टापुओं पर पिकनिक

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आर्यन तेरह साल का हो गया। कल उसका बर्थडे था। इस जन्मदिन को लेकर वो न जाने कब से इंतजार कर रहा था। वो बेहद एक्साइटेड था। होता भी क्यों नहीं, आख़िर ये बर्थडे उसके लिए बेहद ख़ास था। उसने एक महीने पहले से ही इस दिन को लेकर एक मज़ेदार प्लानिंग की थी। वो एक - एक दिन गिन- गिन कर काट रहा था कि कब उसकी ज़िंदगी का ये बेहद अहम दिन आए। आज से उसने उम्र के उस दौर में प्रवेश कर लिया था जिसे "टीन एज" कहते हैं। अर्थात बचपन छोड़ कर किशोरावस्था में जाने की

Full Novel

1

टापुओं पर पिकनिक - 1

आर्यन तेरह साल का हो गया। कल उसका बर्थडे था। इस जन्मदिन को लेकर वो न जाने कब से कर रहा था। वो बेहद एक्साइटेड था। होता भी क्यों नहीं, आख़िर ये बर्थडे उसके लिए बेहद ख़ास था। उसने एक महीने पहले से ही इस दिन को लेकर एक मज़ेदार प्लानिंग की थी। वो एक - एक दिन गिन- गिन कर काट रहा था कि कब उसकी ज़िंदगी का ये बेहद अहम दिन आए। आज से उसने उम्र के उस दौर में प्रवेश कर लिया था जिसे "टीन एज" कहते हैं। अर्थात बचपन छोड़ कर किशोरावस्था में जाने की ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 2

बात कुछ दिन पहले की थी। एक दिन आर्यन अपने स्कूल के मुख्य पोर्च में खड़ा था। वह अपने दोस्त का इंतजार कर रहा था ताकि उसके आते ही दोनों पार्किंग में खड़ी बस में बैठें। तभी अचानक उसने सुना कि लिफ्ट से निकल कर उसके दो टीचर्स आपस में बातें करते हुए चले जा रहे थे। आर्यन के कानों में उनके जाते - जाते भी उनके कुछ वाक्य पड़ गए। उनकी पूरी बात न सुन पाने पर भी आर्यन इतना तो समझ ही गया कि वे दोनों ज़रूर उस शब्द के बारे में ही बात कर रहे हैं ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 3

जैसे ही अनलॉक होने के बाद स्कूल फ़िर से खुले, आर्यन और उसके साथी ख़ुशी से फूले न समाए। अब उन्हें काफ़ी दिनों तक घर में बंद रह कर ऑनलाइन क्लास करने के बाद आपस में मिलने का मौक़ा मिलने वाला था। अगले दिन सोमवार था और उनका स्कूल कई महीनों के बाद फ़िर से शुरू हो रहा था। पिछ्ले कितने ही महीनों से सब मित्र केवल मोबाइल पर ही संपर्क में रहे थे। - ओए, तू तो मोटा हो गया बे! - तू कौन सा कम हुआ है, देख टाई कहां जा रही है तेरी? - अरे, तेरे ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 4

आर्यन ने घर जाने के बाद रात को पापा की गोद में बैठ कर अपनी बांहें उनके गले में डाल दीं। इस समय वो बिल्कुल भूल ही गया कि अब वो बच्चा नहीं, बल्कि एक टीनएज का किशोर है। पापा उसे प्यार से देखते हुए हंसकर बोले- अरे- अरे बेटा, अब तुम्हारा और मेरा वेट बराबर है! किचन से आइसक्रीम के बाउल्स लेकर कमरे में घुसती मम्मी भी ये देख कर हैरान रह गईं कि बाप- बेटे के बीच ये लाड़ - दुलार भला क्यों हो रहा है? क्या चाहता है आर्यन? लेकिन जैसे ही आर्यन ने अपनी ख्वाहिश ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 5

एक कहावत है- बिल्ली के भाग से छींका टूटना। बिल्कुल यही हुआ। आर्यन के दोस्त आगोश के पापा को दिन के लिए किसी ज़रूरी काम से शहर के बाहर जाना पड़ा। और संयोग ऐसा हुआ कि आगोश की मम्मी के लिए भी उसी दिन एक शादी में जाने का इन्विटेशन आया। शादी समारोहों पर संख्या के कंट्रोल के चलते ये इन्वाइट केवल एक ही व्यक्ति के लिए था। अतः आगोश की मम्मी आगोश को भी अपने साथ नहीं ले जा सकीं। ऐसे में उसकी मम्मी को याद आया कि कुछ दिन पहले बच्चे अकेले कहीं जाकर साथ में नाइट-स्टे ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 6

सब ने ख़ूब ठूंस- ठूंस कर खाना खाया। खाना स्वादिष्ट तो था ही, बहुत सारा भी था। और सब बच्चों का मनपसंद। स्कूल में रोज- रोज टिफिन ले जाने वाले बच्चे इतना तो जान ही जाते हैं कि उनके कौन से दोस्त को क्या पसंद है और समय- समय पर वो इसकी चर्चा अपनी मम्मियों से भी करते रहते हैं, जिससे मम्मियां भी अपने बच्चों के फास्ट फ्रेंड्स की पसंद अच्छी तरह जान जाती हैं। सोने की बात करने के कारण अभी थोड़ी देर पहले मनन की मज़ाक उड़ी थी, इसलिए सोने का ज़िक्र तो अभी किसी ने नहीं ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 7

साजिद की शक्ल देख कर पहले तो आगोश और सब दोस्तों ने समझा कि उसने शायद कोई बिल्ली कुत्ता बंदर आदि देख लिया है और वह डर गया है।उसके इस हाल पर सब हंस पड़े और उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। पर साजिद लगभग कांपने लगा और फटी आंखों से उन सब को देखता रहा।- क्या हुआ? अब आगोश एकदम गंभीर हुआ।अटकते हुए साजिद ने बताया कि उस कमरे में एक लड़की ज़मीन पर बैठी हुई रो रही है।ये सुनते ही आगोश तीर की तरह निकल कर भागने लगा पर साजिद ने झटके से उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 8

सबका मूड बदल गया। कहां तो सब ये सोच कर आए थे कि एक रात मम्मी- पापा के संरक्षण नियंत्रण से दूर दोस्तों के साथ फुल मस्ती करेंगे। टीन एज में अपनी एंट्री को एन्जॉय करेंगे लेकिन यहां तो सब उल्टा- पुल्टा ही हो गया। मनन तो अभी तक रह- रह कर रट लगाता था कि- यार घर चलें। नींद भी आ रही थी उसे। साजिद उस लम्हे को सोच कर अब भी सिहर जाता था जब अनजान लड़की अंधेरे में उसके सामने बैठी थी और वो कपड़े उतारने जा रहा था। पल भर की देर में न जाने ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 9

ये खेल बहुत लंबा चला। इस खेल में आवाज़ नहीं थी। चुपचाप खेलना था। आधी रात को ऐसे खेल निरापद रहता है जिनमें शोर- शराबा न हो। इसलिए सबका मन खेल में रमा।सवा चार बजने को आए। अब सबका विचार बना कि थोड़ी देर सो भी लिया जाए।एसी चल रहा था। कमरा ठंडा था। जगह कम नहीं पड़ी। आगोश दूसरे कमरे से एक गद्दा उठा कर नीचे बिछाने लगा तो साजिद ने टोक दिया, क्या ज़रूरत है इसकी। लेकिन जब बिछ ही गया तो आर्यन और साजिद एक साथ बेड से नीचे उतर कर उस पर आ लेटे।सिद्धांत बिस्तर से कूद ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 10

मम्मी का फ़ोन नहीं आया। पर आगोश की आंखों में नींद नहीं थी। वह करवटें बदल रहा था। उसके दोस्त गहरी नींद में सो चुके थे।हल्के अंधेरे में भी उसे दिखाई दे रहा था कि नीचे बिछे गद्दे पर सोए हुए साजिद और आर्यन भी ठंड के कारण एक दूसरे से लिपटे पड़े थे।उधर सिद्धांत और मनन का भी यही हाल था।आगोश अपना आलस्य छोड़ कर उठा और उसने पहले तो एसी को कुछ कम किया, फ़िर अलमारी से दो चादरें लेकर चारों को ढका।तीसरी चादर हाथ में लेकर वह ख़ुद ओढ़ने जा ही रहा था कि ज़ोर से ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 11

सुबह लगभग दस बजे तक जाकर बच्चे उठे। आगोश की नींद तो अब तक नहीं खुली थी क्योंकि वो बाद में काफ़ी देर से सोया था।नौ बजे के आसपास जब मनन के घर से फ़ोन आया तब तो आगोश की मम्मी ख़ुद अपने बेडरूम में कमर सीधी करने के लिए लेटी हुई थीं। उनकी भी नींद कहां पूरी हुई थी। मनन के सिरहाने रखा फ़ोन देर तक बजने पर उन्होंने ही आकर उठाया।पर उन्होंने मनन की मम्मी से कह दिया कि वो चिंता न करें, बच्चे अभी सोए हुए हैं। थोड़ी देर में ड्राइवर भी आयेगा तब बच्चों के ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 12

आर्यन अपने घर के लॉन में किसी पड़ोसी बच्चे के साथ बैडमिंटन खेल रहा था कि गेट पर एक आकर धीरे से रुकी। उसे देखते ही रैकेट छोड़ कर आर्यन गेट खोल कर बाहर निकला और कार के पास पहुंच गया। आगोश था। अकेला ख़ुद गाड़ी लेकर आया था। आर्यन भी गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर उसके अंदर ही जा बैठा। भीतर एसी भी ऑन था और तेज़ स्वर में म्यूज़िक भी। आगोश ने बताया कि उसके तो मजे आ गए हैं। पापा ने फ़ोन पर मम्मी को बता दिया कि वो कुछ दिन बाद ही वापस आयेंगे, उन्हें ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 13

