर बची राख उसमें अहतियात से भरी और डिबिया बंद करके दोबारा जेब में रख ली।
फ्मर दोस्त! यह फ़रारी कब तक? कहीं पर जाकर बंद गली में सिर फ़ूटेगा ही, तब इस दीवाने को याद कर लेना।य् रेहान ने कहा और घर की तरप़फ़ चल पड़ा।
आलम और परवेज़ के साथ खड़े दूसरों ने नाउम्मीदी से सिर हिलाया, जैसे कह रहे होंµ‘अब इसका ठीक होना नामुमकिन है---। बेचारा!’

राख से भरी डिबिया शादी के दिन सुरैया को भेजकर रेहान के दिल को करार आ गया था।
दद्दा को जितना डर था, वह सब धरा का धरा रह गया। पूरे दो दिन ऐसा घोड़ा बेचकर रेहान सोया जैसे उसी के घर से लड़की की डोली उठी है।
गली में कुछ लड़के अवश्य दुकानदारों से पूछ रहे थे कि क्याबात है, वह दीवाना रेहान नज़र नहीं आ रहा है?
हँसकर दुकानदार चुप हो जाते। सबको रेहान से प्यार था। रामखिलावन तो जैसे रेहान के हाथों बिक ही गया था। सरस्वती वाली बात क्या भूलने वाली है?
घर पर सबने खुदा का शुक्र अदा किया कि यह खतरे के दिन ख़ैर व आपि़फ़यत से टल गए। शकूर भी मुतमईन-से शाम को बैडमिंटन खेलने जाने लगे।

दो दिन से रेहान का पता न था, घर नहीं लौटा था। जाता भी कहाँ था? या तो छप्पर पर बैठा चीखता-चिल्लाता रहता था या फिर गली में इधर-उधर घूमता-फि़रता और फिर घर लौटकर चुपचाप पलँग पर पड़ जाता था।
शकूर चचा थककर दद्दा के पास आकर बैठ गए।
फ्अम्मा! तमाम ढूँढ़ लिया, अस्पताल, नदी, कुआँ---उस रेहान के बच्चे का कहीं पता नहीं है।य्
फ्अपने हिफ़जा मान में रखना परवरदिगार!य् दद्दा ने कहा।
फ्अजीब-अजीब उन्हें शौक हुए हैं। कुछ दिन पहले रामखिलावन के घर से हाथ में राखी बँधवाएँ, माथे पर टीका लगवाए निकल रहे थे। अभी भी किसी डिसूजा या गुरमीत सिंह के यहाँ पड़े होंगे सैकुलर इंडिया का जाम पिए! हम यहाँ ख़ूने जिगर पिएँ, उनकी बला से!य् शकूर चचा ने गुज्स्से से उबलते हुए कहा। परसों उनका मैच है। प्रैक्टिस पर जा नहीं पा रहे हैं। उनकी बीवी रजिया भी मायके गई हुई हैं। वहाँ उनके भाई की तबीयत ख़राब है। उनकी कभी की झुँझलाहट भी इस गुज्स्से में मौजूद थी।
अम्मा चुपचाप काम में लगी थीं। रेहान भाई के मामले में उनकी कोई राय नहीं रहती है।

घर में हंगामा है। अम्मा की लंबी ख़ामोशी उनकी अपनी चीख़ों से छनाकेदार आवाज़ के साथ टूटी है। शीशे ही शीशे बिखर रहे हैं। चीखें़ हैं कि रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। शकूर चचा घुटनों के बल रेहान भाई की लाश के पास बैठे हैं। अब्बा दीवार से सिर टिकाए ख़ामोश खड़े हैं। दद्दा का हाल बुरा है। किसे-कौन सँभाले?
दो हफ़्ते बाद रेहान भाई की लाश नैनी के पास नाबदान से निकली है। बदन पर ढेरों चाकू के निशान हैं। ज़ख़्मों से बदबू फ़ूट रही है और पेट की अँतडि़यों में कीड़े रेंग रहे हैं!
घर में पूरा मोहल्ला उमड़ा है। सरस्वती और रामखिलावन का रोना तो रुक ही नहीं रहा। नरगिस सरस्वती की लाल आँखें देखकर सोचती है, अगर सुरैया आपा यहाँ होती तो क्या वह रोती? अगर सुरैया आपा यहाँ होती तो भैया मरते ही क्यों?
भीड़ में तीन लड़कों के बारे में कानाफ़ूसी चल रही है। कुछ लोगों को उन्हीं पर शक है। कौन होंगे वह तीन लड़के? नरगिस सोचते-सोचते थक जाती है। परवेज़ भाई, असलम भाई, शाहिद भाईµतीनों तो भैया के पास बैठे रो रहे हैं। यह भैया को क्यों मारेंगे?
धूप आधे आँगन में भर गई थी। भीड़ छँटने लगी थी। नरगिस अपने को बहुत तन्हा महसूस कर रही थी। उठकर चबूतरे पर उकड़ूँ बैठ गई और आसमान की ओर ताकने लगी। नीले आसमान पर चीलें डैने फैलाए उड़ रही थीं। कहीं दूर से आवाज़ उभरीµअंडे-बच्चे वाली चील चिलोरिया!
घबराकर नरगिस ने भैया को देखा। आज तो भैया सचमुच मर गए---कहीं
चील---? वह तेज़ी से भैया से लिपटने भागी। आधी राह में ही दादी ने उसे पकड़ लिया, ‘कहाँ चली?’
नरगिस ने घबराकर दद्दा को देखा। उसे यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि बदला भैया से चीलों को लेना था, मगर यह कीड़े कहाँ से आ गए! भैया तो चींटियों, कीड़े-मकौड़ों को काग़ज़ से उठाकर घर में किनारे जाकर फ़ेंकते थे कि कहीं किसी के पैर के नीचे दबकर मर न जाएँ। फिर यह सब कीड़े भैया के बदन को क्यों काट रहे हैं?
दद्दा ने उसे सीने से लिपटा लिया। सफ़े़द मलमल की जम्पर से उठती ख्जुशबू में उसे भैया की महक आती लगी। दद्दा की आवाज़ दूर आती सुनाई पड़ी, ‘सुरैया का ग़म इसे घुन की तरह चाट गया।’ घुन तो गेहूँ में लगता है, खलिकुन गेहूँ पछोड़ते हुए शिकायत करती थी। नरगिस को याद आयाµघुन का चाटा खोखला गेहूँ का दाना। दद्दा के सीने से मुँह हटाकर उसने भैया की तरप़फ़ देखा, ‘तो क्या सुरैया आपा घुन थीं?’

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