आजाद-कथा - खंड 1 - 54 Munshi Premchand द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आजाद-कथा - खंड 1 - 54

आजाद-कथा

(खंड - 1)

रतननाथ सरशार

अनुवाद - प्रेमचंद

प्रकरण - 54

रात का वक्त था, एक सवार हथियार साजे, रातों-रात घोड़े को कड़कड़ाता हुआ बगटुट भागा जाता था। दिल में चोर था कि कहीं पकड़ न जाऊँ! जेलखाना झेलूँ। सोच रहा था, शाहजादे के घर में आग लगाई है, खैरियत नहीं। पुलिस की दौड़ आती ही होगी। रात भर भागता ही गया। आखिर सुबह को एक छोटा सा गाँव नजर आया। बदन थक कर चूर हो गया था। अभी घोड़े से उतरा ही था कि बस्ती की तरफ से गुल की आवाज आई। वहाँ पहुँचा, तो क्या देखता है कि गाँव भर के बाशिंदे जमा हैं, और दो गँवार आपस में लड़ रहे हैं। अभी यह वहाँ पहुँचा ही था कि एक ने दूसरे के सिर पर ऐसा लट्ठ मारा कि वह जमीन पर आ रहा। लोगों ने लट्ठ मारनेवाले को गिरफ्तार कर लिया और थाने पर लाए। शहसवार ने दरियाफ्त किया, तो मालूम हुआ कि दोनों की एक जोगिन से आशनाई थी।

सवार - यह जोगिन कौन है भई?

एक गँवार - इतनी उमिर आई, उस जोगिन कतहूँ न देखी।

इतने में थानेदार आ गए। जख्मी को चारपाई पर डाल कर अस्पताल भिजवाया और खूनी को गवाहों के साथ थाने ले गए। मियाँ सवार भी उनके साथ हो लिए, थाने में तहकीकात होने लगी।

थानेदार - यह किस बात पर झगड़ा हुआ जी?

चौकीदार - हुजूर, वह सास जौन जोगिन बनी है।

थानेदार - हम तुमसे इतना पूछता है किस बात पर लड़ाई हुआ?

चौकीदार - जैसे इहौ वहाँ जात रहै और वहौ वहाँ जात रहै। तौन आपस में लाग-डाँट ह्वै गई। ए बस एक दिन मार-धार ह्वै गई बस, लाठी चलै लाग। मूर से रकत बहुत बहा।

मौलवी - सूबेदार साहब, आज दोनों ने खूब कुज्जियाँ चढ़ाई थीं।

थानेदार - आप कौन हैं?

मौलवी - हुजूर, गाँव का काजी हूँ।

थानेदार - यहीं मकान है आपका?

मौलवी - जी हाँ, पुराना रईस हूँ।

शहसवार - बेशक!

थानेदार - देहातवाले भी अजीब जाँगलू होते हैं। एक बार एक देहाती मुशायरे में जाने का इत्तफाक हुआ। बड़े-बड़े गँवार के लट्ठ जमा थे। एक साहब ने शेर पढ़ा, तो आखिर में फरमाते हैं - बीमार हौं। लोग हैरत में थे कि इस हौं के क्या माने? फिर हजरत ने फरमाया - सरशार हौं। मारे हँसी के लोट गया। हाँ, मौलवी साहब, फिर क्या हुआ?

मौलवी - बस, जनाब, फिर दोनों में कुश्ती हुई। कभी यह ऊपर, वह नीचे, कभी वह नीचे, यह ऊपर। तब तो मैं भागा कि चौकीदार से कहूँ। दौड़ता गया।

थानेदार - जनाब, इस मुहावरे को याद रखिएगा।

मौलवी - बस, मैं दौड़के पूरन चौकीदार के मकान पर गया। उसकी जोड़ू, बोली -

सवार - कौन बोली?

थानेदार - (हँस कर) सुना नहीं आपने? जोड़ू!