साजिद की समझ में कुछ नहीं आया। आर्यन ने उसे फ़िर से पूरी बात अच्छी तरह समझाई तब जाकर इसके लिए तैयार हुआ। फ़िर भी एक बार दोबारा बोला- यार, कोई ख़तरा तो नहीं है न इसमें? वो बेचारा सीधा- सादा है। ज़्यादा पढ़ा - लिखा भी नहीं है। किसी लफड़े में फंस तो नहीं जाएगा न वो?- अरे नहीं, उसका काम तो बस इतना सा है। फ़िर तो आगे हम सब संभाल लेंगे। सबसे ज़रूरी चीज़ यही है कि आदमी एकदम भरोसे का होना चाहिए। किसी को भी कुछ न बताए।- इसकी चिंता मत करो। भरोसे का तो ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 14

तीन- चार दिन बाद आगोश के पापा डॉक्टर साहब वापस लौट आए। उनके साथ ही ड्राइवर सुल्तान भी काम लौट आया। सब पहले की तरह यथावत चलने लगा।लेकिन डॉक्टर साहब की अनुपस्थिति के इन दिनों में आगोश को गाड़ी चलाने की जो खुली छूट मिल गई थी उस पर फ़िर से बंदिश लग गई। आगोश को फ़िर से वही आज्ञाकारी बच्चा बन जाना पड़ा जिसे किसी काम से बाहर जाने पर स्कूटर ले जाने के लिए भी पापा से परमीशन लेनी पड़ती थी। अब कार के लिए तो ड्राइवर सुल्तान था ही।मम्मी भी अपनी गाड़ी उसे पापा से बिना ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 15

आर्यन परेशान हो गया। उसने सोचा क्या था और क्या हो गया। साजिद कई दिन से स्कूल भी नहीं रहा था। उस दिन साजिद के अब्बू ने साजिद की जो पिटाई की थी उसे याद करके आर्यन और आगोश की ये हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि वो साजिद के घर जाएं और उसके अब्बू को समझाने की कोई पहल करें। लेकिन उन्हें रह- रह कर अपने प्यारे दोस्त साजिद का ख्याल आ रहा था जो बिना बात मुसीबत में फंस गया था। न जाने उस बेचारे पर क्या बीत रही होगी। कितने ही दिन से उसकी पढ़ाई ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 16

उस दिन स्कूल में सब दोस्त मिले तो उनकी चिंता यही थी कि साजिद का स्कूल छुड़ा दिया गया यही नहीं, बल्कि उसके अब्बू ने उसे बेकरी पर जाकर वहां के कामकाज में हाथ बंटाने का तुगलकी फरमान सुना दिया।जिस लड़के को सारे अध्यापक चंद दिन पहले तक क्लास के सबसे इंटेलीजेंट बच्चों में गिनते थे वो अब मजदूरों को आटा गूंथते और भट्टी सुलगाते हुए देख कर दिन बिताने लगा। वो भी बिना किसी अपराध या भूल के।सिद्धांत को तो सारी बात जानकर बहुत ही गुस्सा आया। बोला- जो लड़का हम सब दोस्तों के सामने भी शॉर्ट्स बदलने ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 17

इस बात पर किसी को भी यकीन नहीं हुआ। पर ये सच थी। साजिद की बेकरी में काम करने अताउल्ला अपने जिस रिश्तेदार के साथ उसके घर पर रहता था वो और कोई नहीं, बल्कि आगोश के घर का ड्राइवर अंकल सुल्तान ही था। लो, आर्यन, साजिद और आगोश जिस अताउल्ला को नकली ग्राहक बना कर सुल्तान के पास भेजना चाहते थे वो तो ड्राइवर सुल्तान के साथ उसके घर पर रहने वाला उसकी पत्नी का दूर के रिश्ते का कोई भाई ही निकला। इसीलिए बच्चों की बात सुन कर वह चौकन्ना हो गया। उसने तत्काल घर जाकर सुल्तान ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 18

आज सुबह से ही डॉक्टर साहब के पास आने - जाने वालों का तांता लगा हुआ था। नहीं- नहीं, कोई बीमार लोग या फिर उनके संबंधी नहीं थे जो इलाज के लिए या पंजीकरण के लिए अपॉइंटमेंट लेने आए हों। डॉक्टर साहब इनसे बात करने के लिए क्लीनिक पर अपने चैंबर में बैठे भी नहीं थे।ये तो नौकरी के लिए एक विज्ञापन के जवाब में आने वाले वो बेरोजगार लोग थे जो ड्राइवर की नौकरी पाने के लिए आ रहे थे। डॉक्टर साहब इनसे अपने घर में ड्राइंग रूम के साथ बने अतिथि कक्ष में बैठ कर बात कर रहे ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 19

आर्यन और आगोश एक बाइक पर थे। सिद्धांत पीछे आ रहा था।वो दोनों साजिद के घर से कुछ ही पर खड़े इंतजार कर रहे थे कि उन्होंने दो लड़कों को आपस में बातें करते हुए सुना।- कहां रह गया था साले? तुझे पता नहीं अभी बेकरी में माल डलवाना है! एक ने कहा।- यार वो अताउल्ला मिल गया था, वहीं देर हो गई। दूसरा बोला।उनकी बातें सुनते ही आर्यन और आगोश के कान खड़े हो गए।लड़के तो अपनी मस्ती में ज़ोर - ज़ोर से बातें करते हुए चले जा रहे थे पर वो दोनों चौकन्ने हो गए।बातें करते हुए ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 20

आर्यन और आगोश कुछ देर इसी तरह घबराए हुए और ख़ामोश खड़े रहे। उन्हें ये आभास हो गया था ये सब पुलिस वाले किसी बात में उलझे हुए हैं, इस समय इनसे बातचीत करने का कोई फ़ायदा नहीं होगा, उल्टे कुपित होकर कुछ उल्टा- सीधा और कह देंगे। और फिर किसी बात पर अड़ गए तो कर के छोड़ेंगे।लेकिन उन्हें आश्चर्य हुआ कि एक पुलिस वाले ने उनकी बाइक धकेल कर सड़क के बीचों - बीच खड़ी कर दी। फ़िर आगोश का मोबाइल और बाइक की चाबी लौटाता हुआ बोला- जाओ रे छोरो तुम..आर्यन ने फुर्ती से चाबी पकड़ी।लेकिन ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 21

साजिद के साथ पढ़ने वाली मनप्रीत कुछ बेचैन थी। न तो उन लड़कों ने उसे फ़ोन ही किया था न ही उससे मिले। शायद उन्होंने लड़की की बात को गंभीरता से नहीं लिया। मनप्रीत को लगा कि उन लड़कों ने साजिद से कोई बात ही नहीं की होगी। उसे आर्यन पर थोड़ी झुंझलाहट भी हो रही थी कि वैसे तो साजिद का पक्का दोस्त बनता है और अब उसकी मुसीबत में उसकी सुध- बुध भी नहीं ली।ख़ैर, जाने दो। शायद लड़कों की दोस्ती ऐसी ही होती है। अच्छे दिनों में दोस्त, बुरे दिनों में अजनबी! मनप्रीत ने अपनी एक ...और पढ़े

22

टापुओं पर पिकनिक - 22

बेकरी के अहाते के पिछवाड़े वाले गेट पर ही मनप्रीत ने साजिद को स्कूटी से उतारा और तेज़ी से पड़ी।उसकी धड़कन थोड़ी बढ़ी हुई थी क्योंकि एक तो थोड़ी ज़्यादा ही देर हो गई थी, दूसरे साजिद ने आज उसे छू दिया था। वह साजिद के "बाय" कहने का जवाब भी ठीक से नहीं दे पाई कि स्कूटी उड़ चली।लेकिन बेचारी मनप्रीत कहां जानती थी कि उसके रवाना होते ही पीछे से घरघरा कर एक बाइक और उसके साथ - साथ रवाना हुई है।मेन रोड पर तो ट्रैफिक में साथ - साथ चलने वाली गाड़ियों का कोई अहसास नहीं ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 23

मनप्रीत भी अब आर्यन और उसके दोस्तों की मित्र मंडली में शामिल हो गई थी।कभी - कभी शाम को उनके साथ आ जाती।उस दिन शाम को एक रेस्त्रां में बैठे- बैठे सिद्धांत ने ज़रा ज़ोर देकर कहा- जूस फॉर एम्स एंड बीयर फॉर अदर्स।सब कौतुक से उसकी ओर देखने लगे।पर मनप्रीत मुस्कराते हुए बोली- मैं समझ गई इसकी बात।- क्या? आर्यन ने कहा।- ये कह रहा है कि "एम" वालों, माने मनप्रीत और मनन के लिए जूस मंगाओ और बाक़ी सबके लिए बीयर। यही न? कह कर मनप्रीत ने गर्व से सिद्धांत की ओर देखा।- करेक्ट! सिद्धांत ने कहा।मनन ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 24

आगोश अब ये अच्छी तरह जान चुका था कि उसके डॉक्टर पिता अपने पेशे को लेकर नैतिक नहीं हैं। ग़लत तरीके से पैसा कमाते हैं। केवल लालच ही नहीं, बल्कि अपराध भी उनके मुंह लग चुका है। लेकिन वो सीधे अपने पिता से कुछ नहीं कह सकता था। पिता ने उसे ज़िन्दगी दी थी पर उसे ख़ुद उनकी ज़िंदगी पर कोई अधिकार नहीं दिया था। यदि उनके तौर- तरीके आगोश को परेशान करें तो भी उसे उसी घर में उन्हीं के साथ रहना था। ये ठीक ऐसा ही था कि अगर कोई दूधवाला दूध में पानी मिलाए तो उसे ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 25

