टापुओं पर पिकनिक - 88 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 88

दिन कितनी जल्दी बीतते हैं।
इन चांद और सूरज को देखो, चक्कर काटते ही रहते हैं। ये नहीं, कि कभी तो ज़रा रुक कर दम ले लें। इंसान को कभी तो ऐसा लगे कि हां, चलो आज ज़रा ज़्यादा वक्त मिल गया। चौबीस घंटे हुए नहीं कि बस, दिन हाथ से छिन गया।
तो ये दिन ऐसे ही अपने वक्त के शाश्वत हिसाब से झटपट बीत गए और मधुरिमा व तेन का वापस जापान लौटने का टाइम आ गया।
- हाय, हमेशा यहां नहीं रह सकते क्या? मधुरिमा ने अंगड़ाई लेते हुए लापरवाही से तेन से पूछा।
तेन बोला- किसके लिए रुकना है यहां, बोलो, मैं उसे भी साथ में जापान ले चलूंगा।
मधुरिमा ने झपट कर तेन के मुंह पर हाथ रख दिया।
मन ही मन बोली- तौबा- तौबा...बाबा कुछ नहीं बोलूंगी, आज चलो, अभी चलो... मेरी दुनिया वहीं है जहां तुम हो! मैं तो मज़ाक कर रही थी।
घर पर सुबह से ही तैयारियां शुरू हो गईं। दोपहर बाद निकलना था।
मधुरिमा की मम्मी सुबह तड़के से ही उठ कर तरह- तरह की तैयारियों में जुटी हुई थीं। सच पूछा जाए तो उनके लिए तो बेटी पहली बार ही पीहर से विदा हो रही थी। पिछली बार तो उसे पढ़ने के लिए भेजा था और उसका विवाह भी हुआ तो इस तरह कि जैसे कोई गुड्डा- गुड़िया का खेल हो। वो कन्यादान तक न कर सकीं।
मन में बेटी बिदा करने की उमंग भी थी और आंखों में बार- बार छलक आते आंसू भी। सबसे बड़ा ख़ालीपन तो नन्ही गुड़िया तनिष्मा के जाने से आने वाला था जो अब नानी नानी कह कर उनके आगे- पीछे घूमना सीख गई थी।
समीर के कमरे में पहुंच कर मधुरिमा उससे बोली- पप्पू, अब मुझे वापस बुलाना तो तेरे हाथ में ही है। जल्दी से किसी लड़की को पटा और झटपट उसे दुल्हन बना कर ला, तभी आयेंगे अब हम लोग।
पप्पू हंस कर बोला- चिंता मत करो दीदी, मुझे लड़की पटानी नहीं है बस केवल पटाई हुई फ़ौज में से एक छांटनी है।
- बेशरम, इतनी सारी लड़कियां पटा कर बैठा है तो मुझसे मिलवाया क्यों नहीं? अभी हाथों- हाथ सही कन्या छांट कर तय करवा देती तेरी शादी। मधुरिमा ने कहा।
समीर बोला- वाह दीदी, अपना दूल्हा तो तुमने ख़ुद पसंद कर लिया और चाहती हो कि मैं अरेंज्ड मैरिज करूं?
मधुरिमा कुछ गंभीर हो गई।
उसका उतरा हुआ चेहरा देख कर समीर को कुछ ग्लानि सी हुई, एकदम से बोला- अरे दीदी नो प्रॉब्लम... तुम लड़की छांट देना, मैं उसी से लव कर लूंगा। तो दोनों का कॉम्बिनेशन हो जाएगा- लव मैरिज भी और अरेंज्ड मैरिज भी।
मधुरिमा का चेहरा खिल गया।
पप्पू बताने लगा कि उसने कई कंपिटीशन परीक्षाएं दे रखी हैं बस उनमें से किसी में भी जॉब लगे और पहली सैलरी मिलते ही रिंग सेरेमनी करनी है।
मधुरिमा बोली- रिंग की चिंता मत कर, वो तो तेरे जीजाजी दे देंगे, तू तो बस अंगुली बता, जिसमें पहनानी है।
तभी कमरे में तेन ने प्रवेश किया।
वह इतनी देर से मधुरिमा के पापा से बातचीत में लगा था। उसे ये पता नहीं था कि दोनों भाई - बहन में आपस में क्या बातचीत चल रही है।
फ़िर भी बोला- समीर, देखो, कल मैंने जौहरी बाजार से चार डायमंड रिंग्स खरीदी हैं, तुम्हें पसंद है तो जस्ट हैव वन!