मौलवी - हुजूर, हुक्काम हैं, आपको हँसना न चाहिए।

थानेदार - जी हाँ, मैं हुक्काम हूँ; मगर आप भी तो उमराँ हैं! हाँ, फरमाओ जी।

मौलवी - देखिए, फरमाता हूँ।

सवार - अब हँसी जब्त नहीं हो सकती।

मौलवी - बस जनाब, वहाँ से मैं इस चौकीदार को लाया। वहाँ आ कर देखा, तो खून के दरिया बह रहे थे।

इतने में खबर आई कि जख्मी दुनिया से रवाना हो गया। थानेदार साहब मारे खुशी के फूल गए। मामूली मार-पीट 'खून' हो गई। खूनी का चालान किया और जज ने उसे फाँसी की सजा दे दी।

जिस वक्त खूनी को फाँसी हो रही थी, मियाँ सवार भी तमाशा देखने आ पहुँचे। मगर उस वक्त की हालत देख कर उनके दिल पर ऐसा असर हुआ कि आँखें खुल गईं। सोचने लगे - दुनिया से नाता तोड़ लें। किसी से हसद और कीना न रखें। अगर कहीं पकड़ा गया होता, तो मुझे भी यों ही फाँसी मिलती। खुदा ने बहुत बचाया। मगर जरा इस जोगिन को देखना चाहिए। यह दिल में ठान कर जोगिन के मकान की तरफ चले।

जब लोगों से पूछते हुए उसके मकान पर पहुँचे, तो देखा कि एक खबसूरत बाग है और एक छोटा सा खुशनुमा बँगला, बहुत साफ सुथरा। मकान क्या, परीखाना था। जोगिन के करीब जा कर उसको सलाम किया। जोगिन के पोर-पोर पर जोबन था। जवानी फटी पड़ती थी। सिर से पैर तक सँदली कपड़े पहने हुए थी। शहसवार हजार जान से लोट पोट हो गए। जोगिन इकनी चितवनों से ताड़ गई कि हजरत का दल आया है।

सवार - बड़ी दूर से आपका नाम सुन कर आया हूँ।

जोगिन - अक्सर लोग आया करते हें। कोई आए, तो खुशी नहीं, न आए, तो रंज नहीं।

सवार - मैं चाहता हूँ कि उम्र भर आपके कदमों के तले पड़ा रहूँ।

जोगिन - आपका मकान कहाँ है?

सवार -

घर बार से क्या फकीर को काम?

क्या लीजिए छोड़े गाँव का नाम।

जोगिन - यहाँ कैसे आए?

सवार - रमते जोगी तो हैं ही, इधर भी आ निकले।

जोगिन - आखिर इतना तो बतलाओ; कि हो कौन?

सवार - एक बदनसीब आदमी।

जोगिन - क्यों?

सवार - अपने कर्मों का फल।

जोगिन - सच है!

सवार - मुझे इश्क ही ने तो गारद कर दिया। एक बेगम की दो लड़कियाँ हैं। उनसे आँखें लड़ गईं। जीते जी मर मिटा।

जोगिन - शादी नहीं हुई?

सवार - एक दुश्मन पैदा हो गया। आजाद नाम था। बहुत ही खूबसूरत सजीला जवान।

मियाँ आजाद का नाम सुनते ही जोगिन के चेहरे का रंग उड़ गया। आँखों से आँसू गिरने लगे। शहसवार दंग थे कि बैठे-बिठाए इसे क्या हो गया।

सवार - जरा दिल को ढारस दो, आखिर तुम्हें किस बात का रंज हैं?

जोगिन -

खौफ से लेते नहीं नाम कि सुन ले न कोई;

दिल ही दिल में तुम्हें हम याद किया करते हैं।

हमारी दास्तान गम से भरी हुई है! सुन कर क्या करोगे। हाँ, तुम्हें एक सलाह देती हूँ। अगर चाहते हो कि दिल की मुराद पूरी हो, तो दिल साफ रखो।

सवार - तुम्हारे सिवा अगर किसी और पर नजर पड़े, तो आँखें फूट जायँ।

जोगिन - यही दिल की सफाई है।

सवार - शीशी से गुलाब निकाल लो। मगर गुलाब की बू बाकी रहेगी। दुनिया को छोड़ तो बैठें, पर इश्क दिल से न जायगा। अब हम चाहते हैं कि तुम्हारे ही साथ जिंदगी बसर करें। आजाद उसके साथ रहें, हम तुम्हारे साथ।

जोगिन - भला तुम आजाद को पाओ, तो क्या करो?

सवार - कच्चा ही चबा जाऊँ?

जोगिन - तो फिर हमसे न बनेगी? अगर तुम्हारा दिल साफ नहीं, तो अपनी राह लगो।

सवार - अच्छा, अब आज से आजाद का नाम ही न लेंगे।

***