- बेवकूफ़! अक्ल है कि नहीं तुझ में?आगोश ने कुछ हंसते हुए कहा। पर वो कुछ न बोली। उसी चुपचाप अपने काम में लगी रही।असल में घर की वो नौकरानी कोठी के अहाते में झाड़ू लगा रही थी। वैसे ये उसका काम नहीं था, यहां बाहर के लंबे - चौड़े अहाते में झाड़ू लगाना। यहां सफ़ाई करने के लिए एक दूसरा लड़का आता था। मगर आज आगोश की मम्मी ने सुबह किसी बात पर उस लड़की को डांटते हुए कहा- वो लड़का न जाने कब आता है और दो - चार उल्टे- सीधे हाथ मार कर न जाने कब ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 26

आर्यन और आगोश में बहस छिड़ गई।दोनों ही शराब पी रहे थे।आगोश बुरी तरह पीने लगा था। वह अब स्वाद, तासीर, असर कुछ नहीं देखता था। अब वो दुनिया बनाने के लिए नहीं बल्कि बिगाड़ने के लिए पीने वालों जैसा बर्ताव करने लगा था।शुरू में आर्यन ने उस पर तरह- तरह से नियंत्रण करने की कोशिश की। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।आर्यन ने भी उसे इस रास्ते पर अकेला न छोड़ने की गरज से उसके साथ बैठ कर पीना शुरू कर दिया।हां, इतना जरूर था कि आर्यन ने न तो अपने दोस्त को अकेला छोड़ा और न सलीका ही ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 27

आर्यन की ड्यूटी यहां लगी, बाक़ी लोगों को बाद में बताने के लिए कहा गया। हां, सिद्धांत को भी में रोक लिया गया।असल में ये इंफॉर्मेशन उनके पुराने स्कूल से आई थी, और स्कूल वालों ने उनके पास दर्ज़ मोबाइल नम्बरों पर ही संपर्क किया था।एक एनजीओ ने कॉलेजों और स्कूलों से ऐसे बच्चों के नंबर मांगे थे जो वृद्ध और अकेले बीमार लोगों को अपना कुछ समय दे सकें। इसके लिए युवाओं को प्रमाणपत्र दिया जाता था जो उनकी डिग्री में एक उपलब्धि के रूप में दर्ज़ होता था। छात्रों को ऐसे लोगों के घरों या हॉस्पिटल्स में निर्धारित समय ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 28

आर्यन के रोंगटे खड़े हो गए।वह पसीने- पसीने हो गया। वह उठ कर बैठ गया और इधर- उधर देखने उसने मोबाइल में समय देखा। रात के पौने तीन बजे थे।चारों ओर नीरव सन्नाटा पसरा हुआ था।वो फ़ाइल उसके हाथ से छूट कर नीचे गिर पड़ी थी और उसके पन्ने फड़फड़ा कर अब शांत हो चुके थे। गनीमत थी कि कोई काग़ज़ इधर- उधर नहीं हुआ था और न फटा ही था।उसे दो- चार मिनट का समय लगा संयत होने में। आधी रात के बाद के इस समय में वहां आसपास ऐसा कोई नहीं था जिसके साथ आर्यन बात करके ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 29

क्या यही प्यार है?ये प्यार होता क्या है? क्या कोई हवा, जो किसी को लग जाती है!क्या कोई बेचैनी अच्छे- भले मन को कसमसाना सिखा देती है!क्या कोई संगीत जो किसी दूसरे को देख कर बदन पर बजने लगता है?इसे पहचाना कैसे जाए?आर्यन किससे पूछे। उस जैसा सुलझा हुआ समझदार युवक भी अगर प्यार के नाम पर यूं गच्चा खा जाए तो फ़िर आम युवाओं का क्या होगा?आर्यन पिछले कुछ दिनों से मधुरिमा से आकर्षित था।अब आगोश से ज़्यादा जल्दी आर्यन को रहती थी कि चलें, एक बार कमरे को किसी नौकर से साफ तो करवा लें। चलें, एक बार ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 30

सबकी खिचड़ी अलग - अलग पक रही थी।आगोश अपने कमरे में लेटा हुआ सोच रहा था कि अब उसे न कुछ करना चाहिए। ये फ़ैसला भी करना चाहिए कि क्या वो अपने पापा के कारनामों की जानकारी मिल जाने के बाद भी इस सारे काले कारोबार का मूक दर्शक बना रहे? क्या वह भी ग़लत धंधों से काला पैसा कमाने वाले लोगों की तरह अपने पिता की कमाई से ऐश करते हुए आराम से अपनी ज़िंदगी गुज़ार दे? या अपना कोई अलग रास्ता ढूंढे?उधर अपने कमरे में आर्यन भी कलात्मक चादर पर तकिए को हाथों में लेकर अधलेटा सा ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 31

खाने में आनंद आ गया। बहुत सादा और स्वादिष्ट खाना था।भोजन के बाद भी आपस में बातें करते- करते सभी दोस्त लगभग एक घंटा और वहीं बैठे रहे।इस समय सभी हल्के - फुल्के लिबास में अनौपचारिक हो कर आए थे। अब आगोश ने एक बार फ़िर वही बात छेड़ी जो वो मनप्रीत और मधुरिमा के कमरे में पहले ही उन लोगों को बता चुका था। लेकिन किसी ने भी उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया था। सब उससे ही जानना चाहते थे कि आख़िर उसने क्या सोचा है? क्या है उसका प्लान?सभी उत्सुकता से आगोश की ओर देखने लगे।ऐसा लग ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 32

एम्बुलेंस देख कर सब बुरी तरह घबरा गए।शायद ये वाहन आधुनिक समय का सबसे विचित्र ऐसा साधन है जो को डर से निजात दिलाने के लिए ही बना है और बुरी तरह डरा देता है।लंबे- लंबे डग भरते हुए सब आगोश के कमरे की ओर दौड़े। लेकिन कमरे के भीतर का दृश्य देख कर हक्के- बक्के रह गए।भीतर सिद्धांत और आर्यन आराम से बिस्तर पर बैठे थे और आगोश उन दोनों के बीच में एक सुंदर प्यारे सफ़ेद खरगोश को गोद में लेकर उस पर हाथ फेर रहा था। और एक लड़का, जो संभवतः खरगोश को लाया होगा, सामने खड़ा ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 33

आगोश ने मधुरिमा के घर के कमरे का किराया देना शुरू कर दिया था मगर अभी स्थाई रूप से कोई रहने आया नहीं था।ज़्यादातर कमरा बंद ही रहता। कभी- कभी आर्यन और आगोश वहां जाते रहते थे।मधुरिमा को भी उन लोगों का इंतजार रहता।कभी- कभी मधुरिमा के पिता ज़रूर आगोश से पूछते थे कि उसके मेहमान वहां रहने के लिए कब से आयेंगे?उधर आर्यन मानसिक चिकित्सालय के उस डॉक्टर के पास दोबारा अभी तक नहीं गया था और न ही उसने वहां भर्ती पागल नर्स की कोई और खोज खबर लेने की कोशिश ही की थी।उसे समझ में नहीं ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 34

डॉक्टर साहब की तमाम प्रॉपर्टी में एक अकेला यही फार्महाउस ऐसा था जिसके बारे में उनके बेटे आगोश को नहीं पता था।जब ये छोटा सा घर और इसके साथ इसे घेरे खड़े हुए बांस के बाग़ को डॉक्टर साहब ने एक भूतपूर्व एमएलए से ख़रीदा था तब उन्होंने सोचा तो ये था कि एक दिन बेटे आगोश और उसकी मम्मी को यहां लाकर उन्हें सरप्राइज़ देंगे, किंतु उन्हीं दिनों उनकी अनुपस्थिति में आगोश पर उनके क्लीनिक के कुछ राज़ जाहिर हो गए और उनके ड्राइवर को भी वहां से हटाना पड़ा। तो डॉक्टर साहब का सारा का सारा प्लान ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 35

जीवन अजूबों से भरा है। कुछ नहीं कहा जा सकता कि कब क्या हो जाए।जिसे आर्यन और आगोश कोई पगली, सिरफिरी औरत समझ रहे थे, वो तो देवी निकली, देवी!"डर्टी एयर क्रिएशंस" की डायरेक्टर उन युवकों को कभी इस तरह मिलेगी, ये तो उन्होंने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था।उस दिन रूफटॉप रेस्त्रां में बैठे आर्यन और आगोश की मुठभेड़ अकस्मात जिस महिला से हो गई थी वो वास्तव में शहर की एक उभरती हुई लोकप्रिय फ़िल्म निर्माण संस्था "डर्टी एयर क्रिएशंस" की डायरेक्टर अरुंधति जौहरी ही थीं। वो कुछ लोगों के साथ रेस्त्रां में किसी बिज़नेस डिस्कशन के लिए ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 36

गनीमत रही कि पार्टी आगोश ने दी थी।अगर आर्यन ने दी होती तो तमाशा खड़ा हो जाता।तमाशा तो होता अगर किसी पार्टी में मेज़बान, अर्थात पार्टी देने वाला ही न आए तो भला बेचारे मेहमानों का क्या होगा?तो उस रात आर्यन पार्टी में पहुंचा ही नहीं। जबकि आगोश ने ये पार्टी अपने दोस्त आर्यन के लिए इसी ख़ुशी में दी थी कि आर्यन को एक बड़े टीवी सीरियल में काम करने का चांस मिल गया था।काफ़ी देर इंतजार करने के बाद जब सिद्धांत ने कई बार आर्यन को फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन स्विच ऑफ आया। सब कोशिश कर- ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 37

आर्यन ने अपनी टीशर्ट उतारी। कमरे की लाइट ऑफ़ की। फ़िर ख़ाली शॉर्ट्स पहने हुए ही बिस्तर के पास लैंप जलाकर पिलो के सहारे अधलेटा होकर कहानी पढ़ने लगा... "वह झुका हुआ नदी के ऊबड़- खाबड़ किनारे पर मुंह डाल कर पानी पी रहा था। दूर से नंगी आंखों से देखने से वह चमकीले - मटमैले रंग का कोई चौपाया जानवर सा दिख रहा था। शायद सियार या भेड़िया।यहां डरने की कोई बात नहीं थी। क्योंकि वह दूसरे मुहाने पर था। वैसे भी घने जंगल में जानवर जब पानी पीने आते हैं तो उनके तेवर ज़्यादा आक्रामक नहीं होते। ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 38

