Azad Katha - Khand - 1 book and story is written by Munshi Premchand in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Azad Katha - Khand - 1 is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
आजाद-कथा - खंड 1 - उपन्यास
Munshi Premchand
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
मियाँ आजाद के बारे में, हम इतना ही जानते हैं कि वह आजाद थे। उनके खानदान का पता नहीं, गाँव-घर का पता नहीं खयाल आजाद, रंग-ढंग आजाद, लिबास आजाद दिल आजाद और मजहब भी आजाद। दिन भर जमीन के गज बने हुए इधर-उधर घूमना, जहाँ बैठना वहाँ से उठने का नाम न लेना और एक बार उठ खड़े हुए तो दिन भर मटरगश्त करते रहना उनका काम था। न घर, न द्वार कभी किसी दोस्त के यहाँ डट गए, कभी किसी हलवाई की दुकान पर अड्डा जमाया और कोई ठिकाना न मिला, तो फाका कर गए। सब गुन पूरे थे। कुश्ती में, लकड़ी-बिनवट में, गदके-फरी में, पटे-बाँक में उस्ताद। गरज, आलिमों में आलिम, शायरों में शायर, रँगीलों में रँगीले, हर फन मौला आदमी थे।
मियाँ आजाद के बारे में, हम इतना ही जानते हैं कि वह आजाद थे। उनके खानदान का पता नहीं, गाँव-घर का पता नहीं खयाल आजाद, रंग-ढंग आजाद, लिबास आजाद दिल आजाद और मजहब भी आजाद। दिन भर जमीन ...और पढ़ेगज बने हुए इधर-उधर घूमना, जहाँ बैठना वहाँ से उठने का नाम न लेना और एक बार उठ खड़े हुए तो दिन भर मटरगश्त करते रहना उनका काम था। न घर, न द्वार कभी किसी दोस्त के यहाँ डट गए, कभी किसी हलवाई की दुकान पर अड्डा जमाया और कोई ठिकाना न मिला, तो फाका कर गए। सब गुन पूरे थे। कुश्ती में, लकड़ी-बिनवट में, गदके-फरी में, पटे-बाँक में उस्ताद। गरज, आलिमों में आलिम, शायरों में शायर, रँगीलों में रँगीले, हर फन मौला आदमी थे।
आजाद की धाक ऐसी बँधी कि नवाबों और रईसों में भी उनका जिक्र होने लगा। रईसों को मरज होता है कि पहलवान, फिकैत, बिनवटिए को साथ रखें, बग्घी पर ले कर हवा खाने निकलें। एक नवाब साहब ने इनको ...और पढ़ेबुलवाया। यह छैला बने हुए, दोहरी तलवार कमर से लगाए जा पहुँचे। देखा, नवाब साहब, अपनी माँ के लाड़ले, भोले-भाले, अँधेरे घर के उजाले, मसनद पर बैठे पेचवान गुड़गुड़ा रहे हैं। सारी उम्र महल के अंदर ही गुजरी थी, कभी घर के बाहर जाने तक की भी नौबत न आई थी, गोया बाहर कदम रखने की कसम खाई थी। दिनभर कमरे में बैठना, यारों-दोस्तों से गप्पें उड़ाना, कभी चौसर रंग जमाया, कभी बाजी लड़ी, कभी पौ पर गोट पड़ी, फिर शतरंज बिछी, मुहरे खट-खट पिटने लगे। किश्त! वह घोड़ा पीट लिया, वह प्यादा मार लिया। जब दिल घबराया, तब मदक का दम लगाया, चंडू के छींटे उड़ाए, अफीम की चुसकी ली। आजाद ने झुक कर सलाम किया। नवाब साहब खुश हो कर गले मिले, अपने करीब बिठाया और बोले - मैंने सुना है, आपने सारे शहर के बाँकों के छक्के छुड़ा दिए।
नवाब साहब के दरबार में दिनोंदिन आजाद का सम्मान बढ़ने लगा। यहाँ तक कि वह अक्सर खाना भी नवाब के साथ ही खाते। नौकरों को ताकीद कर दी गई कि आजाद का जो हुक्म हो, वह फौरन बजा लाएँ, ...और पढ़ेभी मीनमेख न करें। ज्यों-ज्यों आजाद के गुण नवाब पर खुलते जाते थे, और मुसाहबों की किर-किरी होती जाती थी। अभी लोगों ने अच्छे मिर्जा को दरबार से निकलवाया था, अब आजाद के पीछे पड़े। यह सिर्फ पहलवानी ही जानते हें, गदके और बिनवट के दो-चार हाथ कुछ सीख लिए हैं, बस, उसी पर अकड़ते फिरते हैं कि जो कुछ हूँ, बस, मैं ही हूँ। पढ़े-लिखे वाजिबी ही वाजिबी हैं, शायरी इन्हें नहीं आती, मजहबी मुआमिलों में बिलकुल कोरे हैं।
आजाद यह तो जानते ही थे कि नवाब के मुहाहबों में से कोई चौक के बाहर जानेवाला नहीं इसलिए उन्होंने साँड़नी तो एक सराय में बाँध दी और आप अपने घर आए। रुपए हाथ में थे ही, सवेरे घर ...और पढ़ेउठ खड़े होते, कभी साँड़नी पर, कभी पैदल, शहर और शहर के आस-पास के हिस्सों में चक्कर लगाते, शाम को फिर साँड़नी सराय में बाँध देते और घर चले आते। एक रोज सुबह के वक्त घर से निकले तो क्या देखते हैं कि एक साहब केचुललेट का धानी रँगा हुआ कुरता, उस पर रुपए गजवाली महीन शरबती का तीन कमरतोई का चुस्त अँगरखा, गुलबदन का चूड़ीदार घुटन्ना पहने, माँग निकाले, इत्र लगाए, माशे भर की नन्ही सी टोपी आलपीन से अटकाए, हाथों में मेहँदी, पोर-पोर छल्ले, आँखों में सुर्मा, छोटे पंजे का मखमली जूता पहने, एक अजब लोच से कमर लचकाते, फूँक-फूँक कर कदम रखते चले आते थे। दोनों ने एक दूसरे को खूब जोर से घूरा। छैले मियाँ ने मुसकराते हुए आवाज दी - ऐ, जरी इधर तो देखो, हवा के घोड़े पर सवार हो! मेरा कलेजा बल्लियों उछलता है। भरी बरसात के दिन, कहीं फिसल न पड़ो, तो कहकहा उड़े।
मियाँ आजाद की साँड़नी तो सराय में बँधी थी। दूसरे दिन आप उस पर सवार हो कर घर से निकल पड़े। दोपहर ढले एक कस्बे में पहुँचे। पीपल के पेड़ के साये में बिस्तर जमाया। ठंडे-ठंडे हवा के झोंकों ...और पढ़ेजरा दिल को ढारस हुई, पाँव फैला कर लंबी तानी, तो दीन दुनिया की खबर नहीं। जब खूब नींद भर कर सो चुके, तो एक आदमी ने जगा दिया। उठे, मगर प्यास के मारे हलक में काँटे पड़ गए। सामने इंदारे पर एक हसीन औरत पानी भर रही थी। हजरत भी पहुँचे।