कहानी "आजाद-कथा" के इस अंश में मियाँ आजाद अपनी साँड़ पर सवार होकर यात्रा पर निकलते हैं। एक कस्बे में पहुँचकर वह पेड़ के नीचे विश्राम करते हैं। उनकी नींद के बाद, प्यास से परेशान होकर वह एक खूबसूरत औरत से पानी मांगते हैं, लेकिन वह उन्हें अनसुना कर देती है। आजाद अपनी प्यास और कस्बे की उदासीनता पर अफसोस करते हैं। वह औरत बिना जवाब दिए पानी भरकर चली जाती है। आजाद को इस लड़की की मौजूदगी और उसके व्यवहार से हैरत होती है। जब वह औरत एक फाटक के पास बैठ जाती है, आजाद फिर से उसे पानी पीने के लिए आग्रह करते हैं, लेकिन वह मौन रहती है। अंत में, वह अपने बर्तन को उठाकर फाटक के अंदर जाती है, और आजाद चुपचाप उसके पीछे चलते हैं।
आजाद-कथा - खंड 1 - 5
Munshi Premchand
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
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विवरण
मियाँ आजाद की साँड़नी तो सराय में बँधी थी। दूसरे दिन आप उस पर सवार हो कर घर से निकल पड़े। दोपहर ढले एक कस्बे में पहुँचे। पीपल के पेड़ के साये में बिस्तर जमाया। ठंडे-ठंडे हवा के झोंकों से जरा दिल को ढारस हुई, पाँव फैला कर लंबी तानी, तो दीन दुनिया की खबर नहीं। जब खूब नींद भर कर सो चुके, तो एक आदमी ने जगा दिया। उठे, मगर प्यास के मारे हलक में काँटे पड़ गए। सामने इंदारे पर एक हसीन औरत पानी भर रही थी। हजरत भी पहुँचे।
मियाँ आजाद के बारे में, हम इतना ही जानते हैं कि वह आजाद थे। उनके खानदान का पता नहीं, गाँव-घर का पता नहीं खयाल आजाद, रंग-ढंग आजाद, लिबास आजाद दिल आजाद...
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