ऐसा कभी होता नहीं था। मम्मी इतनी सुबह उठ कर कभी आगोश को जगाने आती नहीं थीं। इसीलिए जैसे मम्मी ने आगोश की चादर खींच कर उघाड़ी, वो अचकचा कर बोल पड़ीं- छी- छी... ये कैसे सो रहा है? - बेटा, एसी तो बंद कर दिया कर... कहती हुई मम्मी जल्दी से कमरे से बाहर निकल गईं। आगोश झटपट उठ कर पहले बाथरूम गया फिर कूदता हुआ मम्मी के पास आया। - हां, ये तो बताओ जगाया क्यों? - बेटा, तू दौड़ कर बाहर जा, ज़रा देख कर तो आ, अपने गैरेज के सामने ये पीली गाड़ी किसकी खड़ी ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 39

वैसे तो कलाकारों और यूनिट के सभी सदस्यों के कॉन्ट्रेक्ट में ये बात लिखी हुई थी कि वो सीरियल कहानी, शूटिंग, प्रोडक्शन, एडिटिंग आदि सभी बातों में पूरी गोपनीयता रखेंगे और किसी को भी इस बारे में कुछ नहीं बताएंगे लेकिन पहली बार इससे जुड़ने वाले युवा इन नई- नई बातों को दोस्तों के बीच बताने से भी तो अपने को रोक नहीं पाते थे। आर्यन ने आगोश को बता दिया कि जिस सीरियल में वो काम करने जा रहा है, ये एक मज़ेदार स्क्रिप्ट है। इसमें कुछ लोग एक सुंदर सी घाटी में पैरा- ग्लाइडिंग सीख रहे हैं। ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 40

आर्यन तेज़ी से कार चलाता हुआ डॉक्टर साहब के बंगले पर पहुंच गया। उन्होंने उसे यहीं बुलाया था। फ़ौरन आने के लिए कहा था इसलिए आर्यन को आगोश के कमरे पर दोस्तों के साथ फ़िल्म देखने का प्लान छोड़ कर यहां आना पड़ा। आगोश ने अपनी नई गाड़ी उसे दे दी थी, रात देर हो जाने से सड़कों पर भी सन्नाटा पसरा हुआ था तो आर्यन को हवा की रफ़्तार से वहां पहुंचने में कोई देर नहीं लगी। ये पागलखाने के वही डॉक्टर थे जिनके साथ एक दिन एक एनजीओ के सदस्य के रूप में आर्यन ने मनोचिकित्सालय में ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 41

दोपहर में आर्यन जब आगोश की गाड़ी वापस लौटाने के लिए उसके घर गया तो वह गाड़ी से उतरा बस बाहर से ही ज़ोर- ज़ोर से हॉर्न बजाता रहा। कुछ देर तक तो किसी का भी ध्यान नहीं गया पर कुछ देर बाद भुनभुनाता हुआ आगोश अपने कमरे से निकल कर बाहर आया। उसे बेहद झुंझलाहट हो रही थी। उसे लगा, न जाने कौन सिरफिरा था जो बाहर से ही हॉर्न बजा कर नाक में दम किए दे रहा था। उसने सोचा ये डैडी भी न जाने कैसे- कैसे लोगों को सिर चढ़ा लेते हैं.. आया होगा कोई अफलातून, ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 42

अब आर्यन भी आगोश से डरने लगा। न जाने क्या था कि उस प्यारे से दिलदार लड़के से एक- करके सब डरने लगे थे। आगोश के डैडी इसलिए डरते थे कि कहीं उसके सामने उनका कोई राज न फाश हो जाए। उसकी मम्मी इसलिए डरती थीं कि कभी किसी बात पर बाप- बेटे आपस में न टकरा जाएं। उनके घर की नौकरानी इसलिए डरती थी कि वो इस दिनोंदिन उद्दंड होते जा रहे जवान लड़के के सामने घर में अकेली न पड़ जाए। ऐसे में या तो उसकी नौकरी जाए या फिर उसकी अस्मत। उधर बेचारी मधुरिमा इसलिए डरती ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 43

दरवाज़ा खोल कर नौकरानी भीतर आई और आगोश की मम्मी से बोली- मम्मी साहब, बाहर कोई है! - कौन तूने पूछा नहीं? मम्मी ने कुछ सचेत होकर कहा। - एक लड़की है और उसके साथ एक साहब हैं, शायद उसके पिताजी होंगे। लड़की बोली। ये सुनते ही मम्मी उठ कर दरवाजे तक आईं और उनकी ओर उत्सुकता से देखती हुई उन्हें भीतर आने और बैठने का न्यौता देने लगीं। पर वो दोनों ही कुछ घबराए हुए, बल्कि हड़बड़ाए हुए से थे। दोनों ने हाथ जोड़ कर मम्मी को नमस्कार किया पर वो बैठे नहीं। लड़की बोली- आंटी आगोश नहीं ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 44

ये एक बेहद ख़ूबसूरत जगह थी। ऊंचे नुकीले पहाड़ों के बीच से टेढ़ा- मेढ़ा रास्ता बनाती झील यहां बहुत और खुशनुमा हो जाती थी। किनारे पर बने हुए इस सफ़ेद शांत महल ने अब एक होटल का रूप ले लिया था। इसी महल में ठहरे थे आर्यन और उसके साथ आए जयंत बर्मन। आर्यन बर्मन साहब को अंकल कहता ज़रूर था पर वो उसके साथ बराबर वालों का सा मित्रवत व्यवहार रखते थे। इस समय भी तो दोनों आमने सामने बैठे बेहद जायकेदार नीलागुल शराब पी रहे थे। बर्मन साहब आर्यन को बता रहे थे कि किस तरह हम ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 45

आज आगोश अजीब सा ही बर्ताव कर रहा था। वह सूरत से भी बेहद भोला- मासूम सा दिख रहा जैसे कोई बेबस कबूतर हो, जिसका घोंसला तोड़- फोड़ कर फेंक दिया गया हो। तिनका- तिनका गायब! तीन- चार दिन में आर्यन के लौट आने के बाद आज वो सब दोस्त फ़िर से एक सूने कैफे में एक काली उदास मेज के इर्द - गिर्द इकट्ठे थे। जब आगोश ने आर्यन को कमरे पर हुई चोरी के बारे में बताया तो आर्यन का मुंह लटक गया। आगोश हंसा और आर्यन को चिढ़ाने लगा- ले साले, मेरा तो जो हुआ सो ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 46

समय कितना बदल गया था। कुछ साल पहले किसी समय आगोश और साजिद की बात फ़ोन पर यदि होती थी तो केवल ये पूछने के लिए होती थी कि टीचर होमवर्क कब चैक करेंगे? या ये पूछने के लिए, कि एनुअल फंक्शन के अगले दिन छुट्टी होगी क्या? और अब? रात के दो बजे थे। अपने- अपने कमरे में अकेले बैठे दोनों दोस्त ऐसे मुद्दों पर चिंतित होकर चर्चा कर रहे थे। साजिद बता रहा था कि उसकी बेकरी का पुराना नौकर अताउल्ला विदेश भागने की तैयारी में है। साजिद ये भी बता रहा था कि उसे फ़ोन पर ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 47

साजिद बहुत उत्तेजित था। वह बड़ी खबर लाया था। साजिद के यहां काम करने वाला लड़का अताउल्ला, जो अब छोड़ कर जा चुका था, उसने जाते- जाते साजिद के अब्बू से उसकी झूठी शिकायत करके उसे अब्बू से मार खिलवाई थी। बाहर से शांत दिखने वाला साजिद वैसे तो अब बेकरी के काम में लग कर व्यस्त हो गया था पर वो इस बात को भूला नहीं था। उसका युवा ख़ून किसी न किसी तरह अताउल्ला को सबक सिखाने के लिए कुलबुलाया करता था। उसे अताउल्ला पर गुस्सा दो कारणों से था। एक तो उसने साजिद के अब्बू से ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 48

रात के तीन बजे थे। वाशरूम जाने के लिए आगोश की मम्मी उठीं तो देखा, आगोश के कमरे की जली हुई है। - हे भगवान! क्या करता है ये लड़का। हमारे ज़माने में तो लोग कहते थे कि जवानी नींद भर सोने के लिए होती है, इन्हें देखो, सोने की फ़िक्र ही नहीं है। क्या करते हैं ये आजकल के बच्चे! सोचती हुई वो अपने कमरे में जाती हुई एक बार फ़िर से पलट कर चोरी- चोरी उसके कमरे में झांकने चली आईं। ओह, ये क्या? आगोश तो टेबल के सहारे बैठा हुआ एक किताब पढ़ने में तल्लीन है। ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 49

आगोश पहचान में नहीं आ रहा था। महीने भर में ही गेटअप पूरी तरह बदल गया था। बालों के से लेकर जूतों के ढंग तक। सब बदल गया था। उसकी ट्रेनिंग सप्ताह में पांच दिन होती थी। उन पांच दिनों में से भी एक दिन पूरी तरह आउटिंग का होता था। एकांत में एक बहुत बड़े, खुले- खुले परिसर में हॉस्टल भी था और इंस्टीट्यूट भी। बाहर दूर- दूर से आए हुए लोग छुट्टी के दो दिन दिल्ली और आसपास घूमने में बिताते, मगर आगोश तो शुक्रवार की शाम घर चला आता। कुल चार - पांच घंटे का तो ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 50

दोनों का ही हाल एक सा हो गया था। आर्यन और आगोश दोनों अब परदेसी हो गए थे। लेकिन की महक अभी सूखी नहीं थी। जब भी यहां आते, सब दोस्तों का जमावड़ा ज़रूर होता। अब तो उन्हें मेहमान जान कर मधुरिमा और मनप्रीत भी मिलने का समय ज़रूर निकालतीं। जब और जहां, जैसा भी प्रोग्राम बनता वो दोनों भी पूरी कोशिश करतीं थीं उसमें शरीक होने की। एक बात ज़रूर थी। आर्यन और मधुरिमा के निकट आने की बात कभी आर्यन की ओर से ही शुरू हुई थी। आर्यन ने ही उसकी तरफ़ कदम बढ़ाए थे। पर अब ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 51