कह कर तेन ने एक बहुत बड़ा हीरा जड़ी हुई सुंदर सी अंगूठी पप्पू की ओर बढ़ाई।
पप्पू चकित रह गया। मधुरिमा भी आश्चर्य से देखने लगी। उसे सचमुच कुछ पता नहीं था कि तेन कब और कहां से जाकर ये शॉपिंग करके लाया।
शायद कल शाम को सिद्धांत जब तेन को अपने साथ घुमाने ले गया था तब उसी ने दिलवाई होंगी।
- वाह! वंडरफुल। पप्पू खड़ा होकर ख़ुशी से तेन से लिपट गया।
तेन ने बताया कि कल सिद्धांत और मनन के साथ बाज़ार में घूमते हुए ये अंगूठियां खरीदीं।
मनन भी कुछ ज्वैलरी ख़रीद रहा था, उसी ने तेन को भी उकसाया कि यहां जैसे डिजाइंस और कहीं नहीं मिलेंगे, लेकर देखो। तब तेन ने इन्हें ले लिया।
जैसे जैसे दोपहर के बाद निकलने का समय नज़दीक आता जा रहा था मधुरिमा के मन की उथल- पुथल बढ़ती जा रही थी।
आज उससे खाना भी ढंग से नहीं खाया गया जबकि मम्मी ने सुबह से ही लग कर उसकी पसंद की सब चीज़ें बनाई थीं।
तेन तो चटखारे लेकर ख़ूब खा गया।
तेन मम्मी से बोला- मम्मी नेक्स्ट टाइम जब हम लोग आयेंगे तब आप ये सब मुझे भी बनाना सिखा देना।
- क्यों, तुम क्या जापान में इंडियन डिशेज़ का रेस्त्रां खोलोगे? मधुरिमा बोल पड़ी।
- वैसे आइडिया अच्छा है, वहां आगोश का अपने ऑफिस में रखा हुआ कुक फ़्री है, हम उसे सैटल कर सकते हैं।
आगोश का ज़िक्र आते ही एक बार फ़िर से घर का माहौल थोड़ा गंभीर हो गया।
मधुरिमा के पापा तेन से बोल पड़े- अब उस ऑफिस का क्या होगा जो आगोश ने वहां लिया था।
- नो चेंज... उसमें तो वही काम चलने वाला ही है, जिसकी प्लानिंग हम लोगों ने की थी और जिसके लिए कंपनी बनाई थी। तेन ने समझाया।
तभी कुछ हलचल हुई और बाहर से मनप्रीत और साजिद ने प्रवेश किया। मनप्रीत के हाथ में एक बड़ा सा गिफ्ट था जो उसने तेन के हाथ में पकड़ाया।
- अरे बाबा! सब पैकिंग हो गई है अब ये कहां रखा जाएगा? मधुरिमा बोली।
- सूटकेस में से अपने कपड़े निकाल कर यहीं छोड़ जाना और इसे रख लेना। मनप्रीत बोली।
- मेरे कपड़े यहां कौन पहनेगा? मधुरिमा ने कहा।
तभी आवाज़ सुन कर भीतर से पप्पू भी निकल कर बाहर चला आया जो भीतर एक बड़े से डिब्बे में नाश्ते का वो सामान पैक कर रहा था जो मम्मी अभी- अभी उसे देकर गई थीं।
मधुरिमा की बात सुनकर पप्पू बोल पड़ा - अब अगर तुम कपड़े यहां छोड़ ही जाओगी तो हम किसी को ढूंढेंगे जो ये कपड़े पहन सके।
- अच्छा, तू अपनी बीबी को ये पुराने कपड़े पहनाएगा? वो तुझे दो दिन में छोड़ कर भाग जाएगी। मधुरिमा ने कहा।
- लो अभी आई तो है नहीं, और छोड़ कर भागने की बात भी होने लगी? शुभ- शुभ बोल!
- विदेशी कपड़े कभी पुराने नहीं होते, हमारे देश में तो लोग पुराने विदेशी कपड़ों पर टूट कर पड़ते हैं। चाहें फटे हों या गंदे। पप्पू बोला।
अब साजिद की आवाज़ आई, वो मनप्रीत की ओर देख कर बोला- ले तू बाज़ार में घूम - घूम कर जाने कहां से क्या- क्या इकट्ठा कर लाई और अब तेरे कारण बेचारे समीर की दुल्हन को पुराने कपड़े पहनने पड़ रहे हैं और हमारे देश को ये टोंट सुनना पड़ रहा है कि हम विदेशी कपड़ों के पीछे भागते हैं।
तभी मधुरिमा की मम्मी एक ट्रे में सभी के लिए शेक लेकर आ गईं और बातचीत का रुख बदल गया।
- आंटी कौन - कौन जा रहा है एयरपोर्ट? मनप्रीत ने पूछा।
जवाब मधुरिमा ने दिया- कोई नहीं जाएगा... मैंने ही मना किया है। क्यों परेशान होते हैं सब? हम लोग चले जाएंगे। बेकार में आने- जाने में दस घंटे की जर्नी होगी। मम्मी तो चलने को कमर कस कर तैयार बैठी हैं पर सबका जाना तो फ़िज़ूल ही है न, पहुंचते ही हम तो फ्लाइट ले ही लेंगे। जब तक हम जापान पहुंचेंगे इतना ही टाइम आप लोगों को भी यहां आते- आते लग जाता... क्या फ़ायदा?
- बात तो ठीक है। ये आवाज़ पापा की थी जो सुबह तक तो चलने की तैयारी कर रहे थे पर बाद में उन्हें मधुरिमा ने समझा दिया।
- तनिष्मा कहां है? मनप्रीत बोली।
- उसे तो इंडिया में सबसे ज़्यादा मज़ा सोने में ही आया है। अब भी घोड़े बेच कर सो रही है। मधुरिमा बोली।
वातावरण फ़िर कुछ बोझल सा हो गया।