आजाद-कथा - खंड 1 - 35 Munshi Premchand द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आजाद-कथा - खंड 1 - 35

आजाद-कथा

(खंड - 1)

रतननाथ सरशार

अनुवाद - प्रेमचंद

प्रकरण - 35

खोजी ने दिल में ठान ली कि अब जो आएगा, उसको खूब गौर से देखूँगा। अब की चकमा चल जाय, तो टाँग की राह निकल जाऊँ। दो दफे क्या जानें, क्या बात हो गई कि वह चकमा दे गया। उड़ती चिड़िया पकड़नेवाले हैं। हम भी अगर यहाँ रहते होते, तो उस मरदूद बहुरूपिए को चचा ही बना कर छोड़ते।

इतने में सामने एकाएक एक घसियारा घास का गट्ठा सिर पर लादे, पसीने में तर आ खड़ा हुआ और खोजी से बोला - हुजूर, घास तो नहीं चाहिए?

खोजी - (खूब गौर से देख कर) चल, अपना काम कर। हमें घास-वास कुछ नहीं चाहिए। घास कोई ओर खाते होंगे।

घसियारा - ले लीजिए हुजूर, हरी दूब है।

खोजी - चल बे चल, हम पहचान गए। हमसे बहुत चकमेबाजी न करना बचा। अब की पलेथन ही निकाल डालूँगा। तेरे बहुरूपिए की दुम में रस्सा।

इत्तिफाक से घसियारा बहरा था। वह समझा, बुलाते हैं। इनकी तरफ आने लगा। तब तो मियाँ खोजी गुस्सा जब्त न कर सके और चिल्ला उठे - ओ गीदी, बस, आगे न बढ़ना; नहीं तो सिर धड़ से जुदा होगा। यह कह कर लपके और गट्ठा उनके ऊपर गिर पड़ा। तब आप गट्ठे के नीचे से गुर्राने लगे - अबे ओ गीदी, इतनी करौलियाँ भोंकूँगा कि छठी का दूध याद आ जाएगा। बदमाश ने नाकों दम कर दिया। बारे बड़ी मुश्किल से आप गट्ठे के नीचे से निकले और मुँह फुलाए बैठे थे कि आजाद का आदमी आ कर बोला - चलिए, आपको मियाँ आजाद ने बुलाया है।

खोजी - किससे कहता है? कंबख्त अबकी सँदेसिया बन कर आया। तब की घसियारा बना था। पहले औरत का भेस बदला! फिर सिपाही बना। चल, भाग।

आदमी - रुक्का तो पढ़ लीजिए।

खोजी - मैं जलती-बलती लड़की से दाग दूँगा, समझे? मुझे कोई लौंडा मुकर्रर किया है? तेरे जैसे बहुरूपिए यहाँ जेब में पड़े रहते हैं।

आदमी ने जा कर आजाद से सारा हाल कहा-हुजूर, वह तो कुछ झल्लाय से मालूम होते हैं। मैं लाख-लाख कहा किया, उन्होंने एक तो सुनी नहीं। बस, दूर ही दूर से गुर्राते रहे।

आजाद - खत का जवाब लाए?

आदमी - गरीबपरवर, कहता जाता हूँ कि करीब फटकने तो दिया नहीं जवाब किससे लाता?

ये बातें हो ही रही थीं कि उस हसीना के शौहर आ पहुँचे और कहने लगे - शहर भर घूम आया, सैकड़ों चक्कर लगाए, मगर मियाँ आजाद का कहीं पता न चला। सराय में गया, तो वहाँ खबर मिली कि आए हैं। एक साहब बैठे हुए थे, उनसे पूछा तो बड़ी दिल्लगी हुई। ज्यों ही मैं करीब गया, तो वह कुलबुला कर उठ खड़े हुए - कौन? आप कौन? मैंने कहा - यहाँ मियाँ आजाद नामी कोई साहब तशरीफ लाए हैं? बोले - फिर आपसे वास्ता? मैंने कहा - साहब, आप तो काटे खाते हैं! तो मुझे गौर से देख कर बोले - इस बहुरूपिए ने तो मेरी नाक में दम कर दिया। आज भलेमानस की सूरत बना कर आए हैं।

बेगम - जरी ऊपर आओ देखो, हमने मियाँ आजाद को घर बैठे बुलवा लिया। न कहोगे।

आजाद - आदाब बजा लाता हूँ।

मिरजा - हजरत, आपको देखने के लिए आँखें तरसती थीं।

आजाद - मेरी वजह से आपको बड़ी तकलीफ हुई।

मिरजा - जनाब, इसका जिक्र न कीजिए। आपसे मिलने की मुद्दत से तमन्ना थी।

उधर मियाँ खोजी अपने दिल में सोचे कि बहुरूपिए को कोई ऐसा चकमा देना चाहिए कि वह भी उम्र भर याद करे। कई घंटे तक इसी फिक्र में गोते खाते रहे। इतने में मिरजा साहब का आदमी फिर आया। खोजी ने उससे खत ले कर पढ़ा, तो लिखा था - आप इस आदमी के साथ चले आइए, वर्ना बहुरूपिया आपको फिर धोखा देगा। भाई, कहा मानो, जल्द आओ। खोजी ने आजाद की लिखावट पहचानी, तो असबाब वगैरह, समेट कर खिदमतगार के सिपुर्द किया और कहा - तू जा, हम थोड़ी देर में आते हैं। खिदमतगार तो असबाब ले कर उधर चला, इधर आप बहुरूपिया के मकान का पता पूछते हुए जा पहुँचे। इत्तिफाक से बहुरूपिया घर में न था, और उसकी बीवी अपने मैके भेजने के लिए कपड़ों को एक पार्सल बना रही थी। तीस रुपए की एक गड्डी भी उसमें रख दी थी। पार्सल तैयार हो चुका, तो लौंडी से बोली - देख, कोई पढ़ा-लिखा आदमी इधर से निकले, तो इस पार्सल पर पता लिखवा लेना। लौंडी राह देख रही थी कि मियाँ खोजी जा निकले।

खोजी - क्यों नेकबख्त, जरा पानी पिला दोगी?

लौंडी यह सुनते ही फूल गई। खोजी की बड़ी खातिरदारी की, पान खिलाया, हुक्का पिलाया और अंदर से पार्सल ला कर बोली - मियाँ, इस पर पता तो लिख दो।

खोजी - अच्छा, लिख दूँगा। कहाँ जायगा। किसके नाम है? कौन भेजता है?

लौंडी - मैं बीबी से सब हाल पूछ आऊँ, बतलाऊँ।

खोजी - अच्छी बात है, जल्द आना।

लौंडी दौड़ कर पूछ आई और पता-ठिकाना बताने लगी।

खोजी चकमा देने तो गए ही थे, झट पार्सल पर अपना लखनऊ का पता लिख दिया और अपनी राह ली। लौंडी ने फौरन डाकखाने में पार्सल दिया और रजिस्ट्री कराके चलती हुई। थोड़ी देर के बाद बहुरूपिया जो घर में घुसा, तो बीवी ने कहा - तुम भी बड़े भुलक्कड़ हो। पार्सल पर पता तो लिखा ही न था। हमने लिखवा कर भेज दिया।

बहुरूपिया - देखूँ, रसीद कहाँ है? (रसीद पढ़ कर) ओफ! मार डाला। बस, गजब ही हो गया।

बीवी - खैर तो है?

बहुरूपिया - तुमसे क्या बताऊँ? यह वही मर्द है, जिससे मैंने कई रुपए ऐंठे थे। बड़ा चकमा दिया।

***