शहर के प्रसिद्ध मनोरोग चिकित्सालय के बाहर पिछले कुछ दिनों से एक शानदार, बेशकीमती कार आकर खड़ी होने लगी कार किसी अजनबी की नहीं थी बल्कि इसे हॉस्पिटल के वही डॉक्टर लेकर आते थे जिनके संरक्षण में कुछ दिन पहले एक पागल नर्स का अजीबो- गरीब केस दाख़िल हुआ था। जिसमें रोगी का ख़ुद भी बार- बार ये कहना था कि वो पागल नहीं है किंतु डॉक्टर उसके व्यवहार के कारण उसे पागलपन का ख़तरनाक मामला मान कर एक रात आर्यन को यहां लाए थे।ये बात उजागर होते ही डॉक्टर साहब पर अचानक एक दिन "सौभाग्य का हमला" हुआ ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 52

ट्रेनिंग के दौरान आगोश की जापानी लड़के तेन के साथ अच्छी दोस्ती हो गई। अब अक्सर वो दोनों साथ दिखाई देते। हॉस्टल में भी रात को दोनों का साथ रहता।आगोश उससे इस व्यवसाय की बहुत सी बातें जान गया था क्योंकि तेन प्रशिक्षण के लिए यहां आने से पहले भी इसी काम से जुड़ा रहा था।तेन ने आगोश को बताया कि जापान सहित और कुछ देशों में आजकल एक बिल्कुल नए प्रकार का टूरिज्म भी बेहद लोकप्रिय हो रहा है जिसे यौन- पर्यटन अथवा सेक्स टूरिज्म कहते हैं।पर्यावरण के कारण कुछ स्थानों की जनसंख्या बहुत कम होती है। जापान जैसे ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 53

तेन कह रहा था कि तुम्हारे यहां लोग चलती कार से शीशा खोल कर सड़क पर रैपर्स, छिलके, बोतलें क्यों फ़ेंक देते हैं? क्या यहां ज़्यादा डस्टबिन नहीं होते?आगोश गाड़ी चलाते- चलाते ज़ोर से हंस पड़ा। क्योंकि तेन ने सिर्फ़ कहा नहीं था, बल्कि बाकायदा शीशा खोल कर अभिनय करके बताया था कि लोग कैसे करते हैं, कैसे कचरा फेंकते हैं। और ऐसा करने में अचानक तेन की अंगुली कांच से ज़ोर से दब गई। वह दर्द से सिसकारी भर कर उछल पड़ा।आगोश किसी रिफ्लेक्स एक्शन की तरह हंस तो पड़ा पर तुरंत ही संभल गया। उसे याद आ ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 54

रविवार को दोपहर में आगोश ने एक विशेष कार्यक्रम घर पर ही आयोजित किया। आर्यन के उन दिनों टीवी आ रहे सीरियल के कुछ अंश आगोश के जापानी मित्र को दिखाने के लिए सभी लोग आगोश के बंगले के ड्राइंगरूम में इकट्ठे हुए। तेन के लिए ये अनुभव किसी चमत्कार से कम नहीं था कि जिस एक्टर को वो स्क्रीन पर देख रहा था वो रेशमी पठान सूट पहने उसकी बगल में ही बैठा हुआ था। केवल आर्यन ही नहीं, बल्कि साजिद, मनन, सिद्धांत भी मौजूद थे। मनप्रीत और मधुरिमा ने कहा था कि वो दोनों शो में उपस्थित ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 55

आगोश को कभी- कभी बचपन में उन्हें स्कूल में सिखाई गई बातें याद आती थीं तो वो भावुक हो था। उनके एक टीचर कहते थे कि यदि तुम हॉस्टल की मैस से दही या फल चुरा कर खा रहे हो तो ये ग़लत है, लेकिन यदि तुमने अपनी चुराई हुई रोटी किसी भूखे भिखारी को दे दी तो तुम्हारा अपराध कुछ कम हो जाता है। वह लेटा - लेटा सोचता- क्या उसके पिता भी कोई ऐसा ही प्रायश्चित कर रहे हैं? क्या उन्हें ये अहसास हो गया है कि उन्होंने ग़लत तरीक़े से ढेर सारा पैसा कमा लिया है ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 56

- "ये सब इतनी जल्दी कैसे होगा?" मधुरिमा की मम्मी के तो मानो हाथ- पैर ही फूल गए।- चिंता करो, जब बेटी ने तुम्हें बिना बताए इतना कुछ कर लिया तो आगे भी सब हो ही जाएगा। मधुरिमा के पापा ने उन्हें सांत्वना दी।घर में ख़ुशी का माहौल था। ये तो किसी ने भी कभी सोचा ही नहीं था कि मधुरिमा इतनी होनहार निकलेगी।उसके पापा के पांव तो ज़मीन पर पड़ते ही नहीं थे, वो फ़ोन पर या मिलने पर अपने सभी पड़ोसियों और रिश्तेदारों को बताते थकते नहीं थे कि उनकी बेटी को विदेश के एक नामी- गिरामी ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 57

मनप्रीत तब थोड़ा झिझकी जब आसपास से तीन- चार लोग उसे देखने लगे। साजिद पीछे से उसे आवाज़ लगाता दौड़ा चला आ रहा था पर वो गुस्से में तमतमाई हुई बिना उसकी बात सुने पार्क के गेट की ओर चली आ रही थी। मनप्रीत को लगा कि अगर साजिद उस तक पहुंच गया तो वो उसे रोकने की कोशिश करेगा और सड़क पर बेबात के तमाशा खड़ा हो जाएगा। इसलिए वह तेज़ी से अपने स्कूटर की ओर चली आ रही थी। उधर साजिद ने कई बार उसे पुकारने के बाद जब जेब से निकाल कर स्कूटर की चाबी हवा ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 58

आगोश का कोर्स जल्दी ही अब पूरा होने वाला था। तेन भी अब वापस अपने देश जापान लौट जाने तैयारी करने लगा था। उन दोनों के बीच अब घनिष्ठ यारी हो गई थी। दिल्ली के इन दिनों के साथ ने उन दोनों को ही बहुत कुछ दिया था। दोनों की दुनिया ही बदल दी थी। सच में, जीवन में जब आदमी ये तय कर लेता है कि उसे क्या करना है तो एक सुकून सा मिलता है। जीवन की एक दिशा तो तय हो ही जाती है फ़िर चाहे उसमें कितने ही उतार - चढ़ाव आते रहें। अब पर्यटन ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 59

अब जाकर मनन के चेहरे पर थोड़ी हंसी आई। मज़ा आ गया उसे। दो बार से तो वो चित्त रहा था। अंकल उसे पटक देते और उस पर चढ़ बैठते। इस बार अंकल नीचे थे और वो ऊपर। मज़ा आया। मनन मधुरिमा के पापा को अंकल कहता था। केवल वो ही नहीं, बल्कि उनकी मंडली के सारे दोस्त ही उन्हें अंकल कहते थे। मगर इस समय आसपास कोई नहीं था। कमरे में बस वो दोनों ही अकेले थे। उन दोनों को ही समय का कोई ख़्याल नहीं था। मस्ती से एक दूसरे को पछाड़ने-गिराने में लगे थे। नहीं - ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 60

विंडो सीट थी।मौसम भी मस्त।फ़िर भी कुछ तो ऐसा था जो कुछ देर के लिए मधुरिमा को उदास कर था।लेकिन तभी आसमान से बादलों में छनती धूप नीचे ज़मीन के पेड़ों पर चिलका मारती और उन्माद लौट आता।कल शाम को पापा लूडो की नीली गोट से खेलते हुए जीतते गए और ये सारा आसमान मधुरिमा के लिए नीला हो गया।मम्मी हाथ में पीली गोट लिए पासे फेंकती रहीं और... और उनसे कुछ ही दूरी पर एक सादा समारोह में मधुरिमा के हाथ पीले हो गए।हां रे ... सचमुच।कल दो कारों में आगोश, सिद्धांत, साजिद, मनन, मनप्रीत, मधुरिमा और उसके ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 61

आर्यन का अब एक लंबा शूटिंग शेड्यूल दक्षिण भारत में था। उसने फ़ोन पर ही आगोश को बताया कि दक्षिण में जाने से पहले एक- दो दिन छुट्टी में बिताने के लिए घर आने की कोशिश करेगा लेकिन यह निश्चित नहीं है क्योंकि उनका कार्यक्रम कुछ और कलाकारों की सुविधा पर भी आधारित है। जाने छुट्टी मिले न मिले। आर्यन ने ये भी कहा था कि वो इस बीच आगोश, दोस्तों और घर को बुरी तरह मिस करता रहा है। लेकिन इस एक- तरफा सी बातचीत में आगोश फ़ोन पर आर्यन को ये बताने की हिम्मत बिल्कुल भी नहीं ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 62

स्कूल की पूरी इमारत जगमगा रही थी। इसे तरह- तरह से सजाया गया था। सामने के बड़े लॉन में मंच पर आकर्षक स्टेज सजाया गया था। जिस मैदान में कभी आर्यन,आगोश, सिद्धांत, मनन, साजिद और मनप्रीत चुपचाप आकर अपनी- अपनी पंक्ति में सुबह की प्रार्थना बोलने के लिए खड़े हुआ करते थे आज उसी के किनारे वाली पार्किंग में उनकी अपनी गाड़ियां खड़ी थीं और वे सब आगोश के साथ स्कूल में होने वाले भव्य आयोजन में शिरकत करने आए थे। आर्यन भी आ गया था किन्तु वह भीतर प्रिंसिपल साहब के कक्ष में उनके साथ था। बाहर विद्यार्थियों ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 63

आर्यन अगले दिन वापस लौट गया। महीनों बाद तो घर और दोस्तों के बीच आया था लेकिन इस बार कुछ उल्टा- पुल्टा हो गया। अथाह बेचैनी के बीच वह वापस लौटा।रात को आगोश ने उसे सब कुछ बता दिया था। बिल्कुल एक- एक बात सिलसिलेवार ढंग से जान कर कहीं न कहीं आर्यन ख़ुद अपने को भी दोषी पा रहा था।उसे लगता था कि उसे दोस्ती, लड़की, सेक्स, गर्भ और बच्चे जैसे संवेदनशील मामले को इतने हल्के में नहीं लेना चाहिए था। आधुनिकता परम्पराओं को रौंद कर फ़ेंक देने का नाम नहीं है।उसने अगर मधुरिमा को दोस्त बनाया था ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 64

फ़ोन रखते ही साजिद की आंखें चमकने लगीं।उसने बेकरी के भीतर से आवाज़ देकर एक लड़के को बुलाया।- अताउल्ला है?- मैं क्या जानूं बॉस, वो तो महीनों से मिला ही नहीं है मुझे। घर भी नहीं आता। कोई काम था क्या आपको? लड़के ने सवालों की झड़ी लगा दी।साजिद बोला- तू जानता है कि वो कर क्या रहा है आजकल?- क्यों? उसे बुलाना है क्या वापस? - नहीं बुलाना तो नहीं है, पर तू एक काम कर।- क्या, बोलो।- वो शायद वनगांव के पास हाईवे पर टीडी ट्रांसपोर्ट में काम कर रहा है। तू उससे मिल कर आ।- क्या कहना ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 65

आगोश और तेन का काम धड़ल्ले से चल पड़ा था। अब आगोश का एक पैर भारत में रहता और जापान में। वह आता- जाता रहता।जब वो भारत आता तो आने से पहले मधुरिमा से एक बार ये ज़रूर पूछता था कि तनिष्मा को उसके नाना- नानी से मिलवाने ले चलना है क्या?मधुरिमा ये कह कर टाल जाती कि पहले इसे नाना- नानी बोलना सिखा दूं, फ़िर चलेंगे।तेन मुस्करा कर रह जाता।उन्होंने कई टूर सफ़लता से संपन्न करवा लिए थे। वे किसी भी एक सुंदर सी जगह को चुनते और तब महंगे विज्ञापनों के ज़रिए लोगों को वहां की सैर ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 66

साजिद ने आज एक ड्राइवर को बुला लिया था। कम से कम आज तो वो गाड़ी में शान से कर जाना चाहता था। बड़े से बैठक कक्ष के बाहर बैठ कर इंतजार करते हुए ड्राइवर ने पांच साल के छोटे से बच्चे को खेलते देखा तो उसे ही बुला कर उससे बात करने लगा। बच्चे के हाथ में प्लास्टिक की एक छोटी सी छिपकली लग रही थी और वो उसी से खेल रहा था। ड्राइवर भी अठारह- उन्नीस बरस का एक पढ़ा- लिखा सा लड़का था। बच्चे के हाथ में छिपकली देख कर डरने का नाटक करते हुए बोला- ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 67

उस दिन मनप्रीत और मधुरिमा लगभग सवा घंटे तक फ़ोन पर बात करती रहीं। पता ही नहीं चला कि वक्त कैसे निकल गया। बातें ही जो इतनी थीं बताने को। ओह, समय भी कैसे बदल जाता है। देखते- देखते उम्र फासले तय करती चली जाती है और वो सब होता चला जाता है जो किसी ने कभी सोचा तक न था। मधुरिमा को ये जानकर बहुत मीठा सा अचंभा हुआ कि उसकी सहेली मनप्रीत अब अपना धर्म परिवर्तन कर के आयशा बन गई। ये मीठा सा अचंभा क्या होता है? मीठा अचंभा वो होता है जिसके लिए दिल कहता ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 68

अताउल्ला दिल्ली एयरपोर्ट की पार्किंग में था। वह रात को दो बजे ही वहां आ गया था। गाड़ी की खुली थी और सुबह- सुबह नहा कर आ जाने के बाद उसने अपना अंडरवीयर उसी पर सुखा रखा था। डॉक्टर साहब ने उसे ख़ास सतर्क रहने के लिए कहा था। उसे कतर से आने वाले प्लेन का इंतजार था। उसे बताया गया था कि प्लेन आ जाने के बाद एक लालरंग की गाड़ी श्रीजी हाइट्स बिल्डिंग के सामने उसके पास से गुजरेगी और उसे केवल अपना शीशा खोल कर उस गाड़ी से एक पैकेट रिसीव कर लेना है। वह पार्किंग ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 69

- ये कोई चिंता की बात नहीं है आंटी, आप टेंशन मत लीजिए। मनन ने कुछ सकुचाते हुए कहा। इन तीन - चार दिनों में वो आगोश की मम्मी के साथ काफ़ी घुल- मिल गया था और आगोश के जापान चले जाने के बाद भी कभी- कभी आगोश के घर उसकी मम्मी से मिलने आता रहता था। वो आगोश की मम्मी का अकेलापन और मायूसी समझता था इसीलिए उनके बुलाने पर कभी - कभी चला आता था। लेकिन आगोश की मम्मी ने अब उससे जो शंका जाहिर की थी उससे वह थोड़ा चिंतित हो गया था। मम्मी ने उसे ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 70

आगोश, तेन और साजिद बहुत उत्साहित थे। आज वो लगभग चार घंटे समुद्री यात्रा करके उस वीरान मगर बेहद टापू को देखने जाने वाले थे, जिस पर तेन और आगोश ने मिलकर एक छोटा सा जंगल ख़रीदा था। इस छोटे से टापू की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि पानी में से आते हुए इसे दूर से देखने पर ये प्रतिपल रंग बदलता हुआ दिखाई देता था। ये कैसा चमत्कार था कुदरत का। कोई नहीं जानता था कि ऐसा क्यों होता था। कभी- कभी लगता था कि जैसे उस टापू के सघन पेड़ों की पत्तियां रंग बदल लेती हैं ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 71

जापान से लौट कर आने के बाद से साजिद और मनप्रीत का एक बड़ा बोझ और भी उतर गया वो मधुरिमा के पैसे उसे सकुशल वापस लौटा आए थे। बोझ तो था ही वो। कितना मुश्किल होता है आज के ज़माने में किसी की अमानत के तौर पर साठ लाख रुपए को संभाल कर रखना! वो भी ऐसे मित्रों के, जिनकी ज़िन्दगी ख़ुद ही अनिश्चय के भंवर में हिचकोले खा रही हो। अब अपनी आंखों से मधुरिमा की गृहस्थी को देख आने के बाद उन्हें तसल्ली हो गई थी और मनप्रीत ने ही मधुरिमा को रुपए वापस पकड़ाते हुए ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 72

रात को दो बजे जब गाड़ी को गैरेज में रख कर आगोश घर में घुसा तो ये देख कर कि उसके कमरे की लाइट जली हुई है। उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि इतनी रात गए तक क्या मम्मी अभी तक जाग रही हैं? और अगर जाग भी रही हैं तो वो आगोश के कमरे में क्या कर रही हैं? यही सब सोचता हुआ आगोश ऊपर आया तो कमरे से टीवी चलने की आवाज़ भी आ रही थी। कमाल है, इस समय? लेकिन जैसे ही आगोश ने दबे पांव अपने कमरे में घुस कर कदम रखा, वह ख़ुशी से उछल ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 73

डॉ. तक्षशीला चक्रवर्ती... मनोरोग विशेषज्ञ ये थी वो छोटी सी नेमप्लेट जो इस छोटे मगर खूबसूरत अहाते में कांच एक मोटी दीवार पर लगी हुई थी। इसी के बाहर आगोश अभी- अभी कार से अपनी मम्मी को पहुंचा कर गया था। आगोश की मम्मी ने डॉक्टर साहिबा से पहला सवाल यही किया था कि तक्षशिला तो सुना है, पर "तक्षशीला" नाम पहली बार देख रही हूं... सामने बैठी हुई बेहद हंसमुख और संजीदा डॉक्टर ने जवाब दिया- आपने जो सुना वो एक पुराने प्रख्यात विश्वविद्यालय का नाम है, और यहां नेमप्लेट पर जो देख रही हैं वो मेरा नाम ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 74

आर्यन जब इस बार अपने घर से वापस लौटा तो काफ़ी अनमना सा था। अपना घर, अपना शहर, अपने सब कुछ जैसे उसे बेगाना सा लगा। यही तो ज़िन्दगी है। जब हम कुछ पाने के लिए तन -मन -धन से जुट जाते हैं तो हम ये भी भूल जाते हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। लेकिन जब अपने सपनों की पतंग हमारे हाथ लग जाती है तो हम पाते हैं कि आसमान में उड़ता हमारा ये स्वप्न-शरारा बिल्कुल अकेला है। इसका कहीं कोई संगी- साथी नहीं। अब जो भी इसके पास आता है वो ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 75

ग़ज़ब हो गया।सब परेशान थे। उधर जब एक छोटे से कैमियो रोल के लिए रामोजी फिल्म सिटी में आई अभिनेत्री के साथ हैदराबाद के सबसे आलीशान होटल में डिनर के लिए गए हुए आर्यन को फ़ोन से ये सूचना मिली कि आगोश घर छोड़ कर कहीं चला गया है तो उसे एकाएक यकीन नहीं हुआ। अभी कुछ दिन पहले तो वो उससे मिल कर आया ही था। दोनों दो दिन साथ ही रहे थे। अचानक ऐसा क्या हो गया कि उसे घर छोड़ कर जाना पड़ जाए।पर सूचना ग़लत नहीं थी। सिद्धांत, मनन और साजिद ने शहर का कौना- कौना ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 76

- "ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर"! बिल्कुल सच्ची कहावत है ये...अब देखो न, आगोश की मम्मी ने उस बेचारे कमरे में सीसीटीवी कैमरे ही लगवा दिए। कोई अपने ही घर में ऐसे संदेह से देखा जाएगा तो बेचारा क्या करेगा? घर से भागेगा ही न ! मनप्रीत ने कुछ क्रोध और उपेक्षा से कहा। कल रात को सिद्धांत और मनन से साजिद को सारी बात पता चली तो उसने आकर मनप्रीत को भी बताया। आगोश की मम्मी को न जाने कैसे ये संदेह हो गया था कि आगोश सारी- सारी रात अपने कमरे में शराब ही नहीं पीता है ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 77

आर्यन ने शूटिंग कैंसिल कर दी। ऐसा आर्यन की किसी भी प्रॉडक्शन यूनिट में पहली बार हुआ था कि ने होटल से ही फ़ोन से ये सूचना लोकेशन पर दी हो कि वो आज शूट पर नहीं आ सकता। आर्यन के बैचलर और हंसमुख होने के कारण उसके साथ डायरेक्टर- प्रोड्यूसर ही नहीं, बल्कि को- एक्टर्स से लेकर स्पॉटब्वॉय तक सब खुले हुए और ख़ुश रहते थे, इसलिए ज़्यादातर तो वो यूनिट के बाक़ी लोगों के साथ ही ठहरता और खाता- पीता था लेकिन आज होटल में उसके अकेले ठहर कर ऐसी सूचना देने से सब चिंतित हो गए। ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 78

अद्भुत! अकल्पनीय! अविश्वसनीय! ऐसा भी होता है कहीं? कचरू के हाथ से तो ट्रे गिरती - गिरती ही बची। की बोतल उसने झट से लपक कर बगल में दबा ली, वरना वो ट्रे में से छिटक कर नीचे गिरती और सारे में कांच के टुकड़े बिखर जाते। ट्रे और बोतल झट से नीचे टेबल पर रख कर कचरू ने एक बार फ़िर से दोनों हाथों से अपनी आंखों को मला और लगातार टुकुर - टुकुर देखता रहा। अरे! हूबहू वही। वही लड़का जिसके फोटो का स्क्रीनशॉट टीवी पर से लाकर कचरू ने आर्यन साहब को दिखाया था वो तो ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 79

- फ़िर? - फ़िर क्या, मैं मर जाऊंगा बस। - अरे पर क्यों??? - सब बताया तो है न फ़िर भी पूछ रहा है? - यार, जो बताया है वो तो बढ़िया है, एकदम परफेक्ट। लेकिन मर क्यों जाएगा? - ज़िंदा रहने का भी क्या मतलब! - बेटा, ये कोई रंगमंच की कहानी नहीं है कि एक शो में तू मरा और दूसरे में फ़िर उठ कर खड़ा हो जाएगा। मरने का मतलब जानता है? ... मरने का मतलब है कि बस, खेल ख़त्म। किसी को कुछ नहीं पता कि फ़िर क्या होना है। ...ये जो मोटे - मोटे ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 80

किसी ने सपने में भी ये कल्पना नहीं की थी कि ये दिन देखना पड़ेगा। आख़िर क्या चाहता है उसकी लीला अपरम्पार! सिद्धांत, मनन और साजिद को अब इन तैयारियों में लगना पड़ा। मनप्रीत अपने इन सब दोस्तों के साथ आ तो नहीं सकी थी लेकिन घर में कई बार रोई। मधुरिमा का तो फ़ोन पर ही बुरा हाल था। तेन ने भी एक मिनट तक फ़ोन पकड़े - पकड़े ख़ामोश रह कर मानो वहीं से श्रद्धांजलि दी। आर्यन भी दोपहर की फ्लाइट पकड़ कर चला आया। आगोश की मम्मी का तो रोते- रोते बुरा हाल था। उन्हें खाने- ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 81

आर्यन जब वापस लौट कर मुंबई गया तब तक भी उसका चित्त स्थिर नहीं था। आगोश की दुर्घटना और की खबर सुन कर वो जिस तरह ताबड़तोड़ यहां से सब काम छोड़ कर निकल गया था उससे भी यूनिट के लोग कुछ अनमने से थे और उससे काफ़ी ठंडे तौर- तरीके से पेश आ रहे थे। जिस फिल्मी दुनिया में आर्यन रहता था वहां पैसे का नुकसान और मुनाफा बहुत बड़ी बात समझी जाती थी और सब कुछ इसी के इर्द - गिर्द घूमता था। वहां रिश्तों के ऐसे निभाव को कोई तरजीह नहीं देता था, जहां भावना के ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 82

डॉक्टर साहब अर्थात दिवंगत आगोश के पिता का अब ज़्यादा समय दिल्ली में ही बीतता था। उनकी पत्नी भी घर में अकेली रह जाने के कारण ज़्यादातर उनके साथ ही रहती थीं। यहां का उनका लंबा- चौड़ा बंगला अक्सर ख़ाली ही पड़ा रहता। उनकी क्लीनिक में भी अब काफ़ी कुछ बदलाव आ गए थे। केवल उनकी ही नहीं, बल्कि शहर के बाक़ी अधिकांश निजी हॉस्पिटल्स, नर्सिंग होम्स और क्लीनिक भी अब अधिकतर इसी ढर्रे पर चल पड़े थे। वहां नए- नए नौसिखिया डॉक्टर्स बैठते किंतु विशेषज्ञों के नाम पर ढेर सारे प्रतिष्ठित पुराने डॉक्टर्स की नाम पट्टिका लगी रहती। ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 83

भाग- दौड़ शुरू हो गई। साजिद, सिद्धांत और मनन ये अच्छी तरह जानते थे कि उनके मित्र आगोश की अपने हॉस्पिटल परिसर में लगाने में उसके माता- पिता ख़र्च की परवाह तो बिल्कुल ही नहीं करेंगे। तीनों ने जल्दी से जल्दी इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कमर कस ली। जयपुर शहर वैसे भी मूर्तिकला के लिए दुनिया भर में विख्यात रहा ही था, अतः उन्होंने जयपुर के नामचीन मूर्तिकारों से संपर्क साधना शुरू कर दिया। यहां के शिल्पकारों ने दुनिया के कई मंदिरों, स्मारकों व अन्य स्मृति परिसरों के लिए एक से एक नायाब शिल्प गढ़ ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 84

मधुरिमा के माता - पिता आज ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे। उनके तो पांव ही ज़मीन पर पड़ते थे। बात ही ऐसी थी। आज मधुरिमा आ रही थी। उनकी वो बिटिया, जिसे उन्होंने कभी जापान में पढ़ने की बात मान कर वहां भेजा था, अब अपने पति और नन्ही बिटिया को साथ लेकर भारत आ रही थी। उसके पति तेन को वैसे तो उन्होंने आगोश के एक दोस्त के रूप में देखा था, किंतु अब वो उसे पहली बार अपने दामाद के रूप में देखने वाले थे। सब प्रफुल्लित थे। मधुरिमा जिस फ्लाइट से आ रही थी ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 85

एयरपोर्ट की अफरा- तफरी में तो किसी को कुछ नहीं सूझा पर अब व्यवस्थित होकर कारों में बैठकर हाईवे आते ही मधुरिमा की मम्मी सब कुछ जानने के लिए तड़प उठीं। तेन और बेटी तनिष्मा उनके साथ इसी कार में थे जिसे सिद्धांत चला रहा था। मम्मी के बार - बार पूछने पर तेन ने बताया कि जिस दिन उन्हें इंडिया के लिए चलना था ठीक उसी दिन कंपनी में एक ज़रूरी मीटिंग फिक्स हो गई। उसे और मधुरिमा में से किसी एक को वहां रुकना बेहद ज़रूरी हो गया। तब मधुरिमा ने हमें भेजा। वो कल आ जाएगी। ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 86

शाम को तेन और मधुरिमा के लिए एक भोज का कार्यक्रम आर्यन के घर पर रखा गया। आर्यन की ने ख़ुद फ़ोन कर - कर के साजिद, मनप्रीत, सिद्धांत और मनन को तो बुलाया ही, आगोश और मधुरिमा की मम्मियों को भी न्यौता दे डाला। अब इतने बड़े फ़िल्मस्टार की मां ख़ुद फ़ोन करके निमंत्रण दें तो भला कौन फूल कर कुप्पा न हो जाए। ये तो अच्छी- खासी पार्टी ही हो गई। मज़ेदार बात ये थी कि कुछ समय के लिए आर्यन भी यहां आया हुआ था। आर्यन की कॉलोनी का आलम ये था कि शाम को ज़रा ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 87

इस बंटिम तेहरानवाला का भी जवाब नहीं। कहने को आर्यन का पीए था, पर कई- कई दिन तक दिखाई देता। जब घर से लौटने के बाद पूरे दो दिन तक भी आर्यन को जनाब के दर्शन नहीं हुए तो उसने खाना बनाने वाले लड़के से पूछा- बंटी कहां है? लड़का सिर खुजाता इधर- उधर देखता वापस चला गया मानो बंटी को ढूंढ कर लाने ही निकल रहा हो। फ़िर एकदम पलट कर वापस आया और बोला- साब तो कोट्टायम गए हैं। आर्यन को खीज हुई पर अब इस एब्सेंट- माइंडेड लड़के से क्या पूछे! आर्यन कपड़े बदलने लगा। आर्यन ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 88

दिन कितनी जल्दी बीतते हैं।इन चांद और सूरज को देखो, चक्कर काटते ही रहते हैं। ये नहीं, कि कभी ज़रा रुक कर दम ले लें। इंसान को कभी तो ऐसा लगे कि हां, चलो आज ज़रा ज़्यादा वक्त मिल गया। चौबीस घंटे हुए नहीं कि बस, दिन हाथ से छिन गया।तो ये दिन ऐसे ही अपने वक्त के शाश्वत हिसाब से झटपट बीत गए और मधुरिमा व तेन का वापस जापान लौटने का टाइम आ गया।- हाय, हमेशा यहां नहीं रह सकते क्या? मधुरिमा ने अंगड़ाई लेते हुए लापरवाही से तेन से पूछा।तेन बोला- किसके लिए रुकना है यहां, ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 89

ऐसा पहली बार हो रहा था। पहले कभी सुना नहीं! दिल्ली के एक आलीशान सुपर सितारा हॉस्पिटल ने डॉक्टरों एक बड़ी भर्ती की थी। और ख़ास बात ये थी कि यहां आने वाले डॉक्टरों को पगार के रूप में करोड़ों के पैकेज ऑफर किए गए थे। इंसान के लिए भगवान कहे जाने वाले इन पेशेवरों पर इतना भारी - भरकम चढ़ावा खुले तौर पर पहले कभी नहीं चढ़ता था। हां, ये बात अलग है कि कुछ लोग चोरी छिपे धोखा- धड़ी से चाहे इससे भी ज्यादा कमा लें। ये पेशा ही ऐसा था। इसमें नाम कमाने के लिए भावना ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 90

दुनिया कितनी छोटी है। पहचाने हुए रास्ते...सब लोग कहीं तो मिलेंगे, कभी तो मिलेंगे! आगोश की मम्मी ने बेटा था। और आज उन्हें बेटे का दोस्त मनन दामाद के रूप में मिल गया। उनकी लखनऊ वाली बहन की बेटी मान्या शादी करके जब जयपुर आई तो मनन की ही दुल्हन बन कर। और सच पूछो तो शादी करके आई भी कहां, उसकी तो शादी भी यहीं से हुई। डॉक्टर साहब के बंगले से! मान्या के माता- पिता को बड़ा आराम रहा। उनका दामाद बारात लेकर जिस बंगले में आया वो तो उसका बचपन से देखा - भाला, अपने दोस्त ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 91

रात के साढ़े तीन बजे थे। आर्यन मुंबई में अपने बेडरूम में बेखबर सोया हुआ था। बाक़ी स्टाफ के नीचे ऑफिस के साथ वाले कमरे में थे। फ़ोन की घंटी बजी। - इस वक्त? क्या मुसीबत है! आर्यन आंखें मीचे हुए ही भुनभुनाया। घंटी फ़िर बजी। रात के सन्नाटे में स्वर और भी कर्कश सा लग रहा था। कुछ देर तक आवाज़ की अनदेखी करके आख़िर आर्यन ने मोबाइल उठा कर कान से लगाया। उधर से कुछ सहमी घबराई हुई सी आवाज़ आई- सर, माफ़ करना, इतनी रात को आपको डिस्टर्ब कर रहा हूं... पर सुबह के इंतजार तक ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 92

पूरी बात जानकर आगोश की मम्मी बेहोश होकर गिर पड़ीं। मान्या ने मनन को आवाज़ दी और दोनों ने उन्हें संभाला। ये भी अच्छा था कि आज मान्या और मनन वहीं थे, वरना आमतौर पर तो वो अकेली ही होती थीं। उनके पति तो अगर शहर में होते भी थे तो अक्सर क्लीनिक में ही होते थे। जब आर्यन का फ़ोन आने पर उन्होंने आवाज़ देकर डॉक्टर साहब को पुकारा था तो वो आ नहीं सके। वो अपने कमरे में ही थे मगर आज सुबह- सुबह एक बेहद मोटी सी किताब लेकर उससे उलझे हुए थे। वो पत्नी के ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 93

ओह, ये तो सचमुच जादूगर है। आर्यन रात को तो बिस्तर पर पड़ा- पड़ा बंटी को कोस रहा था ये न जाने किन गोरखधंधों में लगा रहता है, कभी दिखाई ही नहीं देता, पता नहीं कौन से साए- बधाए इसे व्यस्त रखते हैं... लेकिन सुबह- सुबह उसे बंटी का मैसेज मिला कि लड़की ने हां कर दी। उसे बंटी पर प्यार आ गया। लड़का सचमुच इतना चलता- पुर्जा है कि इसे कोई भी काम बताओ, चुटकियों में पूरा कर ही छोड़ता है। आर्यन की स्टारडम उसी के सहारे कायम थी। बात दरअसल ये थी कि अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म परियोजना ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 94

मधुरिमा का दिल मानो बल्लियों उछलने लगा। उसने कभी नहीं सोचा था कि ज़िन्दगी में कभी ऐसे दिन भी रंग भरे उमंग भरे! किसने सोचा था कि जापान के तमाम बड़े शहरों से दूर निहायत ही अलग- थलग पड़ा ये छोटा सा कस्बा, और उसके किनारे पर बिल्कुल ग्रामीण इलाकों की तरह फ़ैला- बिखरा उसका ये फार्महाउस कभी इस तरह गुलज़ार भी होगा। लेकिन तेन की मिलनसारिता और मेहनत के बदौलत ऐसे दिनों ने भी उसकी ज़िन्दगी के द्वार पर दस्तक दी जिनकी संभावित ख़ुशबू से ही उसके आने वाले दिन महक गए। अपनी मां और पापा को ख़ुश ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 95

ये अजीब था। ये किसी परा-वैज्ञानिक की खोज थी। इसकी पुष्टि भी कई अनुभवी विद्वानों ने की थी। दुनिया हर प्राणी में मस्तिष्क तो होता ही है चाहे ये विशालकाय हो या फिर छोटा सा। और ये सबमें अलग - अलग होता है। अलग प्रजाति के प्राणी में तो अलग होता ही है, एक ही नस्ल के जंतुओं में भी एकसा नहीं होता। सब अलग- अलग बनावट का दिमाग़ रखते हैं इसीलिए अलग - अलग बर्ताव भी करते हैं। और वो आदमी जादू जानता था। जादू ही तो था ये। अर्थात वो एक जानवर का दिमाग एक प्राणी से ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 96

वे पेड़ों पर चढ़े हुए थे। ठठाकर हंसते थे, और वहीं बैठे- बैठे कुछ खा भी लेते थे। वे अपने - अपने काम में दक्ष थे, ये सब उन्होंने सीखा था। उन्हें तेन के एक दोस्त ने भेजा था। कुछ साल पहले तेन भूटान गया था। वो अपनी पर्यटन कंपनी के प्रस्तावित ट्रिप्स के लिए मनोहारी डेस्टिनेशन्स तलाशता घूम ही रहा था कि उसकी मुलाक़ात एक स्थानीय किसान से हो गई। इस बूढ़े किसान की दास्तान भी बड़ी दर्दनाक थी। कभी उसके पास बहुत ज़मीन होती थी। ख़ूब खेती भी। उसका बड़ा परिवार था। लेकिन एक दिन सारे परिवार ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 97

डिस्कशन बहुत रोचक होता जा रहा था। - नहीं- नहीं, अब समय बदल गया है। ऐसी बातें कोई नहीं डायरेक्टर उजास बर्मन बोले। प्रोड्यूसर साहब हंसे, बोले- इसीलिए तो हमें सोचना चाहिए, जो कोई नहीं सोचता उसमें ही तो नयापन होता है। जो सब सोचें उसमें क्या नवीनता। क्यों आर्यन? प्रोड्यूसर ने अपनी बात के लिए आर्यन का समर्थन पाने के लिए उसे भी बहस में आमंत्रित किया। दरअसल ये बहस हो रही थी आर्यन के डायरेक्टर और फ़िल्म के निर्माता महोदय के बीच। तीनों टोक्यो की फ्लाइट के लिए सिक्योरिटी चैक करवा कर वेटिंग लाउंज में बैठे थे। ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 98

धरती गोल है। और गोल चीज़ कितनी भी बड़ी हो, छोटी सी ही दिखती है। लुढ़कती है तो सब बार- बार आंखों के सामने आ जाता है। लेकिन इस वक्त तो आंखों के सामने कुछ नहीं आ रहा था। केवल धुआं ही धुआं। आंखों से पानी। बुरी तरह लपटें उठ रही थीं आग की। भगदड़ मची हुई थी। दिल्ली शहर से एक के बाद एक दमकलें घंटियां बजाती सड़कों पर दौड़ी चली आ रही थीं। लेकिन ज्वाला थी कि थमने में ही नहीं आ रही थी। लगता था मानो सब कुछ भस्म हो कर रहेगा। ये कोई जंगल की ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 99

इतिहास कभी न कभी अपने आप को दोहराता है। भारत का तमाम फ़िल्म मीडिया आज इसी गुदगुदाने वाली दिलचस्प से भरा पड़ा था। केवल फ़िल्म मीडिया ही क्यों, सभी महत्वपूर्ण खबरिया चैनलों पर इस घटना को जगह मिली थी। वर्षों पहले एक फ़िल्म की शूटिंग के दौरान आग लगने पर सुनील दत्त ने फ़िल्म में उसकी मां की भूमिका निभा रही अभिनेत्री नर्गिस को बचाया था और देखते- देखते उन दोनों का विवाह ही हो गया। वो पति- पत्नी बन गए। ठीक वैसा ही वाकया अब कई दशक के बाद एक बार फ़िर पेश आया जब एक सर्बियाई अभिनेत्री ...और पढ़े

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टापुओं पर पिकनिक - 100 (अंतिम भाग)

कार सड़क पर बेतहाशा दौड़ रही थी। सुबह - सुबह का समय होने से कुछ तो ट्रैफिक भी कम और कुछ बात ही ऐसी थी कि साजिद उड़ कर आंटी के पास पहुंच जाना चाहता था। मनप्रीत भी उसकी उत्तेजना देख कर साथ चली आई थी। जब वो दोनों बंगले पर पहुंचे आंटी पूरी तरह बिस्तर से उठी नहीं थीं। वो अधलेटी सी ही चाय पी रही थीं जो उनके यहां काम करने वाली लड़की रसोई से उन्हें देकर गई थी। मनप्रीत के रोकते- रोकते भी साजिद बोल ही पड़ा- आंटी, अताउल्ला और सुल्तान मर गए। आंटी ने उसकी ...और पढ़े

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